Wednesday, 15 June 2016

निर्जला एकादशी:भगवान विष्णु की उपासना का महापर्व

संदीप कुमार मिश्र: "ॐ नमो वासुदेवाय"  भगवान विष्णु की उपासना,साधना का महापर्व निर्जला एकादशी।सनातन संस्कृति...धर्म परंम्परा..रीति-रिवाज,हिंदू धर्म की आत्मा है,पहचान है,जो हमे परम पिता परमात्मा की शक्ति का सदैव आभास कराते रहता है,जिससे कि हम सद् मार्ग पर निरंतर चलते रहे...।जैसा कि हम सब जानते हैं कि साल भर पड़ने वाली समस्त एकादशीयों में निर्जला एकादसी का महात्म्य सबसे ज्यादा है। वैसे तो प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती हैं। निर्जला एकादशी के दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए व्रत करने का विधान है जो हमारे हिन्दू सबसे पुण्यदायिनी माना गया है।

मित्रों निर्जला एकादशी को भीमसेनी एकादशी,पांडव एकादशी भी कहा जाता है...जिसके पीछे महाभारत से जुड़ी एक कहानी बेहद प्रचलित है। कहते हैं कि, जब ऋषि वेदव्यास अपने आश्रम में पांडवों को शिक्षा-दीक्षा दे रहे थे।उसी समय एक दिन मुनिवर एकादशी व्रत का संकल्प भ अपने शिष्यों से करवा रहे थे। सभी पांडव उनकी बातों को ध्यान से सुन रहे थे, लेकिन इन बातों में भीम का मन नहीं लग रहा था।अंतत: अपनी उदासी जताते हुए भीम ने ऋषिवर से कहा कि एक माह में दो एकादशी आती है और मेरे लिए दो दिन को कौन कहे एक वक्त भी बगैर भोजन किए नहीं चल सकता।एसे में गुरुदेव मैं तो इस महापुण्य से वंचित रह जाउंगा।
ऐसे में वेदव्यास जी ने कहा, कि साल भर में सिर्फ एक एकादशी है जो बाकी सभी एकादशी व्रत के समतुल्य है।जिसे हम ज्येष्ठ मास की निर्जला एकादशी कहते है।महाबली भीम को गुरुदेव के द्वारा सुझाया ये उपाय अच्छा लगा और इसलिए भी निर्जला एकादशी को पांडव एकादशी या भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं।
निर्जला एकादशी पूजा-विधान
निर्जला एकादशी के दिन बिना अन्न जल ग्रहण किये उपवास रहना होता है। यह व्रत अत्यंत कठिन तो है लेकिन हर प्रकार की या यूं कहें कि मनोवांछित फल देने वाला है।निर्जला एकादशी के दिन साधक को सर्वप्रथम प्रात: नित्य क्रिया से निवृत होकर,स्नान कर,साफ वस्त्र धारण करना चाहिए।तत्पश्चात भगवान विष्णु की मन से पूजा-अर्चना,साधना करनी चाहिए।जगत के पालनहार भगवान विष्णु को तुलसी दल अर्पित करना चाहिए।आपको बता दें कि  इस दिन तुलसीदल तोड़ना उचित नहीं माना जाता है अत: आप एक दिन पहले ही सूर्यास्त से पहले 108 तुलसी दल तोड़कर रख लें और एकादशी के दिन भगवान विष्णु को अर्पित करने चाहिए और व्रत करना चाहिए।अगले दिन नित्य कर्म से निवृत होकर साधक को भगवान विष्णु की आराधना करके शर्बत, मिश्री और खरबूजा, आम, पंखा, मिष्ठान्न आदि चीजों का दान गरीबों में करना चाहिए। निर्जला एकादशी के दिन गोदान का विशेष महत्त्व है। निर्जला एकादशी के दिन दान-पुण्य और गंगा स्नान का विशेष महत्त्व होता है।
व्रती को दान के बाद मुंह में सर्वप्रथम तुलसी दल लेना चाहिए और जल ग्रहण करना चाहिए ततपश्चात भोजन ग्रहण करना चाहिए। कहते हैं विधि-विधान के अनुसार जो भी साधक निर्जला एकादशी का व्रत करता है उसे साल भर के एकादशी जितना पुण्य मिल जाता है। यह महान व्रत अक्षय पुण्य देने वाला और सभी इच्छाओं की पूर्ति करने वाला है।
मित्रों निर्जला एकादशी के दिन श्वेत वस्त्र धारण करके भगवान् विष्णु का पूजन, अर्चन और स्तवन करना चाहिए।साथ ही नारायण का ध्यान करना चाहिये और दिन में विष्णु सहस्रनाम का 11 बार पाठ करना चाहिए।
अंतत: जगत के पालनहार भगवान विष्णु जगत का कल्याण करे,आपकी समस्त मनोकामनाओं को पूरा करें।निर्जला एकादशी का पवित्र व्रत का आपको पूर्ण लाभ मिले।हम तो यही कामना करते हैं।याद रखें दोस्तो ईश्वर चित्र में नहीं चरित्र में बसता है...इसलिए सुंदर चरित्र के साधना का व्रत है निर्जला एकादशी।                           
।ऊं नमो भगवते वासुदेवाय।

Tuesday, 14 June 2016

गंगा दशहरा महात्म्य

संदीप कुमार मिश्र: हमारे धर्म शास्त्रों मैं ऐसा कहा गया है कि गंगा दशहरा के दिन मानव जीवन में गंगा स्नान का विशेष फलदायी है। इसी विशेष दिन में पतित पावनी मां गंगा का स्वर्ग से धरती पर अवतरण हुआ था, इसलिए गंगा दशहरा को हमारे देश में महापुण्यकारी पर्व के रूप में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है।आज के पावन अवसर पर मोक्षदायिनी मां गंगा की विशेष पूजा अर्चना की जाती है।
दरअसल दोस्तों मां गंगा का पावनता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि गंगा के संपर्क में आते ही मनुष्य के जन्नों-जन्मो के पाप धुल जाते हैं, निष्कलंक हो जाते हैं। शास्त्रों में ऐसा गया है कि राजा सगर के मृत पुत्रों का उद्धार करने के लिए मां गंगा धरती पर अवतरित हुईं थीं और तब से अब तक सदियों से मोक्षदायिनी मां गंगा निरंतर मानव जीवन की नकारात्मकता को खत्म कर समस्त संसार में सकारात्मकता का संचार कर रही है।
इसमें कोई संदेश नहीं कि वो अद्भूत समय रहा होगा जव मां गंगा का अवतरण इस धरा धाम पर हुआ होगा।मां गंगा की पूजा के लिए यह विशेष तिथि है, ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दशमी।
आपके मन में एक सवाल अवश्य उठ रहा होगा कि क्या है गंगा दशहरा का महत्व।हमारे सनातन धर्म शास्त्रों में एसा वर्णित है कि-
मां गंगा पर्वत राज हिमालय और मैना की पुत्री हैं और भगवान विष्णु के अंगूठे से निकलती हैं।जिन्हें महर्षि भगीरथ ने घोर तपस्या के बाद  राजा सगर के पुत्रों के उद्धार के लिए धरती पर आने की विनती की थी।वहीं मान्यता ये भी है कि गंगा दशहरा के दिन ही गायत्री मंत्र का आविर्भाव हुआ था। इस दिन गंगा स्रोत का पाठ करना भक्तों के लिए विशेष फलदायी है।संभव हो तो तो  10 दीपक अवश्य जलाने चाहिए व 10 वस्तुओं का दान करना चाहिए।
ज्योतिषिय गणना के अनुसार इस साल गंगा दशहरा पर वही योग है, जो सतयुग में गंगा अवतरण के अवसर पर थे। ऐसे में इस बार गंगा दशहरा का महत्व बढ़ जाता है। वराह पुराण में ऐसा वर्णित है कि गंगा हस्त नक्षत्र में ज्येष्ठ शुक्ल दशमी तिथि को स्वर्ग से पृथ्वी पर उतरी थीं। 12 साल बाद इस बार फिर वही योग बना है।
गंगा दशहरा पर दान-पुण्य का महत्व
आज के पावन अवसर यानि गंगा दशहरा के दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व है।इस दिन दान स्वरुप सत्तू, मटका और हाथ का पंखा दान करने से दुगुना फल प्राप्त होता है। गंगा दशहरा के दिन किसी भी नदी में स्नान करके दान और तर्पण करने से मनुष्य जाने-अनजाने में किए गए कम से कम दस पापों से मुक्त हो जाता है। इन दस पापों के हरण होने से ही इस तिथि का नाम गंगा दशहरा पड़ा है।शास्त्रों में गंगा दशहरा महात्म्य के बारे में विशेष रुप से बताया गया है।
गंगा दशहरा पूजन विधि और व्रत  
मित्रों गंगा दशहरा का व्रत भगवान विष्णु को प्रसन्न करने के लिए किया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की विशेष रुप से साधक को पूजा-अर्चना करनी चाहिए। इस दिन लोग निराजल व्रत रखते हैं। एकादशी की कथा सुनते हैं और अगले दिन दान-पुण्य करते हैं।
अंतत: पतित पावनी मां गंगा...मोक्षदायिनी मां गंगा का अवतर इस धरा धाम पर जगत के कल्याण के लिए ही हुआ है।अत: हम सब की जिम्मेदारी है कि अविरंग गंगा,निर्मल गंगा को बनाये रखें।मां गंगा सब का कल्याण करें।जय मां गंगे।