संदीप
कुमार मिश्र: देश ही नहीं विश्व भर में सिख धर्म के पहले
गुरु गुरु नानक देव जी का जन्मोत्सव बड़े ही धूमधाम से मनाया जा रहा है। गुरु नानक
जंयती को गुरु पर्व के नाम से भी जाना जाता है। सिख समुदाय के लोग गुरु पर्व को बड़े
ही श्रद्धा भाव के साथ मनाते हैं।गुरु नानक जी के बाद सिख धर्म में 10 गुरु हुए।हमारे देश में गुरु नानक
जंयती या गुरु पर्व पर तीन दिन से ही जश्न मनाने की तैयारियां शुरू हो जाती है।इस
खास अवसर पर सिख धर्म के अनुयायी गुरु नानक देव जी के भजन गाते हुए गुरुद्वारे से
प्रभात फेरी निकालते हैं और 48 घंटे
तक बिना रुके गुरुद्वारों में अखंड पाठ पढ़ा जाता है।इस खास अवसर पर कई तरह की
झांकिया निकाली जाती है। जगह जगह पर लंगर यानि प्रसाद बांटा जाता है। इस पर्व को
लेकर श्रद्धालुओं के मन में विशे, श्रद्धा का भाव का रहता है। सिख समुदाय में गुरु
नानक जंयती सबसे बड़ा पर्व होता है।
मित्रों
गुरुनानक देवजी सिख धर्म के सिर्फ संस्थापक ही नहीं मानव धर्म के उत्थापक भी थे।गुरु
नानक देव जी केवल किसी धर्म विशेष के गुरु नहीं अपितु संपूर्ण सृष्टि के जगद्गुरु
थे।
'नानक शाह फकीर। हिन्दू का गुरु, मुसलमान का पीर।
आपको
बता दें कि गुरुनानक देव जी का जन्म कार्तिक पूर्णिमा के दिन 1469 को लाहौर से
करीब 40 मील दूर स्थित तलवंडी सायभोय नामक गाँव में हुआ था । ये जगह बंटवारे के
बाद पाकिस्तान में चला गया। भाई गुरुदासजी लिखते हैं कि इस संसार के प्राणियों की
त्राहि-त्राहि को सुनकर अकाल पुरख परमेश्वर ने इस धरती पर गुरुनानक को पहुँचाया, 'सुनी पुकार दातार प्रभु गुरु नानक जग
महि पठाइया।' उनके इस धरती पर आने पर 'सतिगुरु नानक प्रगटिआ मिटी धुंधू जगि
चानणु होआ' सत्य है, नानक का जन्मस्थल अलौकिक ज्योति से भर उठा था। उनके मस्तक के पास तेज
आभा फैली हुई थी। पुरोहित पंडित हरदयाल ने जब उनके दर्शन किए उसी क्षण भविष्यवाणी
कर दी थी कि यह बालक ईश्वर ज्योति का साक्षात अलौकिक स्वरूप है। बचपन से ही गुरु
नानक देव जी का मन आध्यात्मिक ज्ञान एवं लोक कल्याण के चिंतन में डूबा रहता था।
दरअसल
गुरुनानक देवजी का जीवन एवं धर्म दर्शन युगांतकारी लोकचिंतन दर्शन था। गुरु नानक
देव जी सांसारिक यथार्थ से नाता तोड़ने के खिलाफ थे,क्योंकि
उनका कहना था कि
मनुष्य संन्यास लेकर स्वयं का अथवा लोक कल्याण नहीं कर सकता, जितना कि स्वाभाविक एवं सहज जीवन में
रहकर कर सकता है। इसलिए उन्होंने गृहस्थ त्याग गुफाओं, जंगलों में बैठने से प्रभु प्राप्ति
नहीं अपितु गृहस्थ में रहकर मानव सेवा करना श्रेष्ठ धर्म बताया।
गुरु
नानक देव जी का कहना था कि अंतर आत्मा से ईश्वर का नाम जपो, ईमानदारी एवं परिश्रम से कर्म करो तथा
अर्जित धन से असहाय, दुःखी पीड़ित, जरूरततमंद इंसानों की सेवा करो। गुरु
उपदेश है, 'घाल खाये किछ हत्थो देह। नानक राह
पछाने से।' इस प्रकार श्री गुरुनानक देवजी ने अन्न
की शुद्धता, पवित्रता और सात्विकता पर जोर दिया।
आईए
हम सब भी गुरु पर्व के इस पावन अवसर पर देश में प्रेम और सामन्जस्य के सात रहकर देश
को आगे बढ़ाएं।।गुरु पर्व और प्रकाश पर्व की आप सभी को हार्दिक बधाई।।
No comments:
Post a Comment