संदीप कुमार मिश्र: मनुष्य की इच्छाएं असीमित और अनंत हैं,जिन्हें पाने की अभिलाषा आज की भागदौड़ भरी जींदगी में हर किसी को है।क्योंकि सपनों को पूरा करने की चाह में एक के बाद एक उपलब्धियों को हासिल करना हमारी जरुरत बन गयी है।वास्तव में ऐसा होना भी चाहिए,तभी हम मंजिल हासिल कर सकते हैं,कुछ पा सकते हैं ।
अक्सर देखा जाता है कि हम अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए निरंतर दौड़ते रहते हैं, भागते रहते हैं,यहां तक कि हमें अपनी और अपनों का भी ख्याल नहीं रख पाते ।जिस वजह से हमें मंजिल तो मिल जाती है,कामयाबी को तो हम पा लेते हैं,अपने ख्वाबों को पंख लगाकर उड़ लेते हैं, लेकिन अपने अक्सर हमसे पीछे छुटते जाते हैं ।
याद रखें-, “पल भर की खुशी से बड़ी है हर पल की खुशी ”
बडे सरल भाव में आप समझ सकते हैं कि इस नश्वर संसार में हम क्षण भर की खुशियों को पाने के लिए हर क्षण की खुशियों को गंवा नहीं सकते।बहुत कुछ हासिल कर लेने से सब कुछ नहीं पाया जा सकता।बहुमुल्य जीवन जिसे ईश्वर ने हमें प्रदान किया है उसकी सार्थकता तभी है जब कामयाबी को हम अपनों के साथ बांट सके,अपनों के साथ आगे बढ़ सके ।
हमें इस बात पर विचार करना होगा कि हम जिस खुशी के लिए लगातार भाग रहे हैं वो किसके लिए है? अगर वो परिवार के लिए है तो क्या हम उन खुशियों को परिवार के साथ बांट रहे हैं या फिर निरंतर एक के बाद एक उस खुशी के लिए दौड़ते जा रहे हैं जिसे हम किसी भी सुरत में पाना चाहते हैं।क्योंकि जब हम कामयाबी की पहली सीढ़ी चढ़ते हैं हमें खुशी मिल जाती है लेकिन सामने जब दूसरी सीढ़ी नजर आती है तो पहली कामयाबी फीकी लगने लगती है।कहने का तात्पर्य है कि क्षण भर की खुशी तो हमें हर कदम पर मिलती रहती है लेकिन उस क्षण भर की खुशी की चाह में हम हर क्षण की खुशी को गंवाते जाते हैं ।
वास्तव में जिस गति से हमें शिखर पर पहुंचने की बेचैनी होती है उसी गति से हमारे अपने भी हमसे दूर होने लगते हैं,क्योंकि हमारे पास समय नहीं होता है अपनो के लिए।हम ये भूल जाते हैं कि सभी खुशियां अपनो के लिए है तो क्या हम आपाधापी भरी जींदगी में उन खुशियों को अपनो के साथ बांट पा रहे हैं। जीवन में उद्धेश्य होना अच्छी बात है,लेकिन जरुरत है इस बात पर ध्यान रखने की कि इच्छाओं पर नियंत्रण करके ही हम सुख के वास्तविक आनंद को पा सकते है।क्योंकि हमारी आकांक्षाएं-कामनाएं वह दीमक हैं, जो सुखी और शांतिपूर्ण जीवन को खुशियों से दूर कर देती हैं ।
आज हमारे समाज में भौतिक वस्तुओं को पाने की होड़-सी लगी हुई है। अफसोस इस बात का है कि इस अंधी दौड़ में मनुष्य इस कदर भागता जा रहा है कि जीवन में न कहीं पूर्ण विराम रह गया है और ना ही अर्ध-विराम। जिसका परिणाम है कि आज हम तनावपूर्ण जीवन जी रहे हैं ।
खुशियों को बटोरने की चाह में हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि असीमित आकांक्षाएं हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, जिनका अंत तो कभी हो ही नहीं सकता। एक कदम आगे बढ़े नहीं कि दूसरा कदम बढ़ाने की जिज्ञासा मन में उत्पन्न हो जाती। यह जीवन में निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। वर्तमान युग में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे कुछ पाने की चाह ना हो ।
जरुरत है जीवन के इस मूल मंत्र को जानने और समझने की कि क्षण भर की खुशी से बड़ी है हर क्षण की खुशी । क्रमश:……..
अक्सर देखा जाता है कि हम अपनी इच्छाओं को पूरा करने के लिए निरंतर दौड़ते रहते हैं, भागते रहते हैं,यहां तक कि हमें अपनी और अपनों का भी ख्याल नहीं रख पाते ।जिस वजह से हमें मंजिल तो मिल जाती है,कामयाबी को तो हम पा लेते हैं,अपने ख्वाबों को पंख लगाकर उड़ लेते हैं, लेकिन अपने अक्सर हमसे पीछे छुटते जाते हैं ।
याद रखें-, “पल भर की खुशी से बड़ी है हर पल की खुशी ”
बडे सरल भाव में आप समझ सकते हैं कि इस नश्वर संसार में हम क्षण भर की खुशियों को पाने के लिए हर क्षण की खुशियों को गंवा नहीं सकते।बहुत कुछ हासिल कर लेने से सब कुछ नहीं पाया जा सकता।बहुमुल्य जीवन जिसे ईश्वर ने हमें प्रदान किया है उसकी सार्थकता तभी है जब कामयाबी को हम अपनों के साथ बांट सके,अपनों के साथ आगे बढ़ सके ।
हमें इस बात पर विचार करना होगा कि हम जिस खुशी के लिए लगातार भाग रहे हैं वो किसके लिए है? अगर वो परिवार के लिए है तो क्या हम उन खुशियों को परिवार के साथ बांट रहे हैं या फिर निरंतर एक के बाद एक उस खुशी के लिए दौड़ते जा रहे हैं जिसे हम किसी भी सुरत में पाना चाहते हैं।क्योंकि जब हम कामयाबी की पहली सीढ़ी चढ़ते हैं हमें खुशी मिल जाती है लेकिन सामने जब दूसरी सीढ़ी नजर आती है तो पहली कामयाबी फीकी लगने लगती है।कहने का तात्पर्य है कि क्षण भर की खुशी तो हमें हर कदम पर मिलती रहती है लेकिन उस क्षण भर की खुशी की चाह में हम हर क्षण की खुशी को गंवाते जाते हैं ।
आज हमारे समाज में भौतिक वस्तुओं को पाने की होड़-सी लगी हुई है। अफसोस इस बात का है कि इस अंधी दौड़ में मनुष्य इस कदर भागता जा रहा है कि जीवन में न कहीं पूर्ण विराम रह गया है और ना ही अर्ध-विराम। जिसका परिणाम है कि आज हम तनावपूर्ण जीवन जी रहे हैं ।
खुशियों को बटोरने की चाह में हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि असीमित आकांक्षाएं हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं, जिनका अंत तो कभी हो ही नहीं सकता। एक कदम आगे बढ़े नहीं कि दूसरा कदम बढ़ाने की जिज्ञासा मन में उत्पन्न हो जाती। यह जीवन में निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। वर्तमान युग में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जिसे कुछ पाने की चाह ना हो ।
जरुरत है जीवन के इस मूल मंत्र को जानने और समझने की कि क्षण भर की खुशी से बड़ी है हर क्षण की खुशी । क्रमश:……..