Wednesday 21 September 2016

मृत्यु एक अटल सत्य: गरुड पुराण का पाठ श्राद्ध पक्ष में क्यों है आवश्यक ?

संदीप कुमार मिश्र: जन्म और मृत्यु इस मोहमाया रुपी संसार में हमारे जीवन का एक अटल सत्य है।जो भी इस संसार में आया है उसे जाना ही पड़ेगा।मानव देह धारण करने के बाद देव हों या नर नारी,योगी-ऋषि हों या फिर पशु-पक्षी हर किसी को जाना ही है।
गरुण पुराण सार
दरअसल पवित्र गरुड पुराण हमारे सनातन धर्म और हिन्दू धर्म के सुप्रसिद्ध धार्मिक ग्रंथों में से एक माना गया है। हिन्दू धर्म में कहा गया है कि गरुड पुराण मनुष्य के मृत्यु के बाद सद्गति प्रदान करने वाला ग्रंथ है।हम अक्सर देखते हैं कि मृत्यु के बाद गरुण पुराण का पाठ किया जाता है,जिसके पीछे का भाव यही है कि मृत्यु के पश्चात मनुष्य को सद्गति प्राप्त हो।गरुण पुराण के अधिष्ठातृ देव भगवान श्रीहरि यानी भगवान विष्णु हैं। सनातन धर्म के अठारह पुराणों में इसलिए भी गरुड पुराण का विशेष महत्व है कि स्वयं भगवान विष्णु ही इसके देव हैं।इसीलिए इसे वैष्णव पुराण भी कहते हैं।
गरुड पुराण में ऐसा कहा गया है कि हमारे अच्छे-बुरे कर्मों का फल हमारे इस जीवन में तो मिलता ही हैसाथ ही मृत्योपरांत भी कर्मो के अनुसार फल मिलता है।यही वजह है कि गरुड पुराण महात्म्य का विशेष पाठ मृत्योपरांत परिवार के किसी सदस्य को सुनाया जाता है,जिससे मोहमाया रुपी संसार से जाने वाले के मोह से हमें मुक्ति मिल सके और हमारा दुख शोक कम हो जाए।
गरुड पुराण के प्ररंभ में सृष्टि की उत्पत्ति की चर्चा है। इसके बाद सूर्य की पूजा की विधि, दीक्षा विधि, श्राद्ध पूजा, नवव्यूह पूजा विधान के बारे में बताया गया है। साथ ही भक्ति, ज्ञान, वैराग्य, सदाचार और निष्काम कर्म की महिमा भी बताई गयी है।सनातन हिन्दू धर्म में कहा गया है कि श्राद्ध पक्ष में गरुड पुराण का पाठ करने से आत्मा को मुक्ति,भक्ति और मोक्ष की प्राप्ती होती है। अपने पितरों और पूर्वजों को मुक्ति दिलाने के लिये, कहा जाता है कि गरुड पुराण का पाठ अवश्य करना या करवाना चाहिए।
मृत्यु के पश्चात आत्मा कब पहुंचती है यमलोक ?
एक यक्ष प्रश्न आपके मन में अवश्य उत्पन्न हो रहा कि आखिर मृत्यु के बाद शरीर पंचतत्व में विलीन हो जाता है,लेकिन आत्मा यमलोक कब पहुंचती है? आखिर मृत्यु के बाद का सच क्या है? मृत्यु के पश्चात आत्मा कितने दिनों बाद यमलोक पहुंचती है?इन शंकाओं का समाधान  गरुड पुराण में वर्णित है।हम सब जानते हैं कि भगवान श्री हरि का वाहन गरुड है,और गरुड देव ने ही  भगवान श्रीहरि विष्णु से मृत्योपरांत आत्मा की स्थिति के संबंध में पूछा है।गरुड देव भगवान श्रीहरि से विनम्र भाव से अपनी जिज्ञासा को शांत करने के लिए पूछते हैं कि मृत्यु के पश्चात भगवन, आत्मा कहां जाती है?ऐसे अनगिनत प्रश्नो का उत्तर भगवान श्रीहरिविष्णु ने, गरुड पुराण में दिया है कि मृत्यु से पहले और और बाद में मनुष्य की क्या गति होती है और आत्मा कहां,कैसे और कब,कितने दिन में पहुंचती है।
गरुड पुराण में उन्नीस हज़ार श्लोक
ऐसा कहा जाता है कि 'गरुड पुराण' में उन्नीस हज़ार श्लोक हैं,लेकिन वर्तमान समय में सिर्फ सात हज़ार श्लोक ही उपलब्ध हैं।गरुड पुराण को दो भागों में रखकर देखा जाता है। प्रथम भाग में भगवान श्रीहरि विष्णु की भक्ति,उपासना की विधियों का वर्णन है वहीं द्वितीय भाग में प्रेत कल्प का विस्तार से वर्णन करते हुए विभिन्न नर्क में जीव के पड़ने का उल्लेख है। इस अध्याय में मरने के बाद मनुष्य की गति क्या होती है,किस प्रकार से मनुष्य का योनियों में पुन: जन्म होता है,किस प्रकार  प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है और कलिकाल में हमें किस प्रकार से  श्राद्ध और पितृ कर्म करना चाहिए जिससे कि मोक्ष की प्राप्ती हो सके। मोक्ष कैसे मिल सकता है ? श्राद्ध और पिंडदान कैसे किया जाता है? श्राद्ध के कौन-कौन से तीर्थ हैं ? इसका वर्णन मिलता है।

मृत्यु से पूर्व मनुष्य की क्या गति होती है ?
एक जिज्ञासा जो सदैव हमारे मन में रहती है कि अंत समय में मनुष्य जब मृतु शैया पर पड़ा रहता है, उसके प्राण पखेरु उड़ने वाले होते हैं इस समय उसकी दशा क्या होती है।इस संबंध में गरुड पुराण में कहा गया है कि सर्वप्रथम  मनुष्य की आवाज चली जाती है वहीं जब अंतिम समय आ जाता है,तब मरने वाले व्यक्ति को दिव्य दृष्टि प्राप्त होती है। जैसे ही दिव्य दृष्टि मिलती है वैसे मृत्युशैया पर पड़े व्यक्ति की समस्त इंद्रियां शिथिल हो जाती हैं और संपूर्ण संसार एक रुप में दिखाई देने लगता है।
मृत्यु के समय,जब निकलने वाले हों प्राण पखेरु तब क्या होता है ?
ऐसा गरुड पुराण में वर्णित है कि, मृत्यु के समय 2 यम के दूत आते हैं। जिनके भय से अंगूठे के बराबर जीव, हा हा हा की आवाज़ करते हुये, शरीर का त्याग करता है।और फिर यमराज के दूत, जीवात्मा के गले में पाश बांधकर, उसे यमलोक ले जाते हैं। जिसके बाद, जीव का लघु शरीर, यमदूतों से डरता हुआ निरंतर आगे बढ़ता जाता है।
बेहद कठीन है मृत्यु का मार्ग
मृत्यु जिसके नाम से ही शरीर में एक सीहरन सी हो जाती है,ठीक उसी प्रकार मृत्यु का पथ बेहद डरावना, अंधकारमय, और गर्म रेत से भरा होता है।कहा गया है कि यमलोक पहुंचने पर, पापी जीव को यातना देने के बाद, यमराज के कहने पर,जीव को आकाश मार्ग से घर छोड़ दिया जाता है।जिसके बाद घर आकर जीवात्मा, पुन: अपने शरीर को धारण करना चाहती है, लेकिन यमराज के दूतों के पाश से मुक्ति नहीं मिल पाती है।सबसे अद्भुत ये है कि मृताआत्मा के पिंडदान के बाद भी,जीवात्मा तृप्त नहीं हो पाती है। इस प्रकार भूख, प्यास,तड़प और बेचैनी से आत्मा,पुन: यमलोक आ जाती है।इसलिए कहा जाता है कि जब मृत्यु को प्राप्त व्यक्ति के वंशज, उसका पिंडदान नहीं करते,तब तक आत्मा दु:खी होकर विचरण करती रहती है। अनेकों प्रकार की लंबे समय तक यातना भोगने के पश्चात, उसे विभिन्न योनियों में नया शरीर मिलता है।इस प्रकार से पितरों की आत्मा की शांति के लिए मनुष्य की मृत्यु के दस दिन के अंदर ही पिंडदान अवश्य कर लेना चाहिए।
ऐसा करने से दसवें दिन पिंडदान से,लघु शरीर को चलने की शक्ति मिलती है।इसी क्रम में मृत्यु के तेरहवें दिन एक बार फिर यमदूत उसे पकड़ लेते हैं।जिसके बाद शुरु होती है वैतरणी नदी को पार करने की यात्रा। इस वैतरणी नदी को पार करने में पूरे 47 दिन का समय लगता है।इस प्रकार से जीवात्मा को यमलोक की प्राप्ती होती है।

No comments:

Post a Comment