Sunday 14 February 2016

केजरीवाल सरकार:अनेक बवाल बनाम एक साल:क्या है रिपोर्ट कार्ड

संदीप कुमार मिश्र: दोस्तों सियासत में कुछ भी स्थायी और अस्थायी नहीं होता।राजनीति में कब किसका उदय हो जाए और कब किसका राजनीतिक पतन हो जाए कोई नहीं जानता।देश की आवाम नें सियासत में पार्टीयों का उदय और अंत दोनो देखा।ऐसे ही सियासी सफर की शुरुआत होती है देश की राजनीति में एक नई पार्टी की...आम आदमी पार्टी...जिसका उदय इतने अल्प समय में होता है कि देश के सियासी इतिहास में नाम दर्ज कर गया।
दरअसल राजधानी दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान ने आपके मुखिया,कर्ताधर्ता अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक में उपज भी देखी,तो यहीं पर उसने आम आदमी पार्टी के गठन का इरादा भी सुना।इतना ही नहीं यही मैदान दिल्ली की सल्तनत में सबसे ताकतवर सरकार के शपथ ग्रहण का प्रत्यक्ष साक्षी भी बना।अब से ठीक एक साल पहले यहीं से आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल ने अपनी पीर्ण बहुमत वाली दूसरी शानदार सियासी पारी की शुरूआत की थी। 2014 के लोकसभा चुनाव में करारी हार का स्वाद चखने के बाद 10 फरवरी को आए दिल्ली विधानसभा के नतीजों के साथ अरविंद केजरीवाल सियासत के नए नायक बनकर उभरे। दिल्ली की 70  में से 67 सीटें जीतकर आम आदमी पार्टी ने दिल्ली और देश की सियासत में ऐसा फेरबदल  किया की अच्छे-अच्छे राजनीतिक पंडित भी दांतो तले उंगली दवा लिए ।

अब जैसा की केजरीवाल सरकार का क साल पूरा हो गया तो लाजमी है कि समिक्षा भी होगी,और होनी भी चाहिए। आपको बता दें कि सरकार गठन के बाद अपने पहले दस दिन में केजरीवाल सरकार ने बिजली सस्ती और पानी मुफ्त कर दिया। लेकिन पार्टी में अंदरखाने जरुर कुछ ऐसा चल रहा था जो ठीक नहीं था,और पार्टी की अंदरूनी कलह सामने आई।जिसके तहत पार्टी के संस्थापक सदस्य प्रशांत भूषण और योगेन्द्र यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। ये विवाद करीब डेढ़ महीने तक चला,अंतत: योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण बाहर हो गए।
सरकार बनने के बाद केजरीवाल सरकार लगातार विवादों में बनी रही।सुर्खियों में बने रहने के लिए तमाम तरह के हथकंड़े भी अपनाए जाने लगे।जिसका एक दुखद पहलु 22 अप्रैल को देखने को मिला। जब पार्टी ने दिल्ली के जंतर मंतर पर मौजुदा केंद्र सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल का विरोध करने के लिए रैली बुलाई। लेकिन इस रैली में राजस्थान से आये किसान गजेन्द्र ने सबके सामने पेड़ से लटककर खुद को फांसी लगा ली।ये दुखदायी घटना सियासत में टकराव लेकर आई।गजेंद्र की खुदकुशी को केजरीवाल सरकार ने शहादत में बदलने की भरपूर कोशिश की और मुआवज़े के अलावा उसके नाम पर किसान सहायता योजना तक शुरू कर दी गई।लेकिन केंद्र की मोदी सरकार और दिल्ली की केजरीवाल सरकार खुलकर आमने सामने आ गई।
विवादों भरा सफर केजरीवाल सरकार का जारी रहा।इसी क्रम में नया विवाद तब और बढ़ गया जब मई के महीने में केजरीवाल सरकार एक कार्यवाहक मुख्य सचिव को नियुक्त करने के मुद्दे पर नजीब जंग से भिड़ गई।क्योंकि सरकार ने जिस अफसर की नियुक्ति चाहती थी, एलजी महोदय ने उसकी बजाय IAS शकुंतला गमलिन को मुख्य सचिव नियुक्त कर दिया।जिसके बाद दिल्ली की सियासत में एक नई बहस चल पड़ी कि दिल्ली में कोई नियुक्त प्रतिनिधि जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि की बात मानने को बाध्य है या नहीं। मामला बढ़ता देख केंद्र सरकार ने एक नॉटिफिकेशन जारी किया और कहा कि दिल्ली में एलजी महोदय ही सब कुछ हैं।उनका आदेश सर्वोपरि है।
कभी खुशी कभी गम के साथ सरकार आगे बढ़ती रही लेकिन केजरी सरकार को उस वक्त एक और बड़ा झटका लगा जब दिल्ली पुलिस ने केजरी सरकार के कानून मंत्री रहे जीतेन्द्र तोमर को फर्ज़ी डिग्री के मामले में गिरफ्तार कर लिया।जनाब केजरीवाल अपने मंत्री के साथ खड़े तो रहे, लेकिन तमाम सबूत तोमर के खिलाफ गए और केजरीवाल ने उनसे इस्तीफा ले लिया।इतना ही नही केजरीवाल सरकार और दिल्ली पुलिस के बीच मतभेद भी खुलकर सामने आने लगे।लेकिन केजरी सरकार के तमाम नेता किसी ना किसी फर्जीवाड़े में जेल की हवा खाते रहे।
शनै:शनै: केंद्र और दिल्ली सरकार का विवाद आगे बढ़ रहा था तभी एक बड़े विवाद ने दिल्ली की सियासत में भूचाल खड़ा कर दिया और केजरीवाल अपना आपा खोकर मोदी सरकार को खरी खोटी सुनाते हुए शब्दों की मर्यादा तार तार कर दी।दरअसल 15 दिसंबर को सीबीआई ने दिल्ली सचिवालय में छापा मारा।सीबीआई ने कहा कि केजरीवाल के प्रधान सचिव राजेंद्र कुमार के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच कर रही है। वहीं आम आदमी पार्टी ने सीधे-सीधे आरोप लगाया कि राजेंद्र कुमार बहाना हैं, केजरीवाल निशाना हैं।आप पार्टी ने आरोप लगाया कि इस छापे के ज़रिए मोदी सरकार अरुण जेटली को डीडीसीए मामले में बचाना चाहती है।

तभी केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में प्रदूषण कम करने की एक मुहिम के तहत राजधानी में ऑड-ईवन का फॉर्मूला लागू किया जो जिसका लाभ निश्चिततौर पर दिल्ली की जनता को मिला भले ही वो प्रदुषण के स्तर पर ना हो लेकिन ट्रैफिक की समस्य से जनता को जरुर कुछ हद तक निजात मिली।परिणामस्वरुप आने वाले अप्रैल महीने में आड-इवन एक बार फिर लागू किया जाएगा। इतना ही नहीं केजरी सरकार ने नर्सरी के दाखिले में भी दखल दिया, बीआरटी कॉरिडोर खत्म किया, छात्रों के लिए कर्ज का इंतज़ाम किया और ऐसे कई फ़ैसले किए जो शायद कमजोर तबकों को लाभ पहुंचाए।लेकिन केजरीवाल का सफर पिछले एक साल में लगातार उलझता रहा ,वजह चाहे उनकी राजनीतिक समझ की हो या फिर संवैधानिक सीमाओं की वजह से।लेकिन विवाद और केजरी सरकार का चोली दामन का साथ रहा।


इसी क्रम में MCD कर्मचारियों की 13 दिन चली हड़ताल ने और भी बड़ा हंगामा खड़ा किया । इस विवाद मे केजरीवाल के जमकर पुतले जले।दरअसल दिल्ली सरकार लगातार दलील देती रही कि उसने MCD कर्मचारियों की सैलरी दे दी और निगमों के अध्यक्ष उस पर झूठ बोलने की तोहमत मढ़ते रहे।
खैर केजरी सरकार जब अपने एक साल पूरे करने का जश्न मना रही है तो विपक्ष तमाम सवाल भी उठा रहा है।सरकार ने जब अपने विधायकों की सैलरी 400% बढ़ाने का बिल पास कराया तो सबने पूछा कि भ्रष्टाचार ख़त्म करने और सादगी से रहने की बात करने वाली पार्टी को इतना पैसा क्यों चाहिए ? सबसे बड़ा सवाल विज्ञापनों के नाम पर रखे 526 करोड़ की रकम पर उठा। इस मामले में केजरीवाल की दलील भी लोगों के गले नहीं उतरी।लेकिन हां सुर्खीयों में कैसे रहा जाता है ये जरुर सरकार जान चुकी थी...और उसी रास्ते पर आगे बढ़ रही थी...जिसकी उम्मीद भविष्य में भी की जा रही है।
अंतत: जब अन्ना हजारे के आंदोलन से निकलकर केजरीवाल ने 'राजनीति की सफाई' के लिए झाड़ू उठाई तो दिल्ली की आवाम उने साथ हो ली थी। लेकिन दिल्ली में AAP की ऐतिहासिक जीत के साथ बाजी पलटी और दोस्तों का कारवां बढ़ता गया।अब तो केजरीवाल के दोस्तों की लिस्ट लंबी हो चली है।कहना गलत नहीं होगा कि कभी जो लालू प्रसाद फूटी कौड़ी केजरीवाल को नहीं सुहाते थे अब उनके साथ मंच भी साझा करते हैं और गलबहींयां भी करते हैं।इतना ही नही पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और बिहार के सीएम नीतीश कुमार का नाम भी उनके खसमखास की लिस्ट में सबसे उपर है।खासकर केंद्र से दो दो हाथ करने के मामले में।

कहने को तो बदलाव की राजनीति और भ्रष्टाचार दूर करने के लिए आम आदमी पार्टी का उदय सियासत में हुआ।लेकिन जल्द ही केजरीवाल की सियासत भी उसी रास्ते पर चल पड़ी,जिसे देस की जनता देक कर उब चुकी थी।कहना गलत नहीं होगा कि टीम केजरीवाल को काम करने के नए और बिना किसी टकराहट वाले रास्ते तलाशने होंगे।ससे उनका राजनीति का सफर भी लंबा हो सके और जनता को राहत भी मिल सके।



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