संदीप कुमार
मिश्र: पद्मावती और पद्मावत से तो बेहतर था कि जनाब संजय
लीला भंसाली जी अपनी फिल्म का नाम खिलजावत या कुछ और रख देते...शायद ऐसा करने से
इतना शोर हंगामा नहीं बरपता.. उन्हें इतना विरोध का सामना भी नहीं करना
पड़ता...हां भंसाली साब अपनी फिल्म का नाम क्रूर खिलजी या फिर कुछ और भी रख सकते
थे...खैर ये उनका विशेषाधिकार है कि वो अपनी फिल्म का नाम क्या रखते हैं...।लेकिन
फिल्म देखने के बाद तो एक बात स्पष्टतौर पर कह सकते हैं कि फिल्म में कुछ भी ऐसा
नहीं दिखाया गया है जिसपर इतना बड़ा हंगामा खड़ा कर दिया जाए।
दरअसल पहले
पद्मावत फिल्म पद्मावती के नाम से रिलीज होने वाली थी...जो शुरुआती दौर से ही
विवादों में आ गयी थी, लेकिन पद्मावती फिल्म के पूरे देशभर में प्रदर्शन को हरी
झंडी देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट तौर पर कह दिया कि किसी भी राज्य सरकार
को इसे प्रतिबन्धित करने का कोई अधिकार नहीं है क्योंकि फिल्म निर्माण से लेकर इसे
सिनेमाघरों पर दिखाने का संबंध संविधान द्वारा प्रदत्त अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता
के अधिकार से जुड़ा हुआ है।आपको बताते चलें कि जिस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के ताने
बाने पर ये फिल्म बनी है वो मूलरूप से हिन्दी साहित्य के प्रारंभिक कालखंड काव्य
रचयिता मलिक ‘मुहम्मद जायसी’
की रचना ‘पद्मावत’ पर आधारित है।हां
ये अलग बात है कि फिल्म को रोचक बनाने के लिए निर्देशक अपने लिहाज से फिल्म में
ड्रामेटिक एलिमेंट डाल सकता है बशर्ते ऐतिहासिक तथ्यों या फिर किसी वर्ग,समुदाय या
समाज की भावनाएं आहत ना हो तो...!
एक नजर में फिल्म पद्मावत (देखने के बाद): पद्मावत से तो
बेहतर खिलजावत ही था फिल्म का नाम। क्योंकि फिल्म देखने के बाद आप पाएंगे कि ये
पूरी फिल्म अलाउद्दीन खिलजी के इर्दगिर्द ही घूमती नजर आती है,पूरी फिल्म में खिलजी के कैरेक्टर को जितनी फुटेज मिली उतनी शायद किसी और
को नहीं । खिलजी का बखूबी महिमामंडन किया गया है फिल्म में...फिल्म देखकर ऐसा लगता
है कि रानी पद्मावती और राजा रतन सिंह तो इस पूरी कहानी के एक पार्ट हैं जो कब आते
हैं कब चले जाते हैं पता ही नहीं चलता।
मेरा अपना व्यक्तिगत मत है
कि इस फिल्म का यदि इतना विरोध
प्रदर्शन नहीं हुआ होता तो शायद कोई देखने में इतनी दिलचस्पी भी नहीं दिखाता।जैसा
कि हम सब जानते है कि संजय लीला भंसाली जी भव्यता दिखाने के चक्कर में मूल विषय से
भटक जाते हैं और वो पद्मावत में भी साफ देखने को मिला।
पद्मावत फिल्म में
हालांकि राजपूतों की आन बान और शान को खूब बेहतर तरीके से दिखाया गया है लेकिन
इतिहास में जैसा पढ़ने में आता है कि गोरा और बादल का कितना सशक्त किरदार था, उसे
बड़े ही कम समय में फिल्म में समेट दिया गया है,हां ये अलग बात है कि उनके शौर्य
और पराक्रम को कुछ हद तक दिखाने का प्रयास किया गया है।
अब बात मुख्य
चरित्र यानी महारानी पद्मावती की,तो आपको बता दें कि की महारानी की बुद्धिमत्ता,
हूनर और कौशल का फिल्म में खूब बखान किया गया है।लिहाजा फिल्म का विरोध प्रदर्शन
करना समझ से परे है।एक जो सबसे बड़ी बात कही जा रही थी कि खिलजी और पद्मावती का
आमने-सामने होना...लेकिन पूरी फिल्म में ऐसा कोई दृश्य देखने को नहीं मिला।ना तो
हकिकत में और ना ही कल्पनाशिलता में।मेरी नजर से कहीं छूट गया हो तो कह नहीं
सकता।पद्मावत फिल्म में जो चरित्र दर्शकों के मन मस्तिष्क पर छाया रहा वो है
खिलजी...जिसे बेहद ही क्रूर,अय्याशबाज,राक्षसी, रहन सहन और यहां तक की गे जैसे
चरित्र के रुप में दिखाया गया है।
ये फिल्म की
समीक्षा नहीं है लेकिन मोटे तौर पर फिल्म कुछ इसी प्रकार की देखने के बाद लगी...अब
सवाल उठता है कि क्या ऐसी किसी फिल्म के लिए जरुरी था कि देश को आग के हवाले कर
दिया जाए...क्या जिन राजपूतों का गौरवशाली इतिहास रहा है,जो देश की एकता अखंडता और
अस्मिता के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण न्योछावर कर दिए,जिन महारानी पद्मावती ने
राजपूताना शान की खातिर हजारों रानीयों के साथ पवित्र जौहर कर लिया था, आज उन्हीं
के नाम पर बच्चों से भरी स्कूल बस के शीशे फोड़ दिये जाएं,उन्हें खौफ के साये में
जीने को मजबूर कर दिया जाए।यकिनन नहीं...।
अंतत: विनम्र आग्रह है देश के सियासतदानो से और ऐसे किसी भी
व्यक्ति विशेष या संगठन से जो देश की एकता और अखंड़ता को अपनी शान से जोड़ कर या
फिर वोट की सियासत के चश्में से देखते हैं... उन्हें अपनी ऐसी दूषित सोच पर विराम
लगाना चाहिए..। विकास की बात करने भर से देश का विकास नहीं होगा,न्यायपालिका की
अवहेलना करने से कानून प्रशासन बेहतर नहीं होगा।देश हमारा आपका है,हम सब का
है...तभी तो हम वसुधैव कुंटुंबकम की बात करते है,सर्वे भवन्तु सुखिना की बात करते
है...इस एकता और अखंड़ता को तोड़ने का किसी को अधिकार नहीं है।
फिल्में समाज का
आइना जरुर होती हैं लेकिन आईने को ही समाज बना देना कभी-कभी तो चल जाता है लेकिन
हमेशा ये ठीक नहीं होता,क्योंकि जब आईना चटक जाएगा तो संभव है हाथ सूर्ख लाल हो
जाए...जिसका हरजाना ना जाने कितनो को भुगतना पड़े...इसलिए निर्देशक महोदय भी ऐसे
विषय उठाएं,जिससे उन्हें ना कोई उठाए ना उठाने की बात करे,क्योंकि ये पब्लिक है
जनाब...सब जानती है।
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