संदीप कुमार मिश्र- शिव की साधना जीवन
में शांति प्रदान करने वाली है। शिव के साधक को न तो मृत्यु का भय रहता है, न रोग का, न शोक का।शिव तत्व उनके मन को भक्ति और शक्ति का सामर्थ देता है।शिव तत्व का ध्यान
महामृत्युंजय के रूप में किया जाता है।इस मंत्र के जप से साधक को शिव की कृपा
प्राप्त होती है।
ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्॥
भविष्य पुराण यह बताया
गया है कि महामृत्युंजय मंत्र का रोज़ जाप करने वाले साधक को अच्छा स्वास्थ्य, धन, समृद्धि और लम्बी आयु प्राप्त होती है।
महामृत्युंजय मंत्र का महत्व
ॐ त्र्यंबकम् मंत्र के 33 अक्षर हैं…जो महर्षि वशिष्ठ के
अनुसार 33 देवताओं के घोतक हैं…।उन तैंतीस देवताओं में 8 वसु, 11 रुद्र और 12 आदित्यठ, 1 प्रजापति तथा 1 षटकार हैं..।इन तैंतीस देवताओं की
सम्पूर्ण शक्तियाँ महामृत्युंजय मंत्र से निहीत होती है...।जिससे महा महामृत्युंजय
का पाठ करने वाला प्राणी दीर्घायु तो प्राप्त करता ही हैं...साथ ही वह नीरोग, ऐश्वर्ययुक्ता धनवान भी होता है...महामृत्युंजय का पाठ करने वाला प्राणी हर
दृष्टि से सुखी एवम समृध्दिशाली होता है...। भगवान शिव की अमृतमययी कृपा उस साधक
पर निरन्तंर बरसती रहती है जो महादेव के जीवन संजीवनी महामृत्युंजय मंत्र का जाप
करता है...।
महामृत्युंजय मंत्र के जप से मनुष्य को आरोग्यवर्धक शक्तियां प्राप्त होती हैं...इसके जप से साधक को मृत्यु का भय नहीं
रहता और मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है साथ ही किसी भी रोग या बीमारी से ग्रसित
व्यक्ति इस मंत्र के नित्य जाप से स्वस्थ होना शुरु हो जाता है। यदि साधक के
कुंडली में किसी भी तरह से मृत्यु दोष या मारकेश है तो कहा जाता है कि
महामृत्युंजय मंत्र के जाप से वो दूर हो जाता है।वहीं इस मंत्र का जप करने
से किसी भी तरह की महामारी से बचा जा सकता है,पारिवारिक कलह, संपत्ति विवाद से बचाता है महामृत्युंजय का अचूक मंत्र ।
मंत्र का अर्थ त्रयंबकम = त्रि-नेत्रों
वाला (कर्मकारक) यजामहे = हम पूजते हैं, सम्मान करते हैं, हमारे श्रद्देय सुगंधिम= मीठी महक वाला, सुगंधित (कर्मकारक) पुष्टि = एक
सुपोषित स्थिति,फलने-फूलने वाली, समृद्ध जीवन की परिपूर्णता वर्धनम = वह जो पोषण करता है, शक्ति देता है, (स्वास्थ्य, धन, सुख में)
वृद्धिकारक; जो हर्षित करता है, आनन्दित करता है, और स्वास्थ्य प्रदान करता है, एक अच्छा माली उर्वारुकम= ककड़ी
(कर्मकारक) इव= जैसे, इस तरह बंधना= तना (लौकी का); ("तने से" पंचम विभक्ति - वास्तव में
समाप्ति -द से अधिक लंबी है जो संधि के माध्यम से न/अनुस्वार में परिवर्तित होती
है) मृत्युर = मृत्यु से मुक्षिया = हमें स्वतंत्र करें, मुक्ति दें मा= न अमृतात= अमरता
शास्त्रों के अनुसार इस मंत्र का जप
करने के लिए सुबह 2 से 4 बजे का समय सबसे उत्तम माना गया है, लेकिन अगर आप इस वक़्त जप नहीं कर
पाते हैं तो सुबह उठ कर स्नान कर साफ़ कपडे पहने फिर कम से कम पांच बार रुद्राक्ष
की माला से इस मंत्र का जप करें। मंत्र का जाप कैसे करें जप के समय पूरे ध्यान से
साथ इस मंत्र का उच्चारण करें। ध्यान रहे इस मंत्र का जप करते वक़्त किसी भी अन्य
बात को अपने दिमाग ना आने दें।
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