संदीप कुमार मिश्र: तारीख पर तारीख...आखिर और कितनी तारीख।आस्था और
विश्वास के इस देश में करोड़ों-करोड़ों के आराध्या प्रभु श्रीराम...जिनकी महिमा का
बखान यूगों-यूगों से वेद,पूराण ग्रंथ गाते रहे हैं...जिनकी जीवनी का गुणगान निरंतर
संत महात्मा बताते हैं,लेकिन ऐसे प्रभु श्रीराम का अपने ही घर में ठिकाना टेंट और
तंबू के नीचे है। सवाल उठता है कि क्या अयोध्या को इंसाफ मिलेगा,क्या कभी रामलला
टेंट से मुक्त हो पाएंगे।अगर हो पाएंगे तो आखिर कब तक।क्योंकि 1528 से 2017 तक
यानी तकरीबन 600 वर्ष का समय बीत चुका है लेकिन अयोध्या आज भी इंसाफ का इंतजार कर
रही है। करोड़ों-करोड़ों के आराध्य रामलला खुद को न्याय और घर(मंदिर) पाने के लिए कभी
ट्रायल कोर्ट तो कभी हाई कोर्ट और कभी सुप्रीम कोर्ट में भटक रहे हैं और मिल रही
है तो सिर्फ तारीख पर तारीख...और सिर्फ तारीख...।जिस प्रकार राम मंदिर निर्माण का सियासीकरण
शुरु हुआ उसका दंश श्रीराम भक्त आखिर कब तक झेलते रहेंगे।
इतिहास में अयोध्या
और श्रीराम मंदिर
दरअसल इतिहास में
ऐसा कहा गया है कि 1494 में टर्की के एक छोटे से कुनबे का बादशाह था बाबर। जिसने
भारत पर कई बार आक्रमण किया।एक बार नहीं बल्कि पांच-पांच बार बाबर ने आक्रमण किया।एक
बात यहां स्पस्ट कर दें कि बाबर ना तो पाकिस्तानी था न ही अफगानी था,वो तो टर्की
का रहने वाला था।पांच बार बाबर ने हिन्दुस्तान पर हमला किया लेकिन उसे सफलता पांचवीं
बार मिली।जिसका परिणाम था कि उसकी हुकूमत हमारे देश पर वर्षों तक रही।इतिहास में
ऐसा वर्णन मिलता है कि सन 1528 के आसपास बाबर की सेना और सेनापती ने अयोध्या में
राम मंदिर को तोड़कर मस्जिद बनवायी और नाम रखा बाबरी मस्जिद।ऐसा इतिहास में कहा
गया है, जिस सच्चाई पर मुहर लगाते हुए हाईकोर्ट ने भी सही माना।1528 से 2017 तक
देश ने बहुत कुछ देखा,झेला,सहा और सह रहे हैं, लेकिन 600 वर्षो का एक लंबा अंतराल
बीत गया।इतने दिनो में ना जाने कितनी बार सूरज निकला और अस्त हो गया।कितनी सल्तनतें,
सियासते आई और चली गई,लेकिन राम की नगरी अयोध्या का मुद्दा उसी चौराहे पर खड़ा है
और करोड़ो-करोड़ो हिन्दूओं के आराध्य देव मर्यादापुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम आज भी
उसी तिरपाल में बैठे हैं...।
हिन्दू आस्था पर चोट
का नतीजा और आहत होने का ही परिणाम था कि आज से 25 साल पहले 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या
में हुई घटना ने राजनीति के ताने-बाने को बदल कर रख दिया।ये वो दिन था जब अयोध्या
से निकली आंधी पूरे देश में फैल गई।25 साल पहले यही वो तारीख थी जब अयोध्या में
हलचल और सरगर्मी तेज हो गई थी।6 दिसंबर के ठीक एक दिन पहले यानी 5 दिसंबर को लाखों
की संख्या में कारसेवक अयोध्या में इकट्ठा हो गए और देश के कोने-कोने से राम
सिलाएं अयोध्या पहुंच चुकी थीं। इसी दिन अयोध्या में कुछ ऐसा ऐतिहासिक होना था
जिसकी कल्पना भर से जुबान पर सिर्फ जय श्री राम ही निकलता है...।जी हां विवादित
ढ़ांचे को कारसेवकों ने ध्वस्त कर दिया था और फिजाओं में जय श्रीराम का उद्घोष गुंजायमान
हो गया।
परिणामस्वरुप 2010 में
हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए माना कि विवादित परिसर ही राम
जन्मभूमि है।आपको बता दें कि 1853 में पहली बार श्रीराम मंदिर विवाद सामने आया था।क्योंकि
ये तो अटल सत्य था कि मंदिर तोड़कर ही मस्जिद बनाई गई थी।उस वक्त इस बात पर विवाद
बढ़ा और हिन्दू और मुसलमानो के बीच हिंसा भी हुई।जिसपर तब ब्रिटिश सरकार ने इसे
विवादित भूमि मानकर विवादित स्थल पर बाड़ लगाकर हिन्दू और मुसलमानो के लिए अलग-अलग
पूजा स्थल तय किए।1885 में पहली बार ये मामला अदालत पहुंचा।
तब से लेकर अब तक
सियासी दखलंदाजी की वजह से ही राम मंदिर का मुद्दा अदालती कार्यवाही में लटकता रहा।दो
पक्षकार बन गए...एक मंदिर का तो दूसरा मस्जिद का...जिसका परिणाम था कि धीरे-धीरे
ये मामला सियासी भंवर में फंसकर रह गया।1984 में विश्व हिन्दू परिषद ने राम मंदिर
बनाने का ऐलान किया और 1986 में फैजाबाद डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट ने विवादित स्थल पर
हिंदूओं को पूजा की इजाजत दे दी।ताले दूबारा खोले गए,जिससे नाराज मुस्लिमों ने
बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया।9 दिसंबर 1989 को उस समय की राजीव गांधी
सरकार ने बाबरी मस्जिद के नजदीक ही राम मंदिर के शिलान्यास की इजाजत दे दी।जिससे
कि विवाद और बढ़ गया।परिणाम हुआ कि श्रीराम मंदिर का मुद्दा आस्था का कम और सियासी
बनता गया।कई बार अलग-अगल सुझाव तो दिए गए लेकिन सहमति नहीं बन पाई।
ना ही सुलह की कोई
उम्मीद बची दिख रही है।सवाल ये है कि श्रीराम के देश में राम मंदिर का निर्माण
नहीं होगा तो फिर कहां होगा।कब तक राम के नाम पर सियासत होती रहेगी और कब तक इसी
तरह तारीख पर तारीख पड़ती रहेगी और कब तक मर्यादा पुरुषोत्तम प्रभु श्रीराम तिरपाल
में रहने को विवश रहेंगे।आखिर कब तक...।
नियमित सुनवाई से
कुछ उम्मीद बनी कि रामलला को न्याय मिल पाएगा, लेकिन सिर्फ इस स्वार्थ में कि राम
मंदिर पर निर्णय का लाभ कहीं सत्तारुढ़ भारतीय जनता पार्टी को ना मिल जाए सिर्फ
इसलिए ही कांग्रेस के एक दिग्गज और वरिष्ठ नेता वकील कपिल सिब्बल ने कोर्ट में
सीजेआई के सामने इसे 2019 तक टालने का प्रस्ताव दिया।अब आप ही निर्णय करें सियासत
से उपर उठकर क्या जरुरी नहीं था कि राम मंदिर पर नियमित सुनवाई हो और शांति के साथ
फैसला आए और दोनो पक्ष उस फैसले का स्वागत करें।क्योंकि चुनाव तो हमारे देश में हर
साल होने हैं ऐसे में सियासी तराजू से देखते हुए राम मंदिर की सुनवाई में व्यवधान
पैदा करना कहां तक न्यायसंगत था ? अदालत तो फैसला करेगी ही लेकिन फैसला आपको भी
करना है कि आखिर ऐसी सियासी पार्टियों के साथ क्या करना है,क्योंकि जो राम का नहीं
हो सका वो क्या हमारा और आपको हो पाएगा।फूट डालो और राज करो की नीति आखिर हम
भारतीय कब तक बर्दास्त करते रहेंगे...आखिर कब तक....!
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