Wednesday 8 August 2018

लुटियन की दिल्ली बनाम लूटीपीटी दिल्ली !



संदीप कुमार मिश्र: हमारे देश भारत की दो राजधानी है दोस्तों !  जो ना जानते हों वो जान लें,खैर दिल्ली वाले तो जानते ही हैं,क्यों ? नहीं जानते ! बिल्कुल सही समझा आपने...एक तो है हंसीन दिल्ली जिसे लुटियन की दिल्ली कहते हैं,जहां रंगीनिया है,चमचमाती सड़के हैं,रोड़ों पर सलीके से चलती गाडियां हैं,जहां की सुबह लालबत्ती के सायरन से होते हुए होती है और शाम बड़े-बड़े आलिशान होटलों में जाम छलकाते हुए और रात का क्या है साब,उसकी तो बात ही कुछ और है...!
अरे भाई ये वही लुटियन ज़ोन है जहां संसद भवन,राष्ट्रपति भवन और भी ना जाने कितने भवन और अतिसंवेदनशील प्रतिष्ठान है,जी हां यही तो वो वीवीआईपी एरिया हैं जहां हमारे प्रधानमंत्री जी भी रहते हैं और विश्व भर की एंबेसीयां भी हैं,और भी ना जाने क्या-क्या जनाब। हम तो सब कुछ देख भी नहीं पाए हैं! डर लगता है जी,...ना जाने कब किस मोड़ पर कौन पुलिस वाला शक की बिनाह पर धरपकड़ ले।कहते हैं कि सादी वर्दी में भी यहां पर खुफिया विभाग के लोग घुमते रहते हैं। अब साब होना भी चाहिए,अरे भाई देश भर के हमारे चुने हुए प्रतिनिधि से लेकर बड़े से बड़ा अफसर भी तो यहीं रहते हैं जो हमारे लिए संसद में लड़-झगड़ के नियम कायदे बनाते हैं और हमें ये बताते हैं कि हमें कितने किलोग्राम चावल,गेहूं मिलेगा, और कितने ग्राम चीनी और दाल...हां ये भी कि कितने रुपये कमाने वाला गरीब है और कितने रुपये कमाने वाला अमीर। भई...साहब लोग हैं तो समझ भी ज्यादा ही होगी ना। अकबर,बाबर और औरंगजेब से लेकर ना जाने कितने बड़े-बड़े नामों पर वीआईपी रोड़ों के भी नाम हैं साहब।जहां हमारे खद्दरधारी खड़े होकर गर्व महसूस करते हैं।अब लुटियन की दिल्ली के बारे में क्या-क्या लिखें साब...अपनी कहां इतनी समझ....!
लेकिन हां जिस राजधानी दिल्ली में हम रहते हैं उसके बारे में यथास्थिति जरुर बयां कर सकता हूं...जिसका नाम है लूटीपीटी दिल्ली !..जहां की सुबह भी शोर-शराबे के साथ भागमभाग से शुरु होती है और शाम भी थकान और पीड़ा के साथ। हमारी लूटीपीटी दिल्ली में तो गड्ढेदार सड़कें भी हैं तो किसी दानव की तरह मुंह बाए सीवर होल और नालियां भी हैं और कचड़ों का क्या साब,...सुबह मक्खियों की भिनभिनाहट और बदबू...अरे जनाब इतना ही नहीं पानी की मिठास और निर्मलता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि जैसे ही एक टैंकर आकर खड़ा होता है वैसे ही गालियों की जो मिठास कानो में पड़ती है...ओहो वातावरण पवित्र हो जाता है,कभी कभी तो दो-दो हाथ भी देखने को मिलता है । लेकिन मस्त हैं साब क्योंकि देश की राजधानी में जो रहते हैं...कभी सुबह न्यू अशोक नगर के हनुमान मंदिर रोड़ पर 8-9 बजे के बीच आईए या फिर संगम विहार,लाल बाग,शिव विहार या फिर दिल्ली की जितनी भी पूरीयां हैं चाणक्यापूरी और विकासपूरी को छोड़कर...या फिर रेलवे ट्रैक के किनारे बसी जुग्गीयों वाले इलाके में...सच कहते हैं मजा आ जाएगा....दूर से देखने पर सिर्फ मुंडी ही मुंडी नजर आएगी आपको...एक भरपूर हिन्दुस्तान का नजारा आपको एक ही मोहल्ले में देखने को मिल जाएगा ।

शायद ही कोई दिन होगा साब जब इन इलाकों से कोई भूख से,रोग से,गंदगी से मरता हुआ ना नजर आए ।...कभी शनि बाजार,मंगल बाजार की रौनक देखिए यहां की...बड़े-बड़े मौल की रंगीनियां आपको फीकी लगने लगेंगी।लेकिन खुश हैं साब यहां भी रहने वाले लोग...सबसे मजे की बात तो ये है कि इन इलाकों में कभी-कभी हमारे जनप्रतिनिधि भी जाते हैं और जिस दिन जाते हैं वो दिन किसी त्योहार से कम नहीं होता...।

खैर!...कभी कभी सोचता हूं कि क्या ऐसी ही देश की राजधानी की कल्पना हम करते हैं।...लिखने को तो इतना कुछ है इस दिल्ली के बारे में कि लिखते-लिखते सुबह से शाम और फिर सुबह हो जाए लेकिन लिखना खत्म ना हों...सच कहता हूं दोस्तों कि दिल्ली लोग आते ही क्यों हैं?...इस गंदगी और उधार की जिंदगी जीने से तो अच्छा अपने गांव में ही रह लेते...कम से कम स्वच्छ हवा और जल की दिक्कत तो नहीं होती और मेहनत मजदूरी करके दो वक्त की रोटी भी मिल ही जाती।लेकिन फिर सोचता हूं की आजादी के कई दशक बाद भी ऐसी कौन सी बेबसी और मजबूरी रही होगी होगी कि लोग अपना पुस्तैनी घरबार छोड़कर नरक की जिंदगी गुजर बसर करने के लिए दिल्ली या फिर दिल्ली जैसे अन्य महानगरों में चले जाते हैं...क्या सिर्फ महज वोटबैंक बनने के लिए...शायद ही देश का कोई ऐसा प्रांत हो जहां के लोग दिल्ली में आकर नहीं बसे हों....!

इस लूटीपीटी दिल्ली की विडंबना देखिए कि जो सड़क गलती से एक बार खुद गई तो वो कई महिनो तक खुदी ही रहती है,चाहे भले ही कितनी भी घटना और दुर्घटना उससे हो जाए,बरसात के मौसम में इन इलाकों में चारों तरफ पानी ही पानी होता है,नालियां कचड़ों से ठसाठस भरी रहती हैं...लोग इन्हीं किचड़ और गंदगी भरे रास्तों पर आने जाने को मजबूर हैं....अब ये दुर्व्यवस्था किसी को नजर नहीं आती...हर कोई सिर्फ टोपी ट्रांसफर करने में लगा रहता है...।

सवाल उठता है कि आखिर कब दिल्ली वास्तव में देश का दिल बन पाएगी...या फिर कभी नहीं...स्मार्ट सीटी बने इसमें किसी को कोई गुरेज नहीं,शहर बसेगें तो रोजगार भी बढ़ेंगे लेकिन जो शहर के नाम पर कलंक बने हुए हैं उन्हें तो पहले दुरुस्त बना दिये जाएं...आखिर कब तक हमारे जनप्रतिनिधि हों या फिर अफसर इस बात को समझेंगे....विकास के नाम पर आखिर कब तक हकीकत से महरुम रहेगी देश की अस्सी प्रतिशत आबादी..और कब बनेगी एक दिल्ली एक राजधानी...और देश का एक दिल...दिल्ली.....आप भी उम्मीद रखें और हम भी....बस और क्या।।    

  

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