किसी और की नहीं मेरे अपने गाँव और आसपास के
गाँवों के बारे में बताउं तो एक दो नीम हकीम खतरे जान वाले बंगाली डाक्टर (जो
बबासीर,भगन्दर और शर्तिया इलाज के स्पेशलिस्ट अपने बोर्ड पर लिखते हैं और फिजिसियन
सर्जन सब होते हैं) के अलावा,मेडिकल स्टोर
वाले भैया जी के भरोसे ग्रामीण अंचल के लोगों का जीवन डग्गामार चल रहा है...आज भी
सीधे साधे गाँव के लोगों का जीवन भगवान भरोसे है और और अंतिम यात्रा भी उन्हीं के
भरोसे है....
विकास की आँधी और तुफान जैसे नारे वारे....सरकारी योजनाएँ और विकास की गति...सांसद और विधायक निधि...ग्राम प्रधानो की पंचवर्षीय योजनाएं जैसे तमाम फंड या तो चौराहा छाप (एक तरह से देसी गाली ) बनकर रह गए हैं या तो शहरों में कोठी,जमीन,गाड़ी,रायफल,पिस्टल में नज़र आ रहे हैं या आते रहे हैं...इतिहास साक्षी है कि जब भी ऐसी आपदा विपदा आती है तो सांसद और विधायक मरणासन्न अवस्था में होते हैं...और जब सब ठीक हो जाता है तो सड़कों पर इनका काफिला देखते ही बनता है...जैसे ये पद इनकी बपंसत हो....खैर ये तकदीर के सांड होते हैं... हराम का,जनता की गाड़ी कमाई का उपभोग करते हैं पांच वर्ष.. उसके बाद हार भी गए तो क्या फर्क पड़ता है...इतना तो कमा ही लेते हैं कि आने वाली कई पूस्तें बैठ कर खाएं...
लेकिन हमारे गाँव वालों का क्या...उनका क्या
दोष...उऩका क्या कसूर...?
गलती
आपकी नहीं मेरे सत्तानसीन आकाओं...ये परिपाटी तो कई दशकों से चली आ रही है और आप
तो उसी का निर्वहन कर रहे हैं....कुछ कम या ज्यादा हो सकता है....लेकिन हमारे गाँव
कोसो दूर हैं आपकी चकाचौंध और फौरेब से....एक तरह से ठीक भी है...शायद तभी वो
तुम्हारा पेट भी भर रहे हैं....नहीं तो तुम्हारे तो मूंह पर लात मार देनी चाहिए
जैसे तुमने उनके जीवन के साथ किया है और निरंतर कर रहे हो....तुम हत्यारे हो उन
मासूमों का जिनका कसूर बस इतना है कि वो अपने गाँव में खुश रहना चाहते हैं...
नहीं तो सत्ता से चाहिए क्या...? एक अच्छी शिक्षा और स्वास्थ्य व्यवस्था (मूल रुप से) बस...! आप कहते हैं कि सवाल ना करे कोई आपसे....अरे भाई कैसे ना करे कोई सवाल....सवाल
तो पूछेंगे ही,मसलन----
- आज़ादी के इतने दशकों बाद भी क्या प्रत्येक
गाँवों में एक सामुदायिक केंद्र नहीं हो सकता था...दोषी कौन ?
- क्या हमारे गाँव के लोगों की जान इतनी सस्ती
है कि एक दर्द निवारक गोली भी उन्हें समय से नसीब ना हो...दोषी कौन ?
-क्या किसी हारी बिमारी में शहर तक जाने के
लिए एक एम्बुलेंस का हक तक नहीं उन्हें...दोषी कौन ?
- गाँव के गाँव कोरोना पीड़ित हो रहे
हैं...दोषी कौन ?
- वैश्विक महामारी या किसी भी दैविक आपदा से
गाँवो को उबारने की कोई व्यवस्था क्यों नहीं...दोषी कौन ?
-
लगातार जो मौते हो रही हैं उनका जिम्मेदार कौन ?
ना जाने ऐसे कितने सवाल हर एक भोलेभाले जनमानस
में मन में है...लेकिन वो पूछें तो किससे...किससे लगाएं गुहार... कौन सुनेगा...प्रधान
सेवक.....मुख्यमंत्री.....सांसद....विधायक....प्रधान....या कोई और...?...आखिर कौन...?
अफसोस तो होगा ही ना साहेब...जब सुनने में आएगा
कि “आक्सीजन ना मिल पाने के कारण मर गए”... एक सवा करोड़
रुपये में जहां एक आक्सीजन प्लांट बड़े आसानी से लग जाता है...जहां हर जिले में दो
दो,चार चार प्लांट लग सकते थे.... वहां व्यवस्था के नाम पर आपका रोना और आरोप
लगाना नज़र आया और दूसरी तरफ मासूम भोले भाले लोगों का दहाड़े मार कर अपने अपनो के
लिए रोना...चीखना और चिल्लाना नज़र आया.... जिसे देखकर आपका तो पता नहीं लेकिन
हमारे जैसे करोड़ों भारतीयों का कलेजा फट गया...
और हर कोई ये सोचने पर विवश हो गया कि मेरे साथ
यदि ऐसा हो गया तो मेरे बच्चों को कौन देखेगा....उन्हें कौन संभालेगा...मेरे रहते
तो किसी तरह से दो वक्त की रोटी चल रही थी...मेरे बाद क्या होगा....हे भगवान...सब
को कुशल रखो....ऐसे सवालों से चाहे प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष आपको सामना तो करना
ही पड़ेगा....
माना कि आपसे पहले वाले बहुत बड़े
वाले.....थे.....लेकिन आप भी तो प्रतिस्पर्धा उन्हीं से कर रहे हैं.... (नहीं तो
हर सवाल पर उन्हीं का उदाहरण नहीं देते)
हम ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि आप हमारे
गाँव वालों को बस बेहतर से बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान कर दें.... और ये तभी
संभव हो पाएगा जब आपके सिपहसालार आपको सही रिपोर्ट दें....वरना चाटूकारिता में ही
तो देश मेरा बर्बाद हुआ....
और हां मेरे प्यारे ग्रामवासीयों एक
निवेदन,प्रार्थना विनती आप से भी है....कुछ दिनों की बात है...थोड़ा नेवता खाने
में कम जोर दें....चौराहे पर जाने से बचें...शादी ब्याह में भीड़ कम करे...मास्क
का प्रयोग करें एक दूसरे से बात करने में दूरी बनाए रखें... क्योंकि आप स्वस्थ और
सुरक्षित हैं तभी उन्नति और आनंद है नहीं तो सरकारों का क्या भरोसा..... हर बार तो
बदलकर देखा आपने..... हासिल क्या हुआ आप जानते ही हैं..... ~!
-सादर
हम गाँव वाले
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