Wednesday 10 February 2016

फंसी बकरिया के कौन सुनवईया,जब घास जजे साब के खाई बकरिया..!

संदीप कुमार मिश्र: कोर्ट-कचहरी,थाना-चौकी,अस्पताल-हस्पताल जैसे किसी भी जगह पर अक्सर हम जाने से डरते हैं या फिर नहीं जाना चाहते...और हां खासकर ये व्यवस्थाएं हम लोगों के लिए हैं मतलब इंसान के लिए...।कहने का मतलब जिनमें प्राण हो...इसता मतलब ये न्याय व्यवस्था जानपरों पर भी लागू है...भई वो बोल नहीं सकते...लेकिन प्राण तो उनमें भी है ना...

अब साब उस बकरी को ही लिजिए...जो रातों रात सुर्खियों में आ गई और टीवी चैनलों के लिए प्राइम टाइम खबर बन गयी...आप सोच रहे होंगे कि ऐसा क्या कर दिया बकरी ने...? तो जनाब आपके बता दें कि बकरी नें एक बहुत बड़ा गुनाह कर दिया था...उसने अपने अधिकार में रहते हुए घास खाने की गुस्ताखी कर दी... और हो गया उसपर मुकद्दमा दर्ज....।

दरअसल ये मामला है छत्तीसगढ़ का..जहां के अन्तागढ़ की पुलिस ने बकरी को जज साहब के सरकारी बंगले की घास खाने के जुर्म में गिरफ्तार करके बड़ा ही साहस का काम किया...!आपको जानकर हैरानी होगी कि छत्तीसगढ़ के कोरिया जिले के जनकपुर इलाके में आईपीसी की धारा 427, 447 के तहत बकरी के मालिक अब्दुल हसन उर्फ 'गणपत' को गिरफ्तार किया गया और सोशल मीडिया में मामला पैलने के बाद रिहा कर दिया गया।लेकिन ये खबर भले ही हमारे देश के कानून का मजाक बना गई लेकिन अन्तर्राष्ट्रीय मीडिया में चर्चा का विषय बनकर सामने आई।

अब साब इसमें मजाक की क्या बात...! जब भैंस को खोजने के लिए इस देस में कई ताने लगा दिए जाते हैं...जब हिन्दूओं के आराध्य देव भगवान राम और हनुमान पर मुकद्दमा दर्ज हो सकता है...तो बकरी कौन सी बड़ी चीज है...वो तो बनी ही हलाल होने के लिए है..! चाहे कसाई के यहां या फिर थाना कचहरी में....!
क्या बताएं साब काश बकरी का भी 'राइट टू फूड' होता।कौन कहे साब कि बकरीया तो घास ही खाएगी ना...जहां कहीं भी खुलेगे में उसे घास मिलेगा तो खाएगी भी और मिमियाएगी भी।भई यही तो उसका स्वभाव है।कौन कहे कि आखिर बकरीया घास चरने जाए तो जाए कहां।क्योंकि शहर हो या दिहात हमलोगों ने हर जगह तो मकान बना लिए,रहने के लिए..जरा सोचिए ऐसे में कहां मिलेगा बकरीया को घास...अरे हां जज साब का गार्डन था तो वहां बकरीया को नहीं जाना चाहिए था।ये गलती तो उसने की थी।काश उस बकरीया को भी आंदोलन और धरना करने का अधिकार होता...वो भी अपना हक मांगने के लिए हंगामा कर सकती...क्योंकि भई वो कहां जाए घास चरने के लिए...? ऐसे में बकरीया सवाल उठा सकती थी कि आखिर बकरी को जेल में डालने का आदेश किसने दिया था...माननीय जज साहब ने या फिर मेम साब ने।
हमारे संविधान में बकरी को गिरफ़्तार करने का कानून नहीं है सो उसके बेचारे मालिक को ही जेल भेज में धकिया दिया गया। कानून न होने से बकरीया जेल जाने से बच गई।लेकिन साब उसका मालिक जेल में है तो बकरी कैसे खाएगी। कहां चरने जाएगी।ये सोचनिय विषय है,तो क्या...इस संबंध में थानेदार साब ने विचार किया ?ऐसे में तो  बकायदा ज़िला प्रशासन को पशु-पक्षियों को बुलाकर एक फरमान जारी करना चाहिए कि, हे तोता, तुम जज साहब के अहाते में लगे अमरूद को नहीं खा सकते। हे गौरैयातुम जज साहब के आंगन में दाने चुगने मत जाना हो बकरीया,तुम घास मत चरना,हे भैंस तुम गोबर मत करना...आदि...आदि...क्योंकि ऐसा करने पर तुम्हें ताज़िराते हिन्द की तमाम बेवफ़ाओं,गुनाहों और दफ़ाओं के तहत क़ैदें बामशक्कत की सज़ा ना हो जाएगी....का जी...ठीक कहे ना..।
लेकिन इन बकरियों की सहनशीलता की तारीफ करनी पड़ेगी कि इंसान मूर्ख हो गये, लेकिन इन बकरियों ने अपना धैर्य नहीं खोया। वैसे आपको बता दें कि बापू भी एक बकरी पाले थे..जिसका नाम निर्मला था। अब जज साहब को इतना तो पता ही होना चाहिए था कि राष्ट्रपिता ने बकरी पाली थी।तो ऐसे में बकरियां तो हमारी राष्ट्रीय धरोहर हुई ना...!

अंतत: कमाल है साब जिस छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद के नाम पर वहां कि महिलाओं और बच्चों का उत्पीड़न होता है...वो खबर नहीं बन पाती है।लेकिन दिल्ली जैसे महानगरों में हुए अपराध की घटना जब मीडिया की सनसनी बनती है तब शहरी समाज द्वारा सख्त कानूनों यथा- बलात्कारियों को बधिया करना, जुवेनाइल को वयस्क अपराधी की तरह ट्रीट करना तथा चेन स्नेचिंग के दोषियों के विरुद्ध रासुका लगाने की मांग उठती है।

हम सब लोग इस बात को बखुबी जानते हैं और आंकड़ों भी इस बात की ही तस्दीक करते हैं कि देश के संसाधनों की लूट नेता, व्यापारी एवं अफसरों के गठजोड़ द्वारा की जा रही है जो कुल आबादी का एक प्रतिशत से भी कम है।अब छत्तीसगढ़ में चावल घोटाला, मध्य प्रदेश में व्यापमं घोटाला, महाराष्ट्र में सिंचाई घोटालादिल्ली में कॉमनवैल्थ घोटाला, केरल में सोलर एनर्जी घोटाला, राजस्थान में भूमि घोटाला, डीसीसीए तथा क्रिकेट घोटाले के दोषी लोग सत्ता प्रतिष्ठान या विपक्ष में रहकर सरकार का पूरा दोहन कर रहे हैं पर उनके विरूद्ध कोई एफआईआर या गिरफ्तारी नहीं होती।

वहीं बुन्देलखण्ड तथा विदर्भ में कर्ज न चुकाने पर हुई कुर्की से पीड़ित किसान आत्महत्या के लिए विवश हैं पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद रिजर्व बैंक द्वारा पांच लाख करोड़ से अधिक बैंकों के कर्जदार उद्योगपतियों के नाम भी उजागर नहीं किये जाते हैं। लेकिन मजे की बात देखिए,बकरी मामले में पुलिस डायरी के अनुसार-बकरी को जज साहब के बंगले की घास चरने के विरुद्ध कई बार चेतावनी दी गई थी और न मानने पर उसे गिरफ्तार किया गया।वाह साब कमाल है...।जरा सोचिए...क्या अच्छे दिन का सपना ऐसे ही साकार होगा...?सोचिएगा जरुर...।


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