संदीप कुमार मिश्र: राजनीति में ना तो कोई स्थाई दोस्त होता है और ना ही कोई स्थायी दुश्मन।बनते बिगड़ते समीकरण सबसे बड़ी पार्टी होने पर भी विपक्ष में बैठने को मजबूर कर देती है और तीसरे नंबर की पार्टी होने पर भी सत्ता पर आसीन कर देती कर देती है।कर्नाटक इसका वर्तमान उदाहरण है।जहां 104 सीट पाकर भी बीजेपी विपक्ष में बैठी है और 37 सीट पाकर कांग्रेस के समर्थन से जेडीएस सत्ता सुख भोग रही है।
अब आप इसे लोकतंत्र की खूबसूरती कहेंगे या विडंबना...ये तो यक्ष प्रश्न है ?
बहरहाल मुद्दा 2019 का आम चुनाव है,जिसकी चर्चा और शोर शुरु हो चुका है...कहना
गलत नहीं होगा कि हमारे देश की व्यवस्था कुछ इस प्रकार की है राज्य दर राज्य देश
हमेशा चुनावी मूड में ही रहता है,क्योंकि किसी ना किसी राज्य में विधान सभा चुनाव
का बिगुल बजा ही रहता है...
ऐसे में एकतरफ जहां तमाम क्षेत्रिय दलों के साथ देश की सबसे बड़ी पार्टी
कांग्रेस को हराकर बीजेपी राज्य दर राज्य जीत दर्ज करती जा रही है वहीं देश में हो
रहे उपचुनावों में हार का सामना भी कर रही है।खासकर कुछ ऐसी महत्वपूर्ण सीट पर
बीजेपी की हार हो रही है,जिसकी कल्पना बीजेपी का हाईकमान भी नहीं कर सकता था...ऐसी
ही सीट थी गोरखपुर,फुलपुर और कैराना की सीट...जिसे 2019 के सेमीफाइनल के तौर पर
विपक्ष देखने लगा और जीत से उत्साहित हो रहा है...
सवाल उठता है कि क्या सच में मोदी सरकार के लिए उपचुनाव के परिणाम खतरे की
घंटी है। यदी ऐसा है तो राज्यों में हो रहे चुनाव और लगातार हो रही बीजेपी की जीत
को क्या कहेंगे। जिस प्रकार से विपक्ष लगातार बीजेपी के खिलाफ राज्य दर राज्य घेराबंदी
कर रहा है उसे देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि बीजेपी की मुश्किलें बढ़नी तय है।
लेकिन 2019 में जब जनता देश के प्रधानमंत्री का चयन करने के लिए EVM पर अपने मत का प्रयोग करने
जाएगी तो कुछ प्रश्न उसके मन में अपश्य खड़े होंगे...मसलन
1-
क्या विपक्ष में कोई सर्वमान्य नेता है,जिसकी सुझबुझ और समझ
इतनी बेहतर है जिसे देश की बागड़ोर सौंपी जा सके?
2-
क्या राहुल गांधी इतने परिपक्व हो चुके हैं जिन्हें
प्रधानमंत्री के रुप में देश पचा पाएगा?
3-
क्या विपक्ष में कोई नेता या पार्टी ऐसी भी जिसपर
भ्रस्टाचार के दाग नहीं लगे हैं?
4-
क्या मायावती,मुलायम,तेजस्वी,अजीत सिंह,शरद
पवार,देवगौड़ा,चंद्रबाबू जैसे तमाम नेता उस योग्य हैं जिन्हें देश की कमान सौंपी
जा सकती है?
5-
क्या जिस वंशवाद से देश परेशान हो चुका था फिर एक बार उसी
वंशवाद को देश स्विकार कर पाएगा?
6-
क्या किसी नेता में वो माद्दा है कि देश की छवी विश्व स्तर
पर जो आज हर भारतीय देख पा रहा है उसे वो आगे बढ़ा पाएगा ?
7-
विकास की जिस रफ्तार को वर्तमान सरकार निरंतर आगे बढ़ा रही
है क्या उसकी गति बरकरार रखने में कोई और सक्षम है,खासकर तब जब सभी विपक्षी नेताओं
की अपनी महत्वकांक्षा है,क्योंकि हर कोई खुद को प्रधानमंत्री के रुप में ही देखना
चाहता है?
इस प्रकार के ना जाने कितने सवाल,संशय और दुविधाएं देश की जनता के बीच होंगे
जब वो अपने मतदान का प्रयोग करेगी।
हां आप ये कह सकते हैं कि मोदी सरकार से उम्मीदें बहुत थी और निश्चित तौर पर
उन उम्मीदों पर सरकार पूरी तरह से खरी नहीं उतरी,लेकिन उस दिशा में आगे अवश्य बढ़
रही है,जहां दशकों की बिगड़ी हुई व्यवस्थां थी,उसे दुरुस्त करने में थोड़ा वक्त तो
जरुर लगता है,कड़े फैसले भी लेने पड़ते हैं,कुछ कदम ऐसे भी उठाने पड़ते हैं जिससे
तत्काल तो परेशाना बढ़ती है लेकिन भविष्य बेहतर होने के संकेत मिलते हैं। एक बात
और जो जरुरी है...मोदी सरकार को रोजगारपरक कार्यक्रम को निरंतर आगे बढ़ाने के लिए
ठोस कदम उठाने होंगे और देश के अन्नदाता यानी किसानो की समस्याओं को युद्ध स्तर पर
बेहतर करना होगा....नहीं तो जनता तो जनार्दन है...फैसला लेने में तनिक भी लेटलतीफी
नहीं करती है...
एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए जरुरी है सरकार का हर फैसला जनमत के हित में हो,जनमत
के लिए हो और जनमत के साथ हो।
अंतत: जीत और हार सियासत
में लगा रहती है,अर्श से फर्श और फर्श से अर्श पर आने में समय नहीं लगता है।देखना
दिलचस्प होगा कि 2019 में बीजेपी बनाम अन्य की लड़ाई में कौन किस पर भारी पड़ता
है।एनडीए जिसके सर्वमान्य प्रधानमंत्री के उम्मीदवार नरैंद्र मेदी हैं या फिर यूपीए
जिसमें दर्जनो प्रधानमंत्री पद का ख्वाब पाले बैठे हैं...?
(आप इसके इतर सोचने के लिए स्वतंत्र हैं,ये मेरे स्वत: के विचार हैं)
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