Thursday 4 February 2016

महबूबा के जख्म पर मोदी सरकार का मरहम...!


संदीप कुमार मिश्र: सत्ता तो चाहिए लेकिन अपनी शर्तों पर ...कुछ ऐसा ही हाल हो गया है कश्मीर का...कुर्सी खाली है...लेकिन महबूबा बैठने को तैयार नहीं...उनके जख्मों पर मोदी सरकार मरहम भी लगा रही है, लेकिन शायद मरहम उनके मुताबिक नहीं...जिस वजह से सरकार नहीं बन पा रही है।

दरअसल जम्मू कश्मीर में सरकार बनने को लेकर दुविधा लगातार बरकरार है।समस्या हल होनी की बजाय बढ़ती जा रही है।पीडीपी और बीजेपी किसी भी शर्त की बात नहीं कर रहे,लेकिन फिर भी गाड़ी आगे नहीं बढ़ रही है।सवाल ये है कि पीडीपी के मन में आखिर क्या है....? क्या कश्मीर एक बार पिर चुनाव की ओर आगे बढ़ रहा है।क्योंकि दोनो पार्टीयों में बात नहीं बनी तो विकल्प क्या रह जाएगा...?

एक बात तो साफ है कि चुनाव में जाना इस वक्त न तो बीजेपी चाहती है न पीडीपी। हां, पूर्व मुख्यमंत्री जनाब उमर अब्दुल्ला जरूर चुनाव की मांग कर चुके हैं।लेकिन फिलहाल पीडीपी ने राज्यपाल से अपना रुख साफ करते हुए कुछ और मोहलत जरुर मांग रखी है। खैर पीडीपी का रुख देखते हुए बीजेपी भी अपने दूसरे प्लान-बी पर काम करती नजर आ रही है।

कहा जा रहा है कि सरकार ना बनाने के पीछे असल महबूबा मुफ्ती की पीएम मोदी से नाराजगी है। जिसकी कई वजहें बताई जा रही है...मसलन-

पिछले साल नवंबर में प्रधानमंत्री मोदी जब श्रीनगर पहुंचे थे तो जम्मू कश्मीर के लिए 80 हजार करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की मशहूर टिप्पणी कश्मीरियत, जम्हूरियत और इंसानियतको दोहराया था। मोदी इसे कश्मीर के विकास का स्तंभ बताते हुए इन तीन मंत्रों के अनुसरण की बात कही थी। लगे हाथ तत्कालीन मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद पर भी कटाक्ष किया था। आपको बता दें कि प्रधानमंत्री की यात्रा से पहले मुफ्ती सईद ने कहा था कि वाजपेयी ने पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था जिससे हमारे 10 साल शांति से गुजरे।अगर भारत को बढ़ना है तो बड़े भाई के रूप में उसे छोटे भाई (पाकिस्तान) की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाना होगा।


वहीं इस पूरे मामले पर पीएम मोदी ने सख्ती दिखाते हुए स्पस्ट शब्दों में कहा था कि कश्मीर मुद्दे पर उन्हें विश्व में किसी की सलाह मसवरे की जरूरत नहीं है।यही बात जनाब मुफ्ती को नागवार गुजरी थी लेकिन वो खामोश रहे।लेकिन महबूबा मुफ्ती और पीडीपी नेताओं को इस बात की टीस जरुर थी।

इतना ही नहीं इस पूरे मामले पर पीडीपी के सीनियर लीडर तारिक हमीद कर्रा ने तल्ख लहजे में कहा भी कि, "मोदी सिकंदर की तरह काम कर रहे हैं और ताकत के जोर से दिल जीतना चाहते हैं।"दरअसल एक अखबार से बातचीत में कर्रा इस बात को ऐसे पेश करते हैं कि , "वाजपेयी की नीति हाथ मिलाने की थी, लेकिन मोदी का रवैया हाथ मरोड़ने वाला है।" महबूबा भी मोदी से खासी खफा हैं। उन्हें इस बात की तकलीफ है कि उनके पिता दिल्ली में ही एम्स में भर्ती थे और प्रधानमंत्री उन्हें देखने तक नहीं पहुंचे।
वहीं बात ये भी सामने आई कि राहत पैकेज हासिल करने के लिए सईद को दर दर की ठोकरें खानी पड़ीं। पीडीपी नेताओं से बातचीत में भी महबूबा ने एक वाकया सुनाया था। महबूबा ने कहा, "मेरे पिता जब आखिरी सांसे ले रहे थे और जब उन्होंने पूछा कि क्या रिलीफ पैकेज जारी किया गया, तो मैंने उनसे झूठ बोला और कहा कि हां, जारी हो गया है।"

दोस्तों फिलहाल तो बीजेपी वेट एंड वॉच की पॉलिसी अपना रही हैं।और बीजेपी कह भी रही है कि उनकी तरफ से कोई शर्त नहीं है।देखना बड़ा दिलचस्प होगा कि 87 सदस्यों वाली जम्मू-कश्मीर विधानसभा में पीडीपी के खाते में 28 सीटें हैं,जबकि बीजेपी के पास 25।और बीजेपी को पीपल्स कांफ्रेंस के दो और एक निर्दलीय विधायक का समर्थन भी हासिल है।ऐसे में बीजेपी अपने का अगला कदम क्या होता है।


अंतत: महबूबा का नाराजगी खत्म हो...और जम्मू कश्मीर में शांती बहाली के लिए सरकार बने।हम तो यही चाहेंगे।क्योंकि नाराजगी के लिए बक्त तो बहुत है,लेकिन काम करने के लिए,विकास करने के लिए समय बहुत कम।तो कश्मीर की जनता का सम्मान करते हुए दोनो बड़े दलों को शांती से सरकार चलानी चाहिए।हम तो यही कहेंगे....महबूबा जी मान जाईए ना....।

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