संदीप कुमार मिश्र : हमारे देश के
माननीय नेतागण...चाहे संसद में हों या फिर सड़क पर सिवाया हंगामा के इन्हें कुछ
नहीं सूझता।देश की आजादी से लेकर अब तक हमारे देश में यदि कुछ नहीं बदला है तो वो
हंगामा करने की प्रवृति।क्योंकि हंगामे के सोर में काम करने की जिम्मेदारी थोड़ी
कम हो जाती है और आरोप लगाने में आसानी होती है।
दरअसल हमारे देश में अब आलम ये हो गया है कि एक मेहनतकश
मजदूर या नौकरी पेशा करने वालों पर ना जाने कितने नियम कायदे और कानून हैं लेकिन सांसदों
और विधायको के लिए कोई कानून और नियम नहीं है। काम करो न करो
सैलरी मिलती रहेगी, सारी सुविधा
मिलेगी, डिनर लंच, घूमना फिरना सब
कुछ। खूब हंगामा करो, खूब शोर मचाओ, काम मत होने दो, फिर भी सारी
सुविधा लेते रहो।ये संसद की संस्कृति जैसे बन गयी हो। इस प्रकार की माननियों की
हरकतों से कई बार जनता त्रस्त होती भी नजर आती है,लेकिन कर कुछ नहीं पाती
है।इसी का परिणाम है कि तमाम ऐसे महत्वपूर्ण फैसले शोर शराबे में या तो गुम हो जाते
हैं या फिर उनपर बहस ही नहीं हो पाती है।
चुनाव दर चुनाव लगातार यही सब देखने को विवश है आवाम।हाल की
घटनाओं की बात करें तो लगता है कि शायद कुछ बदलता हुआ नजर आए।क्योंकि जिस प्रकार
से राज्यसभा में सांसदों ने हंगामा मचाया, काम को बाधित किया,उसपर उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने
सांसदों का डिनर कैंसिल कर दिया, जब काम नहीं, तो डिनर कैसा, जनता का टैक्स का पैसा क्यों बर्बाद करना, नायडू ने सांसदों
का डिनर कैंसिल करने के साथ सेलरी कट करने पर भी विचार की बात कही।ये अलग बात है
कि सेलरी कटने से इन माननियों को कोई खास फर्क नहीं पड़ने वाला है लेकिन सांकेतिक
तौर पर जनता में एक बेहतर संदेस जाएगा की जब ऐसे ही सांसद सदन में हंगामा करते हैं
तो इन्हें क्यों जिताया जाए।इनका बहिष्कार किया जाना चाहिऐ।इससे कहीं ना कहीं
सांसद महोदय भी गंभीर नजर आएंगे क्योंकि उनपर भी दंडात्मक कार्यवाही के तौर पर
सेलरी कटने से बात इज्जत पर आएगी और जनप्रतिनिधी होने के कारण व्यवहार में
परिवर्तन आए।
सवाल ये है कि सांसदों को जनता संसद में काम करने के लिए भेजती है,ना कि काम को बाधित करने के लिए।ऐसे में कितना वाजिब
है इस तरह का बखेड़ा लोकतंत्र के मंदिर में खड़ा करना।एक तो ऐसे ही संसद में काम
नहीं होता और काम हो रहा है तो होने मत दो।संसद की कार्यवाही को हंगामे की भेंट चढ़ा
दो।
अंतत: सभी माननीयों को
इस बात का इल्म जरुर होना चाहिए कि शोर हंगामा चाहे जितना भी कर लो। ये पब्लिक है सब
जानती है।2019 करीब है,जनता एक एक दिन का हिसाब मांगेगी। संभल जाओ और जनता के
पैसे,वक्त को यूं ही जाया मत करो।नहीं तो तोताराम बनकर जब आपका सामना जनता जनार्दन
से होगा तब उड़ने के सिवाय कोई चारा नहीं बचेगा।
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