Monday 21 December 2015

यूपी में पॉलिथीन पर बैन,अखिलेश सरकार का सकारात्म कदम


संदीप कुमार मिश्र : हम सब जानते हैं कि देश का सबसे बड़ा सूबा है उत्तर प्रदेश।जहां से देश की सियासत ही नहीं,सकारात्म क्रियाकलाप का प्रभाव देश के अन्य राज्यों पर भी पड़ता है।इसलिए हर मायने मे उत्तर प्रदेश की अहमियत बढ़ जाती है।कला-संस्कृति,गंगा जमनी तहजीब़ का प्रदेश है उत्तर प्रदेश।इसलिए दोस्तों सरकार की जिम्मेदारी बढ़ जाती है कि उसके द्वारा उठाया गया हर कदम जनहीत के लिए हो,और सकारात्मकता भरा हो।

दरअसल एक अहम फैसले में उत्तर प्रदेश की अखिलेश सरकार ने पूरे राज्य में पॉलिथीन पर बैन लगा दिया है।जो निश्चित तौर पर एक सार्थक कम है।सूबे की राजधानी लखनऊ के एनेक्सी में सूबे के मुखिया अखिलेश यादव की अध्यक्षता में यूपी कैबिनेट की एक अहम बैठक हुई। जिसमें कई अहम फैसले लिए गए और प्रस्तावों पर मुहर लगाई गई।

प्रदेश की कैबिनेट के अहम फैसले के बाद कोई भी दुकानदार अपने ग्राहक को प्लास्टिक की पॉलिथीन में अब सामान नहीं दे पाएगा।इस नियम का उलंघन करे हुए अगर कोई दुकानदार ऐसा करते हुए पाया जाता है तो कानूनी कार्यवाही करते हुए उसे 6 महीने की सजा के साथ ही 5 लाख रुपये तक का जुर्माना भी भरना पड़ेगा।आपको बता दें कियूपी सरकार का ये फैसला इलाहाबाद हाईकोर्ट के ऑर्डर पर लगाया गया है।क्योंकि कोर्ट ने प्रदेश में 31 दिसंबर तक किसी भी सूरतेहाल प्लास्टिक के लिसी भी प्रकार पालीबैग पर बैन लगाने के निर्देश दिए थे।

मित्रों पॉलिथीन प्रयोग बढ़ने की वजह से पल भर के लिए हमें सुविधा तो महसूस होती है लेकिन इसके दुष्परिणाम कहीं ज्यादा है।पालिथीन के प्रयोग की वजह से नगर निगम को सफाई अभियान में खासा मुश्किलों का सामना करना पड़ता है साथ ही नालियों और सीवर लाइन के बंद हो जाने की समस्या अक्सर खड़ी हो जाती है,और नाले का गंदा पानी सड़कों पर फैलने लगता है,जिस वजह से बिमारीयां फैलने का खतरा बढ़ जाता है। यही वजह है कि अनेकों समीक्षा बैठकों में लगातार ये मांग उठती रही है कि पॉलिथीन पर रोक लगाई जाए।लेकिन प्रशासन के फेल होने का बाद ये पूरा मामला कोर्ट के दरवाजे पर पहुंच गया।

पॉलिथीन  पर साब बैन तो लग गया,लेकिन अब सबसे बड़ी समस्या सरकार के सामने जो है वो ये कि इसे क्रियान्वित कैसे करे। क्योंकि ज्यादातर उपभोक्ताओं की जरुरत पॉलिथीन बन चुकी है।हमारी आदते ना जाने कितने सालों से कु ऐसी बन चुकी है है कि हम थैला लेकर घर से निकलने में परहेज करने लगे हैं।इसकी एक मुक्य वजह आप इसे भी मान सकते हैं कि सरकार की पूर्व की नितियों से भी प्लास्टिक के उपयोग को लगातार बढ़ावा मिलता रहा।आपको याद होगा कि सन 2000 से पहले झांसी में आयोजित उद्योग विभाग की एक कार्यशाला में उद्यमियों को प्लास्टिक की वस्तुएं बनाने की इकाई लगाने की सलाह दी गयी थी।

प्लास्टिक के बढते प्रभाव हर प्रकार से नुकसान पहुंचाने वाले ही होते हैं,इस उद्योग के बढ़ने से तमाम तरह के छोटे छोटे काम बंद हो गए।जिसमें कागज से लिफाफे बनाना, मिटटी के बर्तन और खिलौने बनाने का कार्य,तात्पर्य ये है कि अनेकों प्रकार के पेड़ों के पत्तों से पत्तल और दोने बनाने वालों के काम ठप्प हो गए इस प्लास्टिक के बढ़ते कारोबार की वजह से।इस प्रकार छोटे छोटे काम जहां अनेकों परिवार की आय के साधन थे वहीं बेहद कम रासी में शुरु होने वाले इन कार्यों पर समय रहते किसी ने ध्यान नहीं दिया।लेकिन लाखों रुपयो से शुरु होने वाले कार्यों पर हर किसी ने जरुर ध्यान दिया। कहना गलत नहीं होगा कि अनेकों रोजगार इस प्लास्टिक के चलन से चौपट गया और लोग बेरोजगार हो गए। अब तो ना ही पुराने अखबार के कागज के लिफाफे नजर आते हैं और ना ही पत्तों से बने दोने।

दोस्तों अब तो फैशन की चकाचौंध में हर तरफ प्लास्टिक के चमचमाते ग्लास,दोने पत्तल नजर आते हैं।जरा कल्पना किजिए और याद किजिए उस समय को जब हमारे देश में शादी विवाह में किस तरह से मिटटी के कुल्ल्हडों में चाय और लस्सी मिला करती थी,खाने की व्यवस्था पेड़ों के पत्तों से बने पत्तलों में हुआ करती थी।लेकिन वीआईपी बनने की चाह ने हमें अपनी माटी की महक से ही दूर कर दिया।


अंतत : प्लास्टिक के उपयोग से फायदे कम और नुकसान ज्यादा ही होता था,जिसपर रोक लगा कर यूपी सरकार ने सराहनीय कदम उठाया है,उम्मीद की जाना चाहिए कि अब छोटे छोटे रोजगारों को बढ़ावा मिलेगा और एक बार फिर हम पुरानी परम्पराओं को फिर से सुचारु कर सकेंगे।उम्मीद ये भी करनी चाहिए कि अखिलेश सरकार इस नियम को कड़ाई से लागु भी करेगी और प्लास्टिक समुचे प्रदेश में हकीकत में प्रतिबंधित होगी क्योंकि इस योजना का अन्य प्रदेशों में हम हश्र देख चुके हैं। 

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