संदीप कुमार मिश्र- हिन्दू धर्म में तिलक करने का विशेष महत्व है...संत परंपरा की बात करें तो
इससे संतो महात्माओं के संप्रदाय के बारे में पता चलता है...तिलक लगाने से वैष्णव
की पहचान होती है तिलक से ही संतों के संप्रदाय की पहचान होती है।वहीं तिलक केवल
धार्मिक मान्यता नहीं है...बल्कि कई वैज्ञानिक कारण भी हैं इसके पीछे...तिलक केवल
एक तरह से नहीं लगाया जाता...हिंदू धर्म में जितने संतों के मत हैं... जितने पंथ है, संप्रदाय हैं...उन सबके अपने अलग-अलग तिलक होते हैं...।
हमारे शरीर में सात
सूक्ष्म ऊर्जा के केंद्र होते हैं... जो अपार शक्ति के भंडार हैं...इन्हें
चक्र कहा जाता है...माथे के बीच में जहां तिलक लगाते हैं...वहां आज्ञाचक्र होता है...यह
चक्र हमारे शरीर का सबसे महत्वपूर्ण स्थान है...जहां शरीर की प्रमुख तीन नाडि़यां
इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना आकर मिलती हैं... इसलिए इसे त्रिवेणी या
संगम भी कहा जाता है...यह गुरु स्थान कहलाता है...यहीं से पूरे शरीर का संचालन
होता है...यही हमारी चेतना का मुख्य स्थान भी है...इसी को मन का घर भी कहा जाता है...।
तिलक लगाने में सहायक हाथ की अलग-अलग
अंगुलियों का भी अपना महत्व है।
अनामिका शांति दोक्ता,मध्यमायुष्यकरी भवेत्। अंगुष्छठ:पुष्टिव:प्रोत्त,तर्जनी मोक्ष दायिनी।।
कहने का अर्थ है कि तिलक धारण करने में
अनामिका अंगुली मानसिक शांति प्रदान करती है... मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु वृद्धि करती है...अंगूठा प्रभाव, ख्याति और आरोग्य प्रदान करता है... इसलिए विजयतिलकअंगूठे से
ही करने की परम्परा है...तर्जनी मोक्ष देने वाली अंगुली है...इसलिए मृतक को तर्जनी
से तिलक लगाते हैं...।
इस प्रकार से तिलक का विशेष महत्व हमारे
हिन्दू धर्म में बताया गया है...जिसके सकारात्मकता और सार्थकता की पुष्टी विज्ञान
भी करता है।।
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