Monday, 2 December 2019

और कितनी निर्भया ! आखिर दरिंदों का अट्टहास कब तक…?



संदीप कुमार मिश्र: क्या कोई बता सकता है कि देश का कोई राज्य या फिर राज्य का कोई जिला,कस्बा ऐसा है जहां जननी की इज्जर तार-तार नहीं हो रही है...?
क्या कोई ये बता सकता है कि आखिर इसकी जिम्मेदारी किसकी है कि हमारे देश में महिलाएं सुरक्षित कब होंगी...?

या फिर कोई ये बता सकता है कि और कितनी निर्भया उन बहसी दरिदों का शिकार होंगी जिनकी गलती सिर्फ इतनी है कि वो आजादी से जीना चाहती है,कुछ करना चाहती हैं अपने लिए,अपने अपनों के लिए,देश के लिए और समाज के लिए...?

शायद नहीं....इसका जवाब किसी के पास नहीं...ना ही सरकारों के पास...ना ही आंख पर पट्टी बांधे न्यायालय की चौखट पर और ना ही सुरक्षा के बड़े...बड़े दावे और वादे करते हमारे प्रशासन के पास...।

किस किस कस्बे की चर्चा करें साहब....जितना बड़ा राज्य उतना ज्यादा अपराध...घिन आने लगी है ऐसी मानसिकता से....मन करता है उठा लो हथियार और बिना सोचे विचारे जिस किसी पर तनिक भी शक हो उसे तुरंत वहीं मार दो...क्योंकि वो तो भूल गए हैं कि उन्हें जन्म देने वाली भी कोई निर्भया ही थी जिसे उस दरिंदे ने मां या फिर अम्मी कहा होगा या फिर जिसे वो ब्याह कर या फिर निकाह कर लाया होगा वो भी तो एक निर्भया ही होगी और उसकी गोद में जिम्मेदारी का एहसास कराने वाले वो नन्हें-नन्हें हाथ भी किसी निर्भया के ही होंगे....भूल गए होंगे वो दरिंदे ये सब बातें......
लेकिन हम नहीं भूले हैं....हमें तो खुशी भी उसी आंचल में मिलती है...सपने भी हम उसी के साथ देखते हैं और स्कूल छोड़ने जाते समय जिम्मेदारी का एहसास भी उसी से पाते हैं.....!

इसका मतलब तो यही हुआ ना जिन हाथों में किताब देनी चाहिए उन हाथों को पहले हथियारों से सज्ज करें और ये बताएं कि राह चलते किसी पर भी शक हो तो बिना देर किए पहले बेटी उसे ठोंक देना...? लेकिन इससे तो अपराध और बढ़ेगा...और संविधान भी इसकी इजाजत नहीं देता और ना ही ये मानविय है...!

आखिर ऐसी बातें सोचने की और संविधान सम्मत आचरण करने की जिम्मेदारी क्या सिर्फ हमारी है उन राक्षसों की नहीं...क्या इस देश के सारे तंत्र बेकार,निकम्मे और नाकारा हो गए हैं...जो सिर्फ घोर निंदा करने के लिए ही रह गए हैं...क्या अपने सम्मान की रक्षा के लिए डरे सहमें लोगों को फिर किसी अवतार का इंतजार करना होगा....कि जब अत्याचार,अनाचार और पाप बेतहासा बढ़ जाएगा तब भगवान अवतार लेंगे और पापियों का नाश करेंगे...? या फिर अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए लोग एक  बेटी के साथ हुए दुष्कर्म के बाद दूसरी बेटी को भी किसी भूखे भेंडिये के आगे कर दें....या फिर हिंसा के रास्ते पर चलते हुए एक के बाद एक दरिंदे को मारते चले जाएं और फिर शहीद कहलाएं....?
आखिर क्या करे वो शख्स़ जिसके घर में मां भी है...बहन भी है...पत्नी भी है..और बेटी भी....? आखिर अपने जीवन के इन अभिन्न हिस्सों को कैसे सुरक्षित रखे कोई......???????

साहब किस रक्षक पर भरोसा करें जो खुद ही सबसे बड़ा भक्षक बने बैठे हैं या फिर उनपर जो आर्डर आर्डर करते हुए फाइलों के बोझ से दबे पड़े पड़े हैं...या फिर उनसे जो हर पांच साल में हमारी सुरक्षा की गारंटी देकर सत्ता में आते तो हैं लेकिन जैसे ही किसी निर्भया की इज्जत तार तार होती है तो कहते हैं कि लड़कों से गलतीयां हो जाती हैं....क्या करें कुछ समझ नहीं आता...!

ना जाने कितनी मोमबत्तियां और दीये जलाए जा चुके हैं और ना जाने कब तक जलाये जाते रहेंगे...और ये देश इसी तरह कलंक का काला टीका लगाए गौरवान्वित महसूस करता रहेगा...!
क्योंकि हमने पालने की आदत जो पाल रखी है...कभी कसाब...तो कभी निर्भया के कातिल वहसी दरिंदों को...इतिहास रहा है जी हमारा तो सहिष्णु बने रहने का...अफसोस कि ना जाने कब वो सौ गलतियां होंगी जब सहिष्णु से भगवान विष्णु का अवतार होगा और सुदर्शन चक्र से उन दरिंदों का संहार होगा...!

आप कहेंगे कि बार-बार भगवान की हम बात कर रहे हैं...आपही बताएं ना किसकी बात करें...प्रशासन की या फिर अदालत की...जहां की चौखट पर न्याय का इंतजार करते दशकों गुजर जाते हैं और ना जाने कितनी निर्भया फिर से न्याय की गुहार लगाए अदालत का दरवाजा खटखटाने के लिए तैयार हो जाती हैं....और गुनहगार सैकड़ों के सुरक्षा घेरे में शान से जेल से अदालत में सरकारी दामाद बनकर पहुंचते हैं जैसे कितना नेक कार्य किया हो...आपको नहीं लगता ऐसा....?

जरा कल्पना कीजिए कि कैसी घिनौनी मानसिकता होगी वो जिसे ना तो छह माह के उम्र का पता चल पाता है और ना ही चौथेपन में अपनी मां जैसी उम्र के होने का एहसास...सोचने भर से रुह कांप जाती है कि क्या ये वास्तव में राम,कृष्ण का देश है जहां कहा जाता है कि यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता”…क्या रामराज्य की कल्पना बेमानी नहीं लगती है आपको...?

क्यों नहीं ऐसे भूखे दरिंदों को सरेराह सड़क पर चील कौओं और कुत्तों को नोचने के लिए छोड़ दिया जाए...क्यों ना ऐसे हजारों लाखों दरिंदों को देश के हर कस्बे में ले जाकर चौक पर बांधकर पत्थर मारा जाए(शैतान को आखिर ऐसे ही तो मारा जाता है)।और चाहे सोशल मीडिया हो या फिर न्यूज चैनल महीनों महीनों सिर्फ इसी खबर को दिखाए और हर किसी को देखने पर मजबूर करे...इनकी मौत एक दिन में ना हो इस बात का भी ध्यान रखा जाए...ये टूकड़ों टूकड़ों में मरें और रोज मरें....!
क्यों ना संविधान में बदलाव करके इस नियम को लागू किया जाए...क्योंकि उन हबसी दरिंदों को सरकारी मेहमान बना कर भी तो देख लिए...क्या फर्क पड़ा....हर मिनट देश में ना जाने कितनी लड़कियों की अस्मट लूट ली जाती है और उन्हें मार दिया जाता है...यही ना...?

माफ करियेगा पता नहीं कि क्या लिखूं...बस लिख कर अपने गुस्से का इजहार कर रहा था...क्योंकि हैदराबाद से उत्तर प्रदेश तक और तमिलनाडु से राजस्थान तक शायद ही देश का कोई हिस्सा बचा हो जहां कि दिल दहला देने वाली घटनाएं सोचने पर मजबूर ना कर दें कि अगला कौन...कहां से...किस हालत में....ना जाने और क्या..क्या...? किससे कोई गुहार लगाए..... सरकार से जो कड़ी और घोर निंदा कह कर के काम चला लेती है...अदालत से जो तारीख़ पर तारीख़ देना जानती है...या फिर प्रशासन से जिसकी छवी ऐसी बन गयी है जिसके पास जाने से एक आम आदमी डरता है कि ना जाने क्या पूछ बैठेंगे साहेब या फिर ना जान कितने रुपये पैसे मांग बैठेंगे या फिर कुछ और घिनौने सवाल जो मैं लिख नहीं सकता....जिसे लिखते हुए मेरे हाथ कांपते हैं.....

क्या ये सवाल और जहन में आ रहे ख्याल आपके नहीं है..........सोच कर देखिएगा....जरुर ????

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