Wednesday, 28 November 2018

श्रीराम मंदिर।।हे सियासी लोगों हमारी आस्था को मुद्दा ना बनाएं



संदीप कुमार मिश्र: भारत विभिन्न सभ्यता और संस्कृति को अपने में समाहित किया हुआ विश्व गुरु है, जहां विविध प्रकार की बोली, भाषा, धर्म को मानने वाले लोग बड़े ही प्रेम से शांति सद्भाव के साथ रहते हैं।
लेकिन अफसोस कि सियासत की आधुनिक शैली ने देश का मिजाज बदल कर रख दिया है,मिजाज भी ऐसा बदला कि दिन प्रतिदिन बिगड़ता ही जा रहा है, क्योंकि कभी विचारधारा और प्रवृति पर कटाक्ष और प्रहार हुआ करता था जो अब व्यक्ति पर आके टिक गया है।
दरअसल ऐसा करने से समाज बंटता सा नजर आता है और जिसका लाभ सियासी पार्टियां चुनावों में उठाकर सत्ता पर काबिज होती है।लेकिन इसका सबसे बड़ा नुकसान विघटित होते समाज को उठाना पड़ता है।रोटी और रोजगार पर जनता चर्चा ना करे यही तो सियासतदां भी चाहते हैं और ऐसा करने में कुछ हदों तक सफल भी हो जाते हैं।

अब श्रीराम मंदिर मुद्दे को ही ले लें,लगातार सियासी तपिश से रोज अखबार, न्यूज चैनल भरे पड़े हैं,लोगों की जुबान पर भी यही चर्चा है।जिसका भरपूर फायदा सियासी पार्टियां उठा रही हैं।आखिर क्यूं ?
कौन नहीं जानता कि अयोध्या के राजा मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ही हैं।कौन नहीं जानता कि कन्हैया की जन्मस्थली मथुरा ही है।वेद ग्रंथ जिनका यश गाते हैं जिनकी महिमा का बखान करते हैं,जिन्हें आदर्श चरित्र प्रस्तुत कर समाज को जोड़ने का कार्य करते हैं।ऐसे प्रभु श्रीराम का जन्म अवधधाम यानी अयोध्या में ही हुआ था।

मैं किसी की आलोचन या फिर किसी समुदाय पर उंगली नहीं उठाना चाहता हूं क्योंकि जो कलम भाव राग और ताल के लिए ना चले वो अपने आप को भारतीय कहने का अधिकारी नहीं है और मैं पूर्णत: भारत माता की संतान हूं ये मैं अवश्य कह सकता हूं।
अयोध्या एक धार्मिक और सांस्कृतिक नगरी है जिसकी पहचान श्रीराम से शुरु और सम्पन्न दोनो है।हिन्दुओं की आस्था के मर्यादित चरित हैं भगवान श्रीराम।जिनका आदर इस देश के जन जन को करना चाहिए और मंदिर निर्माण में सहयोग करना चाहिए।

देश में सरकारों और संगठनो को घेरने के लिए मुद्दों की कमी नहीं है ऐसे में आस्था को मुद्दा ना बनाकर मंदिर निर्माण के लिए कदम बढ़ाना चाहिए।।जय श्री सीताराम।।

Saturday, 10 November 2018

chhath puja, 2018:जानिए छठ महापर्व की मुख्य तिथियां



संदीप कुमार मिश्र: चार दिनों तक चलने वाले सूर्य उपासना के महापर्व की शुरुआत नहाय खाय से होती है और समापन उगते हुए सूर्य को अर्ध्य देने से संपन्न होती है।छठ पूजा के इन चार दिनो का विशेष महत्व होता है। इन चार दिनो में व्रती निर्जला उपवास रखेंगे और शाम को पूजा के बाद खीर और रोटी का प्रसाद ग्रहण करेते हैं। अथर्ववेद के अनुसार षष्ठी देवी भगवान भास्कर यानि सूर्य की मानस बहन हैं। प्रकृति के छठे अंश से माता षष्ठी का प्रादुर्भाव हुआ हैं। षष्ठी यानी छठी मईया को बच्चों की रक्षा करने वाले भगवान विष्णु द्वारा रची माया भी कहा जाता है।

इसीलिए जब हमारे घरों में किसी बच्चे के जन्म होता है तो छठे दिन छठी पूजी जाती है, जिससे कि बच्चे के ग्रह-गोचर शांत हो जाएं।

जानिए कब है नहाय-खाए, खरना, सायंकालीन अर्घ्य, प्रात:कालीन अर्घ्य
नहाय-खाए : रविवार 11 नवंबर
खरना (लोहंडा): सोमवार 12 नवंबर
सायंकालीन अर्घ्य: मंगलवार 13 नवंबर
(सूर्य योग में भगवान भास्कर को पहला अर्घ्य 13 नवंबर को)
प्रात:कालीन अर्घ्य: बुधवार 14 नवंबर

                            

chhath puja 2018 : 11 नवम्बर से नहाय- खाए के साथ शुरू होगी सूर्य उपासना का महापर्व छठ पूजा



संदीप कुमार मिश्र: सूर्य उपासना का महापर्व है छठ पूजा साथ ही प्रकृति और आस्था का महापर्व भी है 'छठ पूजा'।जिसकी शुरुआत नहाय-खाए के साथ शुरू होगा जिसकी धूम अगले चार दिनों तक रहेगी।11 नवम्बर रवीवार को नहाय खाए, सोमवार यानी 12 नवंबर को लोहंडा-खरना और मंगलवार 13 नवंबर की शाम भगवान भास्कर को पहला संध्याकालीन अर्घ्य और बुधवार 14 नवंबर को प्रात:कालीन अर्घ्य देकर छठ पूजा का महापर्व संपन्न होगा।
सूर्य उपासना का ये महापर्व पूर्वी भारत खासकर बिहार,यूपी के अलावा अलावा देश के अन्य राज्यों में मौजूद पूर्वी भारत के लोग बड़े ही भक्तिभाव के साथ मनाते हैं।
सूर्य उपासना के महापर्व पर व्रती रखते हैं 36 घंटे का निर्जला व्रत
छठ पूजा का व्रत बड़ा ही कठीन होता है,इसमें व्रती 36 घंटे तक निर्जला व्रत रहते हैं। इस बार छठ महापर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान में ग्रह-गोचरों का शुभ संयोगों बन रहा है।एकतरफ जहां
रविवार को नहाय-खाए पर सर्वार्थसिद्धि का योग बन रहा है तो वहीं मंगलवार 13 नवंबर को सायंकालीन अर्घ्य पर अमृत योग का संयोग है साथ ही प्रात:कालीन अर्घ्य पर बुधवार की सुबह छत्र योग का भी संयोग बन रहा है।ऐसा कहा जाता है कि सूर्य भगवान को अर्घ्य देने से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।

छठ पूजा करने वाला निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखें-
छठ पूजा करने वाले व्रती को पीतल या ताम्बे के पात्रों से ही सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करना चाहिए।पीतल के पात्र से ही दूध का अर्घ्य देना चाहिए।कहते हैं कि छठ महापर्व शरीर ,मन और आत्मा की शुद्धि का महापर्व है।ऐसी धार्मिक पौराणिक मान्यता है कि नहाए-खाए से सप्तमी के पारण तक छठी मईया की अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसती है जो मनसा,वाचा, कर्मणा श्रद्धापूर्वक व्रत करते हैं।




Saturday, 3 November 2018

धनतेरस 2018: 5 रुपये का 6 सामान धनतेरस पर खरीदें,धन की नहीं होगी कभी कमी



1 पान का पत्ता
धनतेरस पर पूजा की सामग्री में पान का इस्तेमाल जरुर करें।पान के पत्ते में देवताओं का वास माना जाता है।धनतेरस और दीपावली की पूजा में पान के पत्ते का इस्तेमाल शुभ है।पान के पत्ते से ही पूजा का संकल्प किया जाता है।
2 सुपारी है शुभ
धनतेरस की पूजा में सुपारी का इस्तेमाल जरुर करें।सुपारी को ब्रम्हदेव,यमदेव,वरुण देव और इईंद्रदेव का प्रतीक माना जाता है।धनतेरस  के दिन पूजा में प्रयोग की गई सुपारी को तिजोरी या अलमारी में रखना लाभदायक माना गया है।इससे आपके जीवन में कभी धन-धान्य की कमी नहीं होती है।

3 साबुत धनिया
धनतेरस के दिन साबुत धनिया मां लक्ष्मी और भगवान धनवंतरी के चरणों में अर्पित करें। बाद में धनिये को बगीचे में बो दें और कुछ धनिये को तीजोरी में रख दें।
4 बतासा
बतासा माता लक्ष्मी का प्रिय भोग है।महालक्ष्मी की पूजा में बतासे का प्रयोग जरुर करें।धनतेरस के दिन महालभ्मी को बतासे का भोग अवश्य लगाएं और अपनी समस्याएं मां को जरुर बताएं।ऐसा करने से आपकी समस्याओं का समाधान हो जाएगा।
5 दीप
धनतेरस के दिन से ही दिवाली का प्रारंभ हो जाता है,हर दिन घर के बाहर 5 दीपक जरुर जलाएं।ऐसा करने ये यमदेव प्रसन्न होते हैं और अकाल मृत्यु का भय दूर होता है।
6 कपूर
कपूर से माता लक्ष्मी,भगवान कुबेर और भगवान धनवंतरी की पूजा करें।कपूर से मन शांत होता है और इसकी महक से पूजा स्थल पवित्र हो जाता है,घर की नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मकता बढ़ती है और स्वास्थ्य बेहतर होता है।





Diwali 2018: दीपावली की रात करें ये 6 अचूक उपाय,सालभर रहेगी मां लक्ष्मी की कृपा



दीपावली पर बरसेगी आप पर माता लक्ष्मी की कृपा
होगी आपके घर में धन वर्षा
जानिए क्या करें उपाय
जिससे आप हो जाए मालामाल
उपाय नंबर 1
तिजोरी में रखें ये सामान
दीपावली की रात एक आंवला पर सिंदूर लगाएं और उस पर लाल चुनरी चढ़ाएं।इसे माता लक्ष्मी के सामने रखकर ऊं विष्णुप्रिया नम: ‘ का कमल गट्टे की माला से पांच बार जप करें।फिर आंबले को तिजोरी या धन रखने के स्थान पर रख दें। धन की कभी कमी नहीं होगी।
उपाय नंबर 2
इस महामंत्र का करें जाप
दीपावली की रात चांदी का सिक्का या फिर कोई भी चीज गुलाबी रंग के रुमाल में लपेटकर लक्ष्मी जी को अर्पित कर दें और ऊं महालक्ष्म्यै मंत्र का पांच बार जप करें और पूजन धूप के बाद तिजोरी या फिर आलमारी में रख दें।
उपाय नंबर 3
धन की समस्या होगी दूर
धनतेरस या दीपावली के दिन तीन झाड़ू खरीदें।और अगले दिन प्रात: घर के पास के किसी मंदिर में ले जाकर रख दें।इस बाद ता ध्यान रखें कि आपको कोई देख ना ले।इस उपाय से धन संबंधित सभी परेशानियां दूर हो जाएंगी।
उपाय नंबर 4
इलायची का इस तरह से करें प्रयोग
दिवाली के दिन एक शहद की शीशी में 7 छोटी  इलायची और थोड़ा सा केसर के दाने डाल लें।इन सब को छाया में सूखने दें।इसके बाद रोज एक दाना खाएं या बनते भोजन में डालकर पूरे परिवार को खिलाएं।इसको खाते वक्त लक्ष्मीजी का जप करते रहें।ऐसा करने से सभी समस्याएं दूर हो जाएंगी।
उपाय नंबर 5
घर में होगा लक्ष्मी की वास
दीपावली वाले दिन खीर बनाकर एवं जयसुक्त नारियल दोनो को लेकर पूरे घर में घुमाएं।इसके बाद मुख्य द्वार पर नारियल तोड़ दें। खीर कुत्ते को खिलाएं।इस उपाय से घर में होगा लक्ष्मी का वास और केतु का अशुभ प्रभाव भी दूर होगा।
उपाय नंबर 6
दीपावली की रात जलाएं अखंडित दीप
दीपावली के शाम पूजन के समय लक्ष्मी जी के सामने एक तेल का और एक देसी घी का दीप जलाएं।कोशिश करें कि यह दीप अखंडित जलता रहे।इसके साथ जितना हो सके माता लक्ष्मी के बीज मंत्र ओम ह्रीं श्रीं महालक्ष्मीयै नम:’ का जप करें।इससे दुर्भाग्य दूर होता है और घर में लक्ष्मी का वास होता है।  


दीपावली 2018: जाने दीपावली कब है पूजा का शुभ मुहूर्त



संदीप कुमार मिश्र: 07 नवंबर 2018 दिन बुधवार को देशभर में बड़े ही धूमधाम से दिवाली का त्योहार मनाया जाएगा। आपको बता दें कि दीपावली का पूजन प्रदोष काल और स्थिर लग्न में होता है। वृष और सिंह स्थिर लग्न है और सिंह लग्न के समय अमावस्या का अभाव है। इस दिन स्वाति नछत्र सूर्योदय काल से लेकर 19.37 तक रहेगा और फिर विशाखा लग जायेगा।
हमारे ज्योतिष के विद्वानो का कहना है कि प्रदोष काल का समय गृहस्थ एवं व्यापारियों के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है। प्रदोष काल का मतलब होता है दिन और रात्रि का संयोग काल।क्योंकि दिन भगवान विष्णु का प्रतीक है और रात्रि माता लक्ष्मी का प्रतीक है। धर्म सिंधु में कहा गया है कि प्रदोष काल अमावस्या निहित दीपावली पूजन को सबसे शुभ मुहूर्त है।
आईए जानते हैं दिवाली पूजा का शुभ मुहूर्त...
प्रदोष काल का समय-
सायं 17.27 से 20.05 तक। इस मुहूर्त में स्थिर लग्न वृषभ भी मिल रहा है। वृष और प्रदोष दोनों मिल जाने से ये दीपावली पूजन का सर्वोत्तम पूजा मुहूर्त है।
वृष लग्न
दीपावली पूजन स्थिर लग्न वृष में भी किया जाता है। खासकर व्ययसाय से जुड़े लोगों को अपने प्रतिष्ठान में इसी समय पूजन करवाना चाहिए। वृष लग्न 17.14 से 19.50 तक रहेगा।
निशीथ काल
निशीथ काल सायं 20.11 से 22.51 तक लगेगा। यह काल भी व्यापारी बंधुओं के लिए श्रेष्ठ है। इसमें 19.09 से 20.52 तक पूजन का विशेष शुभ मुहूर्त है।
महानिशीथ काल
23.14 से 24.06 तक। इसमें सिंह लग्न भी मिल जाएगा।
जानिए सबसे सर्वोत्तम और श्रेष्ठ मुहूर्त-
1. गृहस्थजन के लिए प्रदोष काल में पूजन सबसे बढ़िया है।
2. व्यापारी प्रदोष और वृष लग्न में दीपावली पूजन करें तो उत्तम फल मिलेगा।
3.विद्यार्थियों को प्रदोष काल में पूजन करना चाहिए।
4. आई टी, मीडिया, फ़िल्म, टी वी इंडस्ट्री, मैनेजमेंट और जॉब करने वाले शुक्र प्रधान लग्न वृष में पूजन करें तो उत्तम फल मिलेगा।
5 तांत्रिक महानिशीथ काल में पूजन करें।
6. राजनीतिज्ञ अमावस्या की रात्रि के महानिशीथ काल में तांत्रिक पूजन कर सकते हैं।
7. चौघड़िया मुहूर्त में भी किसी विशेष लाभ हेतु पूजा कर सकते हैं। 18.51 से 23.42 तक शुभ, चर की चौघड़िया तथा 23.56 से 28.33 तक लाभ की चौघड़िया रहेगी।



जानिए कब है धनतेरस और क्या है पूजा का शुभ मुहूर्त?



संदीप कुमार मिश्र: धनतेरस यानी धनत्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरी का जन्म हुआ था और इसीलिए इस दिन को धन तेरस के रूप में पूजा जाता है। दीपावली के दो दिन पहले आने वाले इस त्योहार को लोग काफी धूमधाम से मनाते हैं. इस दिन गहनों और बर्तन की खरीदारी जरूर की जाती है. इस बार धनतेरस 5 नवंबर को है.
धनतेरस 2018 का मुहूर्त-
धनतेरस पूजा मुहूर्त- शाम 6.05 बजे से 8.01 बजे
अवधि- 1 घंटा 55 मिनट
प्रदोष काल- 5.29 PM से 8.07 PM
वृषभ काल- 6:05 PM से 8:01 PM
त्रयोदशी तिथि आरंभ- 5 नवंबर, 01:24 AM
त्रयोदशी तिथि खत्म- 5 नवंबर, 11.46 PM
जानिए क्यों भगवान धनवंतरी के पूजन का इतना महत्व?
शास्त्रों के अनुसार, समुद्र मंथन के दौरान त्रयो‍दशी के दिन भगवान धनवंतरी प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन को धन त्रयोदशी कहा जाता है. धन और वैभव देने वाली इस त्रयोदशी का विशेष महत्व माना गया है.
भगवान धनवंतरी को अतिप्रिय है पीतल
भगवान धनवंतरी को नारायण भगवान विष्णु का ही एक रूप माना जाता है. इनकी चार भुजाएं हैं, जिनमें से दो भुजाओं में वे शंख और चक्र धारण किए हुए हैं. दूसरी दो भुजाओं में औषधि के साथ वे अमृत कलश लिए हुए हैं. ऐसा माना जाता है कि यह अमृत कलश पीतल का बना हुआ है क्योंकि पीतल भगवान धनवंतरी की प्रिय धातु है.
धनतेरस पर करें खरीदारी
कहते हैं कि इस दिन खरीदी गई कोई भी वस्तु शुभ फल प्रदान करती है और लंबे समय तक चलती है. लेकिन अगर भगवान की प्रिय वस्तु पीतल की खरीदारी की जाए तो इसका तेरह गुना अधिक लाभ मिलता है.
हम कामना करते हैं कि इस धनतेरस आप पर भगवान धनवंतरी कृपा बनी रहे और माता लक्ष्मी आपका घर सुख संपदा से भरा रखें।शुभ धनतेरस