संदीप कुमार मिश्र: सूर्य उपासना का महापर्व है छठ पूजा साथ ही प्रकृति और
आस्था का महापर्व भी है 'छठ पूजा'।जिसकी शुरुआत नहाय-खाए के साथ
शुरू होगा जिसकी धूम अगले चार दिनों तक रहेगी।11 नवम्बर रवीवार को नहाय खाए,
सोमवार यानी 12 नवंबर को लोहंडा-खरना
और मंगलवार 13 नवंबर की शाम भगवान
भास्कर को पहला संध्याकालीन अर्घ्य और बुधवार 14 नवंबर को प्रात:कालीन अर्घ्य देकर छठ पूजा का महापर्व
संपन्न होगा।
सूर्य उपासना का ये महापर्व पूर्वी भारत खासकर बिहार,यूपी
के अलावा अलावा देश के अन्य राज्यों में मौजूद पूर्वी भारत के लोग बड़े ही
भक्तिभाव के साथ मनाते हैं।
सूर्य उपासना के महापर्व पर व्रती रखते हैं 36 घंटे का निर्जला
व्रत
छठ पूजा का व्रत बड़ा ही कठीन होता है,इसमें व्रती 36 घंटे तक निर्जला
व्रत रहते हैं। इस बार छठ महापर्व के चार दिवसीय अनुष्ठान में ग्रह-गोचरों का शुभ
संयोगों बन रहा है।एकतरफ जहां
रविवार को नहाय-खाए पर सर्वार्थसिद्धि का योग बन रहा है तो
वहीं मंगलवार 13 नवंबर को
सायंकालीन अर्घ्य पर अमृत योग का संयोग है साथ ही प्रात:कालीन अर्घ्य पर बुधवार की
सुबह छत्र योग का भी संयोग बन रहा है।ऐसा कहा जाता है कि सूर्य भगवान को अर्घ्य देने
से कई जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं।
छठ पूजा करने वाला निम्न बातों का अवश्य ध्यान रखें-
छठ पूजा करने वाले व्रती को पीतल या ताम्बे के पात्रों से ही
सूर्य भगवान को अर्घ्य प्रदान करना चाहिए।पीतल के पात्र से ही दूध का अर्घ्य देना
चाहिए।कहते हैं कि छठ महापर्व शरीर ,मन और आत्मा की शुद्धि का महापर्व है।ऐसी धार्मिक पौराणिक
मान्यता है कि नहाए-खाए से सप्तमी के पारण तक छठी मईया की अपने भक्तों पर विशेष
कृपा बरसती है जो मनसा,वाचा, कर्मणा श्रद्धापूर्वक व्रत करते हैं।
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