Monday 13 August 2018

अपने आनंद में जीना ही जीवन का सच्चा सुख



संदीप कुमार मिश्र: कहते हैं कि जो अपने आनंद और मस्ती में जिए जीना उसे ही कहते हैं,लेकिन ज की आपाधापी भरी जींदगी में एक दूसरे से आगे निकल जाने की होड़ में हम ना तो दूसरे के सुख से सुखी होते हैं ना दुख में दुखी।क्योंकि आजकल हमारे जीनें का मूल अर्थ सिर्फ तुलनात्मकता, प्रतिस्पर्धा मात्र ही रह गया है।  जबकि हमारा प्रयास होना चाहिए कि हम अपने अल्हड़पने मस्ती भरे आनंद में ही जीए।विचार इस बात पर करना चाहिए कि हमारे सामने वाला यदी सुखी है तो कैसे है,ऐसी कौन सी सकाराच्मकता उसमें है जो हममें नहीं है और फिर हमें अपने जीवन में सकारात्मकता लानी चाहिए और सामने वाला से प्रेरणा लेकर उचित दिशा में कार्य करने चाहिए।जबकि हमारी चिंता कारण अब ये बनता जा रहा है कि सामने वाला सुखी क्यों है साथ ही सामने वाले को परेशान और दुखी देखकर हम उसके दुख करने के वारे में विचार नहीं करते हैं,हम तो यो सोचने लगते हैं कि सामने वाला और परोशान कैसे हो।दरअसल अब हमारे समाज में ऐसा स्वभाव बढ़ने लगा है कि सामने वाला सुखी क्यों और कैसे है ?
रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनी इठलैहैं लोग सब, बांटी न लेंहैं कोय।।
अर्थ : रहीम दास जी कहते हैं कि अपने मन की व्यथा को मन के भीतर ही छिपा कर ही रखना ठीक होता है,क्योंकि दूसरे का दुःख सुनकर लोग इठला भले ही लें, उसे बाँट कर कम करने वाला कोई नहीं होता।
अत: हमें अपने विचारों में सकारात्मकता लानी चाहिए,अपनी मस्ती में जीना चाहिए और आनंद उठाना चाहिए,क्योंकि जीवन का सच्चा सुख स्वयं के आनंद से रहने में हैं।।।

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