जीवन की व्यथा को दूर करना है तो श्रीराम जी के शरणागति हो जाईए और अभिनंदन करिये श्रीरामलला का....
।।जय श्री सीताराम।।
"भूयो भूयो भाविनो भूमिपाला: नत्वान्नत्वा याच्तेरारामचंद्र
सामान्योग्य्म धर्म सेतुर्नराणा काले-काले पालनियों भवदभि:"
संदीप कुमार मिश्र - #रा माने #राष्ट्र...#म माने #मंगल....यानी राम नाम में ही राष्ट्र का मंगल है...किंचित ही कोई होगा जो मर्यादापुरुषोत्तम जननायक प्रभु श्रीराम के चरित्र से अवगत ना हो क्योंकि प्रभु श्री राम रूप में भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता की ऐसी आदर्शमयी और जीवंत प्रतिमा प्रतिष्ठित की है, जो विश्वभर में अलौकिक, असाधारण, अनुपम एवं अद्भुत है, जो धर्म एवं नैतिकता की दृष्टि से सर्वोपरि ही नहीं सदैव प्रासंगिक है।
विनय पत्रिका में गोस्वामी जी ने बड़ा सहज ही वर्णित किया है कि जिस जीव को श्रीसीताराम जी प्रिय ना हो उसे करोड़ो शत्रुओं के समान छोड़ देना चाहिए...कहने का मतलब है कि जिसे श्रीराम में प्रीति ना हो उसे छोड़ देना ही बेहतर होता है....जैसे भक्त प्रहलाद ने अपने पिता को छोड़ दिया...विभीषण ने अपने भाई लंकापति को छोड़ दिया....भरतलाल जी ने अपनी मां कैकेयी को छोड़ दिया...बली ने अपने गुरु शुक्राचार्य को छोड़ दिया....और ब्रज बालाओं ने अपने पतियों को छोड़ दिया....
यहां तक तो ठीक था लेकिन श्रीराम जी के प्रति अनन्य और अटूट प्रेम का उदाहरण शिव जी का है...ऐसा धर्म ग्रंथों में वर्णित है कि भगवान शिव जी ने तो सीता जी का रुप धारण करने के कारण अपनी अर्धांगिनी माता सती जी को ही छोड़ दिया...वैष्णवानाम यथा शंभू...इतना बड़ा वैष्णव कोई होगा क्या...स्वामीनी का रुप बनाने के कारण शिव जी ने सती जी को छोड़ दिया...महादेव का एक नाम रुद्र भी है जिसका अर्थ है कि “रोदिती रामार्थंम य: स रुद्र:”... जो भगवान राम जी के लिए रोता है उसे रुद्र कहते हैं...श्रीराम जी प्रति अनन्य भक्ति का ऐसा आदर्श शायद ही कहीं और प्रस्तुत हो...
आदिदेव महादेव को भगवान राम के रुप पर बहुत आशक्ति है...वो भी भगवान के किस रुप पर सबसे ज्यादा आशक्ति है...बाल रुप पर....राम जी का बाल रुप भोलेनाथ को अतिप्रिय है....
जासु सनेह सकोच बस राम प्रगट भए आई।
जे हर हिय नयननि कबहुं निरखे नहीं अघाई।।
जिनके प्रेम और संकोच के वश में होकर स्वयं भगवान श्रीराम आकर प्रकट हुए,जिन्हें श्री महादेव जी अपने ह्रदय के नेत्रों से कभी अघाकर नहीं देख पाए...अर्थात जिनका स्वरुप ह्रदय में देखते-देखते शिवजी कभी तृप्त नहीं हुए....ऐसे हैं घट-घट में बसे श्रीराम
भगवान शिव की श्रीराम जी की भक्ति का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि शक्ति स्वरुपा माता पार्वती जी ने कहा कि -सारे पति अपनी पत्नियों में आसक्त रहते हैं और मेरा पति रघुपति में आसक्त हैं...ऐसा परम भागवत पति कहां मिलेगा....
अब ये भी जान लें कि पति किसे कहते हैं ?-पति माने “पायति रामचंद्र शिव भक्ति सुधारसं”...जो अपनी पत्नी को राम भक्ति का सुधारस पिलाता है उसे पती कहते हैं।
अब ऐसे प्रभु श्रीराम जी को उनके घर से कब तक बेघर रखा जा सकता है...आईए मिलकर उत्सव मनाएं,शांति और सौहार्द के स्वागत करें रामलला का....और स्थापित करें पुन: रामराज्य... ।।जय श्री सीताराम।।
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