संदीप कुमार मिश्र: "वृन्दावन" जहां के हर रज कण से रास-रासेश्वर कृष्ण -राधा के नाम का
नाद सुनाई देता है।मन आनंद के गोते लगाने लगता है।इंसान अपनी सुधबुध खोकर कृष्णमय
हो जाता है।ऐसे ही सांवरे सलोने कृष्णकन्हैया का पावन और पवित्र धाम है
वृंदावनधाम।जहां मुक्ति भी है और मोक्ष भी।जहां शांति भी है और आनंद भी।भक्ति भी
है और ज्ञान भी।जहां हर कोई आने को लालायित रहता है।जहां सभी रुप रंग एक हो जाते
हैं..जन जन पर पर सिर्फ एक ही रंग चढ़ जाता है...जो के कृष्ण का रंग।ऐसा ही पावन
धाम है वृंदावनदाम।
वृंदावनधाम में कन्हैया के बांसुरी की
सुमधुर ध्वनि जीव को आनंद विभोर कर देती है।क्यों कि परमपुरुष श्रीकृष्ण वृंदावन
में नित्य विराजमान हैं। श्रीकृष्ण की लीलाओं का साक्षी गोवर्धन भी यहीं हैं और
मां यमुना भी यहीं है। कहने भाव है कि ‘गो’ अर्थात इंद्रिय, यानी गोवर्धन का अर्थ हुआ इंद्रिय वर्धन। और श्री यमुना यानी एक रसप्रवाह , जो परम तत्व की ओर ले जाता है।धन्य है वृंदावनधाम।
ब्रजक्षेत्र का मतलब है कि आनंद
पाते-पाते उस परमानंद की तलाश करना।निरंतर मनुष्य आनंद को पाने के लिए भटकता है और
मनुष्य जिस पथ पर बढ़ता हुआ वृंदावन पहुंचता है तब उसे भाववश परम पुरुष के दर्शन
होते है।कलिकाल में श्रीकृष्ण की लीलाओं के साक्षी ब्रजक्षेत्र में निरंतर भक्तों
के समागम सत्संग जीवन को धन्य कर देते हैं।
जहां श्रीकृष्ण रचाते थे रास कुंजवन:
पेड़-पौधों से घिरा हुआ एक छोटा सा परिसर एक अद्भुत दृष्य दर्शाता है।जहां बांसुरी
की तान सुधबुध को देने के लिए मजबुर कर देती है। आध्यात्मिक नजरीये से कुंजवन का भाव
है कि मानव अस्तित्व का वह गोपनतम प्रदेश, जहां से परमपुरुष अपने भक्तों का
बांसुरी की मधुर ध्वनि से आह्वान कर रहे हैं।मनुष्य उसी प्रकार कुंजवन में आनंद की
तलाश में भटकता है,जिस प्रकार मृग कस्तुरी को वन में।धन्य है लीलाधारी...धन्य है
मुरली बजैया...धन्य है ब्रज के बसैया...और कोटिश: नमन है वृंदावनधाम...जहां नित्य,हर पल,हर क्षण उत्सव है,उमंग है, आनंद है,रास
है,रसिया हैं,छलिया है...लेकिन उद्धेश्य सिर्फ एक है...जीवन में हो सुख और
शांति..परम पुरुष,योगीराज श्रीकृष्ण कन्हैया को बारंबार प्रणाम...।
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