संदीप कुमार मिश्र- सनातन संस्कृति का संवाहक देश है भारत।जहां की विशाल और अतुल्य सभ्यता का अनुसरण संपुर्ण विश्व करता है।तभी तो भारत विश्व गुरु कहलाता है। संत महात्माओं के दिव्य ज्ञान से भारतवर्ष की धरा हरी भरी है।इस पवित्र भुमि पर देव गंधर्व किन्नर भी जन्म लेने के लिए लालायित रहते हैं। आस्था और विश्वास भारतियता की विशेष पहचान है।
दरअसल महाकाल की पावन धरती उज्जैन में लगा है संतो का मेला...क्योंकि अवसर है सिंहस्थ कुंभ महोत्सव में आस्था की डुबकी लगाने की।दोस्तो जब भी कुंभ या महाकुंभ की चर्चा होती है तो एक बात जो आपके जहन से सबसे ज्यादा कौतुहल उत्पन्न करती है वो है नागा साधू।क्योंकि कुंभ मेला जब भी लगता है साधू-संतों, खासकर नागा साधुओं की चर्चा होती ही है।क्योंकि नागा साधूओं की रहस्यमयी दुनिया अद्भूत है।नागा साधी कब खुश हो जाएं और कब इनकी नाराजगी का कोपभाजन एक साधारण जनमानस को होना पड़े,कोई नहीं जानता।इनके प्रत्येक कार्य अजीबोगरीब होते हैं।
मित्रों आपको बता दें कि नागा साधुओं की कार्य करने का तरीका...वेशभूषा,ध्यान तप की शैली विधि-विधान सब कुछ उनके अखाड़े के अनुसार ही किये जाते है।अखाड़ों की बात करें तो 13 अखाड़ों को मुख्य रुप से मान्यता प्राप्त हैं। जिसमें 3 वैष्णव और 3 उदासीन और 7 शैव अखाड़े हैं। ये सभी अखाड़े देखने में तो एक जैसे ही लगते हैं, लेकिन रहन- सहन, परंपराएं-पद्धति सब कुछ अलग-अलग होते हैं।जानते हैं कुछ प्रमुख अखाड़ों के बारे में-
निर्वाणी अणि अखाड़ा
इस अखाड़े में रह रहे नागा साधुओं के जीवन का प्रमुख हिस्सा कुश्ती है। कई संत तो प्रसिद्ध पहलवान भी रह चुके हैं इस अखाड़े के।
बड़ा उदासीन अखाड़ा
इस मुख्य अखाड़े के संस्थापक श्री चंद्राचार्य उदासीन हैं। इस अखाड़े का उद्देश्य सेवा करना है। अखाड़े में 4 महंत होते हैं, जो कभी भी सेवानिवृत नहीं होते है।इनका कार्य निरंतर चलता रहता है।
नया उदासीन अखाड़ा
इस अखाड़े का निर्माण बड़ा उदासीन अखाड़े के कुछ साधुओं ने अलग होकर किया। इस अखाड़े में उन्हीं को नागा बनाया जाता है, जो 8 से 12 साल की उम्र के होते हैं यानी जिनकी दाढ़ी-मूंछ न निकली हो|कबने का मतलब है कि जो बाल्यावस्था में ही इस परम्परा से जुड़ना चाहे वही इस अखाड़े से जुड़ सकता है।
निर्मल अखाड़ा
1784 में निर्मल अखाड़े की स्थापित हुई थी, जो हरिद्वार कुंभ मेले में बड़ी सभा में विचार करके श्री दुर्गासिंह महाराज ने स्थापित किया था| श्री गुरुग्रन्थ साहिब इनकी इष्ट-पुस्तक है। इस अखाड़ें में धूम्रपान पर पूरी तरह पाबंदी है।जिसका पालन अब बी किया जाता है।
दिगंबर अणि अखाड़ा
दिगंबर अणि अखाड़े में ज्यादातर खालसा हैं, जिनकी संख्या तकरीबन 431 है| वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में इसे राजा कहा जाता है।
जूना अखाड़ा
दोस्तों जूना का अर्थ होता है,प्राचीन यानी पुराना। इसी लिए इस अखाड़े को सबसे पुराना अखाड़ा माना जाता है। वर्तमान समय में सबसे ज्यादा महामंडलेश्वर इसी अखाड़े के हैं, जिनमें विदेशी और महिला महामंडलेश्वर भी शामिल हैं। इसे भैरव अखाड़ा भी कहते हैं। रुद्रावतार दत्तात्रेय इनके इष्टदेव हैं।
अटल अखाड़ा
भगवान गणेश अटल अकाड़े के इष्टदेव हैं।इस अखाड़े को सन 569 ईस्वी में गोंडवाना क्षेत्र में स्थापित किया गया था। इसकी मुख्य पीठ पाटन में है। इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्यों को ही दीक्षा मिलती है, अन्य वर्णों का इस अखाड़े में प्रवेश वर्जीत है।
आवाहन अखाड़ा
सन 646 में आवाहन अखाड़ा स्थापित हुआ, और सन 1603 में इसे फिर से क्रियान्वित किया गया।इस अखाड़े के इष्टदेव भगवान श्री दत्तात्रेय और श्री गजानन हैं। काशी इस अखाड़े का केंद्र है।
निरंजनी अखाड़ा
निरंजनी अखाड़ा एक मशहूर अखाड़ा है। कहा जाता है कि सबसे ज्यादा उच्च शिक्षित महामंडलेश्वर इसी अखाड़े में है। इसे सन 826 ई. में गुजरात के मांडवी में स्थापित किया गया था। कार्तिकेय भगवान निरंजनी अखाड़े के इष्टदेव हैं।
पंचाग्नि अखाड़ा
इस अखाड़े की स्थापना 1136 में हुई थी। गायत्री इनके इष्टदेव हैं। काशी इनका प्रधान केंद्र है। चारों पीठ के शंकराचार्य इनके सदस्यों में शामिल हैं। इस अखाड़े में सिर्फ ब्राह्मणों को ही दीक्षा दी जाती है। ब्राह्मण के साथ उनका ब्रह्मचारी होना भी आवश्यक है।
महानिर्वाणी अखाड़ा
यह अखाड़ा 681 ईस्वी में स्थापित हुआ था| माना जाता है कि इस अखाड़े की उत्पत्ति झारखण्ड के बैद्यनाथधाम में हुई थी। जबकि कुछ हरिद्वार में नीलधारा को इसका जन्म स्थान मानते हैं। कपिल महामुनि इनके इष्टदेव हैं। उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्मा इसी अखाड़े के पास है।
आनंद अखाड़ा
यह एक शैव अखाड़ा है, जिसमें आज तक एक भी महामंडलेश्वर नहीं बनाया गया है। इस अखाड़े में आचार्य का पद प्रमुख होता है। इसे सन 855 ई. में मध्यप्रदेश के बरार में स्थापित किया गया था। वर्तमान में इसका केंद्र वाराणसी है।
निर्मोही अखाड़ा
वैष्णव सम्प्रदाय के तीनों अणि अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं। इनकी संख्या 9 है। इस अखाड़े की स्थापना सन 1720 में स्वामी रामानंद ने की थी। पुराने समय में इस अखाड़ो के साधुओं को तीरंदाजी और तलवारबाजी की शिक्षा दिलाई जाती थी।
अंतत: जप-तप,धर्म-कर्म,ध्यान-योग,साधना-सत्संग हमारे देश की परम्परा रही है।जिसकी सहज ही झांकी हमें कुंभ में देकने को मिल जाती है।जो मानव को कर्तव्य पथ पर चलने और त्यागी होने की सीख देते हैं।धन्य है भारत भुमि..ऐससी पावन भुमि को कोटिश: नमन....।।।