Wednesday, 1 November 2017

मुद्दे जो छूट रहे हैं…सरकार !


संदीप कुमार मिश्र:  दुनिया भर में शायद ही ऐसा कोई देश होगा जहां सब कुछ ठीक होगा। खासकर मानवता के नजरिये से।क्योंकि व्यवस्थाएं समाज के लिए हैं उन्नति और विकास के लिए हैं।समानता और सहिष्णुता स्थापित करने के लिए हैं।लेकिन ये सभी बातें शायद ही कोई सरकार  पूरी कर पाती है।हां अंतर ये हो सकता है कि असमानता की ये खाई किसी देश में कम और किसी देश में ज्यादा होगी,लेकिन है सभी जगह। जिनपर लगातार मीडिया में चर्चा भी होती है और होती रहनी भी चाहिए।
दरअसल भारत जहां नित नई ऊंचाईयों की ओर अग्रसर हो रहा है ऐसे में कुछ बुनियादी मुद्दे हैं जिनपर सरकार के साथ ही मीडिया में भी सकारात्मक पहल लगातार होनी चाहिए,जिससे स्वस्थ भारत की रफ्तार धीमी ना पड़े।  ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि हमारी बुनियादी ज़रूरतें आखिर हैं क्या ?
यकिनन मनुष्य की कुछ मूलभूत आवश्यकताएं हैं,मसलन जीने के लिए एक मनुष्य की पहली आवश्यकता शारीरिक है यानि भूख और प्यास।कहने का मतलब है कि रोटी-कपड़ा और मकान। वहीं पेट भरने भरने लगे तो सुरक्षा की चिंता सताने लगती है।जैसे दुर्घटना से शारीरिक सुरक्षा, मौसम की मार से बचाव, भविष्य की जरूरतों को लेकर चिंता, और उससे भी ज्यादा बड़ी नौकरी या कामधंधे की सुरक्षा यानि जॉब सिक्योरिटी। इसके बाद मनुष्य की कुछ सामाजिक जरूरतें भी हैं।तभी तो कहते हैं कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।वहीं समय के साथ आत्म सम्मान की प्रबल आवश्यकता मनुष्य को है।
इतना ही नहीं देश में कुपोषण, अनाज की कमी, पानी का इंतजा़म, रोजगार और सुरक्षा को प्राथमिकता के तौर पर देखने और अम्ल करने की आवश्यकता है। जब हम विश्वपटल पर विकासशील देश और तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था की ओर अग्रसर हो रहे हैं तो जरुरी है कि बुनियादी आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान दिया जाए।

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