संदीप
कुमार मिश्र: जगत के पालनहाल भगवान श्री हरि
विष्णु।जिनकी महिमा अनंत है,अपरंपार है,और भगवान श्री हरि के चरणों में निवास करती
हैं माता लक्ष्मी।जिनकी कृपा से हम सांसारिक मोहमाया प्राप्त कर पाते हैं।जिनके
पास रहने पर हम धनवान बन जाते हैं और अगल हमारे पास लक्ष्मी नहीं है तो हम रंक बन
जाते हैं।हमारे जीवन में धन की बड़ी महत्ता है,क्योंकि धन के बगैर कुछ भी संभव
नहीं है,सुख और ऐश्वर्य की प्राप्ति धन से ही संभव है जिसके लिए जरुरी है हम पर
माता लक्ष्मी की कृपा सदैव बनी रहे।हमारे कर्म इतने नेक हो कि धन प्राप्ति के
मार्ग सदैव बने रहे।क्योंकि कर्म प्रधान लोगों के पास ही धन सम्पदा रहती है।
लेकिन
क्या आप जानते हैं कि माता लक्ष्मी हमेशा ही भगवान श्रीहरि विष्णु के चरणों में ही
क्यों रहती है,श्रीहरि की सेवा में ही क्यों लगी रहती है?
दरअसल
हमारे धर्म शास्त्रों में जहां कहीं भी वर्णन है वहां भगवान विष्णु के चरण दबाते
हुए माता लक्ष्मी की चर्चा की गई है।जिसका मूल में है कि भगवान श्री हरि ने माता
लक्ष्मी को अपने पुरुषार्थ के बल पर ही वश में कर रखा है।इसलिए इस बात को जान
लीजिए कि माता लक्ष्मी उन्हीं के वश में रहती है जो हमेशा कर्म पर विश्वास रखते
हैं और सर्वे भवंतु सुखिना का भाव मन में रखते हैं।यही वजह कि इस चरपाचर जगत में
आवश्यकता के अनुसार श्रगवान ने अनेकों अवतार लिए और संसार का कल्याण किया।भगवान
विष्णु मोह-माया से परे है। वे तो स्वयं दूसरों को मोह में डालने वाले हैं।
जिसका
प्रमाण समुद्र मंथन के समय सहज ही देखने को मिल जाता है।हम सब जानते हैं कि भगवान
विष्णु ने देवताओं को अमृत पान कराने के लिए असुरों को मोहिनी रूप धारण करके अपने सौंदर्य
जाल में फंसाकर मोह में डाल दिया।उसी समय माता लक्ष्मी मंथन से प्रकट हुई।जिन्हें
प्राप्त करने के लिए देवता और असुरों में घनधोर,घमासान युद्ध हुआ।लेकिन माता
लक्ष्मी ने जगत के पालनहार भगवान विष्णु का वरण किया।
ऐसे
तो लक्ष्मी का स्वभाव विशुद्ध रुप से चंचल है, उन्हें
एक जगह पर रोक पाना असंभव है।लेकिन फिर भी वे भगवान विष्णु के चरणों में ही रहती
है।यहीं पर मनुष्य के धैर्य की परीक्षा होती है क्योंकि जो भी जन सामान्य लक्ष्मी या
माया की चंचलता और मोह में फंस जाता है,लक्ष्मी उससे उतनी ही दूर हो जाती है ।कहने
का भाव है कि भाग्य के भरोसे बैठ जाने से लक्ष्मी का दूर होना स्वाभाविक है,इसलिए
कर्म करते रहने में तनिक भी संकोच नहीं करना चाहिए।भाग्य एक बार लक्ष्मी की
प्रप्ति करवा सकता है लेकिन उसे बनाए रखने के लिए कर्म करना ही पड़ेगा।
अंतत:भगवान श्रीहरि के चरणों माता लक्ष्मी
इसीलिए निवास करती है क्योंकि भगवान विष्णु लक्ष्मी का सही सदुपयोग जानते हैं
उन्हें वश में रखना जानते हैं।इसलिए मित्रों सरलता और सजगता से नेकी की राह पर
चलते हुए कर्म करते जाइए माया (लक्ष्मी)कभी आपसे दूर नहीं होगी।
महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्वरि।हरि प्रिये
नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दया निधे ।।
पद्मालये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं च
सर्वदे।सर्व भूत हितार्थाय, वसु सृष्टिं सदा कुरुं ।।
माता
महालक्ष्मी धन और वैभव की अधिष्टात्री देवी हैं. ऊपर दिए गए मंत्र का
श्रद्धापूर्वक जप करने से मनुष्य मात्र की सभी अभिलाषाएं पूरी हो जाती हैं।