संदीप कुमार मिश्र: इस कलियुग में
हनुमान जी महाराज एक ऐसे देव हैं जिनकी पूजा सर्वत्र की जाती है।जिनके संबंध में
कहा जाता है कि जहां कहीं भी सत्संग,किर्तन,प्रभु श्रीराम का गुणगान और वंदन होता
है वहां हनुमान जी महाराज कथा श्रवण के लिए आते है।ऐसे में आईए जानते हैं हनुमान
जी कुछ प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जिनकी मान्यता विश्वविख्यात है-
01.प्रयागराज में
स्थित प्रसिद्ध हनुमान मंदिर(इलाहाबाद,उत्तर
प्रदेश)-संगम नगरी प्रयागराज में इलाहाबाद किले से सटे हुए हनुमान
मंदिर में लेटे हुए हनुमान जी की विशाल प्रतिमा है।ये एक छोटा लेकिन प्राचीन मंदिर
है।हमारे देश का ये इकलौता मंदिर है जहां हनुमान जी लेटी हुई मुद्रा में विराजते
हैं। मंदिर में स्थापित हनुमान जी की प्रतिमा २० फीट लम्बी है। जब वर्षा के
दिनों में गंगा जी में बाढ़ आती है और यह सारा स्थान जलमग्न हो जाता है, तब हनुमानजी की इस मूर्ति को कहीं ओर ले जाकर
सुरक्षित रखा जाता है और जैसे ही बाढ़ का जलस्तर कम हो जाता है तो हनुमान जी की प्रतिमा
को पुन: यहीं पर स्थापित किया जाता है।
02. हनुमानगढ़ी मंदिर(अयोध्या
धाम,उत्तर प्रदेश):कहते हैं कि “अवधधाम
धामाधिपति,धामादिपति श्रीराम” कहने का भाव है
कि सभी धामों में सर्वोत्म धाम अयोध्या है और अयोध्या के राजा राम जी सभी धामो के
पति है। अयोध्या भगवान श्रीराम की जन्मस्थली है।जहां राम जी रहेंगे
वहां हनुमान जी तो रहेंगे ही।अयोध्या का सबसे प्रमुख श्रीहनुमान मंदिर हनुमानगढ़ी
के नाम से विश्वविख्यात है। हनुमान जी का ये मंदिर राजद्वार के सामने ऊंचे टीले पर
स्थित है। इसमें "६०" सीढिय़ां चढऩे के बाद श्री हनुमान जी महाराज
का मंदिर आता है। यह मंदिर बड़ा और भव्य है। मंदिर के चारों ओर साधु-संत के लिए निवास
योग्य स्थान बने हैं।आपको बता दें कि हनुमानगढ़ी के दक्षिण में सुग्रीव टीला और अंगद
टीला नामक स्थान भी हैं।कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना लगभग "३००"
साल पहले श्रद्धेय स्वामी अभया रामदास जी महाराज ने की थी।
03. सालासर बालाजी
हनुमान मंदिर(सालासर,राजस्थान): ज्ञानियों में अग्रगण्य हनुमानजी
महाराज का यह प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के
चूरू जिले में स्थित है। जिस गांव में हनुमान जी महाराज का ये मंदिर स्थित है उस
गांव का नाम सालासर है, इसलिए सालासर
वाले बालाजी के नाम से यह मंदिर प्रसिद्ध है। हनुमानजी महाराज की यह प्रतिमा दाड़ी
और मूंछ से सुशोभित है।सालासर में स्थित हनुमान जी का मंदिर बड़ा ही भव्य और रमणीक
है।यहां पर मंदिर के चारों तरफ श्रद्धालुओं के ठहरने के लिए धर्मशालाएं बनी हुई
हैं। दूर-दूर से श्रद्धालु यहां अपनी मनोकामनाएं लेकर आते हैं और बालाजी महाराज से
मनचाहा वरदान पाते हैं। इस मंदिर के संस्थापक श्री मोहनदासजी बचपन से श्री हनुमान
जी के प्रति अगाध श्रद्धा रखते थे।कहा जाता है कि हनुमान जी की यह प्रतिमा एक
किसान को जमीन जोतते समय मिली थी, जिसे बाद में सालासर
में सोने के सिंहासन पर स्थापित किया गया। यहाँ हर वर्ष "भाद्रपद, आश्विन, चैत्र एवं वैशाख
की पूर्णिमा" के दिन विशाल मेला लगता है जो विश्व प्रसिद्ध है।
04.हनुमान धारा
मंदिर(चित्रकूट,उत्तर प्रदेश): देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश के
सीतापुर नामक स्थान के समीप यह हनुमान मंदिर स्थापित है। सीतापुर से हनुमान धारा
की दूरी तीन मील है। यह स्थान पर्वतमाला के मध्यभाग में स्थित है। पहाड़ के सहारे
हनुमानजी की एक विशाल मूर्ति के ठीक सिर पर दो जल के कुंड हैं, जो हमेशा जल से भरे रहते हैं और उनमें से
निरंतर पानी बहता रहता है। इस धारा का जल हनुमानजी को स्पर्श करता हुआ बहता है। इसीलिए
इसे हनुमान धारा कहते हैं।धारा का जल पहाड़ में ही विलीन हो जाता है। उसे लोग
प्रभाती नदी या पातालगंगा कहते हैं। इस स्थान के बारे में एक बेहद रोचक कथा
प्रसिद्ध है:-
कहते हैं कि प्रभु श्री राम के अयोध्या में
राज्याभिषेक होने के बाद एक दिन हनुमानजी ने भगवान श्रीरामचंद्र जी महाराज
से कहा कि- हे प्रभु करुणानिधान मुझे कोई ऐसा स्थान बताएं, जहां लंका दहन से उत्पन्न मेरे शरीर का ताप मिट
सके। तब भगवान श्रीराम ने हनुमानजी को यह स्थान बताया था।
05.श्री संकटमोचन
मंदिर(वाराणसी,उत्तर प्रदेश):भगवान भोलेनाथ के त्रिशुल पर बसी विश्व की सबसे
प्राचीन नगरी काशी यानी वाराणसी।जहां पर स्थित है श्री संकटमोचन मंदिर। इस मंदिर
के चारों ओर एक छोटा सा वन क्षेत्र है। यहां का वातावरण एकांत, शांत एवं उपासकों के लिए दिव्य साधना स्थली से
कम नहीं है। मंदिर के प्रांगण में श्री हनुमानजी महाराज की दिव्य प्रतिमा स्थापित
है। श्री संकटमोचन हनुमान मंदिर के पास में ही भगवान श्रीनृसिंह का मंदिर भी
स्थापित है। ऐसी मान्यता है कि हनुमानजी की यह मूर्ति गोस्वामी तुलसीदासजी के
तप एवं पुण्य से प्रकट हुई स्वयंभू मूर्ति है। इस मूर्ति में हनुमानजी दाएं
हाथ से भक्तों को अभयदान कर रहे हैं एवं बायां हाथ उनके ह्रदय पर स्थित है।इस
मंदिर में प्रत्येक कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को हनुमानजी की सूर्योदय के समय विशेष
आरती एवं पूजन समारोह संपन्न होता है। उसी प्रकार चैत्र पूर्णिमा के दिन यहां
"श्री हनुमान जयंती" महोत्सव का भव्य आयोजन होता है। इस अवसर पर
श्रीहनुमानजी की बैठक की झांकी होती है और चार दिन तक रामायण सम्मेलन महोत्सव एवं
संगीत सम्मेलन होता है।जहां देश के कोने कोने से कलाकार आकर भाव राग ताल से आयोजन
को सफल बनाते है।
06. हनुमान दंडी
मंदिर(बेट द्वारका,गुजरात):गुजरात के बेट द्वारका से चार मील की
दूरी पर मकरध्वज के साथ में हनुमानजी की मूर्ति स्थापित है। कहते हैं कि पहले
मकरध्वज की मूर्ति छोटी थी लेकिन अब दोनों मूर्तियां एक सी ऊंची हो गई हैं।कहा
जाता है कि अहिरावण ने भगवान श्री राम और भैया लक्ष्मण को इसी स्थान पर
छिपा कर रखा था।जब हनुमानजी श्री राम-लक्ष्मण को लेने के लिए इस स्थान पर आए, तब उनका मकरध्वज के साथ घोर युद्ध हुआ। अंत में
हनुमानजी ने उसे परास्त कर उसी की पूंछ से उसे बांध दिया। उनकी स्मृति में यह मूर्ति
स्थापित है। कुछ धर्म ग्रंथों में मकरध्वज को हनुमानजी का ही पुत्र बताया गया है, जिसका जन्म हनुमानजी के पसीने द्वारा एक मछली
से हुआ था।
7. मेहंदीपुर बालाजी
मंदिर(मेहंदीपुर,राजस्थान): राजस्थान के दौसा जिले के पास दो पहाडिय़ों के
बीच बसा हुआ है मेहंदीपुर नामक स्थान।जिसके संबंध में कहा जाता है कि दो पहाडिय़ों
के बीच की घाटी में स्थित होने के कारण इसे घाटा मेहंदीपुर भी कहते हैं।ऐसी
मान्यता है कि यह मंदिर करीब 1 हजार साल पुराना है। यहां पर एक बहुत विशाल चट्टान
में हनुमान जी की आकृति स्वयं ही उभर आई थी। जिसे श्री हनुमान जी का स्वरूप माना
जाता है।मंदिर में स्थित बालाजी के चरणों में छोटी सी कुण्डी है, जिसका जल कभी समाप्त नहीं होता। यह मंदिर तथा
यहाँ के हनुमान जी का विग्रह काफी शक्तिशाली एवं चमत्कारिक माना जाता है। कहा जाता
है कि मुगल साम्राज्य में इस मंदिर को तोडऩे के अनेक प्रयास हुए लेकिन चमत्कारी
रूप से इस मंदिर को कोई नुकसान नहीं हुआ।इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां
ऊपरी बाधाओं के निवारण के लिए आने वालों श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। मंदिर
की सीमा में प्रवेश करते ही ऊपरी हवा से पीडि़त व्यक्ति स्वयं ही झूमने लगते हैं
और लोहे की सांकलों से स्वयं को ही मारने लगते हैं। मार से तंग आकर भूत प्रेतादि
स्वत: ही बालाजी के चरणों में आत्मसमर्पण कर देते हैं और भाग जाते हैं।मनोकामना
पूर्ति के लिए बारहो महीने श्रद्धालुओं का यहां आना जाना लगा ही रहता है।
8. डुल्या मारुति
मंदिर(पूना,महाराष्ट्र): महाराष्ट्र के पूना के गणेशपेठ में
स्थित यह मंदिर काफी प्रसिद्ध है। श्रीडुल्या मारुति का मंदिर संभवत: 350 वर्ष
पुराना है। संपूर्ण मंदिर पत्थर का बना हुआ है,जो देखने में
बेहद आकर्षक और भव्य नजर आता है। मूल रूप से डुल्या मारुति की मूर्ति एक काले
पत्थर पर अंकित की गई है। यह मूर्ति पांच फुट ऊंची तथा ढाई से तीन फुट चौड़ी
अत्यंत भव्य एवं पश्चिम मुख है। हनुमानजी की इस मूर्ति की दाईं ओर भगवान श्री गणेश
की एक छोटी सी मूर्ति स्थापित है। इस मूर्ति की स्थापना श्रीसमर्थ रामदास स्वामी
जी महाराज ने की थी।
9.कष्टभंजन
हनुमान मंदिर(सारंगपुर,गुजरात): सौराष्ट्र यानी गुजरात की राजधानी अहमदाबाद-भावनगर
रेलवे लाइन पर स्थित बोटाद जंक्शन से सारंगपुर लगभग १२ मील दूर है। यहां एक
प्रसिद्ध मारुति प्रतिमा है। महायोगिराज गोपालानंद स्वामी ने इस शिला मूर्ति की
प्रतिष्ठा विक्रम संवत् १९०५ आश्विन कृष्ण पंचमी के दिन की थी। ऐसा कहा
जाता है कि प्रतिष्ठा के समय मूर्ति में श्री हनुमान जी का आवेश हुआ और यह हिलने
लगी। तभी से इस मंदिर को कष्टभंजन हनुमान मंदिर कहा जाता है। यह मंदिर
स्वामीनारायण सम्प्रदाय का एकमात्र हनुमान मंदिर है।
10. यंत्रोद्धारक
हनुमान मंदिर(हंपी,कर्नाटक): कर्नाटक राज्य के बेल्लारी जिले
के हंपी नामक नगर में एक हनुमान मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में प्रतिष्ठित
हनुमानजी को यंत्रोद्धारक हनुमान जी कहा जाता है। विद्वजनों का ऐसा कहना है कि यह
क्षेत्र प्राचीन किष्किंधानगरी है।जिसका वर्णन वाल्मीकि रामायण के साथ ही श्रीरामचरित
मानस में भी मिलता है। जिससे अनुमान लगाया जाता है कि इसी स्थान पर किसी समय
वानरों का विशाल साम्राज्य रहा होगा। आज भी यहां अनेक गुफाएं हैं। इस मंदिर में
श्रीराम नवमी के दिन से लेकर तीन दिन तक विशाल उत्सव मनाया जाता है।
11. गिरजाबंध हनुमान
मंदिर (रतनपुर,छत्तीसगढ़): छत्तीसगढ़ में एक
स्थान है रतनपुर। जिसे महामाया नगरी भी कहते हैं। यह देवस्थान पूरे भारत में सबसे
अलग है। इसकी मुख्य वजह मां महामाया देवी और गिरजाबंध में स्थित श्रीहनुमानजी महाराज
का मंदिर है। खास बात यह है कि विश्व में हनुमान जी का यह अकेला ऐसा मंदिर है जहां
हनुमान नारी स्वरूप में हैं। कहते हैं कि इस दरबार से कोई निराश नहीं लौटता। यहां
आने वाले भक्तों की मनोकामनाएं अवश्य पूरी होती है।
12. उलटे हनुमानजी का
मंदिर(साँवरे, इंदौर,मध्यप्रदेश):
भारत की धार्मिक नगरी उज्जैन से केवल 30 किमी दूर स्थित है यह धार्मिक स्थान।
जहाँ अंजनी के लाल हनुमान जी महाराज की उल्टे रूप में पूजा की जाती है। यह मंदिर
साँवरे नामक स्थान पर स्थापित है इस मंदिर को कई लोग रामायण काल के समय का बताते
हैं। मंदिर में भगवान हनुमान जी की उलटे मुख वाली सिंदूर से सजी मूर्ति विराजमान
है। सांवेर का हनुमान मंदिर हनुमान भक्तों का महत्वपूर्ण स्थान है। यहाँ आकर भक्त
भगवान के अटूट भक्ति में लीन होकर सभी चिंताओं से मुक्त हो जाते हैं। यह स्थान ऐसे
भक्त का रूप है जो भक्त से भक्ति योग्य हो गया।जहां भक्त और भगवान एक रुप हो जाते
हैं औसा ही पवित्र पावन स्थान है इंदौर के सांवरे में स्थित उलटे हनुमानजी का
मंदिर।
उलटे हनुमान की कथा :—भगवान हनुमान के
सभी मंदिरों में से अलग यह मंदिर अपनी विशेषता के कारण ही सभी का ध्यान अपनी ओर
खींचता है। साँवेर के हनुमान जी के विषय में एक कथा बहुत लोकप्रिय है। कहा जाता है
कि जब रामायण काल में भगवान *श्री राम* व रावण का युद्ध हो रहा था, तब अहिरावण ने एक चाल चली. उसने रूप बदल कर
अपने को राम की सेना में शामिल कर लिया और जब रात्रि समय सभी लोग सो रहे थे,तब अहिरावण ने अपनी जादुई शक्ति से *श्री राम एवं लक्ष्मण
जी* को मूर्छित कर उनका अपहरण कर लिया। वह उन्हें अपने साथ पाताल लोक में ले जाता
है। जब वानर सेना को इस बात का पता चलता है तो चारों ओर हडकंप मच जाता है। सभी इस
बात से विचलित हो जाते हैं। इस पर हनुमान जी भगवान *श्री राम व लक्ष्मण जी* की खोज
में पाताल लोक पहुँच जाते हैं और वहां पर अहिरावण से युद्ध करके उसका वध कर देते
हैं तथा *श्री राम एवं लक्ष्मण जी* के प्राँणों की रक्षा करते हैं। उन्हें पाताल
से निकाल कर सुरक्षित बाहर ले आते हैं। मान्यता है की यही वह स्थान था जहाँ से
हनुमान जी पाताल लोक की और गए थे। उस समय हनुमान जी के पाँव आकाश की ओर तथा सर
धरती की ओर था जिस कारण उनके उल्टे रूप की पूजा की जाती है।
13. प्राचीन हनुमान
मंदिर (कनॉट प्लेस,नई दिल्ली): यहां महाभारत कालीन श्री हनुमान जी का एक
प्राचीन मंदिर है। यहाँ पर उपस्थित हनुमान जी स्वंयम्भू हैं। बालचन्द्र अंकित शिखर
वाला यह मंदिर आस्था का महान केंद्र है।प्राचीन काल में दिल्ली का ऐतिहासिक नाम
इंद्रप्रस्थ शहर है, जो यमुना नदी के
तट पर पांडवों द्वारा महाभारत-काल में बसाया गया था। तब पांडव इंद्रप्रस्थ पर और
कौरव हस्तिनापुर पर राज्य करते थे। ये दोनों ही कुरु वंश से निकले थे। हिन्दू
मान्यता के अनुसार पांडवों में द्वितीय भीम को हनुमान जी का भाई माना जाता है।
दोनों ही वायु-पुत्र कहे जाते हैं। इंद्रप्रस्थ की स्थापना के समय पांडवों ने इस
शहर में पांच हनुमान मंदिरों की स्थापना की थी। ये मंदिर उन्हीं पांच में से एक
है।
14 श्री बाल हनुमान
मंदिर(जामनगर,गुजरात): सन् १५४० में जामनगर की स्थापना के साथ ही
स्थापित यह हनुमान मंदिर, गुजरात के गौरव
का प्रतीक है। यहाँ पर सन् १९६४ से “श्री राम धुनी” का जाप लगातार चलता आ रहा है, जिस कारण इस मंदिर का नाम गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड
रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है।
15.महावीर हनुमान
मंदिर(पटना,बिहार): पटना जंक्शन के
ठीक सामने महावीर मंदिर के नाम से श्री हनुमान जी का मंदिर है।* उत्तर भारत में
माँ वैष्णों देवी मंदिर के बाद यहाँ ही सबसे ज्यादा चढ़ावा आता है। इस मंदिर के
अन्तर्गत महावीर कैंसर संस्थान, महावीर वात्सल्य
हॉस्पिटल, महावीर आरोग्य हॉस्पिटल तथा अन्य बहुत से
अनाथालय एवं अस्पताल चल रहे हैं। यहाँ श्री हनुमान जी संकटमोचन रूप में विराजमान
हैं।
16. श्री पंचमुख
आंजनेयर हनुमान( तमिलनाडू): तमिलनाडू के कुम्बकोनम नामक स्थान पर श्री
पंचमुखी आंजनेयर स्वामी जी (श्री हनुमान जी) का बहुत ही मनभावन मठ है। यहाँ पर श्री
हनुमान जी की “पंचमुख रूप” में विग्रह
स्थापित है, जो अत्यंत भव्य एवं दर्शनीय है।
यहाँ पर प्रचलित कथाओं के अनुसार जब अहिरावण तथा उसके भाई
महिरावण ने श्री राम जी को लक्ष्मण सहित अगवा कर लिया था, तब प्रभु श्री राम को ढूँढ़ने के लिए हनुमान जी
ने पंचमुख रूप धारण कर इसी स्थान से अपनी खोज प्रारम्भ की थी। और फिर इसी रूप में
उन्होंने उन अहिरावण और महिरावण का वध भी किया था। यहाँ पर हनुमान जी के पंचमुख
रूप के दर्शन करने से मनुष्य सारे दुस्तर संकटों एवं बंधनों से मुक्त हो जाता है..ll
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