Tuesday 22 December 2015

सियासत में आरोप लगाने का बढ़ रहा चलन...?


संदीप कुमार मिश्र : सियासत रंग बदलती है,सियासत रुप बदलती है,सियासत वो सब कुछ करती और कराती है,जिससे नेताजी के सफेद कपड़ो पर दाग ना लगे और वो बेदाग रहें।इस देश की आवाम ने आजादी के बाद से सत्ता के हर उस रंग को देखा है,जिसने राज करने की हर नीति को अपनाया।आरोप प्रत्यारोप लगातार पक्ष और विपक्ष पर लगते रहे है,जिसका जवाब जनता समय समय पर देती रही है,लेकिन समय के साथ अब देश सियासत के नए रंग देख रहा है।जिसमें सिर्फ और सिर्फ आरोप लगाने का चलन लगातार चल रहा है..।

दरअसल  लिखना इसलिए पड़ रहा है क्योंकि टीवी पर अक्सर चर्चा इसी बात को लेकर हो रही है कि फलाने नेता ने ढ़ेकाने नेता पर आरोप लगाया, जिसके बाद फलाने नेता ने मानहानि का केस दायर कर दिया।अब साब मानहानि भी उन्हीं की होती है जिनकी जनहानी होती है,जनहानी भी वो जो सत्ता तक पहुंचाती है।क्योंकि गरीब तो दो वक्त की रोटी,कपड़ा और मकान की ही हानी समझता है।क्योंकि मानहानि में खर्चा ज्यादा होता है,और उस खर्चे को वहन करना किसी गरीब के बस की बात नहीं।

मित्रों देश की सियासत में मानहानि को लेकर इस वक्त जो सबसे बड़ा मुद्दा गरमाया हुआ है वो है डीडीसीए विवाद। दरअसल DDCA  के मुद्दे पर देश के वित्तमंत्री अरुण जेटली साब ने कहा कि वो एक राजनीतिक व्यक्ति हैं और जनता उन्हें अच्छी तरह से जानती है,और लोग उनका ट्रैक रिकॉर्ड जानते हैं। इसलिए उन्हें कानून का सहारा लेकर विरोधियों को डराने की ज़रूरत नहीं है।वो अपने विरोधियों को राजनीतिक तरीके से ही जवाब देंगे।लेकिन नौबत ऐसी आ गयी कि जेटली साब को विरोधियों का जवाब देने के लिए कोर्ट की चौखट पर पहुंचना पड़ा,और कहीं ना कहीं शक्ति प्रदर्शन भी करना पड़ा,शक्ति का मतलब जन समर्थन और सहयोगियों से है।

मित्रों कुछ दिनो पहले हमने देखा था कि किस प्रकार से नेशनल हेराल्ड मामले में मात्र जमानत लेने के लिए गांधी परिवार कोर्ट में पहुंचता है और शक्ति प्रदर्शन करता है।वहीं आंदोलन से पार्टी का रुप धारण करने वाली दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार जो अब भी सरकार कम आंदोलनकारी की ही भुमिका में है,जो किसी पर भी आरोप लगाने से नहीं चुकती।दिल्ली की सियासत में इन तीनो पार्टियों ने ऐसी धमाचौकड़ी मचा रखी है कि काम कम और हंगामा ज्यादा हो रहा है।हंगामा ऐसा कि संसद नहीं चलने पा रही है,तमाम बिल लंबित पड़े हैं,वहीं दूसरी तरफ सड़कों पर हो हंगामा।कुल मिलाकर बाकायदा सत्ता पर बने रहने के लिए हंगामा...हंगामा...और सिर्फ...हंगामा...।

जरा कल्पना किजिए कि क्या ये जरुरू नहीं कि हमें सामाजिक जीवन में किसी शख्सियत पर आरोप लगाने से पहले हमें कुछ ज्यादा सजग,सचेत और गंभीर नहीं होना चाहिए..?क्योंकि सवाल आरोप लगाने का ही नहीं,उसे साबित करने से लेकर आरोपों को प्रमाणीत करने का है।भ्रस्टाचार पर रोक अवश्य लगनी चाहिए,भ्रस्टाचारियों का विरोध भी करना चाहिए,लेकिन राजनीति से प्रेरित होकर नहीं। क्या ये जरुरी नहीं कि ऐसी व्यवस्था बनायी जाए,जिसमें राजनीतिक आरोपों के मामले में जवाबदेही तय हो…?

क्या आरोप प्रत्यारोप की राजनीति देश के संसदीय एवं संवैधानिक संस्थाओ का अपमान और उसकी विश्वसनीयता को ठेस नहीं पहूचा रही है। आज लोकतंत्र में लोक और तंत्र आमने सामने हो गए है। जिससे देश में नेता पार्टियों और राजनीतिक संस्थाओ पर से जनता का विश्वास घटने लगा है।ऐसे में कैसे चलेगा लोकतंत्र ? कौन चलाएगा इस लोकतंत्र को ? ये आरोप-प्रत्यारोप करने वाले या अपने स्वाभिमान को बचने वाले नेता ? आरोप प्रत्यारोप लगाना तब सही होगा जब आपके पास उसे प्रमाणित करने के सबूत हो। ऐसा लगता है कि अब जनता को जागना होगा और ऐसे भ्रस्टाचारीयों को हराना होगा।

अंतत : राजनीति जहां इस तरह की तिकड़मबाजियों पर टिकी हो,ऐसे में कितना मुश्किल है किसी भी घटना की तह तक जाना।कहना गलत नहीं होगा कि जब तक सिर्फ सत्ता का मोह सियासतदां के मन में बना रहेगा,देश विकास से महरुम रहेगा,जरुरत इस बात की है कि विपक्ष भी नेक सलाह दे सकता इस बात को मानने की,जरुरत इस बात की है कि सत्ता पक्ष भी नेक नियती से काम करता है...कर सकता है..सिर्फ विरोध करने के लिए विरोध नहीं करना है,बेहतर करने के लिए,जनहीत के लिए,समाज और राष्ट्र के भले के लिए विरोध करना है।शायद ऐसा ही पैमाना देश को आगे बढ़ा सकता है,और जनता का विश्वास भी जीत सकता है।


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