Thursday 25 February 2016

महाशिवरात्रि महात्म्य व पूजा विधान

संदीप कुमार मिश्र: सत्य ही शिव हैं और शिव ही सुंदर है।तभी तो भगवान आशुतोष को सत्यम शिवम सुंदर कहा जाता है।दोस्तों भगवान शिव की महिमा अपरंपार है,जो जल्द ही प्रसन्न होने वाले हैं।भोलेनाथ को प्रसन्न करने का ही महापर्व है...शिवरात्रि...जिसे त्रयोदशी तिथि, फाल्गुण मास, कृ्ष्ण पक्ष की तिथि को प्रत्येक वर्ष मनाया जाता है।महाशिवरात्रि के महान पर्व की विशेषता है कि सनातन धर्म के सभी प्रेमी इस त्योहार को मनाते हैं।
महाशिवरात्रि के दिन भक्त जप,तप और व्रत रखते हैं और इस दिन भगवान के शिवलिंग रुप के दर्शन करते हैं।इस पवित्र दिन पर देश के हर हिस्सों में शिवालयों में बेलपत्र, धतूरा, दूध,दही, शर्करा आदि से शिव जी का अभिषेक किया जाता है।देश भर में महाशिवरात्रि को एक महोत्सव के रुप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन देवों के देव महादेव का विवाह हुआ था।महाशिवरात्रि का महात्योहार हर्ष और उल्लास का महापर्व है।
महाशिवरात्रि व्रत महात्म्य
हमारे धर्म शास्त्रों में ऐसा कहा गया है कि महाशिवरात्रि का व्रत करने वाले साधक को मोक्ष की प्राप्ती होती है।जगत में रहते हुए मुष्य का कल्याण करने वाला व्रत है महाशिवरात्रि। आज के दिन व्रत रखने से साधक के सभी दुखों,पीड़ाओं का अंत तो होता ही है साथ ही मनोकामनाएं भी पूर्ण होती है।कहने का मतलब है कि शिव की सादना से धन-धान्य, सुख-सौभाग्य,और समृ्द्धि की कमी कभी नहीं होती। भक्ति और भाव से स्वत: के लिए तो करना ही चाहिए सात ही जगत के कल्याण के लिए भगवान आशुतोष की आराधना करनी चाहिए।मनसा...वाचा...कर्मणा हमें शिव की आराधना करनी चाहिए।भगवान भोलेनाथ..नीलकण्ठ हैं, विश्वनाथ है।
हिंदू धर्म शास्त्रों में प्रदोषकाल यानि सूर्यास्त होने के बाद रात्रि होने के मध्य की अवधि,मतलब सूर्यास्त होने के बाद के 2 घंटे 24 मिनट कि अवधि प्रदोष काल कहलाती है।इसी समय भगवान आशुतोष प्रसन्न मुद्रा में नृ्त्य करते है।इसी समय सर्वजनप्रिय भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। यही वजह है, कि प्रदोषकाल में शिव पूजा या शिवरात्रि में अवघड़दानी भगवान शिव का जागरण करना विशेष कल्याणकारी कहा गया है। हमारे सनातन धर्म में 12 ज्योतिर्लिंग का वर्णन है।कहा जाता है कि प्रदोष काल में महाशिवरात्रि तिथि में ही सभी ज्योतिर्लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था।
महाशिवरात्रि व्रत: विधि व पूजा विधान
महाशिवरात्रि का व्रत हमसब के लिए है।भोलेभंडारी तो सबसे लिए निराले हैं...जिनकी महिमा का गुणगान जितना भी किया जाए उतना ही कम है।भोले तो अपने साधकों से पान फूल से भी प्रसन्न हो जाते हैं।बस भाव होना चाहिए। इस व्रत को जनसाधारण स्त्री-पुरुष , बच्चा, युवा और वृ्द्ध सभी करते है। धनवान,हो या निर्धन,श्रद्धालू अपने सामर्थ्य के अनुसार इस दिन रुद्राभिषेक और यज्ञ करते हैं,पूजन करते हैं।और भाव से भगवान आशुतोष को प्रसन्न करने का सहर संभव प्रयास करते हैं।
महाशिवरात्रि का ये महाव्रत हमें प्रदोषनिशिथ काल में ही करना चाहिए। जो व्यक्ति इस व्रत को पूर्ण विधि-विधान से करने में असमर्थ हो, उन्हें रात्रि के प्रारम्भ में तथा अर्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन अवश्य करना चाहिए।
व्रत करने वाले पुरुष को शिवपुराण के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन प्रातःकाल उठकर स्नान व नित्यकर्म से निवृत्त होकर ललाट पर भस्मका त्रिपुण्ड्र तिलक और गले में रुद्राक्ष की माला धारण कर शिवालय में जाना चाहिए और शिवलिंग का विधिपूर्वक पूजन एवं भगवान शिव को प्रणाम करना चाहिये। तत्पश्चात्‌ उसे श्रद्धापूर्वक महाशिवरात्रि व्रत का इस प्रकार संकल्प करना चाहिये-

शिवरात्रिव्रतं ह्यतत्‌ करिष्येऽहं महाफलम्‌।
निर्विघ्नमस्तु मे चात्र त्वत्प्रसादाज्जगत्पते॥
महाशिवरात्रि के प्रथम प्रहर में संकल्प करके दूध से स्नान व `ओम हीं ईशानाय नम: का जाप करना चाहिए। द्वितीय प्रहर में दधि स्नान करके `ओम हीं अधोराय नम: का जाप व तृतीय प्रहर में घृत स्नान एवं मंत्र `ओम हीं वामदेवाय नम: तथा चतुर्थ प्रहर में मधु स्नान एवं `ओम हीं सद्योजाताय नम: मंत्र का जाप करना चाहिए।


महाशिवरात्रि मंत्र एवं समर्पण
दोस्तों  महाशिवरात्रि पूजा विधान के समय ओम नम: शिवायएवं शिवाय नम:मंत्र का जाप अवश्य करना चाहि‌ए। ध्यान, आसन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, पय: स्नान, दधि स्नान, घृत स्नान, गंधोदक स्नान, शर्करा स्नान, पंचामृत स्नान, गंधोदक स्नान, शुद्धोदक स्नान, अभिषेक, वस्त्र, यज्ञोपवीत, उवपसत्र, बिल्व पत्र, नाना परिमल दव्य, धूप दीप नैवेद्य करोद्वर्तन (चंदन का लेप) ऋतुफल, तांबूल-पुंगीफल, दक्षिणा उपर्युक्त उपचार कर समर्पयामिकहकर पूजा संपन्न करनी चाहिए। पश्चात कपूर आदि से आरती पूर्ण कर प्रदक्षिणा, पुष्पांजलि, शाष्टांग प्रणाम कर महाशिवरात्रि पूजन कर्म शिवार्पण करने का विधान हमारे धर्म शास्त्रों में बताया गया है।
अंतत: महाशिवरात्रि व्रत प्राप्त काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यन्त करना चाहि‌ए। रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शंकर की पूजा-अर्चना करने से जागरण, पूजा और उपवास तीनों पुण्य कर्मों का एक साथ पालन हो जाता है,साथ ही भगवान शिव की विशेष अनुकम्पा और मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है।भगवान भोलेनाथ,महादेव,आशुतोष आप सभी की समस्त मनोकामनाओं को पूरा करें।।
                                  ऊं नम: शिवाय ।।

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