संदीप कुमार मिश्र: (करवा चौथ-19 अक्टूबर,दिन बुद्धवार)। अपने पति की लंबी आयू की कामना
के लिए हमारी भारतिय संस्कृति में सुहागिन महिलाएं कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की
चतुर्थी को व्रत रखती हैं जिसे हम करवा चौथ कहते हैं।
छांदोग्य उपनिषद् में कहा गया है कि “चंद्रमा
में पुरुष रूपी ब्रह्मा की उपासना करने से सारे पाप नष्ट हो जाते हैं”।महान और कठोर व्रत करवा चौथ को विवाहित स्त्रियां अपने पति परमेश्वर की रक्षा
के लिए निराहार रहकर निर्जला व्रत रखती हैं...जिससे उनकी सहनशक्ति,समर्पण और त्याग
का पता चलता है।
करवा चौथ पर विशेष रुप से भगवान
शिव,माता पार्वती,कार्तिकेय और भगवान गणेश की पूजा आराधना का विधान है।इस विशेष
त्योहार पर महिलाएं चंद्रमा के उदय पर अर्घ्य देती हैं और पूजा करती हैं। पूजा के
बाद मिट्टी के करवे में उड़द की दाल, सुहाग की सामग्री, चावल, रखकर अपनी सास या सास के समकक्ष किसी सुहागिन के पांव छूकर सुहाग सामग्री भेंट
करती हैं।
जानिए करवा चौथ की पूजन सामग्री
मिट्टी, चॉदी, सोने या पीतल आदि किसी भी धातु का टोंटीदार करवा व ढक्कन, दीपक, रुई, कपूर, गेहूँ, शक्कर का बूरा, हल्दी, पानी का लोटा, कुंकुम, शहद, मेंहदी, महावर, कंघा, बिंदी, चुनरी, चूड़ी, बिछुआ, अगरबत्ती, पुष्प, कच्चा दूध, शक्कर, शुद्ध घी, दही, मेंहदी, मिठाई, गंगाजल, चंदन, चावल, सिन्दूर, गौरी बनाने के लिए पीली मिट्टी, लकड़ी का आसन, हलुआ, छलनी, आठ पूरियों की अठावरी,
श्रद्धा स्वरुप दान के लिए दक्षिणा।
करवा चौथ का व्रत धारण करने के लिए
प्रात: स्नान ध्यान करके साफ
और स्वच्छ वस्त्र धारण करें,श्रृंगार करें।करवा की पूजा करने के साथ ही भगवान शिव
और माता पार्वती की आराधना करें क्योंकि माता पार्वती ने कठिन तपस्या करके शिवजी
को प्राप्त कर अखंड सौभाग्य प्राप्त किया था।यही वजह है कि इस विशेष दिन में शिव-पार्वती
की पूजा का विधान है।वहीं करवा चौथ के दिन चंद्रमा की पूजा का हमारे धर्म
शास्त्रों में महत्व तो बतलाया ही गया है साथ ही इसका ज्योतिष महत्व भी बताया गया
है।
करवा चौथ पूजा समय
पूजा का शुभ मुहूर्त- शाम
05 बजकर 46 मिनट से 06 बजकर 50 मिनट तक।
करवा चौथ के दिन चन्द्र
को अर्घ्य देने का समय रात्रि 08.50 बजे ।
करवा चौथ पूजन विधि-
नारद पुराण में कहा गया है कि करवा चौथ
के दिन दिन भगवान गणेश की पूजा करनी चाहिए। करवा चौथ की पूजा करने के लिए बालू या
सफेद मिट्टी की एक वेदी बनाकर भगवान शिव- देवी पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, चंद्रमा एवं गणेशजी को स्थापित कर उनकी विधिपूर्वक पूजा करनी चाहिए।
पूजन के समय का मंत्र-
''मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि
सुस्थिर श्री प्राप्तये चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये”।
सांयकाल के समय, माँ पार्वती की प्रतिमा की गोद में श्रीगणेश को विराजमान कर उन्हें लकड़ी के
आसार पर बिठाएं। माता पार्वती का सुहाग की सामग्री से श्रृंगार करना चाहिए। इसके
बाद भगवान शिव और माता पार्वती की भक्ति भाव से आराधना करनी चाहिए और साथ ही करवे
में पानी भरकर पूजा करनी चाहिए।इस दिन सुहागन महिलाएं र्निजला व्रत रखते हुए कथा सुने
और फिर चंद्रमा के दर्शन करके पति के द्वारा जल और अन्न ग्रहण करें।