Wednesday 16 March 2016

जनाब औबैसी आपको शर्म तो आनी ही चाहिए क्योंकि...?


संदीप कुमार मिश्र:  भारत माता की जय...भारत माता की जय...भारत माता की जय...ये जय प्राण है संपूर्ण भारत वर्ष की...जिसे कहने के लिए संसार के किसी संविधान और लोकतंत्र की दुहाई देने की जरुरत नहीं है...जिस प्रकार से एक हिन्दू भाई राम कहने के लिए सोचना नहीं,और एक मुस्लिम भाई अल्लाह कहने के लिए किसी की इजाजत नहीं लेता...ठीक उसी प्रकार जननी जन्मभूमि के लिए जय कहने में कोई संकोच नहीं होता है...कम से कम आपको छोड़कर(असउद्दीन औबैसी)समस्त देशवासी तो ऐसा ही सोचते हैं और करतेहैं।आप कौन सी जबान बोल रहे हो,किसकी जबान बोल रहे हो,ये तो आप ही जानो...लेकिन ये देस इस तरह की भाषा कतई बर्दास्त नहीं करता।महज सियासत के लिए तो खास कर नहीं...क्योंकि आपके इस भाषण और आक्रोश पैदा करने वाले बयान से देश का कोई भी वर्ग इत्तेफाक नहीं रखता।

दरअसल आपको राज्य सभा में जावेद अख्तर साब का दिया गया विदाई स्पीच भी जरुर सुनना चाहिए,जहां उन्होंने जावेद अख्तर साब ने औबैसी के बयान पर विरोध जताते हुए सदन में तीन बार भारत माता की जयकहा। अख्तर साब ने अपने विदाई संबोधन में कहा कि जिनकी हैसियत एक शहर या एक मुहल्ले से ज्यादा नहीं है।वो अपने आप को बड़ा नेता कहते हैं।अख्तर साब ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि वह कहते हैं कि वह किसी भी कीमत पर भारत माता की जयनहीं बोलेंगे क्योंकि यह संविधान में नहीं लिखा है।तो वो ये भी बताएं कि संविधान में शेरवानी और टोपी पहनने की बात कहां लिखी है।बात यह नहीं है कि भारत माता की जय बोलना मेरा कर्तव्य है या नहीं....बात यह है कि भारत माता की जय बोलना मेरा अधिकार है।
इमेज-सौजन्य दैनिक भास्कर
खैर,गौर करने वाली बात ये है कि जनाब औबैसी ने कहा कि उनकी संघ (मोहन भागवत) उनकी गर्दन पर चाकू भी रख देगा तब भी वो "भारत माता की जय" नहीं बोलेंगे। क्योंकि संबवधान में नहीं लिखा है,तो साब एक बात बताई--आप बात-बात में संविधान से आर्टिकल 19(a) और 25, 29 की बात करते हैं।जिसके मूल में उसी संविधान की प्रस्तावना के वे शब्द है जो 'हम भारत के लोगों को विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता" सुनिश्चित करने की गारंटी देते हैं।
औबैसी जी सियासत और सत्ता की लोलूपता में आप हमेशा धर्म की बात करते हुए कहते हैं कि इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी की भी पूजा,जय,जिंदाबाद करना वर्जित है।लेकिन फिर आप क्यों हर बार सत्ता में बने रहने की कमीनी जल्दबाजी में क्यों आप खुद अपने समर्थकों से खुद की और अपनी पार्टी की जिंदाबाद करवाते हैं?...बताईए  क्या आप नहीं करवाते? समर्थक अपने आप करते हैं? ये कैसे समर्थक हैं जो आपके सामने मजहब के नियमों को भूल जाते हैं? ये कैसे अनुयायी हैं जो आपके सामने खुदा के आदेश को भूल जाते हैं? और फिर वो कौन से मजहब को मानने वाले हैं जो अफजल या याकूब की जिंदाबाद करते हैं? इशरत जिंदाबाद करने वाले क्या मुसलमान नहीं हैं? ओबामा या इस्लामिक स्टेट जिंदाबाद लिखने वाले सच्चे मुसलमान नहीं? अपनी बात को कहने के लिए कितने और उदाहरण दूँ महोदय? क्या वो असली मुसलमान नहीं या फिर 'जिंदाबाद' कई तरह के होते हैं? भारत माता के साथ लगा 'जिंदाबाद' अलग और आप वाला 'जिंदाबाद' अलग ?
लेकिन जनाब औबैसी....जरा याद किजिए उस शख्स को जिसने कुछ महीनो पहले ही दुनिया को अलविदा कहा,जो जन्म से तो आपके मजहब के थे लेकिन कर्म से वो पूर्णरुपेण 'भारतीय' थे।जिनके लिए पूरा देश आंसू बहाता है...जिनके जैसे इस देस का हर यूवा बनना चाहता है...जो करोड़ो-करोड़ो भारतीयों के प्रेरणा श्रोत है।जी हां कलाम साब...अगर व्यक्ति को सिर्फ और सिर्फ मजहब के ऐनक से ही देखा जाए तो मेरे लिए कलाम साब ही सच्चे मुसलमान थे।ऐसे आप सोचना होगा कि आप किस श्रेणी में हैं।
असउद्दीन औबैसी जी अफसोस होना चाहिए आपको कि आपके ऐसे बयान से  भारत में रहने वाले करोड़ों मुसलमान भाइयों-बहनों को परेशानी होती है। आप भले ही उनके नेता न हों,गली मोहल्ले के नेता हों(जावेद साब के लफ्जों मे..)लेकिन उन्हें इस प्रकार के बयानों से झुंझलाहट तो होती ही है। आप जितनी बार ऐसा कहेंगे, उतनी बार उन्हें शक की निगाह से देखा जाएगा।
आप कुछ भी कहिए, शुक्र मनाइए आप भारत में हैं।पांच हजार पुरानी की तो सिर्फ 'ज्ञात' सभ्यता है।उससे पीछे जाएंगे तो समय की शब्दावली देखनी पड़ेगी। मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम से लेकर अशोक और अकबर ने, बुद्ध से लेकर विवेकानंद और गांधी ने...हमें बहुत सहनशीलता-सहिष्णुता सिखाई है। औबैसी साब आपसे गुजारीश सिर्फ इतनी है कि हो सके तो 21वीं सदी के यूवा भारत को इस तरह से बरगलाईए मत। थोड़ा विनम्र बनिए,उदार बनिए, सौम्य बनिए,शालिन बनिए...कहते हैं कि"झुकते वही हैं, जिनमें जान होती है, अकड़ तो मुर्दों की पहचान होती है.."आप अपना स्तर खुद तय किजिए..।
अंतत: साब हमारे देश में लोकतंत्र की जड़ें बहुत गहरी हैं, जिन्हें कोई उखाड़ क्या हिला भी नहीं सकता, लेकिन...लेकिन लोकतंत्र तभी है जब धर्मनिरपेक्षता है। लोकतंत्र धर्मनिरपेक्षता के बिना नहीं रह सकता।और इस मर्यादा का पालन करना हम सब की नैतिक जिम्मेदारी है...।

             ---चलिए हम सब मिलकर सच्चे मन से बोलते हैं---

'भारत माता की जय'... 'भारत माता की जय' ...'भारत माता की जय'



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