'मेरा घर सब जगह है,मैं इसे उत्सुकता से खोज रहा हूँ। मेरा देश भी सब जगह है,इसे मैं जीतने के लिए लडूंगा।प्रत्येक
घर में मेरा निकटतम संबंधी रहता है,मैं उसे हर स्थान पर तलाश करता हूँ। -गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर
संदीप कुमार मिश्र: महान साहित्यकार,चित्रकार और विचारक "रविन्द्र नाथ टैगोर" का जन्म 7 मई सन 1861 को
कोलकाता में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री देवेन्द्रनाथ टैगोर व माता शारदा देवी
थी। रविन्द्र नाथ टैगोर को घर के लोग प्यार से 'रवि' कहकर पुकारते थे।
दरअसल दोस्तों बचपन के दिनों में
रविंद्रनाथ अन्य बच्चों से अलग अपनी ही कल्पना की दुनिया में गोते लगाते रहते थे। सन
1868 को रवि को विद्यालय में प्रवेश दिलाया गया लेकिन उन्हे विद्यालय का परिवेश
रास नहीं आया।और उन्हें दूसरे स्कूल में प्रवेश दिलाया गया।होनहार रवि की कुश्ती,चित्रकारी,व्यायाम और विज्ञान में विशेष रूचि
थी।कविता और संगीत ये दोनों ही गुण रविन्द्र नाथ टैगोर में शुरुआती दिनो से ही
मौजूद थे।जिसे रविन्द्र नाथ टैगोर ने बड़े होकर लिखा- "मुझे ऐसा कोई समय याद
नहीं जब मैं गा नहीं सका।"
बाल्यकाल में ही कविता लिखने की रविन्द्र
कला से माता-पिता बेहद प्रसन्न हुए। 17 वर्ष की उम्र में रविन्द्र को उच्च शिक्षा
प्राप्त करने के लिए उनके परिवार ने परदेश(इंग्लैंड) भेज दिया।जहां से रवि
चित्रकारी और लेखन में और अधिक पारंगत होकर स्वदेश लौटे।सन 1883 में रविन्द्र नाथ
टैगोर का विवाह मृणालिनी देवी से हुआ।प्रकृति प्रेमी रविन्द्र नाथ का कहना था कि भारत
की प्रगति के लिए गांवों का विकास किया जाना जरुरी है।
कहते हैं कि रविन्द्र नाथ टैगोर ने गरीब
और अशिक्षित किसान के अन्दर अन्धविश्वास को देखकर स्कूल खोलने का निश्चय किया।और
शिक्षित करने का संकल्प लिया।जिसमें उनकी पत्नी ने भी उनका भरपूर साथ दिया। आज
रविंद्र नाथ के द्वारा किया गया प्रयास विश्व के सामने शान्तिनिकेतन के रूप में है।जहां
विद्यालय में कक्षाएं खुले वातावरण में वृक्षों के नीचे लगती है। इस स्कूल की
स्थापना में रविन्द्रनाथ को अत्यंत संघर्ष करना पड़ा था,लेकिन हर्ष इस बात का था
कि शिक्षार्थ किया गया कार्य मानवता को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाएगा।
अफसोस कि रविंद्रनात टैगौर के जीवन में शान्तिनिकेतन
की स्थापना के पश्चात एक के बाद एक कई दुखद घटनाओं का तांता लग गया।पहले
रविंद्रनाथ की पत्नी,फिर पुत्री तथा पिता का निधन हो गया और उसके कुछ दिनों बाद उनके छोटे बेटे का
भी देहांत हो गया। इन घटनाओं का रविंद्रनाथ के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा लेकिन
उनके शिक्षा के संकल्प को डिगा नही सका और उनका पूरा ध्यान स्कूल को निरंतर गती
देने में लगा रहा।
इतना ही नहीं रविन्द्र नाथ टैगोर बहुमुखी
प्रतिभा के धनी थे।उनके चिंतन, विचारों ,स्वप्नों व आकांक्षाओ
की अभिव्यक्ति उनकी कविताओ,कहानियों, उपन्यास, नाटको, गीतों और चित्रों में होती है।उनके
गीतों में से एक-"आमार सोनार बांग्ला" बांग्लादेश का राष्ट्रीय गीत है,
और उन्ही का गीत-"जन गन मन अधिनायक जय हे" हमारा राष्ट्रगान है।
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी रविन्द्र नाथ
टैगोर के व्यक्तित्व से अत्यंत प्रभावित थे।रविन्द्र नाथ टैगोर ने गांधी को 'महात्मा' कहा और गांधी ने
रविन्द्र नाथ टैगोर को 'गुरुदेव' की उपाधि दी। रविन्द्र
नाथ टैगोर को उनकी काव्यकृति 'गीतांजलि' के लिए सन 1913 में
साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला।यह सम्मान प्राप्त करने वाले वह प्रथम एशियाई
व्यक्ति थे। महान कवि,विचारक,समाज सुधारक रविन्द्र नाथ टैगोर मातृभाषा के प्रबल पक्षधर थे।उनका
कहना था-जिस प्रकार मां के दूध पर पलने वाला बच्चा अधिक स्वस्थ और बलवान होता है,वैसे ही मातृभाषा पढ़ने से मन और
मस्तिष्क अधिक मजबूत बनते है। 7 अगस्त सन 1941 को रविन्द्रनाथ टैगोर ने अंतिम सांस
ली।
रविंद्रनाथ टैगोर जी के अंतिम शब्द-
"अपने भीतरी प्रकाश से ओत-प्रोत,
जब वह सत्य खोज लेता है।
कोई उसे वंचित नहीं कर सकता,वह उसे अपने साथ ले जाता है
अपने निधि-कोष में अपने अंतिम पुरस्कार के रूप
में"।।
अंतत: ऐसे महान संत विचारक,रचयिता रविन्द्रनाथ टैगोर के जन्म दिवस पर उन्हें शत-शत
नमन और आप सभी ईष्ट मित्रों को हार्दिक बधाई।।
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