सर्वाबाधा विर्निर्मुक्तो धनधान्यसुतान्वित:।मनुष्यो
मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:।।
संदीप कुमार मिश्र: जिनकी कृपा से बन जाते हैं सभी बिगड़े काम...जिनकी आराधना से हो जाती है हर
मुश्किल आसान...जिनकी पूजा-अर्चना से हो जाएगी भवसागर से नैया पार...ऐसी जगत जननी
आद्य शक्ति भगवती मां जगदम्बा को बारंबार प्रणाम। प्रेम और दया की मुर्ति हैं मां
दुर्गा...जो अपने भक्तों पर आशीष लुटाती हैं...उनकी सभी मनोकामनाओं को पूरा करती
है..सुख सम्पत्ति प्रदान करती हैं।संपूर्ण चराचर जगत मां की कृपा से अभिभूत
है...मां दुर्गा जितना अपने भक्तों पर स्नेह लुटाती हैं उतना ही दुष्टों का संहार
भी करती है।
माता के नौ रुप इसी बात का प्रतिक हैं
कि दुष्टों का संहार और जन सामान्य का कल्याण करने के लिए मां भगवती ने नौ रुप
धरा।तभी तो माता की साधना और आराधना से समस्त देवी देवता भी हो जाते हैं
प्रसन्न।नवरात्र के 9 दिन जो भी साधक भक्ति भाव से माता की आराधना करता है उसे
अनंत गुणा फल मिलता है।उसकी सभी मनोकामनाएं तो पूर्ण होती है साथ ही सबी देवी
देवताओं का आशीर्वाद उसे प्राप्त होता है।
संपूर्ण देवी देवता को खुश करने के लिए
करें देवी दुर्गा की पूजा-अर्चनी:दुर्गा सप्तशती
दुर्गा सप्तशती में कहा गया है कि मां
भगवती ने तीनो लोकों का कल्याण करने के लिए ही 9 रुप धरा।जिनकी पूजा साधना से सभी
देवगण प्रसन्न हो जाते हैं।दुर्गा सप्तशती में ऐसा कहा गया है कि देवताओ की पीड़ा और वेदना से आहत होकर तीनो
देवों(त्रिदेव) और समस्त देवताओं के तेज से मां भगवती का अवतार हुआ। एक कथा के
अनुसार (दुर्गा सप्तशती के दुसरे अध्याय) जब दानव राज महिषासुर ने देवताओं के साथ
सैकड़ों वर्ष चले युद्ध में देवताओं को परास्त कर स्वर्ग का सिंहासन हासिल कर लिया
और देवताओं को स्वर्ग से बाहर निकाल दिया तब सभी देवता त्राहिमाम करते हुए त्रिदेव
यानि भगवान ब्रम्हा, विष्णु और महेश के पास जा पहुंचे और अपनी व्यथा से अवगत
करवाया।देवताओं की पीड़ा और दर्द से सृष्टी के रचयिता,पालनहार और संहारकर्ता (ब्रम्हा,
विष्णु और महेश )क्रोध से भर उठे और उनके मुख मंडल से एक दिव्य तेज निकला, जो एक सुन्दर देवी में परिवर्तित हो
गया।
दुर्गा सप्तशती में ऐसा वर्णित है कि भगवान
शिव के तेज से देवी का मुख , यमराज के तेज से सर के बाल, भगवान श्रीहरि विष्णु के तेज से बलशाली भुजाये, चंद्रमा के तेज से स्तन, धरती के तेज से नितम्ब,
इंद्र के तेज से मध्य भाग, वायु से कान, संध्या के तेज से भोहै,
कुबेर के तेज से नासिका , अग्नि के तेज से तीनो
नेत्र चमकने लगे।एक ऐसा तेज चमकने लगा जिसके प्रकाश के आगे कोई टिक ना सके।इस
प्रकार से देवी का अवतार हुआ।
देवी दुर्गा में देवताओ द्वारा शक्ति का
संचार
देवी को और शक्तिशाली बनाने के लिए
भगवान शिवजी ने देवी को अपना शूल,भगवान विष्णु से अपना चक्र,
वायु ने धनुष और बाण , कुबेर ने मधुपान, अग्नि ने शक्ति , इंद्र ने वज्र, हिमालय ने सवारी के लिए सिंह, वरुण से अपना शंख , ब्रम्हा ने कमण्डलु , विश्वकर्मा में फरसा और ना मुरझाने वाले कमल भेट किये।इस प्रकार समस्त
देवीदेवताओं ने मां भगवती को अपनी-अपनी शक्तियां प्रदान की।जिससे महिषासुर का
संहार देवी कर सकें।इस प्रकार से देवी दुर्गा में शारीरिक और मानसिक शक्ति का
संचार हुआ।ऐसे दिव्य रुप को देखकर देवगण भी आशान्वित हो जाते हैं कि अब महिषासुर
का वध निकट है,एक बार फिर देवता सुख का एहसास करने लगे कि स्वर्ग पर पुन: देवताओं का आधिपत्य
होगा।
इस प्रकार से माता दुर्गा ने महिषासुर
और उसकी राक्षसी सेना कानिर्दयता से वध करदेवताओं को स्वर्ग प्रदान किया।और
संपूर्ण ब्रम्हांड देवीमय हो गया।तीनो लोक में माता के जयकारे लगे,शंखनाद हुआ,आनंद
उत्सव मनाया जाने लगा। इस प्रकार से जो भी साधक सच्चे मन से देवी भगवती की साधना
करता है उसकी सभी मनोकामनांएं पूर्ण तो होती है सात ही तीनो देव,देवतागण भी खुश हो
जाते हैं।
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