संदीप कुमार मिश्र: भारत आस्था और
विश्वास का देश है।जहां पत्थरों को भी पूजा है,और पेड़-पौधों में भी ईश्वर का वास
माना जाता है।यही आस्था और विश्वास हमें एकता और समभाव के एक सुत्र में जोड़ते हैं
और हमारी सनातन संस्कृति को और भी संबृद्ध और विशाल बनाते है।पर्वों और त्योहारों
की जननी है भारत।जो संपूर्ण विश्व में भारत की विविधता में एकता की छवि को दर्शाता
है।हिन्दू संस्कृति अतुल्यनीय है,वंदनीय है,पूज्यनीय है।33 कोटी देवी देवताओं की
पूजा आराधना हमें भक्ति और सत्संग के लिए प्रेरीत करती है,जिससे कि हमारा लोक
परलोक सुधर सके और हम सत्य निष्ठा के मार्ग पर चलते हुए जीवन के कर्तव्य पर पर
निरंतर आगे बढ़ते रहें।
नवरात्रि का पावन त्योहार।जिसमें आद्यशक्ति मां भगवती के नव
रुपों की साधना,आराधना,पूजा-पाठ बड़े ही विधि-विधान और हर्षोल्लास के साथ देशभर
में मनाया जाता है।माता शेरावाली के नवरुपों की साधना हमें जीवन में
शांति,शक्ति,स्वास्थ्य और संपन्नता प्रदान करती है। माता की सेवा आराधना,साधना तो
ऐसे भी हमें जीवन में सुख ही देने वाली है और जब हम मां भगवती की उपासना करते हैं
तो वो सब कुछ हमें प्राप्त होता है जिसकी हम कामना करते हैं।
मित्रों माता शेरावाली के नवरुप हमारे
जीवन में नौ प्रकार की औषधियों का भी कार्य करते हैं।तभी तो नवरात्रि के पावन पर्व
को हम सेहत का खजाना से भरी नवरात्रि भी कहते हैं।कहा जाता है कि सबसे पहले नौ
औषधियों के प्रकार को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में जाना जाता था लेकिन
ये पद्धति गुप्त ही रही।दुर्गाकवच के अनुसार सर्वप्रथम ब्रम्हाजी इन नौ औषधियों के
बारे में बताया।जिसका दुर्गाकवच में विस्तार से वर्णन है कि किस प्रकार से नव
दुर्गा में नौ दिव्य औषधियों का गुण है।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती
चतुर्थकम।।
पंचम स्कन्दमातेति षष्ठमं कात्यायनीति च,सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति
चाष्टम।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।
दुर्गाकवच में ऐसा कहा गया है कि नौ
औषधियां हमारे समस्त रोगों का नाश करने वाली है,ये औषधियां हमारे लिए कवच का काम
करती हैं।इन औषधियों के सेवन से मनुष्य सौ वर्ष की आयु क भोगता है और अकाल मृत्यु
से बचता है।
शारदीय नवरात्र 2017- तीसरे दिन माँ चंद्रघंटा
की पूजा विधि और विधान
शारदीय नवरात्र 2017- दूसरा दिन माँ
ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि और विधान
शारदीय नवरात्र 2017-पहला दिन माँ शैलपुत्री की पूजा
विधि और विधान
आईए जानते हैं क्रमश: देवी दुर्गा के 9 रुप में
किस प्रकार से 9 औषधिय गुण विद्यमान हैं-:
हिमावती यानी हरड़ |
माता शैलपुत्री: जो करती हैं भय का
नाश
मां भगवती का पहला स्वरुप माता शैलपुत्री
का है। देवी दुर्गा के शैलपुत्री स्वरुप को हिमावती यानी हरड़ कहते हैं।जिसे आयुर्वेद
में प्रधान औषधि के रुप में जाना जाता है,जिसके सात प्रकार हैं- हरीतिका (हरी)
जो भय को हरने वाली है।पथया-जो हित करने वाली है।कायस्थ-जो शरीर को
बनाए रखने वाली है। अमृता-अमृत के समान।हेमवती- हिमालय पर होने
वाली।चेतकी- जो चित्त को प्रसन्न करने वाली है। श्रेयसी (यशदाता) शिवा-
कल्याण करने वाली।
(ब्राम्ही) |
माता ब्रह्मचारिणी: स्मरण शक्ति को
बढ़ाती है:मां भगवती का द्वितीय स्वरुप माता
ब्रह्मचारिणी का है।जिन्हें ब्राह्मी कहा है।आयुर्वेद में ब्राह्मी को स्मरण शक्ति
को बढ़ाने वाला, आयु बढ़ाने वाला,रक्त विकारों को दुर करते हमारे कंठ को मधुर रने वाली
है।हमारे धर्म शास्त्रों में ब्राह्मी को सरस्वती भी कहा जाता है।वायु विकार और
मूत्र संबंधी विकारों को दूर करने के साथ ही मन और मस्तिष्क को ब्राम्ही शक्ति
प्रदान करता है।इस प्रकार के रोगों से पीड़ित व्यक्ति को नवरात्रि पर माता
ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना बड़े ही प्रेम भाव से करनी चाहिए।
शारदीय नवरात्र 2017- नौवां दिन माँ
सिद्धिदात्री की पूजा विधि और विधान
शारदीय नवरात्र 2017- आठवां दिन माँ महागौरी की पूजा
विधि और विधान
माता चंद्रघंटा: हृदय रोग का निवारण
करती है माता: देवी दुर्गा का तृतीय स्वरुप माता चंद्रघंटा
का है,जिसे चनदुसूर या चमसूर कहा गया है।यह एक ऐसा पौधा है जो देखने में धनिये के
आकार और रुप का होता है। चमसूर के पौधे की पत्तियों से सब्जी बनाई जाती है।जो
हमारे स्वास्थ्य के लिए कल्याणकारी है।औषधिय लाभ की बात करें तो इससे मोटापा दूर
होता है। इसलिए इसको चर्महन्ती भी कहते हैं। शक्ति उत्साह की कमी, हृदय रोग को के
मरीजो को चंद्रिका औषधि के सेवन के साथ ही नवरात्रि के तीसरे दिन माता चंद्रघंटा
की सप्रेम पूजा आराधना करनी चाहिए।
माता कुष्माण्डा: रक्त विकार को ठीक
करती हैं : शक्ति का चतुर्थ स्वरुप कुष्माण्डा देवी का है जिसे पेठा यानी भतुआ भी
कहते हैं।जिससे पेठे की मिठाई बनती है। इसलिए माता के इस रुप को पेठा कहते हैं।
इसे कुम्हडा भी कहते हैं।कुम्हड़े के संबंध में कहा जाता है कि ये हमारे शरीर को
ह्रष्टपुष्ट बनाने, वीर्यवर्धक होता है और हमारे शरीर में रक्त संबंधी सभी
बिमारीयों को दूर कर पेट साफ रखता है। मानसिक रूप से कमजोर व्यक्ति के लिए पेठे का
सेवन अमृत के समान बताया गया है। हृदय रोग, रक्त पित्त व गैस संबंधी समस्याओं को
भी कुम्हड़ा दूर करता है।माता के कुष्माण्डा स्वरुप की साधना से समस्त रोगों का
नाश होता है और शरीर स्वस्थ होता है।
स्कंदमाता(अलसी): वात, पित्त, कफ, रोग नाशक: मां दुर्गा का पंचम रूप स्कंद माता
है।जिसे हम माता पार्वती और उमा भी हम कहते हैं।माता के स्कंद रुप को अलसी के रुप
में भी हम जानते हैं,जो कि एक विशेष औषधि है।जिसके सेवन से पित्त, कफ,वात, रोग का नाश होता है।स्कंदमाता की आराधना से भक्तों को इन सभी रोगों से छुटकारा
मिल जाता है।
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके
कदुर्गरु:।।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
माता कात्यायनी(मोइया): कंठ रोग को दूर करती
हैं माता: माता शेरावाली का छठा रूप माता कात्यायनी
का है।आयुर्वेद औषधि की बात करें तो माता के छठे रुप को कई नामों से जाना जाता है।जिसे
जन सामान्य अम्बा, अम्बालिका, अम्बिका कहता है या फिर इसको मोइया अर्थात माचिका भी कहा जाता हैं।इसके सेवन
से हर प्रकार के कंठ रोग दूर हो जाते हैं। कंठ रोग से पीड़ित व्यक्ति को मोइया के
सेवन के साथ ही माता कात्यायनी की आराधना करनी चाहिए।
माता कालरात्रि: मस्तिष्क विकारों को
हरने वाली हैं: आद्य शक्ति भगवती का सप्तम स्वरुप
कालरात्रि है, जिसे महायोगिनी, महायोगीश्वरी भी कहा जाता है।औषधि की
बात करें तो हम इन्हें नागदौन के रूप में जानते हैं।जिसे मस्तिष्क के सभी रोगो को
दुर करने के लिए उपयोग में लाया जाता है। कहते हैं कि नागदौन के पौधे को घर में
लगाने से सभी प्रकार रोग सोक का नाश हो जाता है। सुख प्रदायक और हर प्रकार के विषों
की नाशक इस औषधि के उपयोग के साथ ही माता कालरात्रि की पूजा मंगलकारी है।
माता महागौरी: (तुलसी)जो रक्त शोधक
होती हैं: मां दुर्गा का अष्टम स्वरूप महागौरी का है।जिसे
आम जनमानस तुलसी के रुप में जानता है जो कि एक विशेष और सुलभ औषधि है।सात प्रकार
की तुलसी होती हैं।सफेद तुलसी, काली तुलसी, मरुता, दवना, कुढेरक, अर्जक, षटपत्र।तुलसी के सेवन से सभी प्रकार रक्त विकार ठीक हो जाते हैं।इसीलिए तुलसी
को रक्त शोधक भी कहा जाता है।तुलसी के संबंध में कहा जाता है कि-
तुलसी सुरसा ग्राम्या सुलभा
बहुमंजरी।अपेतराक्षसी महागौरी शूलघ्नी देवदुन्दुभि: तुलसी कटुका तिक्ता हुध
उष्णाहाहपित्तकृत् । मरुदनिप्रदो हध तीक्षणाष्ण: पित्तलो लघु:।
माता सिद्धिदात्री:(शतावरी)बलबुद्धि
बढ़ाती हैं:नवदुर्गा का नवम और अंतिम स्वरूप माता सिद्धिदात्री
है। जिसे आयुर्वेद में नारायणी या शतावरी कहा जाता हैं।आयुर्वेद में शतावरी बुद्धि
बल एवं वीर्य के लिए उत्तम औषधि बताई गई है। शतावरी को रक्त पित्त शोधक व विकार
एवं वात नाशक बताया गया है। हृदय को बल देने वाली महाऔषधि है शतावरी।माता
सिद्धिदात्री की आराधना और साधना करने वाले पर जल्द ही माता की कृप होती है।
जगत जननी मां जगदम्बा की महिमा अनंत और
अपरंपार है।नौ दुर्गा के नौ रुप यानी औषधिय रुप के बारे में इसी प्रकार से मार्कण्डेय
पुराण में बताया गया है।जिसकी आराधना और सेवन से मनुष्य को स्वास्थ्य लाभ सहज ही
हो जाता है।नवरात्रि के पावन अवसर पर माता दुर्गा की उपासना करने वाले साधक को आद्य शक्ति मां भगवती सदैव सुख और संपन्नता प्रदान करती हैं।।जय माता दी।।
शारदीय नवरात्र 2017- सातवाँ दिन माँ कालरात्रि
की पूजा विधि और विधान
शारदीय नवरात्र 2017- छठा दिन माँ कात्यायनी की
पूजा विधि और विधान
शारदीय नवरात्र 2017- पांचवें दिन माँ
स्कंदमाता की पूजा विधि और विधान
शारदीय नवरात्र 2017- चौथा दिन माँ कूष्माण्डा
की पूजा विधि और विधान
No comments:
Post a Comment