Monday, 30 July 2018

सावन में जानिए उस मंदिर के बारे में जहां हुआ था शिव-पार्वती का विवाह



संदीप कुमार मिश्र: श्रावण के पवित्र मास में श्रद्धालु महादेव के दरबार में जाकर भक्तिभाव के साथ शीश झुका रहे हैं और शिव भक्ति में लीन हैं।चलिए आप को बताते हैं उस मंदिर के बारे में जहां माता पार्वती और महादेव का विवाह हुआ था।

मित्रों देवभूमि उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग में 'त्रियुगी नारायण' एक पवित्र स्थान है,कहा जाता है कि सतयुग में जब भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था तब यह हिमवतकी राजधानी था।संतान प्राप्ति की चाह में आज भी हर वर्ष सितंबर में मेला लगता है और बावन द्वादशी पर लाखों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं और मंदिर में भोलेनाथ की पूजा अर्चना करते हैं।

मंदिर में आज भी प्रज्वलित है विवाह मंडप की अग्नि
ऐसी मान्यता है कि महादेव को प्रसन्न करने के लिए त्रियुगीनारायण मंदिर से आगे गौरी कुंड नामक स्थान पर माता पार्वती ने कठीन तपस्या की थी।माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता पार्वती से विवाह किया था।जिस अग्नि कुंड के सामने विवाह संपन्न हुआ था कहते हैं आज भी वहां निरंतर अग्नि जल रही है।
कहा जाता है कि केदारनाथ की यात्रा करने वाले श्रद्धालू अपने यात्रा की शुरुआत सबसे पहले त्रियुगीनारायण मंदिर में भोलेनाथ और माता पार्वती के दर्शन से ही शुरु करते हैं। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए इस अग्नि का आशीर्वाद लेने के लिए देश के हर हिस्से से लोग आते हैं।श्रावण मास में आदिदेव महादेव और माता पार्वाती सभी मनोकामनाएं पूरी करें।
।।हर हर महादेव।।



Thursday, 26 July 2018

जानिए गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर कोई और तिथि क्यों नहीं हो सकती






संदीप कुमार मिश्र:  ऊं श्री गुरुवे नम:...गुरु कौन है,जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले कर जाए।इस लिहाज से देखें तो गुरु के लिए पूर्णिमा से बढ़कर कोई और तिथि हो ही नहीं सकती, क्योंकि गुरु और पूर्णत्व दोनों एक दूसरे के पर्याय हैं। जिस प्रकार चंद्रमा पूर्णिमा की रात सर्वकलाओं से परिपूर्ण हो जाता है और वह अपनी शीतल रश्मियां समान भाव से सभी को वितरित करता है। उसी प्रकार सम्पूर्ण ज्ञान से ओत-प्रोत गुरु अपने सभी शिष्यों को अपने ज्ञान प्रकाश से प्रकाशवान करता है। पूर्णिमा गुरु है और आषाढ़ शिष्य है। बादलों का घनघोर अंधकार। आषाढ़ का मौसम जन्म-जन्मान्तर के लिये कर्मों की परत दर परत। इसमें गुरु चांद की तरह चमकता है और अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।

तमसो मा ज्योर्तिगमय
मृत्र्योमा अमृतं गमय
कहते हैं कि चांद जब पूरा हो जाता है तो उसमें शीतलता आ जाती है।शायद इसी शीतलता के कारण ही चांद को गुरु के लिये चुना गया होगा।क्योंकि चांद में मां जैसी शीतलता और वात्सल्य भरा हुआ है।तभी तो हमारे ऋषियों व महापुरुषों ने चांद की शीतलता को ध्यान में रखकर आषाढ़ पूर्णिमा को गुरु को समर्पित किया है।इसीलिए शिष्य, गृहस्थ, संन्यासी सभी गुरु पूर्णिमा को गुरु पूजन कर आशीर्वाद ग्रहण करते हैं।

गुर्रुब्रह्मï गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात् परमब्रह्मï तस्मै श्री गुरवे नम:।।
गुरु पूर्णिमा को गुरु का ध्यान करते हुए गुरु की पूजा, अर्चना व अभ्यर्थना करनी चाहिए। भक्ति और निष्ठा के साथ उनके रचे ग्रंथों का पाठ करते हुए उनकी पावन वाणी का रसास्वादन करना चाहिए। उनके उपदेशों पर आचरण करने की निष्ठा का वर मांगना चाहिए। यकिनन गुरु पूर्णिमा से हमें कुछ विशेष करने का संकल्प लेना चाहिए। तभी हमारे सद्गुरु हमारे जीवन में अवतरित होंगे और जीवन धन्य बन सकेगा।



जानें क्या है गुरु पूर्णिमा का महत्व



गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिलै न मोष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मैटैं न दोष।।
कहने का भाव है कि बिना गुरु के ज्ञान का मिलना असंभव है। मनुष्य तब तक अज्ञान रुपी अंधकार मे भटकता हुआ मायारूपी सांसारिक बन्धनो मे जकडा रहता है जब तक कि गुरु कि कृपा नहीं प्राप्त होती।
मोक्ष रुपी मार्ग दिखलाने वाले गुरु हैं। बिना गुरु के सत्य एवं असत्य का ज्ञान नही होता। उचित और अनुचित के भेद का ज्ञान नहीं होता फिर मोक्ष कैसे प्राप्त होगा ? इसलिए गुरु कि शरण में जाने से ही जीवन को सही राह मिल पाएगी ।
हमारे देश में आषाढ़ शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को बड़े ही उत्साह के साथ गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है।ऐसे तो गुरुओं का विशाल और संवृद्ध इतिहास रहा है हमारे देश में लेकिन महर्षि वेद व्यास प्रथम विद्वान थे, जिन्होंने सनातन धर्म (हिन्दू धर्म) के चारों वेदों की व्याख्या की थी...

क्या है मान्यता
कहा जाता है कि आषाढ़ पूर्णिमा को आदि गुरु वेद व्यास का जन्म हुआ था. उनके सम्मान में ही आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है. मगर गूढ़ अर्थों को देखना चाहिए क्योंकि आषाढ़ मास में आने वाली पूर्णिमा तो पता भी नहीं चलती है. आकाश में बादल घिरे हो सकते हैं और बहुत संभव है कि चंद्रमा के दर्शन तक न हो पाएं.
बिना चंद्रमा के कैसी पूर्णिमा! कभी कल्पना की जा सकती है? चंद्रमा की चंचल किरणों के बिना तो पूर्णिमा का अर्थ ही भला क्या रहेगा. अगर किसी पूर्णिमा का जिक्र होता है तो वह शरद पूर्णिमा का होता है तो फिर शरद की पूर्णिमा को क्यों न श्रेष्ठ माना जाए क्योंकि उस दिन चंद्रमा की पूर्णता मन मोह लेती है. मगर महत्व तो आषाढ़ पूर्णिमा का ही अधिक है क्योंकि इसका विशेष महत्व है.

आषाढ़ की पूर्णिमा ही क्यों है गुरु पूर्णिमा
आषाढ़ की पूर्णिमा को चुनने के पीछे गहरा अर्थ है. अर्थ है कि गुरु तो पूर्णिमा के चंद्रमा की तरह हैं जो पूर्ण प्रकाशमान हैं और शिष्य आषाढ़ के बादलों की तरह. आषाढ़ में चंद्रमा बादलों से घिरा रहता है जैसे बादल रूपी शिष्यों से गुरु घिरे हों. शिष्य सब तरह के हो सकते हैं, जन्मों के अंधेरे को लेकर आ छाए हैं. वे अंधेरे बादल की तरह ही हैं. उसमें भी गुरु चांद की तरह चमक सके, उस अंधेरे से घिरे वातावरण में भी प्रकाश जगा सके, तो ही गुरु पद की श्रेष्ठता है. इसलिए आषाढ़ की पूर्णिमा का महत्व है! इसमें गुरु की तरफ भी इशारा है और शिष्य की तरफ भी. यह इशारा तो है ही कि दोनों का मिलन जहां हो, वहीं कोई सार्थकता है.

गुरु पुर्णिमा पर्व का महत्व
जीवन में गुरु और शिक्षक के महत्व को आने वाली पीढ़ी को बताने के लिए यह पर्व आदर्श है. व्यास पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा अंधविश्वास के आधार पर नहीं बल्कि श्रद्धाभाव से मनाना चाहिए.
गुरु का आशीर्वाद सबके लिए कल्याणकारी व ज्ञानवर्द्धक होता है, इसलिए इस दिन गुरु पूजन के उपरांत गुरु का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहिए.
पूर्णिमा की पूजा विधि
हिन्‍दू धर्म में गुरु को भगवान से ऊपर दर्जा दिया गया है. गुरु के जरिए ही ईश्‍वर तक पहुंचा जा सकता है. ऐसे में गुरु की पूजा भी भगवान की तरह ही होनी चाहिए. गुरु पूर्णिमा के दिन सुबह-सवेरे उठकर स्‍नान करने के बाद स्‍वच्‍छ वस्‍त्र धारण करें. फिर घर के मंदिर में किसी चौकी पर सफेद कपड़ा बिछाकर उस पर 12-12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं. इसके बाद इस मंत्र का उच्‍चारण करें- 'गुरुपरंपरासिद्धयर्थं व्यासपूजां करिष्ये'.

पूजा के बाद अपने गुरु या उनके फोटो की पूजा करें. अगर गुरु सामने ही हैं तो सबसे पहले उनके चरण धोएं. उन्‍हें तिलक लगाएं और फूल अर्पण करें. उन्‍हें भोजन कराएं. इसके बाद दक्षिण देकर पैर छूकर विदा करें



गुरु पूर्णिमा 2018: महान गुरुओं का भारतीय इतिहास



संदीप कुमार मिश्र: गुरु पुर्णिमा के पावन अवसर पर उन गुरुओं की चर्चा ना हो जिनकी वजह से हमारी संस्कृति और सभ्यता संवृद्ध और विशाल बनी ऐसा कैसे हो सकती है...तो चलिए जानते है उन महान गुरुओं के बारे में...जिनकी वजह से गुरु शिष्य परंपरा का निर्वहन निरंतर भाव राग और ताल के देश भारत में चला आ रहा है......   
गुरु बृहस्पति
देवों के देव कहें या देवताओं के गुरु बृहस्पति को माना गया है। ये अपने ज्ञान से देवताओं को असुरों को हराने का ज्ञान तो देते ही हैं।  यही नहीं वो देवगुरु बृहस्पति ही हैं जो अपने रक्षोघ्र मंत्रों का प्रयोग कर देवताओं का पोषण और रक्षण भी करते हैं।
महर्षि वेदव्यास
धर्मों में ऐसा माना गया है कि महर्षि वेदव्यास भगवान विष्णु के अवतार थे। इनका पूरा नाम कृष्णद्वैपायन था। इन्होंने ही वेदों का विभाजन किया। इसलिए इनका नाम वेदव्यास पड़ा। महाभारत ग्रंथ की रचना भी महर्षि वेदव्यास ने ही की है।
 गुरु सांदीपनि
भगवान श्री कृष्ण 64 कलाओं में पारंगत थे और उन्हें यह शिक्षा देने वाले थे महर्षि सांदीपनि।  भगवान श्रीकृष्ण के गुरु थे महर्षि सांदीपनि। श्रीकृष्ण और बलराम इनसे शिक्षा प्राप्त करने मथुरा से उज्जयिनी ( उज्जैन) आए थे।

शुक्राचार्य
दैत्यों के गुरु हैं शुक्राचार्य। ये भृगु ऋषि तथा हिरण्यकशिपु की पुत्री दिव्या के पुत्र हैं। इनका जन्म का नाम शुक्र उशनस है। उनके पास एक शक्ति थी जिसके बल पर वह मृत दैत्यों को भी जीवित कर दिया करते थे जो उन्हें भगवान शिव ने दिया था। इस ज्ञान को मृत संजीवन विद्या का ज्ञान कहते हैं।
ब्रह्मर्षि विश्वामित्र
विश्वामित्र वैसे तो क्षत्रिय थे, लेकिन वह ब्रह्मा के बहुत बड़े भक्त थे। उन्होंने घोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान ब्रह्मा ने इन्हें ब्रह्मर्षि का पद प्रदान किया था। उन्होंने श्रीराम को अनेक दिव्यास्त्र प्रदान किए थे। भगवान राम को सीता स्वयंवर में ऋषि विश्वामित्र ही लेकर गए थे।
वशिष्ठ ऋषि
वशिष्ठ ऋषि सूर्यवंश के कुलगुरु थे। भगवान राम ने सारी वेद-वेदांगों की शिक्षा वशिष्ठ ऋषि से ही प्राप्त की थी। श्रीराम के वनवास से लौटने के बाद इन्हीं के द्वारा उनका राज्याभिषेक हुआ और रामराज्य की स्थापना संभव हो सकी।

परशुराम
परशुराम गरम दिमाग वाले  महान योद्धा तो थे ही लेकिन इससे अलग वह एक महान गुरु भी थे।  धर्म ग्रंथों के अनुसार ये भगवान विष्णु के अंशावतार थे। इन्होंने भगवान शिव से अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा प्राप्त की थी। पिता की हत्या का बदला लेने के लिए इन्होंने कई बार क्षत्रियों पर हमला किया और उनका मकसद धरती को क्षत्रिय विहीन कर देना था। भीष्म, द्रोणाचार्य और कुंती पुत्र कर्ण इनके शिष्य थे।
द्रोणाचार्य
कौरवों और पांडवों को अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देने वाले महान धनुर्धर थे द्रोणाचार्य। ऐसा माना जाता है कि द्रोणाचार्य देवगुरु बृहस्पति के अंशावतार थे। इनके पिता का नाम महर्षि भरद्वाज था। महान धनुर्धर अर्जुन इनके प्रिय शिष्य थे और एकलव्य से इन्होंने गुरु दक्षिणा में अंगूठा ले लिया था।


Tuesday, 24 July 2018

27 जुलाई 2018 चंद्रग्रहण: मकर राशि पर भारी चंद्र ग्रहण,जानिए अन्य राशियों पर कैसा है चंद्रग्रहण का प्रभाव



संदीप कुमार मिश्र: 27 जुलाई 2018 को लगने वाला है दूसरा सबसे बड़ा चंद्र ग्रहण।जो कि  सदी का सबसे लंबा चंद्रग्रहण होगा।ऐसा कहा जा रहा है कि ये चंद्रग्रहण पूरे भारत नजर आएगा। इस बार का चंद्र ग्रहण मकर राशि पर लग रहा है और मकर राशि का स्वामी शनि होने के कारण मकर राशि पर शनि और चंद्रमा दोनों का प्रभाव देखने को मिलेगा। आईए जानते चंद्र ग्रहण का सभी 12 राशियों पर क्या होने वाला है असर-

मेष राशि : सदी का सबसे लंबा चंद्र ग्रहण मेष राशि वालों के लिए शुभ रहेगा। नए अवसरों के साथ धन लाभ अवसर मिल सकते हैं।

वृष राशि : वृष राशि के जातक ग्रहण के समय महावीर हनुमान जी ध्यान करें और हनुमान चालीसा का पाठ करें।हनुमान जी महाराज की कृपा हो जाएगी।रोजगार और नौकरी के सुंदर अवसर मिल सकते हैं।

मिथुन राशि : मिथुन राशि वाले अपनी सेहत का विशेष ख्याल रखें।आमदनी के नए श्रोत बनते नजर आ रहे हैं।

कर्क राशि : चंद्र ग्रहण आपको परेशान कर सकता है जिससे मन उदास रहेगा, क्योंकि कर्क राशि का स्वामी चंद्रमा है और चंद्रमा पर ही ग्रहण लगने वाला है।

सिंह राशि : परिवार में तनाव के बीच  सिंह राशि वालों अच्छी खबर भी मिल सकती है।कुल मिलाकरल आपके लिए चंद्र ग्रहण मिला-जुला रहने वाला होगा।

कन्या राशि: सिंह राशि वालों की तरह ही कन्या राशि के जातकों के लिए चंद्र ग्रहण कोई विशेष लाभ नहीं देगा। शिव का ध्यान उपासना करना शुभ रहेगा।महादेव आपका कल्याण करेंगे।

तुला राशि : तुला राशि वालों के लिए चंद्र ग्रहण व्यापार में फायदा पहुंचाने वाला होगा।जमीनी लेनदेन और व्यापार में लाभ संभव है।

वृश्चिक राशि : इस राशि का स्वामी मंगल है। ग्रहण के असर की बात करें तो कुछ खास नहीं रहने वाला है,भविष्य में उन्नति और तरक्की के कई अवसर मिलेंगे।

धनु राशि:  सावधान रहें।रुपये-पैसे से जुड़ी कई परेशानियां हो सकती है। परिवार में मनभेद और मतभेद हो सकता है ।

मकर राशि : मकर राशि पर चंद्र ग्रहण का यकिनन सबसे बुरा असर देखने को मिल सकता है क्योंकि चंद्र ग्रहण ही मकर राशि में हो रहा है।रुपये पैसै का नुकसान तो होगा ही जिससे मानसिक तनाव पैदा होने की संभावना बढ़ जाएगी ।

कुंभ राशि :  कुंभ राशि के जातकों को मानसिक और शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। चंद्र ग्रहण का कुंभ राशि पर नकारात्मक असर देखने को मिल सकता है।

मीन राशि : मीन राशि पर चंद्र ग्रहण का कुछ खास असर नहीं पड़ने वाला है।लेकिन सेहत के प्रति सजग रहना आपके लिए बेहतर होगा।

Monday, 16 July 2018

श्रावण मास में करें अपनी राशि के अनुसार शिव पूजा,भोलेनाथ की बरसेगी कृपा



संदीप कुमार मिश्र: शिव की आराधना का सर्वोत्तम मास है श्रावण मास।आदियोगी महादेव को पवित्र श्रावण मास में प्रसन्न करना और मनवांछित फल प्राप्त करना आसान होता है,क्योंकि सावन माह में आपके पूजा-पाठ,जप-तप,पूजन-हवन का फल दोगुना हो जाता है। ऐसे में आप अपनी राशि के अनुसार कैसे करें शिव की पूजा,जिससे आपकी भक्ति से महादेव की बरसे आप पर कृपा...आईए जानते हैं।

मेष राशि- मेष राशि वालों को महादेव को प्रसन्न करने के लिए लाल चंदन के साथ लाल रंग के पुष्प चढ़ाने चाहिए और नागेश्वराय नम: मंत्र का पूरी श्रद्दा के साथ जाप करना चाहिए।

वृषभ राशि- चमेली के फूल चढ़ाकर वृषभ राशि के जातकों को रुद्राष्टाकर का पाठ करना चाहिए । 


मिथुन राशि- मिथुन राशि के जातक भगवान शिव को धतूरा, भांग चढ़ाएं और पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें।

कर्क राशि- शिवलिंग का भांग मिश्रित दूध से अभिषेक कर्क राशि के जातक को अत्यधिक लाभ पहुंचाएगा और यदि रुद्राष्टाध्यायी का पाठ भी साथ में करें तो भोलेनाथ की अतिविशेष कृपा आप पर बनी रहेगी।

सिंह राशि- सिंह राशि वाले पूरे माह शिवजी को कनेर के लाल रंग के फूल अर्पित करें और शिव मंदिर में नित्य शिव चालीसा का पाठ करें।

कन्या राशि- कन्या राशि के जातक शिवलिंग पर बेलपत्र, धतूरा, भांग आदि का श्रृंगार चढ़ाएं और पंचाक्षरी मंत्र  का जाप करें,शिव की कृपा बरसेगी।

तुला राशि- तुला राशि के शिव भक्त दूध में मिश्री मिलाकर शिवलिंग का अभिषेक करें और शिव जी के सहस्रनाम का जाप करें।

वृश्चिक राशि- वृश्चिक राशि वाले महादेव को गुलाब का पुष्प और बिल्वपत्र की जड़ चढ़ाएं और नित्य रुद्राष्टक का पाठ करें।

धनु राशि- धनु राशि के जातक नित्य प्रात: शिवजी के चरणों में पीले फूल अर्पित करें, महादेव को खीर का भोग लगाएं और शिवाष्टक का पाठ करें,शिव की कृपा बरसेगी।

मकर राशि- मकर राशि के जातक जीवन में शांति और समृद्धि पाने के लिए शिवजी को धतूरा, फूल, भांग एवं अष्टगंध चढ़ाएं और पार्वतीनाथाय नम: मंत्र का जाप करें।

कुंभ राशि- कुंभ राशि वाले शिवलिंग का गन्ने के रस से अभिषेक करने के साथ ही शिवाष्टक का पाठ करें,  आर्थिक लाभ प्राप्त होगा।

मीन राशि- मीन राशि के शिवभक्त शिवलिंग पर पंचामृत, दही, दूध और पीले फूल चढ़ाएं साथ ही चंदन की माला से 108 बार पंचाक्षरी मंत्र का जाप करें,कुटुंब में धन-धान्य की वृद्धि होगी।

।।श्रावण मास में भगवान की कृपा आप सभी पर सदैव बनी रहे।हम यही कामना करते हैं।।

।।ऊं नम: शिवाय।।