एक नहीं,दो नहीं करो अनगिनत धरने और आंदोलन
बस ध्यान रहे इतना कि स्वतंत्र भारत का मस्तक ना झुके...
लोकतंत्र का जनमन रहे स्वतंत्र और आज़ाद,
क्योंकि सत्ता और सियासत दां रहें ना रहें...
सरकारें आएंगी और जाती रहेंगी...
लेकिन स्वतंत्र भारत का मस्तक नहीं झुकेगा...।
लेकिन अफसोस कि यहां जनता,
है भ्रष्ट राजनीति की ओछी मानसिकता की शिकार !
अब तो हर हफ्ते यहां फिल्मों की तरह बदलते हैं मुद्दे,
मुद्दों पर बहस नहीं..बसें जलायी जाती है,उग्र आंदोलन किया
जाता है,
ऐसे में टूटती हैं तो सिर्फ आशाएं,मरती है तो जन अपेक्षाएं...
जिन पर बिस्तर बना कर चैन सो सोती है राजनीति
क्योंकि,
त्रस्त तो होती है जनता, जलते हैं मासूम,मरती है इंसानियत...!
जिसे देखकर भी गूंगी, बहरी बनी हुई है सियासत...!
लेकिन भय के फरिश्तों से कौन कहे कि,
अफवाहों से अमन को अगवा नहीं किया जा सकता
तुम्हारे करने में कुछ नज़र क्यूं नहीं आता...
क्यूं मुल्क की फिकर सिर्फ धरने में नजर आती है...
अल्फाज़ों से खेलने वाले ठेकेदारों...
जन्नत को जहन्नम बनाने की गुस्ताख़ी मत करना
क्योंकि ये जो हिन्दोस्तां है ना,मानवता का समन्दर है,
संदीप कुमार मिश्र,
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