संदीप कुमार मिश्र: सभी सियासी दलों की
अपनी गणित अपने दावे।किसी भी पार्टी का दावा जीत से कम नहीं। दावे पूर्ण बहुमत से प्रदेश
में सरकार बनाने के,दावे यूपी का विकास करने के।सत्तारुढ़ समाजवादी पार्टी के अपने
दावे तो वहीं कमल का फूल खिलाना बीजेपी का सपना, साथ ही हाथी पर सवार सुश्री
मायावती दौड़ने और सभी सियासी पार्टीयों को यूपी से दौड़ाकर भगाने को
आतुर।कांग्रेस के बारे में आप खुद ही निर्धारित करें।क्योंकि मेरा मुल्यांकन
कांग्रेस को लेकर कमजोर पड़ सकता है।
दरअसल जो सबसे पुख्ता दावा आम जनता को नजर आ रहा था वो है
बीजेपी और बीएसपी का।फिलहात बीएसी के दावों की हकीकत जानने के लिए उत्तर प्रदेश के
कई जिलों में हजारों लोगों से जानने के बाद जो निष्कर्ष निकला वो कुछ इस प्रकार से
है-
आपको याद होगा कि साल 2007 में ब्राह्मणों, मुसलमानों और दलितों का फैविकोल का मजबूत गठजोड़ बनाकर बसपा सुप्रीमो मायावती
ने इतिहास रचा था, और यूपी की सत्ता पर काबिज हुई थीं।आपको थोड़ा अतित में लेकर
चलें तो इसी प्रकार के गठजोड़ का नतीजा था कि आजादी के बाद से चार दशक तक कांग्रेस
यूपी की सत्ता पर काबिज रही।लेकिन साल 1992 में अयोध्या में हुए बाबरी मस्जिद
के विवादित ढांचे के विध्वंस के बाद कांग्रेस ने फिर कभी पलटकर यूपी की सत्ता हासिल
नहीं कर पाई।
वहीं बसपा ने यूपी में तकरीबन 14 साल के
सत्ता के गठबंधन का वनवास तोड़ते हुए साल 2007 में पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने
में सफल रही।जिसका परिणाम निकला कि मायावती की पहचान राष्ट्रीय स्तर पर होने
लगी।मायावती का कद देश की सियासत में बढ़ गया।लेकिन उसे कायम रखने में मायावती सफल
ना हो पाई और शनै: शनै: उनका ग्राफ गिरता
गया।यहां पर ये जानना भी जरुरी है कि सत्तामद में मायावती ये भूल गई थी कि जिस
दलित वोट को वो अपनी जागीर समझती हैं वो दूसरी तरफ भी जा सकता है।
हुआ भी कुछ ऐसा ही! 2007 पूर्ण बहुमत की सरकार
होने के बाद भी 2012 में हुए चुनाव में प्रदेश की जनता ने सत्ता से बसपा को उखाड़
फेका और सपा को सत्ता की चाभी सौंप दी।जिसको 2014 के आम चुनाव में मोदी लहर ने इस
प्रकार से उखाड़ फेका कि बसपा का एक भी सांसद लोकतंत्र के मंदिर संसद का दर्शन तक
नहीं कर पाया।ऐसी हार की उम्मीद ना तो सपने में भी मायावती ने किया था और ना ही ऐसी
जीत की उम्मीद बीजेपी को थी। खैर देश ने 2014 में इतिहास बनते और बिगड़ते देखा...।
अब एक बार फिर 2017 में देश के सबसे
बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में चुनाव होने हैं।सभी सियासी दल चुनावी अखाड़े में दो-दो
हाथ करने को तैयार है।मायावती के संबंध में अधिकांश लोगों का कहना है कि महिलाओं
में उनकी छवी एक सशक्त महिला की है, जबकि कुछ लोगों का कहना है कि माया राज में
कानून व्यवस्था अच्छी रहती है।लेकिन इन विचारों के उलट ऐसे भी लोग हैं जिनका कहना
है कि माया राज में अन्य जाति के लोगों पर अत्याचार होता है।कुछ लोगों का ये भी
कहना कि मायावती जब सत्ता में आएंगी तो अपनी मुर्तियां बनवाने,अफसरों के तबादले के
अलावा उनके पास कोई दूसरा काम नहीं है।
ऐसे में जब हमने जानने कि कोशिश की बसपा
समर्थक से तो समर्थकों का भी कहना था कि मोदी के विकास के नारे ने बहन जी का
रास्ता थोड़ा मुश्किल जरुर कर दिया है और 2014 की हार से तो बहुत बड़ा नुकसान हुआ ।नहीं
तो यूपी की सत्ता पर हाथी ही विराजमान होता ।
मायावती को सत्ता तक ना पहुंचने देने की
राह में एक सबसे बड़ा रोड़ा सीएम अखिलेश यादव भी हैं, जिनकी छवी उनके कुनबे से अलग
हटकर साफ और बेदाग है।जैसे-जैसे यूपी का संग्राम छिड़ने का वक्त नजदीक आ रहा
है,वैसे-वैसे अखिलेश की छवी और..और..बेहतर होती जा रही है। वहीं बीजेपी का दलित
प्रेम लगातार बढ़ता जा रहा है,जिसकी वजह से भी हाथी की चाल प्रदेश में धीमी पड़ती
जा रही है।
नोटबंदी देश में इस समय सबसे ज्वलंत
मुद्दा है,जिसकी जद् मे हर आम-ओ-खास है।आम आदमी परेशान है, लेकिन खुल कर कोई भी
केंद्र सरकार की आलोचना नहीं कर रहा है,क्योंकि आम जनमानस अपने दुख से कम दुखी और
नेताओं के कालेधन का सत्यानाश हो जाएगा,इस बात को लेकर ज्यादा खुश है।नोटबंदी ने
यूपी की सियासत में भी खुब भूचाल मचाया है,जिससे कि सभी पार्टियां हताश और परेशान
है,खासकर मायावती।क्योंकि लोगों का ऐसा मानना है कि मायावती के पास खुब कालाधन है।
यहां तक कि कई मायावती समर्थक भी मानते
हैं कि यूपी में मुकाबला त्रिकोणीय है। तीन लोकप्रिय नेताओं- मोदी, मायावती और अखिलेश में कांटे की टक्कर होगी यूपी में।
बहरहाल दिलचस्प लड़ाई देखने के लिए आप
भी तैयार रहें और हम भी।भविष्य में किसी गठबंधन से भी इनकार नही किया जा सकता।सत्ता
और सियासत के खेल में कुछ भी संभव है।हम सब जानते हैं कि देश की सियासत में यूपी का
क्या महत्व है और 2019 के लोकसभा चुनाव में यूपी की क्या अहमियत है। इसलिए कम से
कम मायावती अपने कोर वोट को इकट्टा करना जरुर चाहेंगी जो कि 2014 में उनसे दूर चला
गया था।
अंतत: मायावती के लिए भी
यूपी की सत्ता पर काबिज होना इतना आसान नजर नहीं आ रहा है,जितना कि नोटबंदी के
पहले था और आगे भी केंद्र सरकार की तमाम योजनाएं क्या रंग और गुल उत्तर प्रदेश में
खिलाती हैं ये देखने वाली बात होगी।और ऐसे भी मोदी जी कहते हैं कि कम से कम उनकी
राजनीति सुझबुझ पर किसी को शक नहीं करना चाहिए।इस बात को यूपी के लिहाज से देखें
तो और बल मिलता है, क्योंकि वो खुद सांसद यूपी से ही हैं।