संदीप कुमार मिश्र- लोकतंत्र में
चुनाव किसी उत्सव से कम नहीं होता है। सम्मानित जनतंत्र अपना प्रधान सेवक अपने मत
के द्वारा चुनती है जिससे कि लोकतंत्र मजबूत हो,उसका और देश का सम्मान बना रहे।
लेकिन सियासत
में पार्टीयां समीकरण के आधार पर चुनाव लड़ती हैं मसलन किस लोकसभा / विधान सभा में किस बिरादरी का कितना प्रतिशत प्रभाव है,किसे प्रत्याशी बनाने से फलां वर्ग का वोट
मिलेगा,किसका कितना रसूख है. .जैसे तमाम बातों पर
गौर करके... !
सियासत का ये
समीकरण जीत के लिहाज से ठीक भी है क्योंकि हारने के लिए कोई लड़ता तो है
नहीं..जनता जनार्दन भी अपने हिसाब से बढ़चढ़ कर वोट की चोट करती है।खासकर जातीय
बाहुल्यता के आधार पर(आज के राजनीति के हिसाब से तो 100% कह ही सकते हैं) हिन्दीभाषी राज्यों में
विशेषकर...
मुद्दे चाहे
कैसे भी हों मसलन,
-रोज़गार,शिक्षा,स्वास्थ्य,
सड़क,बिजली,पानी,राष्ट्र,सुरक्षा...कुछ भी हो,
ये सब कुछ उस
वक्त लुप्तप्राय हो जाते हैं जब बात जातिवाद और समीकरण की हो जाती है।
ऐसे में आंकड़ों
के इस गणित में मानवीयता,
सम्मान, भावनाओं की अहमियत खत्म सी प्रतीत होने लगती
है...शायद यही वजह है कि स्थानीय के स्थान पर बाहरी प्रत्याशी का चलन अब ज्यादा
बढ़ चला है। खासकर प्रत्याशी में थोड़ी चमक दमक हो तो और भी।
समीकरण बैठाते-बैठाते
पार्टियों के मुखिया ये भूल कर बैठते हैं कि जो कार्यकर्ता अपना जीवन सेवा और
समर्पित कार्यकर्ता के रुप में बिता चुका है उसके सम्मान को कितनी ठेस पहुंचती
होगी..यही भावना जब प्रबल हो जाती है तो हार होते देर नहीं लगती...क्योंकि बात जब
सम्मान की हो तो समझौता कम ही हो पाता है...।
फूट डालकर राज
करने की परंपरा आज भी जारी है थोड़ा कम या ज़्यादा हो सकता है लेकिन सियासत में इस
परंपरा के पुरोधा आज भी विद्यमान हैं। किसी दल का नाम लेना ठीक नहीं है लेकिन इस
देश की सम्मानित जनता सब जानती है कुछ कहने की आवश्यकता नहीं है.. !
21वीं सदी का भारत विश्व में अपनी सशक्त पहचान
बनाये,
अपना
सर्वोत्कृष्ट प्रदर्शन करे इसके लिए जरुरी है कि बुनियाद मजबूत हो, और वो बुनियाद है सवा सौ करोड़ भारतीयों का
सशक्त होना। ये तभी संभव हो पाएगा जब समीकरण से उपर उठाकर हमारे राजनेता विचार
करना प्रारंभ करेंगे।
यकीनन ऐसा संभव
है लेकिन तब, जब नेता का सरोकार जनहित से,जनहित के लिए हो...नेता पांच साल में एक
बार अपने लोकसभा/ विधानसभा क्षेत्र में सिर्फ वोट मांगने ना जाकर बार-बार जाएं,हर बार जाए..क्योंकि
लोकतंत्र तब तक मजबूत नहीं हो सकता जब तक उसका जनतंत्र मजबूत ना हो और जनतंत्र तभी
मजबूत होगा जब लोकतंत्र के रक्षक(नेता)जन के मध्य रहेंगे,उनकी समस्याओं के समाधान
के लिए कार्य करेंगे।ना कि अपने फार्म हाउस बनाने,स्विस बैंक में धन जमा करने,कोठी
अटारी और बैंक बैलेंस के लिए काम करें,....
अंतत: लोकतंत्र के इस
महाउत्सव में आप सभी भागीदार बने,बढ़ चढ़ कर हिस्सा लें,अपने लिए मजबूत सरकार का
चयन करें,ना कि मजबूर सरकार का....एक संविधान,एक प्रधान,एक विधान का चयन करें और “हम सब भारतीय
हैं....” कह कर स्वयं पर गर्व करें...।
!!भारत माता की जय!!
!!प्रणाम!!
संदीप कुमार मिश्र-
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