Friday, 28 February 2020

जब संयम रखते हुए उस लाचार मां ने अपने बेटे संयम को चौथी मंजिल से नीचे फेंका...!


दिल्ली दंगे का गुनहगार कौन...?
संदीप कुमार मिश्र- ये दर्द और खौफ कि इंतहा नही तो और क्या है...कि 10 साल के मासूम संयम का उसके इलाके में हुए विभत्स दृश्य को देखकर उसका भी संयम टूट गया...बड़े ही मासूमियत से संयम कहता है कि जिस शहर में सीएम,पीएम खुद रहते हैं वहां भी अगर हम सुरक्षित नहीं हैं तो फिर कहां सुरक्षित रहेंगे....

जब दंगाईयों और इंसानियत के दुश्मनो का हुजूम उसके घर की तरफ बढ़ा तब वो स्कूल से लौटा ही था और अपने छोटे भाई के साथ किसी भी अनहोनी से बेखबर खेल रहा था...तभी उसे अपने मोहल्ले में हंगामें का शोर सुनाई देता है....जब उसने बाहर का नजारा देखा तो इंसान रुपी राक्षसों का हुजूम सड़को पर उत्पात मचा रहा था...जिनकी आवाज पहले दूर से सुनाई दे रही थी वो धीरे-धीरे घर के बाहर ही दस्तक देने लगे...

देखते ही देखते दंगाईयों ने पत्थरों की बरसात कर दी...घरों की खिड़कियों के शीशे टूटने लगे...हर तरफ पत्थर ही पत्थर....धू-धू कर जलती गाड़ियों को देखकर मासूम संयम का संयम भी डोल गया....घर से सामने पागल भीड़ और पहली मंजिल पर जान बचाने की कशमकश में पूरा परिवार...
ना ना ये कोई फिल्म की कहानी नहीं ये हकिकत है दिल्ली की...जहां इंसानियत के दुश्मनो ने जमकर उत्पात मचाया...रक्तपात किया...और दिल्ली के माथे पर एक बदनुमा दाग लगा दिया...
कमरे में कैद संयम की दादी,मां,बाप और छोटा भाई कुछ समझ पाते तभी पीछे गली से कुछ लोग आवाज लगाने लगे कि बच्चों को नीचे फेंको...हम पकड़ लेंगे....वो किसी फरिश्ते से कम नहीं थे...वो लोग थे मोहल्ले के भले मानस...जो ये जानते थे कि घर के आगे का माहौल कैसा है, जहां हजारों की तादाद में दंगाईयों ने नरसंहार शुरु कर दिया है...आखिरकार दिल पर पत्थर रखकर उस मां ने अपने बच्चों को पहली मंजिल से नीचे फेंकना शुरु कर दिया...और नीचे खड़े उन फरिस्तों नें बच्चों और परिवार को बचाना शुरु कर दिया...

अब जब माहौल शांत हो गया तब भी संयम डरते हुए कहता है मुझे अभी भी बहुत डर लगता है कि कहीं फिर से वो लोग ना आ जाएं...

जरा कल्पना कीजिए कि अपनी आंखों के सामने वो मंजर देखना कैसा रहा होगा...जब गुंडो, दंगाईयों ने गाड़ियां ऐसे जला दी जैसे ये कोई सामान्य सी बात हो...दूर दूर तक पूलिस का कहीं अता पता नहीं....ऐसे में कोई सुरक्षा की गुहार लगाता भी तो किससे....

संयम की दादी कहती हैं कि भला हो निगम पार्षद प्रमोद गुप्ता का...जो गली के पीछे खड़े होकर जोर-जोर से आवाज लगाकर कहने लगे कि आंटी जी बच्चों को नीचे फेंको,हम पकड़ लेंगे...कुछ नहीं होगा...और आखिरकार जान बच गई....संयम के पिताजी कहते हैं कि पुलिस वालों से जब सुरक्षा की गुहार लगाई तो वो खुद ही अपनी लाचारी जताते हुए कहने लगे कि हम क्या करें भाई साब,हमें गोली चलाने के आर्डर नहीं है,हम तो खुद ही जान बचा रहे हैं...तभी वो डीएसपी की गाड़ी दिखाते हैं जो जलकर खाक हो गई थी....और कहते हैं कि बताइए ऐसे हालात में हम किससे अपनी जान की सलामती की गुहार लगाते....  

इस दंगे में उनका पूरा घर झुलस गया,गाड़ियां जला दी गई...जिस घर में पिछले 35 साल से ये परिवार रह रहा था...कभी सपने में भी नहीं सोचा होगा कि इस तरह से अपना घर छोड़कर भागना पड़ेगा....जब दंगा शांत हुआ तो संयम के मां बाप ने कहा कि अब घर चलते हैं...मां की बात सुनकर संयम ने कहा कि हमें नहीं जाना है...डर लगता है...बड़े समझाने के बाद संयम घर तो लौटता है लेकिन क्या उसके मन मस्तिष्क में से ये विभत्स मंजर इतनी आसानी से निकल पाएगा....!

कहते हैं समय हर घाव भर देता है....उम्मीद करनी चाहिए कि यमुना विहार में एक बार फिर रौनक लौटेगी और संयम ही नहीं यहां के सभी बच्चों के चेहरे पर मुस्कान लौट आएगी....

इस दंगे में किसको क्या मिला वो तो पता नहीं लेकिन जिसने खोया है अपने अपनो को...उनसे जाकर कोई पूछे तो उनका कहना यही होगा कि अब तो इंसानियत से भरोसा उठ गया है साब...!


Wednesday, 26 February 2020

बूरी नजरों के साये में दिल्ली और दिलवाले…!



धू-धू कर जलती गाड़ियां...धूंओं का उठता गुब्बार....हर तरफ हंगामें और शोर की आवाजें...पत्थरों से पटी सड़कें....अनगिनत घायलों के चीख और कराह से भरे पड़े अस्पताल....और मातम में बदलती अनगिनत परिवारों की खुशियां...घरों में कैद हो चुके लोग...और भी ना जाने ऐसे कितने वाक्या... जिसे जितना कम जाने उतनी ही दिल की गती सामान्य रहेगी....नहीं तो ना जाने कब जान से हाथ धो देना पड़े...कमजोर दिल के वो लोग...या फिर जिन्होने अमन पसंद इस शहर को देखा है वो तो इसे कतई ना देखें....और जो घरों में कैद हो गए हैं उनके बारे में तो यही कहेंगे कि हालात जब तक सामान्य ना हो तब तक उनका कैद रहना ही बेहतर है...ये भयावह नजारे किसी खाड़ी देश के नहीं है...ये देश की राजधानी दिल्ली है...जिसकी फिजाओं में फिलहाल अमन की पतंगो पर रोक लगा दी गई है क्योंकि गोलियों का शोर जो बढ़ गया है....अब तो दिलवालों की दिल्ली कहना बेमानी सा लगने लगा है...क्योंकि अब यहां खून ही खून का प्यासा बन बैठा है...

सियासत के हमारे शौकिनयहां आरोप प्रत्यारोप लगाने में व्यस्त हैं...शौकिन इसलिए क्योंकि सियासत में मुद्दों की कद्र होती है और मुद्दे केंद्रित होते हैं आवाम पर....लेकिन ना जाने क्यूं हम भटक गए... आखिर यही तो वो दिल्ली तब भी थी जब हमें ना तो पूजा से कोई आपत्ति थी और ना ही अजान से....ईद और दिवाली भी तो साथ साथ ही मिलकर मनाते थे....ना जाने ऐसा क्या हो गया कि हम एक दूसरे के ही खून के प्यासे बन बैठे....

शायद कुछ लोग भ्रम पाल बैठे हैं कि हिंसा ही समस्या का समाधान है....अफसोस कि वो समझ नहीं पा रहे हैं कि हिंसा तो पतन की ओर ले जाती है....और अहिंसा शांति का मार्ग बनाती है...इसलिए अफवाहों से बचें और इंसानियत को तवज्जों देकर अमन शांति कायम करने का प्रयास करें...
#SaveDelhi#StopViolance