Tuesday, 31 October 2017

देवउठनी एकादशी 31 अक्टूबर 2017 विशेष: देवउठनी एकादशी यानि तुलसी विवाह उत्सव



संदीप कुमार मिश्र: जगत के पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु जी के चार महीने तक सोने के बाद जागने के दिन को देवउठवनी एकादशी कहते हैं। भगवान विष्णु के जागने के साथ ही इस दिन माता तुलसी का विवाहोत्सव भी आज ही के दिन होता है।
हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी जी और भगवान विष्णुजी का विवाह विधि विधान से कराने की परंपरा होती है। इस खास दिन में तुलसी जी के पौधे और विष्णु जी के शालिग्राम स्वरूप के साथ विवाह कराया जाता है। ऐसे कहा जाता है कि जो व्यक्ति तुलसी जी के साथ शालिग्राम का विवाह करवाता है उनका दांपत्य जीवन सुखमय बना रहता है।
सरल और सुलभ पूजा विधान -
एकादशी के इस खास अवसर पर साधक बड़े भक्ति भाव से व्रत,उपवास रखें। भगवान विष्णु को विशेष रुप से  धूप,दीप,नैवेद्य,फूल,गंध,चंदन,फल का अर्ध्य दें और सच्चे मन से श्रीहरि की साधना करें।साथ ही मृदंग,शंख,घंटों को बजाएं और निम्न मंत्रों का जाप करें-
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ गोविंद निद्रा जगत्पते।त्वयि सुप्ते जगन्नाथ जगत् सुप्तं भवेदिदम्।।
उत्तिष्ठोत्तिष्ठ वाराह दंष्ट्रोद्धृतवसुंधरे।हिरण्याक्षप्राणघातिन् त्रैलोक्ये मंगलं कुरु।।

इसके बाद फूल अर्पित करें और भगवान की आरती गाएं।और समस्त देवी देवताओं का ध्यान करें और प्रसाद वितरण करें।

हमे धर्म शास्त्रों में समस्त मांगलिक कार्यों की शुरुआत भी देवप्रबोधिनी एकादशी से यानी भगवान विष्णु की पूजा अर्चना से शुरु हो जाती है।एक कथा के अनुसार कहा जाता है कि भाद्रपद मास यानी भादो की शुक्ल एकादशी को भगवान विष्णु ने शंखासुर दैत्य का वध किया था।कहते हैं कि शंखासुर बड़ा ही बलशाली और पराक्रमी दैत्य था।जिससे लंबे समय तक भगवान विष्णु का घमासान युद्ध चला और अंतत: शंखासुर का वध हुआ।इस भीषण युद्ध में भगवान अत्यधिक थक गए थे।जिसके बाद क्षीरसागर में आकर विश्राम करने लगे और चार माह के पश्चात कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी को जागे।यही कारण है कि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवप्रबोधिनी एकादशी या देवउठवनी एकादशी कहा जाता है।

देवप्रबोधिनी एकादशी का मूल भाव है स्वयं में देवत्व को जगाना ।वहीं प्रबोधिनी एकादशी की बात करें तो तातपर्य है कि मनुष्य नींद से जाग जाए,सतकर्म की ओर बढ़े और भगवान श्रीहरि का अभिनंदन,स्वागत करे।

भगवान विष्णु की भक्ति तभी सार्थक है जब हम अपने मन में किसी भी जीव के द्वेश और ईष्या का भाव ना रखें,किसी को भी मनसा,वाचा,कर्मणा कष्ट ना पहुंचाएं।सत्य के सारथी बने,स्वाध्यायी बने।अंधकार से प्रकाश की ओर कदम बढ़ाएं।ज्ञान और विवेक का दीपक जलाएं।दयालु प्रभु दीनानाथ,जगत के पालनहार श्री हरि भगवान विष्णु आप सभी का कल्याण करें।।
 
( इमेज सौजन्य गुगल)

Tuesday, 24 October 2017

छठ पूजा 2017:सूर्य उपासना का महापर्व


'छठी मैया की जय,
जल्दी-जल्दी उगी हे सूरज देव,
'कईली बरतिया तोहार
हे छठी मैया
'दर्शन दीहीं हे आदित देव
'कौन दिन उगी छई हे दीनानाथ
'छठी मैया की जय,




संदीप कुमार मिश्र: देश के हर भाग में श्रद्धा और विश्वास के साथ मनाये जाने वाला महान पर्व छठ,सूर्योपासना,सुख-शांति का प्रतीक बन चुका है।दोस्तों आज सूर्य ही प्रत्यक्ष देवता के रूप में सभी के सामने विराजमान है जो कालजयी और उर्जावान है।जिन्हें उपनिषद में ब्रम्हा, विष्णु,और महेश का स्वरुप बताया गया है।जिनकी उपासना से प्राणी हर कष्ट से मुक्त हो जाता है।
सूर्य की उपासना सुख शांति पुत्र प्राप्ति  के लिये वर्षो से हमारे देश में होती आ रही है।हर साल छठ व्रत के रूप में श्रद्धा और  विश्वास के साथ चली आ रही परम्परा अनवरत चालू है।उगते सूर्य की पूजा तो सभी करते है पर यह विश्व की पहली ऐसी उपासना है,जहां डूबते सूर्य की भी पूजा की जाती है।यह व्रत कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष को षष्ठी तिथि में अस्ताचल की ओर जाते सूर्य की उपासना के साथ प्रारम्भ होकर दूसरे दिन सप्तमी तिथि में उदित सूर्य को अर्घ देने के साथ समाप्त होता है।


केरवा जे फरेला घवद से ओह पर सुगा मंडाराय,
जे खबरी जनइबो आदित से सुगा देले जुठियाए ।
मृदूल स्वर में गाये जाने वाला मधूर गीत अपने मधुरता से किसी को भी सुध-बुध खो देने के लिए मजबूर कर देते हैं।हमारे हर पर्व, हर त्यौहार और हर तरह के व्रत के लिए लोक कवियों ने कर्इ तरह के लोक गीतों की रचना की है। इसी तरह दीपावली के ठीक छ: दिन बाद मनाये जाने वाले छठ महापर्व का हिन्दू धर्म में विशेष स्थान है। छठ पर्व “शब्द षष्ठी का अपभ्रंष है।भार्इदूज के तुरन्त बाद मनाये जाने वाला चार दिवसीय व्रत के सबसे कठिन और महत्वपूर्ण रात्रि कार्तिक शुक्ल षष्ठी की होती है।इसके कारण इस व्रत का नामकरण छठ व्रत हो गया।सूर्य उपासना का यह सबसे प्रसिद्ध पर्व है।मित्रों सूर्य देव एक मात्र प्रत्यक्ष देवता हैं जो समस्त संसार के मित्र हैं।कहते हैं सूर्य देव की अराधना करने से सम्पूर्ण सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।ऐसी मान्यता है कि सच्चे मन से की गर्इ इस पूजा से मानव की हर मनोकामनायें पूर्ण होती है।इसे करने वाली स्त्रियां और पुरुष धन-धान्य, पति-पूत्र और सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहते हैं।सूर्य उपासना का यह अनुपम लोक पर्व एक क्षेत्र विषेश में लोगों की अटल आस्था का परिचायक है।


साथियों छठ पर्व की परंपरा में ही वैज्ञानिक और ज्योतिषीय महत्व भी छिपा हुआ है।षष्ठी तिथि एक विशेष खगोलीय अवसर है।जिस समय धरती के दक्षिणी गोलार्ध में सूर्य रहता है और दक्षिणायन के सूर्य की अल्ट्रावॉइलट किरणें धरती पर सामान्य से अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाती हैं।क्योकि इस दौरान सूर्य अपनी नीच राशि तुला में होता है।इन दूषित किरणों का सीधा प्रभाव जनसाधारण की आंखों, पेट, स्किन आदि पर पड़ता है।इस पर्व के पालन से सूर्य प्रकाश की इन पराबैंगनी किरणों से जनसाधारण को हानि न पहुंचे,इस अभिप्राय से सूर्य पूजा का गूढ़ रहस्य छिपा हुआ है।इसके साथ ही घर-परिवार की सुख- समृद्धि और आरोग्यता से भी छठ पूजा का व्रत जुड़ा हुआ है।इस व्रत का मुख्य उद्देश्य पति, पत्नी, पुत्र, पौत्र सहित सभी परिजनों के लिए मंगल कामना से भी जुड़ा हुआ है। सुहागिन स्त्रियां अपने लोक गीतों में छठ मैया से अपने ललना और लल्ला की खैरियत की ख्वाहिश जाहिर करती हैं।

हमारे देश में सूर्य उपासना के कई प्रसिद्ध लोकपर्व हैं जो अलग-अलग प्रांतों में अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाए जाते हैं।सूर्य षष्ठी के महत्व को देखते हुए इस पर्व को सूर्यछठ या डाला छठ के नाम से संबोधित किया जाता है।इस पर्व को बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और नेपाल की तराई समेत देश के उन तमाम महानगरों में मनाया जाता है। यही नहीं मॉरिशस, त्रिनिडाड, सुमात्रा, जावा समेत कई अन्य विदेशी द्वीपों में भी भारतीय मूल के प्रवासी छठ पर्व को बड़ी आस्था और धूमधाम से मनाते हैं।डूबते सूर्य की विशेष पूजा ही छठ का पर्व है।ऐसे तो चढ़ते सूरज को तो सभी प्रणाम करते हैं।


छठ पूजा विधान
छठ पूजा के पहले दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है।सबसे पहले घर की सफार्इ कर उसे पवित्र बना दिया जाता है।इसके पश्चात् छठव्रती स्नान कर पवित्र तरीके से बने “शुद्ध शाकाहारी भोजन ग्रहण कर व्रत की “शुरुआत करते हैं।घर के सभी सदस्य व्रती के भोजनोंपरांत ही भोजन ग्रहण करते हैं।भोजन के रूप में कद्दू ,चने की दाल और चावल ग्रहण किया जाता है।दूसरे दिन कार्तिक “शुक्ल पंचमी को व्रतधारी दिन भर का उपवास रखने के बाद “शाम को भोजन करते हैं....इसे ‘खरना’ कहा जाता है।‘खरना’ का प्रसाद लेने के लिए आस-पास के सभी लोगों को निमंत्रित किया जाता है।प्रसाद के रूप में मिट्टी के चूल्हे पर गुड एवं चावल की खीर और रोटी बनार्इ जाती है।इसमें नमक या चीनी का उपयोग नहीं किया जाता है।पूजा के दौरान किसी भी बर्तन का उपयोग नहीं किया जाता है।पूजा करने के लिए केले के पत्तों का प्रयोग करते हैं।इस दौरान पूरे घर की स्वच्छता पर विशेष ध्यान रखा जाता है।

तीसरे दिन कार्तिक “शुक्ल शष्ठी को दिन में मिट्टी के चूल्हे पर छठ प्रसाद बनाया जाता है।प्रसाद के रूप में ठेकुआ जिसे कुछ क्षेत्रों में टिकरी भी कहतें हैं।ठेकुआ के अलावा चावल के लड्डू बनाते हैं।इसके अलावा चढ़ावा के रूप में लाया गया लौंग, बड़ी र्इलाइची, पान-सुपारी, अग्रपात, गड़ी-छोहड़ा, चने, मिठार्इयां, कच्ची हल्दी, अदरख, केला, नींबू, सिंहाड़ा, सुथनी, मूली एवं नारियल, सिंदूर और कर्इ प्रकार के फल छठ के प्रसाद के रूप में “शामिल होता है।“शाम को पूरी तैयारी और व्यवस्था कर बांस की टोकरी में अघ्र्य का सूप सजाया जाता है और व्रति के साथ परिवार और पड़ोस के सारे लोग अस्ताचलगामी सूर्य को अघ्र्य देने घाट की ओर चल पड़ते हैं।सभी छठ व्रति एक पवित्र नदी या तालाब के किनारे इकट्ठा होकर सामूहिक रूप से स्त्रियां छठ का गीत गाती हैं।इसके बाद अर्घय दान सम्पन्न करती हैं।सूर्य को जल का अघ्र्य दिया जाता है और  छठी मर्इया की प्रसाद भरे सूप से पूजा की जाती है।इस दौरान कुछ घंटे के लिए मेले का दृष्य बन जाता है।सूर्यास्त के बाद सारा सामान लेकर सोहर गाते हुए सभी लोग घर आ जाते हैं और अपने घर के आंगन में एक और पूजा की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।जिसे कोशी कहते हैं।यह पूजा किसी मन्नत के पूर्ण हो जाने पर या कोर्इ घर में “शुभ कार्य होने पर किया जाता है।इसमें सात गन्ने नये कपड़े से बांधकर एक छत्र बनाया जाता है।जिसमें मिट्टी का कलश या हाथी रखकर उसमें दीप जलाया जाता है और उसके चारों तरफ प्रसाद रखे जाते हैं।सभी स्त्रियां एकजुट होकर कोशी का गीत गाती हैं और छठी मर्इया का धन्यवाद करती हैं।
चौथे दिन कार्तिक “शुक्ल सप्तमी की सुबह उदियमान सूर्य को अघ्र्य दिया जाता हैं। व्रति उसी जगह पुन: इकट्ठा होते हैं।जहां उन्होंने “शाम को अघ्र्य दिया था।कोशी की प्रक्रिया यहां भी की जाती है।इसके बाद पुन: पिछले “शाम की प्रक्रिया की पुनरावृति होती है।इसके बाद व्रति कच्चे दूध से उगते सूर्य को अघ्र्य देते हैं।अंत में व्रति अदरख गुड़ और थोड़ा प्रसाद खाकर व्रत पूर्ण करते हैं।इस प्रकार इस पवित्र और पावन त्योहार की संपूर्ण प्रक्रिया पूर्ण की जाती है।

भगवान सूर्य जिन्हें आदित्य भी कहा जाता है।ये एक मात्र प्रत्यक्ष देवता हैं। इनकी रौशनी से ही प्रकृति में जीवन चक्र चलता है।इनकी किरणों से ही धरती में प्राण का संचार होता है और फल-फूल, अनाज, अण्ड और शुक्र का निर्माण होता है और यही वर्षा को आकर्षीत करते हैं और ऋतु चक्र को चलाते हैं।भगवान सूर्य की इस अपार कृपा के लिए सूर्य ,षष्ठी या छठ व्रत इन्ही आदित्य सूर्य भगवान को समर्पित है।

इतिहास में छठ की परंपरा
छठ पर्व की परम्परा की “शुरुआत किस तरह हुर्इ इसके लिए जब इतिहास की तरफ देखते हैं तो इसके संबंध में कर्इ पौराणिक और लोक कथाऐं प्रचलित हैं।दोस्तों रामायण काल में सीता ने गंगा तट पर छठ पूजा की थी।महाभारत काल में कुंती ने भी सरस्वती नदी के तट पर सूर्य पूजा की थी।जिसके परिणाम स्वरूप उन्हें पांडवों जैसे विख्यात पुत्रों का सुख मिला था।इसके उपरांत द्रौपदी ने भी हस्तिनापुर से निकलकर गडगंगा में छठ पूजा की थी।वे अपने परिजनों के अच्छे स्वास्थ्य और लम्बी उम्र के लिए नियमित सूर्य पूजा करती थी।छठ पूजा का संबंध हठयोग से भी है।जिसमें बिना भोजन ग्रहण किए हुए लगातार पानी में खड़ा रहना पड़ता है।जिससे शरीर के अशुद्ध जीवाणु परास्त हो जाते हैं।

मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य और जल की महत्ता को मानते हुए इन्हें साक्षी मानकर भगवान सूर्य की आराधना और उनका धन्यवाद करते हुए मां गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या तालाब के किनारे छठ पूजन किया जाता है।

सनातन संस्कृति और छठ पूजा
हमारे देश भारत में सूर्य की उपासना वैदिक काल से ही होती आ रही है।सूर्य और उनकी उपासना की चर्चा विष्णु पुराण, भागवत पुराण, वैवर्त पुराण  में विस्तार से की गर्इ है।मध्य काल तक छठ सूर्य उपासना को व्यवस्थित पर्व के रूप में मनाया जाने लगा।सृष्टी और पालन शक्ति के कारण सूर्य की उपासना सभ्यता के विकास के साथ विभिन्न स्थानों पर अलग-अलग रूप में प्रारंम्भ हो गया।पौराणिक काल में सूर्य को आरोग्य देवता भी माना जाने लगा।इसकी “शुरुआत कार्तिक “शुक्ल  चतुर्थी को और समाप्ति “शुक्ल सप्तमी को होती है।

छठ पूजा में कोशी भरने की मान्यता है अगर कोई अपने किसी अभीष्ट के लिए छठ मां से मनौती करता है तो वह पूरी करने के लिए कोशी भरी जाती है।इसके लिए छठ पूजन के साथ -साथ गन्ने के बारह पेड़ से एक समूह बना कर उसके नीचे एक मिट्टी का बड़ा घड़ा...जिस पर छ: दिए होते हैं..देवकरी में रखे जाते हैं...और बाद में इसी प्रक्रिया से नदी के किनारे पूजा की जाती है...नदी किनारे गन्ने का एक समूह बना कर छत्र बनाया जाता है..उसके नीचे पूजा का सारा सामान रखा जाता है...कोशी की इस अवसर पर काफी मान्यता है..उसके बारे में एक गीत गाया जाता है जिसमें बताया गया है..कि छठ मां को कोशी कितनी प्यारी है।
रात छठिया मईया गवनै अईली
आज छठिया मईया कहवा बिलम्बली
बिलम्बली – बिलम्बली कवन राम के अंगना
जोड़ा कोशियवा भरत रहे जहवां जोड़ा नारियल धईल रहे जहंवा
उंखिया के खम्बवा गड़ल रहे तहवां

चार दिनों के इस पर्व में आखिरी दो दिन ही ज्यादा चहल-पहल वाले होते हैं।आज के शहरीकरण के कारण लोग अपने मूल प्रांतों से अन्य शहरों में प्रवास करने लगे हैं।छठ पूजा पर अनेक प्रवासी अपने-अपने गांव-घरों को जाने की कोशिश तो करते हैं लेकिन प्रत्येक परिवार के लिए यह संभव नहीं हो पाता है।इसके अलावा हर बड़े महानगर में बहती नदी का भी अभाव है।जैसे दिल्ली में यमुना किनारे छठ पूजा के समय विशाल जनसमूह एकत्रित होता है।इसी तरह देश के अन्य हिस्से जैसे मुंबई, पुणे, बेंगलुरु और चेन्नै में भी लोग छठ पूजा के लिए उत्साहित होकर नदी और तालाबों की खोज करते है।वैसे तो चलते हुए पानी में ही छठ मनाने की परंपरा है लेकिन लोगों की भीड़ को देखते हुए आज-कल शहरों में छोटी-छोटी बावड़ी और तालाबों में लोग छठी मईया की पूजा करते हैं।
कहने का तात्पर्य है कि छठी मईया की पूजा आराधना पवित्र मन और भाव से करने से हमारी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है।
निर्धन जानेला ई धनवान जानेला,
महिमा छठ मईया के अपार ई जहां जानेला ||
सभी इष्ट मित्रों व देशवासीयों को सुर्य षष्ठी के महापर्व छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई।
..जय छठी माईया..

Monday, 16 October 2017

शुभ दिवाली 2017 : जाने किस मंत्र से होंगी मां लक्ष्मी प्रसन्न,करें उपाय घर में आएगी खुशियां

संदीप कुमार मिश्र: दीपों का त्योहार दीपावली।जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने की प्रेरणा देता है। देश के हर हिस्से में लोग दीपावली का बड़े ही बेसब्री से इंतजार करते है।उल्लास और उमंग का त्योहार दिवाली हममें नई उर्जा का संचार करता है।दिवाली के पावन अवसर पर मां लक्ष्मी की पूजा की जाती है,जिससे की मां लक्ष्मी की कृपा हम पर सदैव बनी रहे।यही वजह है कि दिवाली के खास अवसर पर मां लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए साधक कई तरह के उपाय करते हैं।
दीपों के त्योहार दिवाली में घर की साफ सफाई की जाती है और दिवाली के दिन घर के हर हिस्से में दीए जलाए जाते हैं और पूरे घर को रौशन किया जाता है। कहते हैं दीवाली के दिन जिस भी परिवार पर मां लक्ष्मी की कृपा हो जाए उस परिवार में कभी भी धन संपदा की कमी नहीं होती ।चलिए आपको भी बताते हैं कि आप कैसे करें मां लक्ष्मी को प्रसन्न...किस मंत्र के जाप से होगी आपकी सभी मनोकामनाएं पूरी...
इन मंत्रों से करें मां लक्ष्मी को प्रसन्न
दिवाली पर मां लक्ष्मी के अलग-अलग नाम का करें जाप-
ॐ आद्यलक्ष्म्यै नम:, ॐ विद्यालक्ष्म्यै नम:, ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नम:, ॐ अमृतलक्ष्म्यै नम:, ॐ कामलक्ष्म्यै नम:, ॐ सत्यलक्ष्म्यै नम:, ॐ भोगलक्ष्म्यै नम:, ॐ योगलक्ष्म्यै नम:.
ऊं अपवित्र: पवित्रोवा सर्वावस्थां गतो पिवा ।
य: स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तर:।।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं महालक्ष्म्यै नमः

दिवाली में मां लक्ष्मी की पूजा में उपयोग में आने वाली सामग्री
दिवाली के शुभ अवसर पर मां लक्ष्मी की पूजा में कलावा, अक्षतरोली, सिंदूर, एक नारियल, अक्षत, लाल वस्त्र, फूल, पांच सुपारी, लौंग, पान के पत्ते, घी, कलश, कलश के लिए आम का पल्लव(पत्ता), चौकी, समिधा, हवन कुण्ड, हवन सामग्री, कमल गट्टे, पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, गंगाजल), फल, बताशे, मिठाईयां, पूजा में बैठने हेतु आसन, हल्दी , अगरबत्ती, कुमकुम, इत्र, दीपक, रूई, आरती की थाली, कुशा, रक्त चंदनद, श्रीखंड चंदन पूजन सामग्री का इस्तेमाल मां लक्ष्मी की पूजा में करें।
जाने विधिवत दिवाली पूजा की विधि
दिवाली पर मां लक्ष्मी और भगवान श्रीगणेश के पूजन शुरू करने से पहले चौकी को अच्छी तरह से धोकर उसके ऊपर सुंदर रंगोली बनाएं, फिर चौकी के चारों तरफ दीपक जलाएं। मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की प्रतिमा स्‍थापित करने से पहले थोड़े से चावल रख लें। मां लक्ष्मी को प्रसन्‍न करने के लिए उनके बाईं ओर भगवान विष्‍णु की प्रतिमा को भी स्‍थापित करें।यदि आप किसी पंडित को बुलाकर पूजन करवा सकें तो बेहतर नहीं तो स्वयं मां लक्ष्मी का पूजन करें जिसके लिए सबसे पहले पुष्प, फल, सुपारी, पान, चांदी का सिक्का, नारियल, मिठाई, मेवा, सभी सामग्री थोड़ी-थोड़ी मात्रा में लेकर इस त्योहार के पूजन के लिए संकल्प लें। सबसे पहले भगवान गणेश की पूजा करें और इसके बाद आपने चौकी पर जिस भगवान को स्थापित किया है उनकी भी पूजा करें। इसके बाद कलश की स्‍थापना करें और मां लक्ष्मी का ध्यान करें।दिवाली के दिन मां लक्ष्मी को लाल वस्‍त्र अवश्य पहनाएं।
जाने क्यूं मनाते है दिवाली क्‍या है इसका महत्‍व
हमारे देश भारत में ऐसे तो सभी त्योहारों का महत्व है लेकिन दिवाली का विशेष महत्व है।दिवाली पर हम घरों और दूकानों को सजाते और संवारते हैं, उनकी साफ-सफाई करते है।खासकर इस दिन धन की देवी मां लक्ष्मी की विशेष पूजा करते हैं।
दरअसल हमारे हिन्दू धर्म के अनुसार दीपावली के दिन सिर्फ धन की देवी महालक्ष्मी की ही नही विघ्न-विनाशक भगवान श्री गणेश और माता सरस्वती देवी की भी पूजा-आराधना की जाती है। कहते हैं कि कार्तिक मास की अमावस्या की आधी रात में देवी लक्ष्मी धरती पर आती हैं और हर घर में जाती हैं। जिस घर में स्‍वच्‍छता और शुद्धता होती है वहीं पर मां लक्ष्मी निवास करती हैं।
धनतेरस से भाईदूज : 5 दिनों तक विशेष त्योहार
दोस्तों आपको बता दें कि शुभ दीपावली धनतेरस, नरक चतुर्दशी और महालक्ष्मी पूजन का मिश्रण है। हम सब जानते हैं कि नरक चतुर्दशी को छोटी दीवाली भी कहा जाता है।वहीं दीपावली की शुरूआत धनतेरस से हो जाती है जो कि कार्तिक अमावस्या के दिन पूरे चरम पर आती है। 
मुख्य त्योहार और महत्‍वपूर्ण तिथियां
धनतेरस: 17 अक्टूबर 2017
छोटी दीवाली: 18 अक्टूबर 2017
दिवाली: 19 अक्टूबर 2017
गोवर्धन पूजा: 20 अक्टूबर
भाईदूज: 21 अक्टूबर
जाने दीपावली क्यों मनाई जाती है

असत्य पर सत्य की विजय यानि जब भगवान श्री राम 14 वर्ष के वनवास के बाद माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या लौटे थे तब मनाई गई थी दिवाली।दरअसल वनवास दौरान प्रभू श्री राम लंकापति दशानन राजा रावण जिसने माता सीता का हरण कर लिया था,उसका वध किया था जिसे हमारे धर्म शास्त्रों सहित महाकाव्य रामायण में भगवान राम की जीत को बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक बताया गया है।सपरिवार जब भगवान राम अयोध्या लौटते हैं तो उत्साह और उमंग में हर तरफ दीये जलाए जाते हैं और खुशियां मनायी जाती है।तभी से दीपावली मनाई जाने लगी।

Diwali 2017: जाने शुभ दिपावली पर पूजा का शुभ समय व मुहूर्त


संदीप कुमार मिश्र: 19 अक्टूबर यानि कार्तिक अमावस्या के दिन दिवाली का त्योहार बड़ी ही धूमधाम के साथ देशभर में मनाया जाएगा।दिपावली के दिन धन संपदा की देवी मां लक्ष्मी और ऋद्धि सिद्धि के दाता भगवान गणेश की पूजा करने की मान्यता होती है।हमारे हिन्दू धर्म शास्त्रों में दिपावली में लक्ष्मी गणेश पूजन में प्रदोष काल का भी विशेष महत्व होता है।आपको बता दें कि दिन-रात के संयोग को ही प्रदोष काल कहा जाता है।

शुभ दिपावली के पावन अवसर पर इस बार शाम 5.43 से रात 8.16 तक प्रदोषकाल रहेगा। इसी समय में जन सामान्य को सुख-समृद्धि की कामना के लिए मां लक्ष्मी,भगवान गणेश और कुबेर जी का पूजन करना चाहिए। एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए वो ये कि दिवाली के दिन मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा हमें शुभ मुहूर्त में ही करनी चाहिए।

दरअसल इस बार दिपावली पर पूजा करने के लिए 3 शुभ मुहूर्त बताए गए हैं। इन तीनों शुभ मुहूर्त में पूजा करने का अपना ही विशेष महत्व होता है।जी हां इन विशेष शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी के साथ ही भगवान विष्णु, गणेश और कुबेर जी की पूजा करने का भी विधान बताया गया है।
जानिए दिवाली पर पूजा का शुभ मुहूर्त
1.प्रदोष काल मुहूर्त
मां लक्ष्मी पूजा का शुभ मुहूर्त: शाम 05.43 से 08.16 तक
वृषभ काल: शाम 7.11 से 9.06 तक

2. चौघड़िया पूजा मुहूर्त
सुबह: 6.28 से 7.53
शाम: 4.19 से 8.55

3.महानिशिता काल मुहूर्त
लक्ष्मी पूजा का अवधि- 51 मिनट
महानिशिता काल- 11.40 से 12.31


आपको बता दें कि दिवाली के दिन अमावस्या तिथि आरंभ 00:13 (19 अक्टूबर) पर होगी और अमावस्या तिथि समाप्त 00:41 (20 अक्टूबर) पर होगी।।शुभ दिपावली।।

Diwali 2017: जाने इस दिवाली कहां जलाएं दीपक,जिससे हो सभी मनोकामनाएं पूरी


संदीप कुमार मिश्र : आस्थाओं,तीज,त्योहारों का देश है भारत। हमारे देश भारत में ऐसे तो हर त्योहार बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है लेकिन सभी त्योहारों में सबसे बड़े त्योहार के रुप में दिवाली का पावन त्योहार मनाया जाता है। कार्तिक मास की अमावस्या को दिवाली बड़ी ही धूमधाम से मनाई जाती है।हम सब जानते है कि इस साल दीपावली 19 अक्टूबर 2017 को देश भर में मनायी जाएगी।दरअसल दिवाली के त्योहार रौशनी का त्योहार है जिसकी एक अलग ही पहचान है।दिवाली पर रौशनी के लिए पारंपरिक तरीकों में दीयों को सबसे ज्यादा महत्व दिया जाता है।
दीयों का विशेष महत्व
दीपावली पर दीए जलाने की अपनी एक अलग ही परंपरा हमारे देश में है।कहते हैं कि दिवाली पर दीए जलाने से भगवान गणेश और मां लक्ष्मी प्रसन्न  होती है।साथ ही दीयों को हमारे धर्म शास्त्रों में शुभता के तौर पर भी देखा जाता है।ऐसे में ये जानना बेहद जरुरी है कि दिवाली पर कहां-कहां हमें दीए जलाने चाहिए-

दीपावली पर मां लक्ष्मी की पूजा करने के बाद सबसे पहले उनकी तस्वीर के आगे घी का एक बड़ा दीया जलाना चाहिए।साथ ही पूरे घर में सरसो के तेल का दीपक जलाना चाहिए। खासतौर पर घर के मुख्य दरवाजे के दोनो छोर पर जरूर दीया जलाना चाहिए। घर के मंदिर में भी हमें दीया जलाना चाहिए।
इसके साथ ही घरों में मौजूद खिड़की,चौखट,बालकनी और छत पर भी दीए जलाने चाहिए। इतना ही नही घर के अन्न भंड़ार और घर की रसोई में भी दीया जलाना चाहिए।कहते हैं ऐसा करने से घर में सदैव अन्न भरा रहता है और अन्न की कोई कमी नहीं होती है।
दिवाली के शुभ अवसर पर घर के बाहर भी कई जगहों पर दीए जलाना हमारे धर्म शास्त्रों में शुभ माना गया है। घर के बाहर चौराहे पर नजदीक के मंदिर और दीवाली की रात में पीपल के पेड़ के नीचे दीया जलाने का भी विशेष महत्व है।

आईए इस हम सब मिलकर इस दिवाली पर ज्ञान का दीप जलाएं और परिवार,समाज और देश से अज्ञानता के अंधकार को मिटाएं।शुभ दिपावली।।