संदीप
कुमार मिश्र: (गांव के चौराहे पर चर्चा करते हुए कुछ लोग) का
भईला...आ बिहार त रोजे नया नया रुप रंग धई लेत बा...ई कुर्सीया में बड़ा दम बा
जी...कुछो करवा दे...कब गठबंधन.... आ कब लठबंधन....केहु नईखे जानत....आ ठिके
बा...नाही त मउज कईसे आई...।
अरे
भईया कहे के ना चाही(दबी आवाज में)लेकिन ई लालू जी त अगिये मुतत नू रहले...मेहरी,
लईका, दामाद आ अपने खुदे...केतना घोटाला करिहें ही...
सुनिले
कि कई हज्जार करोड़न के प्रापर्टी कई लिहले बा सार...बहुते बड़का डकईत बा...ऐ भाई
हम त पहिलहीं कहले रहलीं न कि इ चल ना पाई...कांहे कि सुससना ढ़ेर दिन बर्दास्त
नईखे कई पाई...
त
का भईल...दुनो हाथ मे त लड्डू बा...एगोके छोड़...आ दूसरका के थामी ल...उहो त
तैयारे बईठल नू बाआआआ...हा हा हा हा हा (ठहाका लगता है,चाय की चुस्की के साथ)
खैर
इस बात में तो कोई शक सुबहा नहीं है कि सुशासन बाबु की राजनीतिक,कुटनीतिक समझ और मौके
का लाभ उठाने की कला उनमें अद्वितीय है।सही समय पर सही फैसला और सही निर्णय के साथ
ही अपनी गलतियों से सीख कर फिर से तरोताजा होकर उभरना कोई नीतीश कुमार से सीख सकता
है...।
तकरीबन
महीने भर चली आक्रोश और खामोशी का अंत हो ही गया और बिहार में चल रहा महागठबंधन...लठबंधन
में तब्दिल हो गया।महागठबंधन के सीएम साहेब नीतीश कुमार अब एनडीए के मुख्यमंत्री हो
गए हैं।लालू का लालटेन खंड़-खंड़ हो गया है...क्योंकि धनुष पर प्रत्यंचा स्वयं
नीतीश कुमार ने चढ़ाई थी, नजर लालटेन पर थी तो नेपथ्य में खड़े थे स्वयं वर्तमान
सियासत में अग्रगण्य मोदी-शाह की यूगल जोड़ी...मुस्कुराहट भरे नजरों का इशारा पाकर
अपनी तीव्र गति से जलती हुई लालटेन 24 घंटे के अंदर ही ऐसे धराशायी हो गई जैसे
पानी के बीना मछली छटपटाने लगती है ।
अलविदा
महागठबंधन: नीतीश कुमार
मंजिल
को तय करते हुए रास्ते में बरसात हो जाए तो किसी पेड़ का सहारा लेना कोई बुरा नहीं
है।बरसात खत्म और मंजिल की तरफ बढ़ गए कदम।कुछ ऐसा ही हुआ बिहार की सियासत में...
नीतीश कुमार ने महागठबंधन को बाय-बाय कहा और अपने पुराने साथी बीजेपी(एनडीए) का
दामन थाम लिया।जिसकी वजह से लालू और कांग्रेस का बिहार में नुकसान होना तय
है।बीजेपी के लिए ये सब किसी मनोकामना पूर्ण होने जैसा है। क्योंकि कांग्रेस मुक्त भारत की ओर
बढ़ते बीजेपी के कदम को एक और सफलता मिल गयी । एक अहम राज्य उनकी झोली में और आ
गया...इस पूरे घटनाक्रम में एक बात तो थी कि नीतीश कुमार एक सर्वमान्य नेता और नायक
के तौर पर उभर कर सामने आए...क्योंकि जनसामान्य में जो संदेश गया वो ये की कि उसूलों के लिए नीतीश ने अपने पद से
इस्तीफा दे दिया।
समय
और काल की परिस्थिति की समझ ही है कि नीतीश कुमार की राजनीतिक समझ पर किसी प्रकार
का कोई संदेह कोई नहीं कर सकता... एक गलती के तौर पर आप कह सकते हैं कि 2013 में
एनडीए से अलग होना नीतीश जी की राजनीतिक भूल हो सकती है क्योंकि लोकसभा चुनाव में
उनकी सीटों की संख्या घटकर 2 रह गयी...।
जब
बिहार विधान सभा चुनाव में महागठबंधन हुआ तो नीतीश कुमार की बड़ी आलोचना हुई।लेकिन नीतीश जानते थे कि वो क्या कर
रहे हैं...विधान सभा चुनाव के दौरान नीतीश यदि बीजेपी के साथ रहते तो कहीं ना कहीं
उनकी स्थिति उस योद्धा की तरह होती जो युद्ध में हार के बाद आत्मसमर्पण करने जा
रहा हो।लेकिन नीतीश कुमार अपने मुख्य सहयोगी लालू यादव के साथ मिलकर दो माइनस मिलकर एक प्लस बनाने की दिशा
में आगे बढ़ गए। जिसका परिणाम था कि नीतीश की बिहार चुनाव में विजय हुई और बीजेपी
को हार का सामना करना पड़ा। इस जीत से नीतीश एक सर्वमान्य नेता बने जिससे बीजेपी
का आकर्षण नीतीश के प्रति बना रहा... जिसका परिणाम है कि बीजेपी को नीतीश का साथ
पसंद है।
खैर
एक बात तो तय है कि भविष्य में देश की राजनीति में बहुत कुछ नया देखने को
मिलेगा।जिससे मीडिया में खबरों का टोटा भी नहीं रहेगा..टीआरपी भी बनी रहेगी।