संदीप कुमार मिश्र : सरस्वती नदी के
संगम तट पर स्थित अलकनंदा गुफा,जहां की धार्मिक और पौराणिक मान्यता हमारे धर्म
ग्रंथों में बताई गई है।कहते हैं यहीं पर स्थित है व्यास पोथी नामक स्थान जो कि
बद्रीनाथ धाम से 3 किलोमीटर की
दूरी पर उत्तराखंड के माणा गांव में स्थित है।इसी स्थान पर महाभारत के रचनाकार
महर्षि वेद व्यासजी की गुफा है और साथ ही इसके समीप दूसरी गुफा है जिसे गणेश गुफा
कहते हैं।हिन्दू मान्यता के
अनुसार इसी गुफा में महर्षि वेद व्यासजी ने महाभारत को मौखिक रूप दिया था और
गणेशजी ने उसे लिखा था।
हम सब जानते हैं कि माता पावर्ती और भगवान शिव के पुत्र भगवान
गणेश जी मंगलकर्ता और ज्ञान,बुद्घि एवं विवेक के देवता। इसलिए हम जनसामान्य जब भी
कोई नया काम प्रारंभ करते हैं तो सबसे पहले गणेश जी का ही स्मरण करते है। कहा जाता
है कि वेदव्यास जी ने जब महाभारत महाकाव्य की रचना शुरू की तब उन्होंने न सिर्फ
गणेश जी का स्मरण किया बल्कि गणेश जी को इस बात के लिए भी तैयार कर लिया कि आप
महाभारत स्वयं अपने हाथ से लिखें।
ऐसे में ऋद्दि सिद्धि के दाता भगवान गणेश जी महाभारत लिखने
के लिए तैयार तो हो गए लेकिन शर्त ये थी कि व्यास जी महाराज लगातार कथा बताते रहें
अन्यथा कहीं पर भी विराम होगा तो गणेश जी की लेखनी तो रुकेगी ही साथ ही वो लेखन का
कार्य भी छोड़ देंगे।ऐसे में व्यास जी की कथा अधूरी रह जाएगी। कहते हैं कि व्यास
जी ने भी नियम का पालन किया। आपको बताते चलें कि पहले महाभारत का नाम जय गाथा था।
इस गुफा के संबंध में कहा जाता है कि यहां स्थित गुफा में
ही रहकर वेदव्यास जी ने सभी पुराणों की रचना भी की थी। व्यास गुफा को बाहर से
देखकर ऐसा लगता है मानो कई ग्रंथ एक दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। इसलिए इसे व्यास
पोथी भी कहा जाता हैं।
माना ऐसा भी जाता है कि उत्तराखंड में अवस्थित पांडुकेश्वर
तीर्थ में अपनी इच्छा से राज्य त्याग करने के बाद महाराज पांडु अपनी रानियों कुंती
और मादरी संग निवास करते थे। और इसी स्थान पर पांचों पांडवों का जन्म भी हुआ था।यकिनन
धार्मिक और पौराणिकता भारत के रज कण में बसी हुई है जिसका परिणाम है कि ईश्वर भी
इस धराधाम पर अवतार लेने के लिए लालायित रहते थे।।प्रेम से बोलिए भक्त वत्सल भगवान
की जय।।