Friday, 15 April 2016

पवन पुत्र हनुमान जी महाराज की जयंती पर विशेष

अतुलितबलधामं हेमशैलाभदेहं,
दनुजवनकृशानुं ज्ञानिनामग्रगण्यम्‌।
सकलगुणनिधानं वानराणामधीशं
रघुपतिप्रियभक्तं वातजातं नमामि॥3
भावार्थ:-अतुल बल के धाम, सोने के पर्वत (सुमेरु) के समान कान्तियुक्त शरीर वाले, दैत्य रूपी वन (को ध्वंस करने) के लिए अग्नि रूप, ज्ञानियों में अग्रगण्य, संपूर्ण गुणों के निधान, वानरों के स्वामी, श्री रघुनाथजी के प्रिय भक्त पवनपुत्र श्री हनुमान्‌जी को मैं प्रणाम करता हूँ॥3
संदीप कुमार मिश्र: मित्रों हनुमान जी महाराज कलियुग के एकमात्र ऐसे देवता है,जिनकी आराधना,स्मरण से जो भक्तों के सभी कष्ट पल भर में दूर हो जाते हैं। जरुरत है मनसा वाचा कर्मणा हनुमंत लाल जी महाराज की महिमा का गुणगान करने की। हमारे सांसारिक और पारलौकिक हर पीड़ा का निदान एक अद्भूत राम बाण सा है।मर्यादा पुरुषोतम श्रीराम के अतिप्रिय श्री हनुमान जी वास्तव में अलौकिक और स्नेह सुधा प्रदान करने वाले है।
साथियों भगवान शिव के आठ रूद्रावतारों में से एक हैं हनुमान जी महाराज। कहा जाता है कि नरक चतुर्दशी यानी कार्तिक कृष्ण चतुदर्शी के दिन हनुमान जी का जन्म हुआ था। प्रभु श्रीराम जी महाराज त्रेतायुग में धर्म की स्थापना करके पृथ्वी से अपने लोक बैकुण्ठ तो चले गये,लेकिन धर्म की रक्षा के लिए हनुमान जी महाराज को अमरत्व का वरदान दिया।जिस कारण महाबली हनुमान जी महाराज आज भी जीवित हैं, और अपने सच्चे साधकों को भवसागर से पार लगा रहे हैं।
गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज को भी हनुमंत लाल जी महाराज की कृपा से ही राम जी के दर्शन प्राप्त हुए। एक कथानुसार हनुमान जी ने तुलसीदास जी से कहा था कि राम और लक्ष्मण चित्रकूट नियमित आते रहते हैं। मैं वृक्ष पर तोता बनकर बैठा रहूंगा जब राम और लक्ष्मण आएंगे। मैं आपको संकेत दे दूंगा। अंजनी के लाल हनुमान जी के आदेशानुसार तुलसीदास जी चित्रकूट घाट पर बैठ गये और सभी आने जाने वालों को चंदन लगाने लगे। प्रभु श्रीरामजी और लखन लाल जी जब आये तो हनुमान जी गाने लगे 'चित्रकूट के घाट पै, भई संतन के भीर। तुलसीदास चंदन घिसै, तिलक देत रघुबीर।।' जब हनुमान जी महाराज के इस प्रकार के वचन तुलसीदास सुने तो स्नेह और भाव वश विह्वल होकर प्रभु श्रीराम और लखन लाल जी को निहारने लगे।'
हमारे वेद शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि इस कलिकाल में जहां कहीं भी श्रीराम कथा होती है वहां हनुमान जी अवश्य होते हैं। इसलिए हनुमान जी महाराज की कृपा प्राप्त करने के लिए सबसे सरल और सुलभ मार्ग है प्रभु श्री राम की भक्ति।
भगवान शिव के ग्यारहवें अवतार हनुमान जी रुद्रावतार हैं। माता अंजनी और वानर राज केसरी के लाला हनुमान जी महाराज की महिमा अनंत है और सर्वदा फलदायी है।चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को देश भर में हनुमान जयंती बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाई जाती है।जो कि इस वर्ष अप्रैल के महीने की 22 तारीख को मनाई जाएगी।
आईए जानते हैं कुछ ऐसे अचूक मंत्र,जिनका पाठ करने से अंजनी के लाल महावीर हनुमान जी महाराज की कृपा हम पर बरसने लगती है-
हनुमान जयंती पर पूजा विधान
हनुमान जयंती के पावन अवसर पर हमें सभी नित्य कर्मों से निवृत्त होकर सच्चे मन से हनुमान जी की पूजा-अर्चना करनी चाहिए। हनुमान जी की पूजा में ब्रह्मचर्य का साधक को विशेष ध्यान रखना चाहिए।

पवनपुत्र हनुमानजी महाराज का आवाहन करें
श्रीरामचरणाम्भोज-युगल-स्थिरमानसम् |
आवाहयामि वरदं हनुमन्तमभीष्टदम् ||

हनुमानजी जी महाराज को आसन दें
नवरत्नमयं दिव्यं चतुरस्त्रमनुत्तमम् |
सौवर्णमासनं तुभ्यं कल्पये कपिनायक ||

हनुमानजी महाराज को पाद्य अर्पित करें
सुवर्णकलशानीतं सुष्ठु वासितमादरात् |
पाद्योः पाद्यमनघं प्रतिफ़गृह्ण प्रसीद मे ||

अंजनी के लाल की पूजा में अर्घ्य समर्पण मंत्र
कुसुमा-क्षत-सम्मिश्रं गृह्यतां कपिपुन्गव |
दास्यामि ते अन्जनीपुत्र | स्वमर्घ्यं रत्नसंयुतम् ||

पंचामृत अर्पण मंत्र
मध्वाज्य - क्षीर - दधिभिः सगुडैर्मन्त्रसन्युतैः |
पन्चामृतैः पृथक् स्नानैः सिन्चामि त्वां कपीश्वर ||

हनुमान जी की पूजा करते समय मंत्रों के द्वारा पुष्पमाला अर्पित करें
नीलोत्पलैः कोकनदैः कह्लारैः कमलैरपि |
कुमुदैः पुण्डरीकैस्त्वां पूजयामि कपीश्वर ||

हनुमानजी महाराज को सिन्दूर अर्पित करने का मंत्र
दिव्यनागसमुद्भुतं सर्वमंगलारकम् |
तैलाभ्यंगयिष्यामि सिन्दूरं गृह्यतां प्रभो ||

हनुमानजी की पूजा में इस मंत्र को पढ़कर ऋतुफल अर्पित करें
फलं नानाविधं स्वादु पक्वं शुद्धं सुशोभितम् |
समर्पितं मया देव गृह्यतां कपिनायक ||

हनुमानजी की पूजा में इस मंत्र को पढ़ कर सुवर्णपुष्प अर्पित करें
वायुपुत्र ! नमस्तुभ्यं पुष्पं सौवर्णकं प्रियम् |
पूजयिष्यामि ते मूर्ध्नि नवरत्न - समुज्जलम् ||

डर या भूत आदि की समस्या दूर करने का मंत्र
ॐ दक्षिणमुखाय पच्चमुख हनुमते करालबदनाय
नारसिंहाय ॐ हां हीं हूं हौं हः सकलभीतप्रेतदमनाय स्वाहाः।

प्रनवउं पवनकुमार खल बन पावक ग्यानधन।
जासु हृदय आगार बसिंह राम सर चाप घर।।

शत्रुओं से मुक्ति पाने के लिए मंत्र
     ॐ पूर्वकपिमुखाय पच्चमुख हनुमते टं टं टं टं टं सकल शत्रु सहंरणाय स्वाहा।

रक्षा और लाभ प्राप्ती का मंत्र
अज्जनागर्भ सम्भूत कपीन्द्र सचिवोत्तम।
रामप्रिय नमस्तुभ्यं हनुमन् रक्ष सर्वदा।।

मुकदमे में विजय प्राप्ती का मंत्र
पवन तनय बल पवन समाना।
बुधि बिबेक बिग्यान निधाना।।

धन-सम्पत्ति प्राप्ति के लिए मंत्र
मर्कटेश महोत्साह सर्वशोक विनाशन ।
शत्रून संहर मां रक्षा श्रियं दापय मे प्रभो।।

किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए मंत्र
ॐ हनुमते नमः

सभी प्रकार के रोग और पीड़ा से मुक्ति हेतु मंत्र
हनुमान अंगद रन गाजे।
हांके सुनकृत रजनीचर भाजे।।

नासे रोग हरैं सब पीरा।
जो सुमिरै हनुमत बल बीरा।।

हनुमान जी को प्रसन्न करने हेतु मंत्र
सुमिरि पवन सुत पावन नामू।
अपने बस करि राखे रामू।।

हनुमानजी की पूजा के दौरान क्षमा-प्रार्थना मंत्र
मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं कपीश्वर |
यत्पूजितं मया देव! परिपूर्ण तदस्तु मे ||

Tuesday, 12 April 2016

महावीर जयंती महात्म्य

  

संदीप कुमार मिश्र:  जब जब मनुष्य अज्ञानता के भंवरजाल फंसता है,तब तब किसी महापुरुष का अवतार इस धराधाम पर होता है।ऐसे ही मानव समाज को अन्धकार से प्रकाश की ओर ले जाने वाले महापुरुष भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को हुआ था।
हमारे देश में वर्धमान महावीर का जन्मदिन महावीर जयंती के रुप मे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। वर्धमान महावीर जैन धर्म के प्रवर्तक भगवान श्री आदिनाथ की परंपरा में चौबीसवें तीर्थंकर हुए थे। वर्धमान महावीर का जन्म एक क्षत्रिय राजकुमार के रूप में एक राज परिवार में हुआ था।इनके पिता का नाम राजा सिद्धार्थ और माता का नाम प्रियकारिणी देवी था। इनका जन्म बिहार के वैशाली राज्य में हुआ था।
कहते हैं तीस वर्ष की उम्र में महावीर स्वामी ने घर-बार छोड़ दिया और कठोर तपस्या द्वारा कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया।महावीर स्वामी जी ने श्रद्धा एवं विश्वास द्वारा जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा स्थापित की तथा आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का श्रेय महावीर स्वामी जी को जाता है।
संपूर्ण संसार को ज्ञान का संदेश देने वाले भगवान महावीर जी ने अपने कार्यों से अपने जीवनकाल में सभी का कल्याण करते रहे।जैन श्रद्धालु इस पावन दिवस को महावीर जयंती के रूप में परंपरागत तरीके से बड़े ही हर्षोल्लास और श्रद्धाभक्ति से मनाते हैं।जैन मतावलंबियों का मानना है कि वर्धमान जी ने घोर तपस्या द्वारा अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी, जिस कारण वह विजेता और उनको महावीर कहा गया और उनके अनुयायी संसार में जैन कहलाए।
देशभर में तप से जीवन पर विजय प्राप्त करने का पर्व महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है। श्रद्धालु मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष स्नान कराते हैं, जो कि अभिषेक कहलाता है।वहीं भगवान की मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बिठा कर उत्साह और हर्षोउल्लास पूर्वक जुलूस निकाले जाते हैं। जिसमें बड़ी संख्या में जैन धर्मावलम्बी शामिल होते हैं।
चौबीस ‍तीर्थंकरों के अंतिम तीर्थंकर महावीर के जन्मदिवस प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है। जैन समाज द्वारा दिन भर अनेक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है महावीर का जन्मोत्सव संपूर्ण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है।आपको बता दें कि वर्धमान महावीर जी को 42 वर्ष की अवस्था में जूभिका नामक गांव में ऋजूकूला नदी के किनारे घोर त्पस्या करते हुए जब अनेकों वर्ष बीत गए तब उन्हें मनोहर वन में साल वृक्ष के नीचे वैशाख शुक्ल दशमी की पावन तिथि के दिन कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। जिसके पश्चात वह महावीर स्वामी बने।और देश भर में भ्रमण करके लोगों में फैली कुरूतियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने का निरंतर प्रयास किया साथ ही धर्म की वास्तविकता को स्थापित कर सत्य एवं अहिंसा का समाज में संदेश दिया।
इस वर्ष महावीर जयंती 19 अप्रैल 2016, को देशभर में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाएगी।आप सभी स्नेहीजनो को महावीर जयंती की हार्दिक शुभकामनाएं न बधाई।  

चैत्र रामनवमी महात्म्य


नौमी तिथि मधुमास पुनीता, सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता |
मध्य दिवस अति सीत न धामा , पावन काल लोक विश्रामा ||
संदीप कुमार मिश्र: पवित्र चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को जगत के उद्धार के प्रभु मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम का अवतार इस धराधाम पर हुआ।भगवान राम के  जन्मदिन के सुअवसर पर ही चैत्र शुक्ल मास के नवमी तिथि को रामनवमी का विशेष पर्व देस भर में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। 

हमारा देश भारतवर्ष पर्वों,त्होहारों का देश है, चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को रामनवमी का त्यौहार देशभर में नवमी रुप में मनाया जाता है।रामनवमी के दिन ही चैत्र नवरात्र की समाप्ति भी हो जाती है। हिंदु धर्म शास्त्रों के अनुसार इस शुभ तिथि को आस्थावान लोग रामनवमी के रुप में मनाते हैं।यह पर्व भारत में श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।नवमी के पावन अवसर पर लोग पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य के भागीदार होते है।

चैत रामनवमी के सुअवसर पर हमें पूजन शुद्ध और सात्विक रुप से करना चाहिए।हमें इस दिन प्रात:काल नित्यकर्म,स्नान से निवृत होकर भगवान राम का स्मरण करते हुए व्रत एवं उपवास का पालन करना चाहिए।देशभर में साधकों का मंदिरों में तांता लगा रहता है।भगवान राम का संपूर्ण जीवन ही लोक कल्याण को समर्पित रहा है।आज के दिन राम जी कथा कहने और सुनने से भी मनुष्य भवसागर से पार हो जाता है। जे सकाम नर सुनहीं जे गावही,सुख संपत्ती नाना विधि पावहिं।

श्रीराम चन्द्र जी महाराज का जन्म चैत्र शुक्ल की नवमी तिथि के दिन ही चक्रवर्ती नरेश राजा दशरथ जी महाराज के घर में हुआ था।जिसके बाद संपुर्ण वातावरण राममय हो गया था।रोगशोक का नाश हो गया था,संपूर्ण सृष्टि आनंदित  उठी थी। 
चहुंओर वातावरण में आनंद छा गया था,प्रकृति भी मानो प्रभु श्री राम का स्वागत करने मे ललायित हो रही थी।रधुकुल नंदन मर्यादापुरुषोत्तम भगवान श्रीराम ने इस धराधाम से राक्षसो का संहार कर रामराज्य की स्थापना की थी।

रामनवमी के त्यौहार का महत्व हिंदु धर्म सभ्यता में विशेष महत्व रखता है। इस पर्व के साथ ही मां दुर्गा के नवरात्रों का समापन भी होता है।पौराणीक मान्यता है कि भगवान श्रीराम जी ने भी शक्ति की उपासना की थी और उनके द्वारा कि गई शक्ति पूजा से ही धर्म युद्ध में विजय की प्राप्ति की थी। इस प्रकार इन नवरात्र और नवमी का महत्व और भी अधिक बढ जाता है। कहा जाता है कि इसी दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ भी किया था। रामनवमी का व्रत मनुष्य के समस्त पापों का क्षय करने वाला और शुभ फल प्रदान करने वाला है।


Thursday, 7 April 2016

शक्ति की उपासना का पावन पर्व चैत नवरात्र

संदीप कुमार मिश्र: नवरात्र पर्व है शक्ति की उपासना का...अपनी आंतरीक शक्तियों को सिद्ध करने का।जगत जननी मां जगदम्बा की कृपा हम पर बनी रहे जिससे हर प्रकार के संकटों, रोगों, दुश्मनों, प्राकृतिक आपदाओं से सुरक्षित रह सकें। हमारे शारीरिक तेज में वृद्धि हो। मन निर्मल और शांत हो व आत्मिक, दैविक, भौतिक शक्तियों का हमें लाभ मिल सके।
दरअसल चैत्र नवरात्र मां भगवती जगत जननी जगदम्बा को आह्वान कर दुष्टात्माओं का नाश करने के लिए जगाया जाता है।सनातन धर्म में नर-नारी जो हिन्दू धर्म की आस्था से जुड़े हैं वे किसी न किसी रूप में कहीं न कहीं शक्ति की उपासना अवश्य करते हैं। फिर चाहे व्रत रखें, मंत्र जाप करें, अनुष्ठान करें या अपनी-अपनी श्रद्धा-‍भक्ति अनुसार कर्म करते रहें। ऐसे तो मां के दरबार में दोनों ही- चैत्र व अश्विन मास में पड़ने वाले शारदीय नवरात्र की धूमधाम रहती है।
चैत्र नवरात्र में सभी घरों में देवी प्रतिमा-घट स्थापना करते हैं। इसी दिन से नववर्ष की बेला शुरू होती है। महाराष्ट्र में इस दिन को गुड़ी पड़वा के रूप में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। घर-घर में उत्साह का माहौल रहता है। चैत नवरात्र में श्रद्धालू शक्तिपीठों में जाकर अपनी-अपनी सिद्धियों को बल देते हैं। अनुष्ठान, हवन पूजा पाठ करते हैं।   
आइए जानें देवी के नवरूप की महत्ता के बारे में-


1.माता शैलपुत्री
मां दुर्गा अपने पहले स्वरूप में शैलपुत्री के नाम से जानी जाती हैं। पर्वतराज हिमालय के यहां पुत्री के रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा।देवी शैलपुत्री अपने पूर्व जन्म में प्रजापति दक्ष की कन्या के रूप में उत्पन्न हुर्इ थीं । उस जन्म में वह पति शिव को पिता के यज्ञ में आमंत्रित न किये जाने तथा उनके प्रति तिरस्कार देखकर क्रोध से योगाग्नि द्वारा उन्होंने अपने प्राणों को आहुती कर दिया। परन्तु अगले जन्म में शैलपुत्री के रूप में पुन भगवान शंकर की अर्द्धागिनी बनीं। शैलपुत्री को माता पार्वती का रूप भी माना जाता है। नवरात्री पूजन में प्रथम दिन इन्हीं की पूजा और उपासना की जाती है। इन के दर्शन हेतु सुबह से हज़ारों महिलाओं एवं पुरुषों की भिड़ माता के मंदिरों पर लग जाती है। देवी का दिव्य रूप माँगलिक सौभाग्यवर्धक आरोग्य प्रदान करने वाला एवं कल्याणकारी है। इनके पूजन अर्चन से भय का नाश एवं किर्ति,धन, विद्या,यश,आदि की प्राप्ति होती है।ये मोक्ष प्रदान करनेवाली देवी हैं।



2.माता ब्रह्मचारिणी
माँ दुर्गा की नौ शक्तियों का दूसरा स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी अर्थात् तप का चारिणी या तप का आचरण करने वाली है। देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण ज्योर्तिमय एवं अत्यन्त भव्य है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमण्डल सुशोभित है। ब्रह्मचारिणी देवी का हिमांचलसुता के रूप में भगवान शिव को पाने के प्रयास में ही माता का स्वरुप ब्रह्मचारिणी हो गया था। मां का यह स्वरूप भक्तों को असिमित व अनंत फल देने वाला है। ब्रह्मचारिणी माता के स्वरूप के आराधक को सहज ही त्याग, वैराग्य एवं सदाचार का अनुग्रह प्राप्त हो जाता है।

3. माता चंद्रघंटा
मां दुर्गा की तीसरी शक्ति का नाम चंद्रघंटा है। नवरात्री पर्व पर माता दुर्गा की उपासना में तीसरे दिन की पूजा का अत्यधिक महत्व है। इस दिन साधक का मन मणिपुर चक्र में प्रविष्ट होता है। मां चंद्रघंटा की कृपा से साधक के समस्त पाप और बाधाएं विनष्ट हो जाते है।मां के मस्तक पर घंटे के आकार का अर्द्धचंद्र सुशोभित है। इसी कारण इन्हें चंद्रघंटा देवी कहा जाता है। इनकी आभा स्वर्ण के समान है,और माता के दस भुजाओं में क्रमश: खड़ग, त्रिशुल, तोमर, भिण्डीपात्र(भिण्डीपाल), धनुष-वाण आदि अस्त्र-शस्त्र विभुषित रहते हैं। माता चंद्रधंटा की आराधना से साधक भवसागर से पार हो जाता है।
                                                       
                                                                   4. माता कुष्मांडा
मां दुर्गा के चौथे स्वरूप का नाम कुष्मांडा है। देवी ने अपने मंद हास्य द्वारा ब्रह्माण्ड की उत्पति की थी। जिस कारण इनका नाम कुष्माण्डा पड़ा। अष्ट भुजाओं वाली कुष्मांडा का निवास सुर्य के भितरी लोक में रहता है। फलत: दशों दिशांए इन्हीं की तेज़ से प्रकाशित है। नवरात्र पूजन के चौथे दिन सिंह पर सवार देवी कुष्मांडा के स्वरूप की ही उपासना की जाती है। शक्ति की आराधना के चौथे दिन साधक का मन अनाहक चक्र में होता है। इसलिए उपासक को अत्यन्त पवित्र एवं उज्जवल मन से देवी के स्वरूप में ध्यान रखकर पूजा-उपासना करनी चाहिए, क्योंकि मां कुष्मांण्डा अत्यल्प सेवा और भक्ति से अपने भक्तों पर प्रसन्न होती हैं। मां की उपासना भवसागर से पार उतारने के लिए सर्वाधिक सुगम और श्रेयष्कर मार्ग है।


5.स्कंदमाता
मां दुर्गा के पांचवे स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जाना जाता है। माता पार्वती ही सृष्टि की प्रथम प्रसूता कही गर्इ है। इसलिए स्कंद अर्थात् कार्तिक की माता होने से ही माता पार्वती जगत में स्कंदमाता के रूप में विख्यात हैं। स्कंदमाता की उपासना नवरात्रि पूजन के पांचवें दिन की जाती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होता है। माता के विग्रह में भगवान स्कंद बाल रूप में इनकी गोद में विराजमान रहते हैं। चतुर्भुजी मां  का स्वरूप पूर्णतया शुभ है। मां स्कंदमाता की उपासना से उपासक की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। सुर्यमंडल के अधिष्ठात्री देवी होने के कारण इनका उपासक अलौकिक तेज एवं कांति से संपन्न हो जाता है। यह प्रभा मंडल प्रतिक्षण उनके योगक्षेम का निर्वहन करता रहता है।

6.माता कात्यायनी
माता कात्यायनी का यह स्वरूप दिव्य एवं मांगलिक है। माता का यह स्वरूप शौम्यशील एवं मर्यादा का संदेश देते हुए ये बताता है कि शक्ति प्रतिक में होती है। आवश्यकता है उसे अनुभव करने की।माता के नाम के बारे में कर्इ कथाएं प्रचलित हैं। ऐसा कहा जाता है कि महर्षी कात्यायन की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं ऋषिवर की पुत्री बनी और उनके गोत्र का मान बढ़ाया, माता को यह गोत्र इतना भाया कि वह जगत में कात्यायनी के नाम से ही विख्यात हुर्इ।
मां कात्यायनी का यह स्वरूप अमोघ फलदायी है। आदिकाल में जब पृथ्वी पर महिषासुर के अत्याचार से चारों दिशाओं में हाहाकार मचा था, तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अपने-अपने तेज का अंश देकर देवी का प्रादुर्भाव दैत्यों का वध करने के लिए किया। महिषासुर का अन्त करने के कारण देवी को महिशासुर मर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है। इनका स्वरूप स्वर्ण के समान चमकिला उभास्वर है। मां  कात्यायनी का वाहन सिंह है। इनकी चार भुजाएं दाहिने तरफ का ऊपर वाला हाथ अभय मुद्रा में तथा नीचे वाला हाथ वर मुद्रा में है। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल पुष्प सुषोभित है, लेकिन महिषासुर का वध करते समय इनकी दश भुजाएं हो गर्इ थीं। दुर्गापूजा के छठवें दिन देवी कात्यायनी के स्वरूप की उपासना की जाती है। इस दिन साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होता है। मां के उपासक को सरलता से धर्म, मोक्ष, काम, अर्थ की प्राप्ति हो जाती है, तथा साधक इस लोक में रहकर भी अलौकिक तेज व प्रभाव से युक्त हो जाता है। उसके, रोग, शोक, संताप और भय आदि सर्वदा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मान्तर के पापों को विनष्ट करने के लिए मां की उपासना से अधिक सरल एवं सुगम मार्ग कोर्इ नहीं है।
ऐसी मान्यता है कि नवरात्री में देवी महिषासुर मर्दिनी ससुराल से मायके आतीं हैं, अर्थात् वह देवलोक से पृथ्वी पर अवतरित होकर प्रतिमा में विराजमान होती हैं। अत: देवी के शुभागमन के पावन दिवस पर सप्तमी, अष्टमी एवं नवमीं को विशेष हर्षोल्लास का वातावरण रहता है तथा पंडाल आदि की सजावट की जाती है। मां आदिशक्ति ने महिषासुर का वध कर हमें उनके अत्याचारों से  मुक्ति दिलवायी थी। अत: महिषासुर मर्दिनी माता की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। इस प्रकार देवी अपने घर में सप्तमी, अष्टमी और नवमीं तक रहकर अपने भक्तों को तृप्त करती हैं।


7.माता कालरात्रि
मां दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि के नाम से जानी जाती हैं। इनके शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला है। सिर के बाल बिखरे हुए तथा गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है। इनके तीन नेत्र हैं, जो ब्रह्माण्ड के सदृष्य गोल हैं। इनकी नासिका से श्वांस पर सांस से अग्नि की भयंकर ज्वालाएं निकलती रहती हैं। इनकी चार भुजाएं हैं। मात अपने ऊपर वाले दाहिने हाथ से भक्तों को वर और नीचे वाले हाथ से अभय प्रदान करती हैं। बायीं तरफ के ऊपर वाले हाथ में खड़ग अर्थात् कटार है तथा यह सदैव गर्दव अर्थात् गधे पर सवार रहती हैं। मां कालरात्रि का स्वरूप देखने में अत्यनत भयानक है, लेकिन ये सदैव शुभ फल देने वाली हैं। अत: इन्हें शुभंकरी भी कहा जाता है।दानवों से युद्ध के समय देवी ने भगवान शिव को दूत का कार्य सौंपा था। दुर्गापूजा के सातवें दिन कालरात्रि की उपासना का विधान है। इस दिन साधक का मन शास्तरा चक्र में अवस्थित रहता है तथा साधक के लिए समस्त दीयों के द्वार खुलने लगते हैं। मां  कालरात्रि दुष्टों का विनाश करने वाली हैं। दानव, दैत्य, राक्षस, भुत-प्रेत आदि इनकी स्मरण मात्र से ही भयभीत होकर भाग जाते हैं। इनकी उपासक को अग्नि, जल, जन्तु, शत्रु, रात्रि आदि किसी से भय नहीं लगता। इनकी कृपा से भक्त सर्वदा भयमुक्त हो जाते हैं। मां कालरात्रि के स्वरूप को अपने हृदय में अवस्थित करके एकनिष्ठ भाव से इनकी उपासना करनी चाहिए जिससे सदैव शुभ फल प्राप्त होता रहे।



8. माता महागौरी
दुर्गा पूजा के अष्टमी तिथि को मां दुर्गा की अठवीं शक्ति देवी महागौरी की पूजन का विधान है। शास्त्रों में विदित है कि माता पार्वती ने शिवजी को पति रूप में पाने हेतु अत्यन्त कठोर तपस्या की थी, जिससे उनका रंग एकदम काला पड़ गया था। उनकी इस तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उनके ऊपर गंगाजल का छिड़काव किया जिससे माता का रंग विद्युत प्रभा के समान अत्यन्त कांतिमान गौर हो उठा। तभी से इनका नाम महागौरी पड़ा। वेत वर्णा देवी महागौरी के समस्त वस्त्र एवं आभुषण वेत रंग के हैं।इनकी चार भुजाएं हैं। इनके ऊपर का दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशुल है। ऊपर वाले बायें हाथ में डमरू और नीचे का बायां हाथ वर मुद्रा में है। माता का वाहन वृषभ है। अत्यन्त शांत रहने वाली माता महागौरी की उपासना से भक्तों के सभी पाप संताप दैन्य तथा दु:ख स्वयं नष्ट हो जाते हैं। वह सभी प्रकार से अक्षर पुण्यों का अधिकारी हो जाता है।

9.माता सिद्धिदात्रि
मां भगवती का नौवा स्वरूप सिद्धिदात्रि देवी के नाम से जाना जाता है। भगवान शंकर द्वारा प्रदत्त सभी सिद्धियां इनमें निहित है। मार्कण्डेय पुराण के अनुसार अणिमा, महिमा, गरिमा, लहिमा, प्राप्ति, प्राकाम्या, इषक, वशित्र आठ मूख्य सिद्धियां हैं। देवी पुराण के अनुसार भगवान शंकर का अर्द्धनारीष्वर स्वरूप देवी सिद्धिदात्रि का ही है।
देवी का दिव्य मांगलिक स्वरूप अत्यन्त मनोहारी है।इनकी चार भुजाएं हैं। जिनमें क्रमश: चक्र,शंख, गदा तथा कमल पुष्प सुशोभित हैं। एक संग्राम में देवी ने दुर्गम नामक दैत्य का वध किया था। इसी कारण ये मां दुर्गा के नाम से भी विख्यात हैं। मंत्र-तंत्र-यंत्र की अधिष्ठात्री देवी सिद्धिदात्री की उपासना से साधक को समस्त सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। माता अपने भक्तों के संपूर्ण मनोरथ को पूर्ण करती हैं। मां भगवती के परम पद को पाने के उपरान्त अन्य किसी भी वस्तु को पाने की लालसा नहीं रह जाती है।


अंतत: माता शेरावाली आप सभी की मनोकामनाओं को पुर्ण करें,और जीवन पथ पर आप निरंतर आगे बढ़ते रहे।हम तो यही कामना करते हैं।चैत नवरात्र की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं व बधाई।।जय माता दी।।

Tuesday, 5 April 2016

पीएम मोदी की सउदी अरब यात्रा के क्या हैं मायने..?

संदीप कुमार मिश्र: जब भी हमारे देश के प्रधानमंत्री विदेशी सरजमी पर कदम रखते हैं तो मायने जरुर निकाले जाने लगते हैं।मायने निकालना भी चाहिए,क्योंकि सवाल देश की साख का है।जिसे आगे बढ़ाना मुखिया यानी पीएम की जिम्मेदारी है।तीन देशों की यात्रा (ब्रसेल्स,अमेरिका,सउदी अरब) पर जब इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गए तो चर्चाओं का बाजार भी गर्म हो गया,खासकर सउदी अरब की यात्रा को लेकर।क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में भारत और सउदी अरब के रिश्ते बेहद अहम होते गए हैं।
दरअसल इस समय विश्व समुदाय में आतंकवाद एक बड़ी भयंकर समस्या बनती जा रही है।और आतंकवाद के खिलाफ भारत की मुहिम में सउदी अरब कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सउदी अरब का दौरा न सिर्फ वहां से आने वाले 20 फीसदी क्रूड तेल, हज, उमराह और वहां बड़ी संख्या में काम कर रहे भारतीयों के कारण अहम है।साथ ही आतंक के जन्नत पाकिस्तान को घेरने के लिए भी सकारात्म और जरुरी कदम है।
आपको बता दें कि अबू हमजा उर्फ अबू जुंदाल आतंक का वह नाम है जिसके प्रत्यर्पण से भारत और सउदी अरब के रिश्तों की अहमियत सबके सामने आई। भारतीय सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि 26/11 के मुंबई हमलों का आरोपी, आतंकवादियों का हैंडलर माना जाने वाला यह शख्स लश्कर--तैय्यबा के लिए पैसे जमा करने के लिए तीन साल तक सउदी अरब में था। सउदी अरब से ही जुंदाल को ट्रैक किया गया और जून 2012 में उसका प्रत्यर्पण हुआ।
वहीं दिल्ली और बेंगलुरु में हुए हमलों के मामलों में भी तलाशे जा रहे इंडियन मुजाहिदीन के फाउंडिंग मेंबर फसीह मुहम्मद को सउदी अरब ने अक्टूबर 2012 में डिपोर्ट किया और दिल्ली एयरपोर्ट पर उसकी गिरफ्तारी हुई।साथ ही एक और आतंकी अबू सूफिया को दिसंबर 2015 में सउदी अरब ने भारत को सौंपा। दस साल से सुरक्षा एजेंसियों और पुलिस को चकमा दे रहे हैदराबाद के मोहम्मद अब्दुल अज़ीज को भी सउदी अरब ने इसी साल फरवरी में भारत को सौंपा।इन वाक्यों से भारत और सउदी अरब की नजदीकी का अंदाजा आप लगा सकते हैं।
समय और आतंकवाद की मार ने दरअसल पिछले करीब 6 साल पहले भारत और सउदी अरब को काफी करीब ला दिया।जिसे पीएम मोदी ने और बल प्रदान किया। एक समय था जब सउदी अरब हमेशा पाकिस्तान के साथ ही कदमताल करता नजर आता था, लेकिन किंग अब्दुल्लाह के 2006 के भारत दौरे और पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के 2010 के रियाद दौरे में समझौते के बाद स्थिति तेजी से बदलने लगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का सउदी अरब का दौरा न सिर्फ वहां से आने वाले 20 फीसदी क्रूड तेल, हज, उमराह और वहां बड़ी संख्या में काम कर रहे भारतीयों के कारण अहम है,बल्कि एक तरह से पाकिस्तान को घेरने के लिए भी बेहद जरूरी है। भारत हर तरफ से पाकिस्तान पर दबाव बनाने की कोशिश कर रहा है- संयुक्त राष्ट्र में, यूरोपियन यूनियन में, सार्क में और इस कड़ी में सउदी अरब भी आता है।भारत और सउदी अरब के रिश्तों की गरमाहट का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि इस बार जब पीएम मोदी यात्रा पर गए तो भारत माता की जय के नारे भी वहां बखुबी लगे।
 अंतत: ऐसा भी नहीं है कि सउदी अरब पाकिस्तान से पूर्णत: किनारा कर लेगा।लेकिन यह भी सच है कि अपने ऊपर आतंक को लेकर लगते आरोपों के बीच रियाद ने कुछ देशों का संघ बनाकर आतंक से निबटने की शुरुआत की है और धारण बदलने की थोड़ी बहुत कोशिश भी। इस लिहाज से भारत के लिए जरूरी है कि वह जिस हद तक हो सके अपने रिश्ते मजबूत करे।आतंक को जड़ से खत्म करने के लिए अन्य मित्र देशों का सहयोग प्राप्त करे।कहना गलत नहीं होगा कि पीएम मोदी के सकारात्म पहल से आशा और उम्मीद तो बढ़ ही जाती है।