Saturday 2 December 2017

यूपी निकाय चुनाव: बीजेपी लहर में भी मायावती की 2 सीटें,क्या कहती है यूपी की सियासत!

  

संदीप कुमार मिश्र: देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश में हुए निकाय चुनाव में बीजेपी ने बम्पर जीत दर्ज की है।आप कह सकते हैं कि योगी राज में योगी का करिश्माई प्रभाव तो है ही साथ ही मोदी लहर भी बरकरार है।जो कहीं ना कहीं 2019 के आम चुनाव के लिहाज से बीजेपी के लिए अच्छी खबर है...लेकिन यूपी विधान सभा के चुनाव में हाथी छाप बीएसपी जहां दहाड़े मारकर धड़ाम से जमीन पर गिर गयी थी वही बीएसपी निकाय चुनाव में 2 सीट पाकर वापसी की राह पर नजर आती दिख रही है।वो भी तब जब बीएसपी सुप्रिमो मायावती निकाय चुनाव में प्रचार से कोसो दूर थीं।तो क्या इसे प्रदेश में बीएसपी की वापसी माना जाय...?

दरअसल 2014 के आम चुनाव में जहां बीएसपी को लोकसभा की एक भी सीट नहीं मिली थी तो 2017 के विधानसभा चुनाव में बीएसपी के खूब प्रयास करने के बाद भी तीसरे नंबर से ही संतोष करना पड़ा,वहीं निकाय चुनाव में बीएसपी ने अखिलेश यादव की सपा को तीसरे नंबर पर पहुंचा दिया।इतना ही नहीं मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में बीएसपी ने प्रदर्शन बेहतर किया।
साथ ही झांसी, आगरा और सहारनपुर में बीएसपी दूसरे नंबर रप टक्कर देती नजर आई। ऐसे में अब कह सकते हैं कि मुस्लिम वोटरों का झुकाव जो पहले सपा की तरफ था अब बीएसपी की ओर बढ़ने लगा है।एक बात तो तय है कि बीएपी लगातार ये प्रयास करती रहना चाहेगी कि प्रदेश के मुसलमान उसके पक्ष में आए जिससे सपा तीसरे नंबर पर चली जाए और बीजेपी से मुकाबला बीएपी का ही हो।2017 निकाय चुनाव से पहले के चलन को देखें तो बीएसपी की निकाय चुनावों में कोई खास दिलचस्पी नजर नहीं आई है। 2006 और 2012 के चुनाव के देखतक तो ऐसा ही लगता है जब पार्टी ने अपने कैंडिडेट ही मैदान में नहीं उतारे थे।
उत्तर प्रदेश में बीएसपी के उभार से नुकसान किसको?
अब ऐसे में यक्ष प्रश्न ये है कि यदी यूपी में बीएसपी का उभार होता है तो नुकसान किस पार्टी का ज्यादा होगा।यकिनन बीएसपी की बढ़त का भरपूर खामियाजा सपा को और कुछ कांग्रेस को भुगतना पड़ेगा।क्योंकि ऐसा होने पर समाजवादी पार्टी का MY फैक्टर यानि मुस्लिम-यादव वोटरों का गठजोड़ टूट जाएगा। बीएसपी अगर मुस्लिम वोटों में सेंध लगा लेती है तो साफ साफ इसका हर्जाना सपा को भुगतना पड़ेगा।वहीं दलित और मुस्लिमों के एक साथ होने से कांग्रेस का बचा खुचा जनाधार घट जाएगा। मतलब हाथी की दौड़ जब शुरु होगी तो उसके लपेटे में कई पार्टीयां आएंगी।खासकर पंजा और दब जाएगा और साइकिल पंचर ही नहीं भ्रस्ट हो जाएगी।


ऐसे में सतर्क रहने की जरुरत बीजेपी को भी कम नहीं होगी, क्योंकि हाथी की चिघ्घार में जो समुदाय योगी को सीएम बनाने से नाराज हैं वो और मुखर होकर हाथी की सवारी करना चाहेगें।बहरहाल आने वाले लोकसभा के संग्राम में देखना बड़ा ही दिलचस्प होगा कि मायावती का प्रभाव प्रदेश में यदि बढ़ता है तो नुकसान किस पार्टी का ज्यादा होगा।क्योंकि हमारे देश में सियासत ही तो है जहां सब कुछ अनिश्चित है।

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