संदीप कुमार मिश्र:
श्रावण के पवित्र मास में श्रद्धालु महादेव के दरबार में जाकर भक्तिभाव के साथ शीश
झुका रहे हैं और शिव भक्ति में लीन हैं।चलिए आप को बताते हैं उस मंदिर के बारे में
जहां माता पार्वती और महादेव का विवाह हुआ था।
मित्रों देवभूमि
उत्तराखण्ड के रुद्रप्रयाग में 'त्रियुगी नारायण' एक पवित्र स्थान है,कहा जाता है कि सतयुग में जब भगवान शिव ने माता पार्वती से
विवाह किया था तब यह ‘हिमवत’ की
राजधानी था।संतान प्राप्ति की चाह में आज भी हर वर्ष सितंबर में मेला लगता है और बावन
द्वादशी पर लाखों की संख्या में लोग इकट्ठा होते हैं और मंदिर में भोलेनाथ की पूजा
अर्चना करते हैं।
मंदिर में आज भी
प्रज्वलित है विवाह मंडप की अग्नि
ऐसी मान्यता है कि महादेव को
प्रसन्न करने के लिए त्रियुगीनारायण मंदिर से आगे गौरी कुंड नामक स्थान पर माता पार्वती
ने कठीन तपस्या की थी।माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने माता
पार्वती से विवाह किया था।जिस अग्नि कुंड के सामने विवाह संपन्न हुआ था कहते हैं
आज भी वहां निरंतर अग्नि जल रही है।
कहा जाता है कि केदारनाथ की
यात्रा करने वाले श्रद्धालू अपने यात्रा की शुरुआत सबसे पहले त्रियुगीनारायण मंदिर
में भोलेनाथ और माता पार्वती के दर्शन से ही शुरु करते हैं। साथ ही संतान प्राप्ति के लिए इस अग्नि का आशीर्वाद लेने के लिए देश के हर हिस्से
से लोग आते हैं।श्रावण मास में आदिदेव महादेव और माता पार्वाती सभी मनोकामनाएं
पूरी करें।
।।हर हर महादेव।।