संदीप कुमार मिश्र-विपक्षी मोर्चे की पहली बैठक पटना और दूसरी बैंगलुरु में हुई....गठबंधन का नाम दिया गया इंडिया....ऐसे में सवाल उठता है कि क्या महागठबंधन 2024 में बीजेपी नित एनडीए को मात दे पाएगा....क्या देश की आवाम ऐसे दलों के गठबंधन को स्विकार कर पाएगी....जिसमें हर दल की चाह प्रधानमंत्री की कुर्सी है...आखिर क्यों ये सवाल उठ रहे हैं...ये रिपोर्ट देखिए....
अब चलिए ये जानने का प्रयास करते हैं कि कि आखिर विपक्षी दलों की इस महाबैठक पर सवाल क्यों खड़े हो रहे हैं....
दरअसल इसकी शुरुआत नेतृत्व से होती है...प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी के साथ सीधे मुकाबले में विपक्ष को एकजुट होकर लड़ने के लिए एक चेहरे की जरूरत है....जो फिलहाल बैठक में नजर नहीं आता है....भारत जोड़ो यात्रा के बाद जाहिर तौर पर राहुल गांधी की छवि थोड़ी बेहतर हुई... लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही है....उनकी यात्रा कोई ठोस राजनीतिक संदेश देने में नाकाम रही है....ऐसे में देश की आवाम जब देखेगी कि नरेंद्र मोदी के मुकाबले कौन...? तो ऐसे में राहुल गांधी के नाम पर क्या विपक्ष भी मुहर लगा पाएगा....ये यक्ष प्रश्न जरुर विपक्षी दलों के सामने खड़ा होगा.....
दूसरा.... भले ही यह काल्पनिक बीजेपी विरोधी गठबंधन किसी को भी अपने नेता के रूप में पेश किए बिना लड़ने का फैसला कर ले....लेकिन उनके साझा एजेंडे में "मोदी हटाओ" के अलावा कोई ठोस एजेंडा नजर नहीं आता....विपक्ष के पास मोदी सरकार के खिलाफ कोई ऐसा एजेंडा नहीं है...जिसमें पुख्ता तौर पर वो कह सके कि "लोकतंत्र खतरे में है".... क्योंकि देश की जनता जनार्दन लोकतंत्र के महापर्व पर ये मूल्यांकन जरुर करेगी कि देश किसके हाथ में सुरक्षित है....चाहे बात आंतरिक सुरक्षा की हो या फिर बाह्य सुरक्षा की.....।
26 दलों की इस महाबैठक को एकजुट करने का काम नीतीश कुमार ने बखुबी किया... लेकिन क्या उनके माथे पर से पलटू चाचा का तमगा हट जाएगा....क्या उनके नाम पर विपक्ष एक मत हो पाएगा....क्योंकि ममता बनर्जी की अपनी महत्वाकांक्षांएं हैं...और उनके अपने राग है.....कमोवेश सभी विपक्षी दल...जिनका कुछ रसूख है.....वो अपने राज्य के प्रतिद्वंदी को भला कैसे प्रधानमंत्री पद के तौर पर देख सकता है.....पूर्वांचल में एक कहावत है खेलब न खेले देब...खेलवे बिगाड़ब.....कहने का भाव है कि मैं नहीं तो कोई और नहीं....ऐसे में कैसे उम्मीद की जाए कि महागठबंधन सफल हो पाएगा....खासकर तब जब राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले शरद पवार की पार्टी पहले ही दो फाड़ हो गई है....वहीं शिवसेना भी दो हिस्से में बंट चुकी है.....और कहा जा रहा है कि नीतीश बाबू के दल की भी हालत खस्ता ही है....
आपको बता दें कि 2014 से पहले...लोगों ने लगभग यह निष्कर्ष निकाल लिया था कि भारत में बहुदलीय लोकतंत्र ही रहेगा...जो कि विफल रहा....नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की प्रचंड़ जीत के बाद विपक्ष के तमाम दावे और आंकड़े धरे के धरे रह गए.... यानी अब लोग चाहते हैं कि देश में सशक्त सरकार हो....
एक और कारण जो विपक्षी मोर्चे पर सवाल खड़ा करते हैं वो है....एकजुट विपक्ष का विचार जो महज दिखावा लगता है....क्योंकि आंतरिक विरोधाभास साफ नजर आ रहा है....ममता बनर्जी से लेकर शरद पवार और केसीआर तक....ज्यादातर दल कांग्रेस से ही अलग हुए दल हैं....ऐसे में क्या राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस को बिग ब्रदर के रूप में ये दल स्वीकार कर पाएंगे....वहीं क्या कांग्रेस नए सहयोगियों को समायोजित करने के लिए अपने आंतरिक समीकरण बिगाड़ेगी....?
आपको बता दें कि वर्तमान में जिस तरह से बीजेपी जमीनी स्तर पर काम कर रही है.....जिस सोच....रणनीति....औऱ विचारधारा पर काम कर रही है....वहां कोई और दल पहुंचता हुआ नजर नहीं आ रहा है....सुनिए राजनीतिक विश्लेषक गुरमीत सिंह ने क्या कहा....
ये सच है कि एक साथ हाथ उठाने और प्रेस कांफ्रेंस करने भर से बीजेपी को हरा पाना फिलहाल तो संभव नजर आता....एक बात ये भी तय है कि विपक्ष के एक होते ही नरेंद्र मोदी के प्रहार विपक्ष पर और गहरे हो जाएंगे....जिसकी बानगी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देते रहते हैं....
बहरहाल एक बात तो तय है कि 2024 का राजनीतिक रण बड़ा ही दिलचस्प होगा....एक तरफ एनडीए होगी...जिसके पास नरेंद्र मोदी जैसा चेहरा होगा....और दूसरी तरफ एक ऐसे महागठबंधन....जिसके 2 दलों में दूसरी बैठक से पहले ही फूट पड़ चुकी है....और लोकसभा की बिगुल भेदी बजने से पहले और कितने टूटेंगे....कितने बिखरेंगे....ये किसी को नहीं मालूम..... अब देखना होगा कि देश की सम्मानित जनता किसे अपना मुस्तकबिल चुनती है...विपक्ष नित महागठबंधन को या फिर मोदी के नेतृत्व में देश में फिर एक बार बनती है मोदी सरकार....
-संदीप कुमार
मिश्र की कलम से.....