Saturday 13 February 2016

JNU में देशविरोधी नारा : ये कैसी शर्मनाक विचारधारा..?

संदीप कुमार मिश्र: देश  सबसे बड़े शिक्षा के मंदिर में देश विरोधी नारे...देश के सबसे बड़े शिक्षा के मंदिर संविधान का मजाक...देश के सबसे बड़े शिक्षा के मंदिर में भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली का सबसे शर्मनाक मजाक...क्या यही करने के लिए देश के सबसे बड़े शिक्षा के मंदिर जवाहर लाल नेहरु विश्वविद्यालय की स्थापना की गई थी...क्या सी ही सोच को बढ़ाने के लिए जेएनयू की आधारशिला रखी गई थी कि यहां के विद्यार्थी,विद्या की अर्थी उठाएंगे और भारत माता का अपमान करेंगे...? 
दरअसल आप इसे एक बड़ी और क्रूर विडंबना नहीं तो और क्या कहेंगे कि जहां एक तरफ जिस जम्मू-कश्मीर सीमा की सुरक्षा के लिए देश के दस जवान सियाचिन की बर्फ में दबकर अपनी जान गवां देते हैं,तो वहीँ दूसरी तरफ उनकी शहादत के चंद रोज बाद ही देश के एक तथाकथित प्रतिष्ठित शिक्षण संस्थान जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में उसी कश्मीर की आजादी, भारत की बर्बादी और अफजल गुरु जैसे देशद्रोही के पक्ष में देश विरोधी नारे लगाए जाते हैं।
अब जरा मेरी नजर में जेएनयू कैंपस में हो रही देशविरोधी घटना के बारे में भी जान लिजिए... कि आखिर क्यों ना हम कहें कि जेएनयू देशद्रोहियों की शरणगाह बन गया है...!हुआ यूं कि 10 फरवरी को दिल्ली के JNU कैम्पस के कुछ दलित, अल्पसंख्यक और कश्मीरी विद्यार्थियों द्वारा संसद हमले के गुनहगार जिसे फांसी पर लटकाया गया यानि अफजल गुरु की तीसरी बरसी पर विद्या के इस मंदिर में सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया गया, जिसका अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् ने कड़ा विरोध दर्ज करते हुए प्रशासन से शिकायत की।और राष्ट्रविरोधी ताकतों ने हंगामे की पटकथा तैयार की।
मामला तुल ना पकड़े इस नजरिये से JNU प्रशासन ने उन छात्रों के इस देश विरोधी कृत्य पर रोक लगा दी।लेकिन फिर मामला और गरम हो गया।उन उपद्रवी विद्यार्थियों द्वारा प्रशासन के निर्णय के विरोध के नाम पर न केवल शिक्षा के इस मंदिर में जमकर हुड़दंग,उत्पात मचाया गया। बल्कि इससे भी आगे बढ़कर कश्मीर की आजादी और भारत की बर्बादी के नारे भी लगाए गए।जरा उन देश विरोधी नारों को भी जान लिजिए।1- कश्मीर मांगे आजादी’,2-कश्मीर की आजादी तक जंग रहेगी,3- भारत की बर्बादी तक जंग रहेगी। इस प्रकार से JNU में देश विरोधी नारे लगा रहे इन छात्रों का जब ABVP के छात्रों ने जेएनयू छात्रसंघ के संयुक्त सचिव के नेतृत्व में विरोध किया गया तो दूसरे देश विरोधी नारे लगाने वालों ने कट्टा आदि हथियार दिखाकर उन्हें धमकाया भी और हर संभव अपनी राष्ट्रविरोधी होने का प्रबल परिचय दिया।
जैसा कि अखबारों की सुर्खियां सामने आई,उस लिहाज से देखें तो नारे लगाने वाले उन छात्रों का ये कहना किसी अचंभे से कम नहीं है कि संविधान द्वारा मिली अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत ही उन्होंने अफजल गुरु और जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के एक संस्थापक मकबूल भट की याद में उस सांस्कृतिक संध्या का आयोजन किया था और यदि एबीवीपी ने प्रशासन से कह कर उस पर रोक नहीं लगवाई होती तो वे हंगामा नहीं करते।कहने का मतलब ये है कि अभियक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर उन्हें यदि देश विरोधी गतिविधियों को करने दिया जाता तो वे ये हंगामा नहीं होता।मतलब इन्हें कुछ भी करने की छुट दे दी जाए।
अब इन तथाकथित छात्रों को कौन समझाए कि जिस संविधान ने उन्हें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे मौलिक अधिकार दिए हैं, उसी ने बतौर देश के नागरिक उनके लिए कुछ मौलिक कर्तव्य भी निर्धारित किए हैं और उन्हीं कर्तव्यों में से एक राष्ट्र की एकता और अखण्डता को अक्षुण्णरखना भी है। जिसका वे पालन नहीं कर रहे। अफसोस इस बात का कि इन छात्रों में एक विरोधाभास यह है कि जिस संविधान द्वारा दिए गए एक अधिकार अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के दम पर ये छात्र भारत की बर्बादीके नारे जैसी देश विरोधी गतिविधियां तक संचालित करने की हिम्मत दिखा रहे हैं, उसी संविधान की एक कार्यस्थली यानी संसद पर हमला करने वाले अफजल गुरु का समर्थन भी कर रहे हैं।क्या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का मतलब यही है,कि छात्र के नाम पर आप देशविरोधी हो जाएं...या फिर आप अफजल गुरु जैसे लोगों के पक्ष में नारे लगाएं।
आपको बता दें कि ये पहली बार नहीं है जब JNU के छात्रों पर देशविरोधी हरकतें करने का आरोप लगा है।कुछ वक्त पहले की ही बात है कि JNU के वामपंथी छात्रों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाना बनाकर बेहद अपमानजनक और भद्दे नारे लगाए थे। 30 जनवरी को वामपंथी छात्र संगठन आईसा और केवाईएस के छात्र हैदराबाद यूनिवर्सिटी के छात्र रोहित वेमुला की मौत को लेकर दिल्ली में RSS दफ्तर के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे।जिसपर पुलिस ने कार्रवाई की थी तो इन संगठनों ने कहा कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है,और भी ना जाने क्या-क्या।ये कहने में हमें कोई गुरेज नहीं कि इन छात्रों का विरोध पूरी तरह से तर्क और विवेक से परे है, और खत्म हो चुकी अपनी वाम विचारधारा को चर्चा में लाने के एजेंडे पर पूरी तरह से आधारित है।
ये बात हम सब जानते हैं कि किसी जमाने में JNU कैंपस वामपंथियों का गढ़ रहा है और फिलहाल हमारे देश में JNU ही एक ऐसी जगह है जहां वामी समुदाय का कुछ अस्तित्व भी है,वरना तो देश भर में वाम विचारधारा मृत्यूशैया पर पड़ी हुई है,चाहे छात्र स्तर पर हो या फिर मतदाता और शासन के स्तर पर। अब तो ऐसा लगने लगा है कि JNU में भी वाम की सत्ता में सेंध लगने लगी हैं।जैसा कि विगत वर्ष के छात्रसंघ चुनावों में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद् का संयुक्त सचिव की सीट पर कब्जा करना इसको पूरी तरह से स्पष्ट करता है कि वाम विचारधारा का खात्मा ही इस प्रकार की देश विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा दे रही है।
जिस प्रकार से अब वाम विचारधारा पूरी तरह से जनता से दूर किस ऑफ लव और महिषासुर को महापुरुष बनाने जैसे ना जाने किन आसमानी मुद्दों में गुम है और इसी नाते वो हर दिन लगातार खारिज हो रही है।अफसोस तो इस बात है कि वाम विचारधारा के लोग संवयं में सुधार करने की बजाय चर्चा में बने रहने के लिए अफजल गुरु के समर्थन, कश्मीर की आजादी और भारत की बर्बादी जैसे देश विरोधी कृत्य करने तक से पीछे नहीं हट रहे हैं।अब साब कौन कहे कि इस प्रकार के कृत्यों से आपकी छवी और...और खराब होगी,क्योंकि इस देश में देशभक्तों और भारत माता की जय कहने वालों की तादाद ज्यादा है,लांस नायक हनुमनथप्पा,सीमा पर डटे हमारे सजग प्रहरी और सभ्य भारत माता के सपूत भी इस देश में रहते हैं।जिनका एक ही धर्म है राष्ट्र धर्म।जिनके लिए इंडिया फर्स्ट है। शर्म आनी चाहिए ऐसे देशद्रोहियों को आप देश का नहीं बल्कि पाकिस्तान में बैठे उन आतंकियों का समर्थन करते हैं जो भारत के खिलाफ आतंकि भेज धुसपैठ हमारे देश में कराते हैं।
अंतत: एक बात तो तय है कि JNU के ये देश विरोधी छात्र सब कुछ जानते-समझते हुए भी देशविरोधी गतिविधियां करते हैं।जो घातक है भविष्य के लिहाज से,देशहित के लिहाज से,भारत की एकता और अखंडता के लिहाज से।जिसपर कड़ाई और निर्दयता से कार्यवाही करनी चाहिए।देशद्रोह का मुकद्दमा करना चाहिए,ताकि इस तरह की हरकत करने की दुबारा कोई जुर्रत ना कर सके।।  


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