Wednesday, 31 January 2018

व्यास पोथी जहां बैठकर महर्षि वेद व्यास ने कही और गणेशजी ने लिखी थी महाभारत



संदीप कुमार मिश्र : सरस्वती नदी के संगम तट पर स्थित अलकनंदा गुफा,जहां की धार्मिक और पौराणिक मान्यता हमारे धर्म ग्रंथों में बताई गई है।कहते हैं यहीं पर स्थित है व्यास पोथी नामक स्थान जो कि बद्रीनाथ धाम से 3 क‌िलोमीटर की दूरी पर उत्तराखंड के माणा गांव में स्थित है।इसी स्थान पर महाभारत के रचनाकार महर्षि वेद व्यासजी की गुफा है और साथ ही इसके समीप दूसरी गुफा है जिसे गणेश गुफा कहते हैं।हिन्दू मान्यता के अनुसार इसी गुफा में महर्षि वेद व्यासजी ने महाभारत को मौखिक रूप दिया था और गणेशजी ने उसे लिखा था।

हम सब जानते हैं कि माता पावर्ती और भगवान शिव के पुत्र भगवान गणेश जी मंगलकर्ता और ज्ञान,बुद्घि एवं विवेक के देवता। इसलिए हम जनसामान्य जब भी कोई नया काम प्रारंभ करते हैं तो सबसे पहले गणेश जी का ही स्मरण करते है। कहा जाता है कि वेदव्यास जी ने जब महाभारत महाकाव्य की रचना शुरू की तब उन्होंने न सिर्फ गणेश जी का स्मरण किया बल्कि गणेश जी को इस बात के लिए भी तैयार कर लिया कि आप महाभारत स्वयं अपने हाथ से लिखें।

ऐसे में ऋद्दि सिद्धि के दाता भगवान गणेश जी महाभारत लिखने के लिए तैयार तो हो गए लेकिन शर्त ये थी कि व्यास जी महाराज लगातार कथा बताते रहें अन्यथा कहीं पर भी विराम होगा तो गणेश जी की लेखनी तो रुकेगी ही साथ ही वो लेखन का कार्य भी छोड़ देंगे।ऐसे में व्यास जी की कथा अधूरी रह जाएगी। कहते हैं कि व्यास जी ने भी नियम का पालन किया। आपको बताते चलें कि पहले महाभारत का नाम जय गाथा था।

इस गुफा के संबंध में कहा जाता है कि यहां स्थित गुफा में ही रहकर वेदव्यास जी ने सभी पुराणों की रचना भी की थी। व्यास गुफा को बाहर से देखकर ऐसा लगता है मानो कई ग्रंथ एक दूसरे के ऊपर रखे हुए हैं। इसलिए इसे व्यास पोथी भी कहा जाता हैं।

माना ऐसा भी जाता है कि उत्तराखंड में अवस्थित पांडुकेश्वर तीर्थ में अपनी इच्छा से राज्य त्याग करने के बाद महाराज पांडु अपनी रानियों कुंती और मादरी संग निवास करते थे। और इसी स्थान पर पांचों पांडवों का जन्म भी हुआ था।यकिनन धार्मिक और पौराणिकता भारत के रज कण में बसी हुई है जिसका परिणाम है कि ईश्वर भी इस धराधाम पर अवतार लेने के लिए लालायित रहते थे।।प्रेम से बोलिए भक्त वत्सल भगवान की जय।।




Tuesday, 30 January 2018

चंद्रग्रहण 2018 विशेष : जाने चंद्र ग्रहण से पहले पूर्णिमा के दिन किस समय करें पूजा



संदीप कुमार मिश्र: साल 2018 का पहला चंद्र ग्रहण 31 जनवरी को पड़ने वाला है।जो कई मायने में खास होगा।कहा जा रहा है कि यह चंद्र ग्रहण सुपर ब्लू ब्लड मून होगा।जबकि इससे पहले 152 साल पहले 31 मार्च 1866 में ऐसा संयोग बना था और भविष्य में भी आने वाले 11 सालों तक ऐसा चंद्र ग्रहण दिखाई नहीं देगा। आपको बता दें कि 31 जनवरी को पूर्णिमा होने और सूतक का समय लगने की वजह से पूजा नियत समय तक कर लेनी चाहिए।हमारे  हिंदू धर्म शास्त्रों में माघ माह की पूर्णिमा का विशेष महत्व और विधान बताया गया है।
दरअसल माघ मास की पूर्णिमा को गंगा स्नान के साथ ही दान का विधान बताया गया है। ज्योतिषियों मतानुसार चंद्र ग्रहण पड़ने पर हमें दान अवश्य करना चाहिए। चंद्र ग्रहण के सूतक सुबह 10 बजकर 18 मिनट पर लग जाएंगे और फिर पूजा और स्नान के साथ ही दान भी नहीं किया जा सकता। इसलिए पूर्णिमा के दिन प्रात: 8 बजे से पहले ही भगवान विष्णु और शिव की पूजा करना सही बताया गया है। इसके अलावा इस खास अवसर पर चंद्र-राहु का जप भी करना चाहिए।इस मंत्र का जप अवश्य करें- ऊं नमो वासुदेवाय
चंद्रग्रहण 2018 विशेष :जाने 31 जनवरी को चंद्र ग्रहण का आपकी राशि पर क्या होगा असर


चंद्र ग्रहण में सूतक के समय रखें विशेष सावधानी
सूतक के समय तथा ग्रहण के समय दान और जापादि का महत्व माना गया है. पवित्र नदियों अथवा तालाबों में स्नान किया जाता है. मंत्र जाप किया जाता है तथा इस समय में मंत्र सिद्धि का भी महत्व है. तीर्थ स्नान, हवन और ध्यानादि शुभ काम इस समय में किए जाने पर शुभ तथा कल्याणकारी सिद्ध होते हैं. धर्म-कर्म से जुड़े लोगों को अपनी राशि अनुसार अथवा किसी योग्य ब्राह्मण के परामर्श से दान की जाने वाली वस्तुओं को इकठ्ठा कर संकल्प के साथ उन वस्तुओं को योग्य व्यक्ति को दे देना चाहिए।
चंद्रग्रहण 2018 विशेष : जाने चंद्र ग्रहण का सही समय और उपाय

सूतक के समय और ग्रहण के समय भगवान की मूर्ति को स्पर्श नहीं करना चाहिए। मंदिर के कपाट बंद कर देने चाहिए। यहां तक कि खाना-पीना, सोना, नाखून काटना, भोजन बनाना, तेल लगाना आदि कार्यों से भी बचना चाहिए। सूतक काल में बच्चे, बूढ़े, गर्भावस्था स्त्री आदि को विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। अगर घर में अचार, मुरब्बा, दूध, दही और खाना बना हुआ रखा हो तो उसमें तुलसी का पत्ता डाल देना चाहिए। अगर तुलसी नहीं है तो कुशा भी जाल सकते हैं। ऐसा करने से खाना और ये सभी चीजों पर ग्रहण का प्रभाव नहीं पड़ता है।
जाने किसे कहते हैं चंद्र ग्रहण
चंद्रग्रहण उस खगोलीय स्थिति को कहते है जब जब सूर्य, पृथ्वी और चन्द्रमा इस क्रम में लगभग एक सीधी रेखा में अवस्थित हों। इस ज्यामितीय प्रतिबंध के कारण चंद्रग्रहण केवल पूर्णिमा को घटित हो सकता है। चंद्रमा पृथ्वी के ठीक पीछे आ जाता है।
चंद्रग्रहण 2018 विशेष : जाने चंद्र ग्रहण का सही समय और उपाय


चंद्रग्रहण 2018 विशेष :जाने 31 जनवरी को चंद्र ग्रहण का आपकी राशि पर क्या होगा असर


चंद्रग्रहण 2018 विशेष : जाने चंद्र ग्रहण का सही समय और उपाय



संदीप कुमार मिश्र : इस वर्ष पहला चंद्रग्रहण बुद्धवार यानी 31 जवनरी को दिखाई देगा।कहा जा रहा है कि चंद्र ग्रहण पर चांद तीन रंगों में नजर आएगा।ज्योतिष के जानकारों का कहना है कि चंद्र ग्रहण के दिन भगवान के दर्शन करना अशुभ होता है।यही वजह है कि ऐसे खास अवसरों पर मंदिर के पट बंद कर दिए जाते हैं।आपको बता दें कि चंद्र ग्रहण का स्पर्श पुष्य नक्षत्र में और समापन श्लेषा नक्षत्र में होगा।ऐसे में पुष्य एवं श्लेषा दोनों नक्षत्रो के जातकों के साथ कर्क राशि वालों पर इस ग्रहण का प्रभाव पड़ेगा।

चंद्र ग्रहण का समय
हमारे देश भारत में चंद्र ग्रहण बुधवार यानी 31 जनवरी 2018 को सायं 6 बजकर 22 मिनट से रात 8 बजकर 42 मिनट के बीच देखा जाएगा। ग्रहण का सूतक 9 घंटे पूर्व सुबह 08:35 बजे से लग जाएगा। चंद्र ग्रहण का मध्य एवं मोक्ष पूरे भारत में दिखाई देगा।प्रयागराज यानी इलाहाबाद में चन्द्रोदय शाम को 5:40 बजे से ही ग्रहण दिखाई देगा वहीं लखनऊ में 5:41 पर ग्रहण लगा ही चंद्रमा नजर आएगा।
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चंद्र ग्रहण पर करें विशेष उपाय
हमारे दिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है कि ग्रहण के दिन कुछ सरल और सुलभ उपाय हम अपनाए तो भाग्योदय हो सकता है ।
ग्रहण के दिन खासतौर पर ग्रहण से कुछ देर पहले किसी जरूरमंद या गरीब को दान करें और भोजन कराएं। ग्रहण के समय भगवान भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए शिवलिंग के सामने बैठकर ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करें।ईश्वर की आराधना करें।ग्रहण समाप्त होने के बाद भगवान शिव को पंचगव्य से स्नान कराएं।ऐसा करने से कहा जाता है कि आपकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।(ज्योतिष शास्त्र पर आधारित)

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संदीप कुमार मिश्र: बुधवार यानी 31 जनवरी 2018 को साल का पहला चंद्रग्रहण लगेगा। भारतीय मानक समय के अनुसार चंद्रग्रहण का आरंभ सायं 05:18 बजे से होगा और 08:42 बजे तक रहेगा।
आपको बता दें कि इस ग्रहण का स्पर्श पुष्य नक्षत्र में होगा जो कि श्लेषा नक्षत्र में समाप्त होगा। इस प्रकार से चंद्रग्रहण पुष्य एवं श्लेषा दोनों नक्षत्रो के जातकों के साथ ही कर्क राशि वालों को प्रभावित करेगा। ग्रहण का सूतक 9 घंटे पूर्व सुबह 08:35 बजे से लग जाएगा।देशभर में इस चंद्रग्रहण का प्रभाव देखने को मिलेगा। ज्योतिष के अनुसार भारत के अधिकांश भागो में ग्रहण लगे हुए चंद्रमा के दर्शन होंगे।
माघी पूर्णिमा स्नान – 31 जनवरी को ही प्रयाग माघ मेला कल्पवास स्नान का समापन भी हो जाएगा।हमारे धर्म शास्त्रों में प्रयाग माघ कल्प वास के उपरान्त तिल, वस्त्र ,कम्बल आदि के दान का विधान भी बताया गया है।
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आईए जानते हैं चंद्रग्रहण का राशियों पर कैसा प्रभाव रहेगा- 
मेष राशि :- घर का सपना पूरा होगा एवं वाहन सुख में वृद्धि होगी,घबराहट के साथ सीने की तकलीफ की समस्या हो सकती है।
वृष राशि :- वृष राशि वालों के पराक्रम,शौर्य में वृद्धि होगी,धार्मिक कार्यो पर खर्च,क्रोध में वॄद्धि होगी,संयम से काम लें।
मिथुन राशि :- वाणी में तीव्रता बनी रहेगी ,पैर में चोट या दर्द संभव है,शिक्षा के क्षेत्र में सफलता मिलेगी,शत्रु से सावधान रहें ,पेट की समस्या सता सकती है ।
कर्क राशि :- स्वास्थ्य के प्रति सचेत रहें,सम्मान एवं नौकरी में बेहतर वृद्धि होगी,विद्या अध्ययन में मन लगेगा,शत्रुता से बचें।
सिंह राशि :- घर का सपना साकार होगा एवं वाहन सुख में वृद्धि होगी , आपका मनोबल एवं स्वास्थ्य अचानक कमजोर हो सकता है ,खर्च पर संयम रखें क्योंकि वृद्धि संभव है ।
कन्या राशि :- दाम्पत्य सुख में वृद्धि होगी ,शैर्य, पराक्रम बढ़ेगा,शिक्षा में अवरोध संभव ,आय के नए साधनों में वृद्धि होगी।
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तुला राशि :- धन लाभ संभव ,सीने की तकलीफ परेशान कर सकती है,आपके पराक्रम में वृद्धि होगी लेकिन शरीरिक कष्ट हो सकता है ।
वृश्चिक राशि :- वृश्चिक राशि वालों के मनोबल एवं स्वास्थ्य में खूब वृद्धि होगी साथ ही धन और खर्च दोनो में वृद्धि बनी रहेगी ,शिक्षा के क्षेत्र में रुकावट संभव है।
धनु राशि :- आय के नए स्रोत बनेगें ,पैर में चोट या दर्द होना बी संभव है ,विद्यार्थीयों का लाभ होगा, पेट एवं पेशाब से संबंधित समस्या हो सकती है ।
मकर राशि :- यात्रा पर खर्च करेंगे ,दाम्पत्य जीवन में सामंजस्य की आवश्यकता है,वरिष्ठ अधिकारियों एवं सहयोगियों से मतभेद हो सकता है, आलस्य के साथ ही आय में वृद्धि होगी।
कुम्भ राशि :- शत्रु से सावधान रहें,आपके व्यक्तित्व और सम्मान में वृद्धि होगी ,आँख की परेशानी हो सकती है,राजनीतिक लाभ प्राप्त होगा।
मीन राशि :- भाग्य का साथ,पराक्रम एवं सम्मान में वृद्धि , विद्या और आय में अवरोध उत्पन्न हो सकता है,किसी बात को लेकर घबराहट बनी रहेगी । 
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Monday, 29 January 2018

जानिए क्या है 'बीटिंग द रिट्रीट' LIVE

बीटिंग रिट्रीट गणतंत्र दिवस समारोह की समाप्ति का सूचक है. इसमें थल सेना, वायु सेना और नौसेना के बैंड पारंपरिक धुन बजाते हुए मार्च करते हैं. इस साल के आयोजन में 15 मिलेट्री बैंड और 21 पाइप एंड ड्रम बैंड हिस्सा ले रहे हैं. आईए जानें बीटिंग रिट्रीट संबंधित कुछ खास बातें... 1. बीटिंग रिट्रीट का आयोजन गणतंत्र दिवस समारोह के तीसरे दिन 29 जनवरी की शाम को किया जाता है. यह 26 जनवरी को शुरू हुए समारोह के समाप्तआ होने का सूचक है. 2. इसका आयोजन राष्र्6आपति भवन रायसीना हिल्स में किया जाता है, जिसके चीफ गेस्टर राष्प्रनवरति होते हैं. 3. 26 जनवरी से 29 जनवरी के बीच राष्ट्र पति भवन समेत सरकारी भवनों सजावट की जाती है. 4. इस आयोजन में तीनों सेनाएं (आर्मी, नेवी, एयरफोर्स) एक साथ मिलकर सामूहिक बैंड का कार्यक्रम प्रस्तुंत करती हैं. साथ ही परेड भी होती है. 5. 1950 से अब तक भारत के गणतंत्र बनने के बाद बीटिंग द रिट्रीट कार्यक्रम को दो बार रद्द करना पड़ा है. पहला 26 जनवरी 2001 को गुजरात में आए भूकंप के कारण और दूसरी बार ऐसा 27 जनवरी 2009 को देश के आठवें राष्ट्रपति वेंकटरमन का लंबी बीमारी के बाद निधन हो जाने पर किया गया. 6. 'सारे जहां से अच्छा गाने' की धुन के साथ कार्यक्रम का समापन होता है.(संकलन)

श्रीरामचरितमानस में नवधा भक्ति





संदीप कुमार मिश्र: गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने श्रीरामचरितमानस में राम-नाम का जाप करते हुए श्रीराम जी के आगमन की प्रतीक्षा करने वाली माता शबरी का चरित्रगान करते हुए उन्हें परमभक्त के रूप में बताया है

श्रद्धेय कपूर चन्द शास्त्री जी महाराज बड़े ही सरल भाव से नवधा भक्ति के विषय में बताते हुए कहते हैं कि,- भक्त वत्सल भगवान श्रीराम ने अपने भक्त सबरी के भक्ति की लाज रखने के लिए स्वयं सबरी के आश्रम में उन्हें दर्शन दिए। राम जी को देखकर सबरी जी को तो ऐसा लगा मानो जनम जनम की प्यास ही मिट गई हो।सबरी ने श्रीराम और लक्ष्मण की भावभीनी स्वागत किया। सबरी के अनुरोध पर उनकी भक्ति से प्रसन्ना होकर स्वयं प्रभू श्रीराम ने सबरी को भक्ति का रहस्य बताया, जिसका पालन करके कोई भी भक्त परम धाम को प्राप्त कर सकता है।भगवान के बताए हुए भक्ति के नौ अंग होने के कारण इसे नवधा भक्ति कहा जाता है :आप भी अपने जीवन में भक्ति के इस भाव का सह्रदय पालन करें, जीवन धन्य हो जाएगा और आप पर राम जी की कृपा हो जाएगी-

नवधा भगति कहउं तोहि पाहीं।
सावधान सुनु धरु मन माहीं।।
भाव-महत्वपूर्ण बात सावधान होकर सुनी जाए और मन में धारण कर ली जाए,तभी उसका लाभ उठाया जा सकता है।
पहली और दूसरी भक्ति
प्रथम भगति संतह कर संगा।
दूसरि रति मम कथा प्रसंगा।।
पहली भक्ति है संतों का सत्संग।दूसरी भक्ति है मेरे कथा प्रसंग से प्रेम।
भाव-संतो की संगति का अर्थ है अपने जीवन की गतिविधियां भी उन्हीं की तरह हो जाए।कथा प्रसंग में रुचि का अर्थ है-भगवान के श्रेष्ठ आचरण से प्रेरणा और वैसा ही बनने में सुख की अनुभूति।
तीसरी और चौथी भक्ति
गुरु पद पंकज सेवा,तीसरि भक्ति अमान।
चौथि भगति मम गुन गन,करइ कपट तजि जान।।
तीसरी भक्ति है-अभिमान रहित होकर गुरु के चरणों की सेवा और चौथी भक्ति है कि कपट छोड़कर मेरे गुण समूहों का गान करें।
भाव- गुरु पद सेवा से अर्थ गुरु के निर्देश का निष्ठापूर्वक पालन है।कपट छोड़कर गुणगान करने का तात्पर्य यह है कि अंत: करणसे भगवान के चरित्र एवं गुण की प्रशंसा करें।सच्ची प्रशंसा का भाव होने से अनुकरण भी स्वत: होने लगता है।
पंचम भक्ति
मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा।
पंचम भजन सो बेद प्रकासा।।
मेरे (राम)मंत्र का जाप और मुझमें दृढ़ विश्वास यह पांचवीं भक्ति है,जो वेदों में प्रसिद्ध है।।।
भाव-मंत्र का जप दृढ़ विश्वास से किया जाना चाहिए।मंत्र का अर्थ सूत्र से परामर्श भी होता है।मंत्रों में जीवन की दिशा के संकेत होते हैं।उन्हें विश्वास पूर्वक अपनाना चाहिए।सूत्र है भज सेवायामभजन का अर्थ सेवा है,अथवा सेवन जिसका तात्पर्य जीवन में उसे आत्मसात कर लेना है।
छठी भक्ति
छठ दम सील बिरित बहु करमा।
निरत निरंतर सज्जन धरमा।।
छठी भक्ति है इंद्रियों का निग्रह,सच्चरित्रतम,बहुत से कर्मों से वैराग्य और सदैव सज्जनो जैसा आचरण में लगा रहना।
भाव-बहुत से कर्म ऐसे हैं जो मनुष्य के लिए अनुचित होते हैं,पर आकर्षणवश लोग उन्हें कराते हैं।ऐसे कर्मों से विरक्ति होनी चाहिए।दम इसी संदर्भ में युक्त है।शील सज्जनोचित कर्मों के पालन के लिए है।
सातवीं भक्ति
सातवां सम मोहि मय जग देखा।
मोतें संत अधिक करि लेखा।।
सातवीं भक्ति जगत भर को समभाव से मुझमें ओत-प्रोत(ईश्वरमय)देखना और संतो को मुझसे भी अधिक मानना है।
भाव-संत जनसाधारण के स्तर पर  आकर उन्हें भगवान तक पहुंचाने में सहायक होते हैं।अत: उन्हें भगवान से भी अधिक मानना भक्ति का चिन्ह कहा गया।
आठवीं भक्ति
आठवं जथालाभ संतोषा।
सपनेहुं नहिं देखई परदोषा
आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाए,उसी में संतोष करना और स्वप्न में भी पराये दोष को न देखना।
भाव-पुरुषार्थ पूरा करे,किंतु संतोष थोड़े में भी कर ले।जो न मिल सके उसके लिए दूसरे को दोष न देकर अपने प्रयास की कमी माने।
नवीं भक्ति
नवम सरल सब सन छलहीना।
मम भरोस हियं हरष न दीना।।
नव महुं एकउ जिन्ह कें होई।
नारि पुरुष सचराचर कोई।।
नवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपटरहित बरताव करना, ह्दय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी अवस्था में हर्ष और दीनता का न होना। इन नौ भक्तियों में से जिनके एक भी होती है,वह स्त्री हो या पुरुष,जड़ हो या चेतन।
भाव-अंत: करण को इतना स्वच्छ बना ले कि कोई छल-कपट किसी के भी प्रति न रह जाए।भगवान पर इतना विश्वास हो कि हर शुभ अथवा अशुभ के पीछे भगवान के उद्धेश्य को समझ सके तभी हर्ष-विषाद से परे हो पाते हैं।
श्री हरि ओम् तत् सत्

प्रेम से बोलिए श्रीसीतारामचंद्र महाराज की जय,सत्य सनातन धर्म की जय

Thursday, 25 January 2018

पद्मावती से पद्मावत तक : जारी है देशभर में हिंसक प्रदर्शन,जिम्मेदार कौन ?



संदीप कुमार मिश्र: पद्मावती और पद्मावत से तो बेहतर था कि जनाब संजय लीला भंसाली जी अपनी फिल्म का नाम खिलजावत या कुछ और रख देते...शायद ऐसा करने से इतना शोर हंगामा नहीं बरपता.. उन्हें इतना विरोध का सामना भी नहीं करना पड़ता...हां भंसाली साब अपनी फिल्म का नाम क्रूर खिलजी या फिर कुछ और भी रख सकते थे...खैर ये उनका विशेषाधिकार है कि वो अपनी फिल्म का नाम क्या रखते हैं...।लेकिन फिल्म देखने के बाद तो एक बात स्पष्टतौर पर कह सकते हैं कि फिल्म में कुछ भी ऐसा नहीं दिखाया गया है जिसपर इतना बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया जाए।

दरअसल पहले पद्मावत फिल्म पद्मावती के नाम से रिलीज होने वाली थी...जो शुरुआती दौर से ही विवादों में आ गयी थी, लेकिन पद्मावती फिल्म के पूरे देशभर में प्रदर्शन को हरी झंडी देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि किसी भी राज्य सरकार को इसे प्रतिबन्धित करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि फिल्म निर्माण से लेकर इसे सिनेमाघरों पर दिखाने का संबंध संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता के अधिकार से जुड़ा हुआ है।आपको बताते चलें कि जिस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के ताने बाने पर ये फिल्म बनी है वो मूलरूप से हिन्दी साहित्य के प्रारंभिक कालखंड काव्य रचयिता मलिक मुहम्मद जायसीकी रचना पद्मावतपर आधारित है।हां ये अलग बात है कि फिल्म को रोचक बनाने के लिए निर्देशक अपने लिहाज से फिल्म में ड्रामेटिक एलिमेंट डाल सकता है बशर्ते ऐतिहासिक तथ्यों या फिर किसी वर्ग,समुदाय या समाज की भावनाएं आहत ना हो तो...!

एक नजर में फिल्म पद्मावत (देखने के बाद): पद्मावत से तो बेहतर खिलजावत ही था फिल्म का नाम। क्योंकि फिल्म देखने के बाद आप पाएंगे कि ये पूरी फिल्म अलाउद्दीन खिलजी के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आती है,पूरी फिल्म में खिलजी के कैरेक्टर को जितनी फुटेज मिली उतनी शायद किसी और को नहीं । खिलजी का बखूबी महिमामंडन किया गया है फिल्म में...फिल्म देखकर ऐसा लगता है कि रानी पद्मावती और राजा रतन सिंह तो इस पूरी कहानी के एक पार्ट हैं जो कब आते हैं कब चले जाते हैं पता ही नहीं चलता।
मेरा अपना व्यक्तिगत मत है कि इस फिल्म का यदि इतना विरोध प्रदर्शन नहीं हुआ होता तो शायद कोई देखने में इतनी दिलचस्पी भी नहीं दिखाता।जैसा कि हम सब जानते है कि संजय लीला भंसाली जी भव्यता दिखाने के चक्कर में मूल विषय से भटक जाते हैं और वो पद्मावत में भी साफ देखने को मिला।
पद्मावत फिल्म में हालांकि राजपूतों की आन बान और शान को खूब बेहतर तरीके से दिखाया गया है लेकिन इतिहास में जैसा पढ़ने में आता है कि गोरा और बादल का कितना सशक्त किरदार था, उसे बड़े ही कम समय में फिल्म में समेट दिया गया है,हां ये अलग बात है कि उनके शौर्य और पराक्रम को कुछ हद तक दिखाने का प्रयास किया गया है।
अब बात मुख्य चरित्र यानी महारानी पद्मावती की,तो आपको बता दें कि की महारानी की बुद्धिमत्ता, हूनर और कौशल का फिल्म में खूब बखान किया गया है।लिहाजा फिल्म का विरोध प्रदर्शन करना समझ से परे है।एक जो सबसे बड़ी बात कही जा रही थी कि खिलजी और पद्मावती का आमने-सामने होना...लेकिन पूरी फिल्म में ऐसा कोई दृश्य देखने को नहीं मिला।ना तो हकिकत में और ना ही कल्पनाशिलता में।मेरी नजर से कहीं छूट गया हो तो कह नहीं सकता।पद्मावत फिल्म में जो चरित्र दर्शकों के मन मस्तिष्क पर छाया रहा वो है खिलजी...जिसे बेहद ही क्रूर,अय्याशबाज,राक्षसी, रहन सहन और यहां तक की गे जैसे चरित्र के रुप में दिखाया गया है।
ये फिल्म की समीक्षा नहीं है लेकिन मोटे तौर पर फिल्म कुछ इसी प्रकार की देखने के बाद लगी...अब सवाल उठता है कि क्या ऐसी किसी फिल्म के लिए जरुरी था कि देश को आग के हवाले कर दिया जाए...क्या जिन राजपूतों का गौरवशाली इतिहास रहा है,जो देश की एकता अखंडता और अस्मिता के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए,जिन महारानी पद्मावती ने राजपूताना शान की खातिर हजारों रानीयों के साथ पवित्र जौहर कर लिया था, आज उन्हीं के नाम पर बच्चों से भरी स्कूल बस के शीशे फोड़ दिये जाएं,उन्हें खौफ के साये में जीने को मजबूर कर दिया जाए।यकिनन नहीं...।
अंतत: विनम्र आग्रह है देश के सियासतदानो से और ऐसे किसी भी व्यक्ति विशेष या संगठन से जो देश की एकता और अखंड़ता को अपनी शान से जोड़ कर या फिर वोट की सियासत के चश्में से देखते हैं... उन्हें अपनी ऐसी दूषित सोच पर विराम लगाना चाहिए..। विकास की बात करने भर से देश का विकास नहीं होगा,न्यायपालिका की अवहेलना करने से कानून प्रशासन बेहतर नहीं होगा।देश हमारा आपका है,हम सब का है...तभी तो हम वसुधैव कुंटुंबकम की बात करते है,सर्वे भवन्तु सुखिना की बात करते है...इस एकता और अखंड़ता को तोड़ने का किसी को अधिकार नहीं है।
फिल्में समाज का आइना जरुर होती हैं लेकिन आईने को ही समाज बना देना कभी-कभी तो चल जाता है लेकिन हमेशा ये ठीक नहीं होता,क्योंकि जब आईना चटक जाएगा तो संभव है हाथ सूर्ख लाल हो जाए...जिसका हरजाना ना जाने कितनो को भुगतना पड़े...इसलिए निर्देशक महोदय भी ऐसे विषय उठाएं,जिससे उन्हें ना कोई उठाए ना उठाने की बात करे,क्योंकि ये पब्लिक है जनाब...सब जानती है।