संदीप कुमार मिश्र: कहते हैं कि राजनीति
में ना तो कोई स्थायी दोस्त होता है ना ही दुश्मन, और ऐसे भी हमारे देश में सियासी
मैदान में कुछ भी संभव है,जैसा कि हर बार आम चुनाव से लेकर विधान सभा चुनावों में
देखने को मिलती है और मिलती रहेगी।क्योंकि सत्ता के मोहपाश में हर कोई बंधा हुआ
है।
दरअसल जिस प्रकार से देश में बाढ़ आ जाए
तो चिंता का सबब बन जाता है,जन धन की हानी होती है,ठीक उसी प्रकार जब सियासी बाढ़
आती है तो पार्टीयों में खुशी और शोक की भी लगर दौड़ती है।जिसके पक्ष में नेता जी
टूटकर जाते हैं उसे दूसरी पार्टीयों को चिढ़ाने का अवसर मिल जाता है,और जिस पार्टी
में टूट होती है वहां मायूसी छा जाती है।अब देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश को
ही देख लें,जहां आने वाले समय में विधान सभा चुनाव होने हैं,हम सब जानते हैं कि देश
की राजनीतिक दिशा और दशा के लिहाज यूपी बड़ी अहमियत रखता है,जिस लिहाज से सभी
सियासी पार्टीयां चाहे वो बीजेपी, कांग्रेस,सपा,बसपा हों या फिर अन्य सभी
पार्टीयां।हर कोई जीत के लिए दम खम लगा लगा रहा है,और दल बदल कर रहा है।इस दल बदल
का कितना फर्क पड़ता है या पड़ेगा,ये तो खैर आने वाला वक्त बताएगा,लेकिन सियासी
हलके में एक खबर तो अब हलचल पैदा करने लगी है कि ‘कौन छोड़ा,किस पार्टी में गया,आगे कौन जाने वाला है’ आदि आदि...।
खैर अच्छा ही है क्योंकि आयाराम और गया
राम ही हैं कि चुनावी समर में मीडिया को भी चर्चा करने के लिए मसाला देते रहते
हैं,जिसे अपने अपने अंदाज में मीडिया सजा कर परोसती रहती है।अब सुश्री मायावती जी की
बसपा को देख लें,उनकी पार्टी के तमाम नेता छोड़कर या तो बीजेपी ज्वाइन कर चुके हैं
या तो करने वाले हैं,जिसकी शुरुआत बसपा के कद्दावर नेता स्वामी प्रसाद मौर्या से
शुरु हो गयी है और तकरिबन दर्जनो विधायकों ने बीजेपी की शरण ले ली है।ऐसी हालात
में आरोप-प्रत्यारोप भी लगते हैं,जैसा कि स्वामी प्रसाद मौर्या ने अपनी पूर्व
पार्टी की मुखिया सुश्री जी पर लगाया कि वो मोटे रुपये लेकर टिकट बांटती हैं,ऐसे
ही सपा छोड़ने वाले प्रदेश में गुंडागर्दी और भाई भतीजावाद की दुहाई देकर पार्टी
छोड़ रहे हैं,वैसे ही जातिवाद का कार्ड खेलकर कुछ लोग बसपा में भी शामील हो रहे
है।हां देश की एक बड़ी पार्टी कांग्रेस को छोड़कर जानेवाले तो नजर आ रहे,लेकिन
पार्टी में शामील होने वालों को तलाशा जा रहा है।यकिनन 2017 का उत्तर प्रदेश का विधान
सभा चुनाव देश की सियासत में बड़ी अहमियत रखेगा।
क्योंकि 2017 आने वाले आम चुनाव 2019 के
लिए बड़ा बदलाव लेकर आएगा।लेकिन एक बात तो तय है कि जहां पार्टीयां विचारधारा की
बात करती है तो वहीं विचारों से इतर लाभ हानी के मुनाफे के आंकलन में सब भूल जाती
हैं।शायद यही कड़वी हकीकत है सियासी दलों की।जिसे जनता जनार्दन को ठीक ढ़ंग से समझ
लेना चाहिए और वोट की चोट से करारा जवाब देना चाहिए।
बहरहाल अपनी ही कविता की चंद लाइने याद
आ रही हैं-
किस किस का नाम लें,किस किस पर साधें निशाना,
सियासी मंडी में सब नंगे हैं,खरीददार चाहिए।
हम तुमको संभाले हैं,तुम हमको संभाले रखो,
बोली लगा करोड़ों की,चैन से सो जाईए।
जब आ जाए चुनाव, तब खोल दो दरवाजे सब,
विपक्ष को गिराने की खातिर,मेरी पार्टी के हो जाईए।
राजनीति में सब है संभव,हजारों करो समझौते,
सत्ता में बने रहने की खातिर,मेरी पार्टी में आईए।
विवेक,विचार तभी तक अच्छे,जब तक हो सत्ता पास,
वरना सब बकवास तो हैं ही जी,
मैं अच्छा,मेरी पार्टी अच्छी,आईए बस मेरे हो जाईए....(क्रमश:)
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