संदीप कुमार मिश्र: महादेव की महिमा का बखान वेद पुराण गाते हैं..सदाशिव महादेव भक्तों के
प्रिय तो हैं ही,समस्त देवी-देवताओं के भी प्रिय हैं।सरल और सुलभ देव हैं
महादेव।भोले की भक्ति से मनुष्य की संपूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं।आदिदेव
महादेव शिव जी का षडाक्षर मंत्र है...''ॐ नम: शिवाय''...जो प्रणव मंत्र 'ॐ' के
साथ 'नम: शिवाय' (पंचाक्षर
मंत्र) के साथ बना है और जप करने पर यह षडाक्षर बन जाता है।
जैसा कि हमारे ऋषी-मनिषीयों के अनुसार पुराणों में षड़ाक्षर
मंत्र की महिमा का बखान किया गया है। शिव महापुराण में तो कहा गया है कि इस मंत्र
के महात्म्य का विस्तार से वर्णन तो आनादि अनादि काल तक नहीं किया जा सकता । यकिनन
महादेव का यह मंत्र शिवभक्तों, साधको के साथ ही जगत के कल्याण के लिए सर्वमनोकामना
पूर्ण करने वाला है।
'ॐ नम : शिवाय'
भगवान शिव के षड़ाक्षर मंत्र को वेदों का सारतत्व
भी कहा गया है।क्योंकि षड़ाक्षर मंत्र मोक्षदायी, शिवस्वरूप
तथा स्वयं शिव की आज्ञा से सिद्ध और संदेहशून्य माना गया है।सभी प्रकार की
सिद्धियों से युक्त और दिव्य है षड़ाक्षर मंत्र।
सर्वव्यापी भगवान शिव ने दिया महामंत्र
'ॐ नम : शिवाय'
'ॐ नम: शिवाय' (षडक्षर
मंत्र) या 'नम: शिवाय' (पंचाक्षर)
मंत्र का प्रतिपादन स्वयं सर्वव्यापी भगवान शिव ने संपूर्ण देहधारियों के नाना
प्रकार के मनोरथों की सिद्धि के लिए किया है। 'ॐ नम :
शिवाय' मंत्र सभी विद्याओं का बीज मंत्र है। जैसे वट
(बरगद) के बीज में विशाल वृक्ष मौजूद है, ठीक उसी प्रकार अत्यंत सूक्ष्म होने पर
भी ये मंत्र सिद्ध और पूर्ण है।
मंत्र है वाचक, शिव हैं वाच्य
हमारे धर्म पुराणों में कहा गया है कि शिव 'अप्रमेय' यानी अनुमान से परे है। इसलिए अप्रमेय होने
के कारण भगवान शिव वाच्य (ध्वनि) हैं तो वहीं यह मंत्र 'ॐ नम: शिवाय' उनका 'वाचक'
माना गया है। शिव और मंत्र का ये वाच्य-वाचक भाव अनादिकाल से निरंतर
चला आ रहा है और चलता रहेगा।
शिव पुराण में ऐसा कहा गया है कि यदि सृष्टि में
भगवान शिव का तत्व ना होता तो यह जगत् यानी संसार अंधकारमय हो जाता, क्योंकि प्रकृति जड़ है और जीवात्मा अज्ञानी। प्रकृति से लेकर परमाणु तक
जो कुछ भी जड़रूप तत्व है, वह किसी बुद्धिमान (चेतन) कारण
के बिना स्वयं 'कर्ता' नहीं है।
विद्वान इस मंत्र को शिव का अभिधान (वाचक) और शिव को अभिधेय (वाच्य) मानते हैं।
इस युग्म के कारण ही परमशिव स्वरूप यह मंत्र 'सिद्ध'
माना गया है। यह शिव का विधि वाक्य है। यह उन्हीं शिव का स्वरूप
है जो सर्वज्ञ, परिपूर्ण और स्वभाव से निर्मल हैं।
'ॐ नम : शिवाय'
के समान दूसरा कोई मंत्र नहीं
ऐसा शिव महापुराण में कहा गया है कि संपूर्ण सनातन
साहित्य और दर्शन में मंत्रों की अत्यधिक संख्या (सात करोड़ मंत्र और अनेकानेक
उपमंत्र) होने के बावजूद इस भगवान शिव द्वारा रचित षडक्षर मंत्र के समान कहीं कोई
दूसरा मंत्र नहीं है। षडक्षर मंत्र में छह अंगों सहित संपूर्ण वेद और शास्त्र
विद्यमान हैं। शिवपुराण के अनुसार जितने भी शिवज्ञान हैं और जो-जो विद्यास्थान
हैं,
वे सब षड़ाक्षर मंत्र रूपी सूत्र के संक्षिप्त भाष्य हैं। यही
नहीं जिसके हृदय में 'ॐ नम: शिवाय' यह षड़ाक्षर मंत्र प्रतिष्ठित है उसे अन्य बहुसंख्यक मंत्रों और विस्तृत
शास्त्रों से क्या प्रायोजन है।
कहने का भाव है कि इस संसार में जिस भी साधक या
जनसामान्य ने भक्ति भाव और श्रद्दा से 'ॐ नम: शिवाय'
मंत्र का जप दृढ़तापूर्वक कर लिया समझ लो उसने सम्पूर्ण शास्त्र पढ़ लिया है और
समस्त शुभ अनुष्ठानों को पूरा कर लिया है। शिव पुराण के अध्याय 12 में यहां तक कहा गया है कि 'ॐ नम: शिवाय' मंत्र के जप में लगा हुआ पुरुष यदि पंडित, मूर्ख,
अन्त्यज अथवा अधम भी हो तो वह पाप कर्मों से मुक्त हो जाता है।धन्य
हैं भगवान भोलेनाथ और धन्य है उनकी महिमा।जिनके स्मरण मात्र से भी मूर्ख ज्ञानवान
बन जाता है,निर्धन मालामाल हो जाता है और 'ॐ नम : शिवाय' के जाप से रोग,शोक,कष्ट और सभी प्रकार की बाधाओं से मनुष्य मुक्त हो जाता
है और शिव मय हो जाता है।
।।'ॐ नम : शिवाय'।।
(संकलन)
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