संदीप कुमार मिश्र : मित्रों हम कथा किर्तन सत्संग क्यों करते
हैं।ये प्रश्न हमारे मन में अवश्य उठता होगा।या फिर इससे लाभ कैसे प्राप्त होता है
ये भी।क्योंकि यदि हम मोक्ष और स्वर्ग की कामना करते हैं तो उसे हम पुण्य करके भी
प्राप्त कर सकते हैं।अब पुण्य करने के लिए जरुरी थोड़े ही है कि कथा किर्तन का
श्रवण करें।वो तो दान पुण्य करके भी किया जा सकता है।
लेकिन मित्रों मानस मर्मज्ञ श्रद्धेय श्री कपूर चन्द्र जी
महाराज कहते हैं कि हम कितने भी दान पुण्य कर लें,मन में फिर भी संशय बना ही रहता
है,सभी प्रकार की सम्पन्नता रहने पर भी मन व्यथित रहता है...और व्यथा को तो हरि की कथा से ही दूर किया जा सकता है।क्योंकि
हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है, ‘श्रवण
मंगलम’...जी हां
साथियों प्रभु श्रीराम जी की कथा श्रवण करते ही हमारा मंगल हो जाता है,आप कहेंगे
कैसे ? तो जिस प्रकार से माता जानकी जी का अशोक
वाटिका में हुआ।
।।रामचंद्र
गुन बरनै लागा।सुनतहीं सीता कर दुख भागा।।
कहने का भाव है कि जहां राम जी की कथा हमारे कान में प्रवेश
की वहीं हमारे हर प्रकार के दुखों का शमन हो जाता है। इसलिए निरंतर ईश्वर का
गुणगान और सत्संग करते रहना चाहिए।
अब यहां पर एक प्रश्न आपने मन में ये भी उठता होगा कि हरि कथामृत श्रेष्ठ है या स्वर्ग सुधामृत ? प्रश्न भी सही है कि आखिर अंत में मनुष्य की
कामना स्वर्ग की ही तो होती है फिर हरि कथा क्यों ? अब इसकी परख कैसे
होगी ?अब इसके लिए हरि कथामृत और स्वर्ग सुधामृत में
एक तुलनात्मक अध्ययन कर लिजिए,एक समिक्षा करके देख लिया जाए कि कौन श्रेष्ठ...अंतर
स्वत: स्पष्ट हो जाएगा...।
हरि
कथामृत श्रेष्ठ है या स्वर्ग सुधामृत ?
स्वर्ग सुधामृत की क्या विशेषता है- स्वर्ग का सुधामृत उनको
प्राप्त होता है, जो बड़े पुण्य आत्मा होते हैं,जब कोई पुण्य आत्मा अपनी नश्वर देह
को त्याग करके स्वर्ग में पहुंचते हैं, तब उन्हें स्वर्ग का सुधामृत प्राप्त हो जाता
है।लेकिन वहीं हरि कथामृत को पाने के लिए कहते हैं कि स्वर्ग जाने की जरुरत ही
नहीं पड़ती।हमें इसी धराधाम पर रहते हुए वो अमृत प्राप्त हो जाता है।काहें स्वर्ग
के चक्कर में पड़ना भई।अच्छा अब दूसरी विशेषता भी
जान लिजिए...अपने पुण्य बल पर स्वर्ग में जब देवता जाते हैं तो उनके
गले में एक माला पहना दी जाती है।उस माला में ये चमत्कार रहता है कि जब तक आपके
पुण्य रहेंगे वो माला हरीभरी रहेगी,और जैसे-जैसे पुण्य क्षीण होते जाएंगे माला सूख
जाएगी,और जहां सर्वथा पुण्य समाप्त हो गए कि ‘क्षीणे
पुण्ये मृतलोकं विशन्ति’।पुण्य समाप्त होते ही फिर
धरती पर।ऐसे में जब देवताओं की माला सूखने लगती है तो उनकी सूरत भी सूखने लग जाती
है, क्योंकि अब उनके स्वर्गलोक से गिरने का समय आ गया।अरे भई पुण्य आत्मा के सारे
पुण्य जो क्षीण हो गये।
यकिन मानिए स्वर्ग का जो सुख है ना वो ठीक उस प्रकार से है जैसे जब तक आपके
बटुवे में रुपये पैसे हैं तब तक सभी खूब ऐशआराम और जैसे ही रुपये पैसे खत्म हुए
वैसे ही वही दरिद्रता वही बेरंग जीवन। ठीक ऐसे ही जितना पुण्य आपका है उतना ही
स्वर्ग में सुख है,पुण्य समाप्त तो स्वर्ग से बाहर।
इसलिए देवताओं को स्वर्ग में रहकर भी पुण्य क्षीण होने का निरंतर भय बना रहता
है, और पुण्य क्षीण होने पर शोक व्याप्त होने लगता है।एक बात आपको बताएं-शोक, मोह और भय... इन तीनो से ग्रसित और भयभीत रहते
हैं सभी देववृंद।
वहीं हरि कथामृत पान करने वाले वैष्णवों,गृहस्थों के जीवन में जब भगवत भक्ति
का उदय होने लगता है,जब भगवत प्रेम प्रकट होने लगता है तो शोक,मोह और भय...ये तीनो
हरि कथामृत का रसपान करने वाले भक्तों के जीवन से समाप्त हो जाते हैं।यकिन मानिए स्वर्ग सुधामृत शोक, मोह,भय प्रदाता है और हरि कथामृत शोक,मोह,भय को मिटाने वाला है।तो हरि
कथामृत शोक मोह और भय का विनाशक है और स्वर्ग सुधामृत शोक मोह भय का प्रदायक है।इसलिए
मित्रों हमें निरंतर हरि कथामृत का रसपान करते रहना चाहिए,करते रहना चाहिए।।
।।प्रेम से बोलिए जय श्री कृष्ण।।जय श्री सीताराम।।
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