Wednesday 22 August 2018

सुख की कामना है तो स्वयं के भीतर देखो और समर्पण का भाव रखो !



संदीप कुमार मिश्र : यदी हम सुख की तलाश कर रहे हैं तो सबसे पहले हमें अपने भीतर की तरफ देखना होगा । अपने मन में हिंसा,क्रोध,द्वेष के भाव को दूर करना होगा,मिथ्या को हटाना होगा और लोक कल्याण के लिए चिंतन करना होगा । आरामतलब होने से बचना होगा और निरंतरप्रेम समर्पण की बात सोचना होगा।निरंतर कार्य में मन लगाना होगा और ये तभी संभव होगा जब हम स्वयं में प्रेम को जागृत करेंगे,क्योंकि यही तो हमारे भीतर है । उच्छृंखलता तो पशु की प्रवृत्ति होती है और स्व का बंधन मनुष्य का स्वभाव होता है । वास्तव में हमें हमारे जीवन में सच्चा सुख प्राप्त करने का यही एकमात्र मूल मंत्र है।

अपने को सम और विषम परिस्थितियों में संयत रखना और दूसरे के मनोभावों का सम्मान करना ही सही मायने में मानवीय धर्म है ।j

एक बात जान लें कि हमारी सफलता और चरितार्थता में बहुत अंतर होता है सफलता पाने के कई पैमाने है,जिसे हम चालाकी और बाह्य संसाधनो से भी प्राप्त कर सकते हैं लेकिन चरितार्थता तो सिर्फ प्रेम में है,मैत्री में है जो त्याग से ही मिलती है क्योंकि चरितार्थता तो सबके मंगल में है,सर्वजन हिताय में है,वसुधैव कुटुंबकम में है अत: सुख की कामना है तो स्वयं में समर्पण का भाव अवश्य रखें इसी से जीवन में सच्चा सुख प्राप्त हो पाएगा

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