सावन में शिव भक्त कांवड़ यात्रा निकालते हैं।चारो तरफ बम-बम भोले की गूंज ही
सुनाई देती है।आईए जानते हैं कितने प्रकार के होते हैं कांवड़-
1-सामान्य कांवड़
सामान्य कांवड़िये कांवड़ यात्रा के दौरान जहां चाहें वहीं रुककर आराम कर सकते
हैं।आश्रम करने के लिए कई जगह पंडाल लगे होते हैं,जहां कांवडिये विश्राम करके आगे
की यात्रा प्रारंभ कर सकते हैं।
2-डाक कांवड़
डाक कांवड़िया कांवड़ यात्रा की शुरुआत से शिव को जलाभिषेक तक बिना रुके
लगातार चलते रहते हैं।उनके लिए अलग से रास्ता बनाया जाता है जिससे कि वो शिवलिंग
तक बिना रुके चलते रहें।
3-खड़ी कांवड़
खड़ी कांवड़ उठाने वाले के साथ कोई न कोई सहयोगी जरुर चलता है।जब वो आराम करते
हैं तो सहयोगी अपने कंधे पर उनकी कांवड़ को लेकर चलने के अंदाज में हिलाता रहता
है।
4-दांडी कांवड़
नदी तट से लेकर शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं।दांड़ी कांवड़
में कांवड़ पथ की दूरी को अपने शरीर की लंबाई से लेटकर नापते हुए यात्रा पूरी की
जाती है।ये सबसे मुश्किल यात्रा होती है इसमें एक महिने का वक्त लग जाता है।
कांवड़ के नियम
कांवड़ यात्रा करने वालों के लिए शुद्ध शाकाहार अनिवार्य है।कांवड़ को बिना
स्नान के छू भी नहीं सकते।चमड़े का स्पर्श वर्जित है।वाहन,चारपाई का प्रयोग मना
है।वृक्ष के नीचे कांवड़ नहीं रखना होता है।अपने सीर के उपर से कांवड़ ले जाना भी
वर्जित है।
कांवड़ यात्रा से अश्वमेध यज्ञ का फल
मिलता है
सच्ची श्रद्धा से कांधे पर कांवड़
रखकर बोलबम का नारा लगाते हुए पैदल यात्रा करने से अश्वमेध यज्ञ के बराबर फल
प्राप्त होता है।सभी पापों का अंत हो जाता है और जन्म मरण के बंधन से मुक्ति मिल
जाती है।शिवभक्त को मृत्यु के बाद शिवलोक की प्राप्ती होती है
।।ऊं नम:शिवाय।।
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